Media
वादा तेरा वादा: एक साल में प्रेस क्लब के मौजूदा प्रबंधन का कामकाज कहां पहुंचा?
21 मई को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) के चुनावों को लेकर एक बार फिर से सेंट्रल दिल्ली और पत्रकारिता के महकमों में गहमागहमी है. चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. अमूमन हर शाम प्रेस क्लब के लॉन में पत्रकारों की टोलियां जमती हैं, मयनोशी की महफिलें सजती हैं, राजनीति की चीर-फाड़ होती है. लेकिन क्लब के चुनाव के दिनों में माहौल थोड़ा बदल जाता है. देश की सियासत से ज्यादा चर्चा पत्रकारों की अपनी सियासत ले लेती है. आम दिनों में अलहदा मेजों पर जमने वाले पत्रकार इन दिनों में मेज-दर-मेज जोड़कर अपने गुट का बल प्रदर्शन करते हैं. चुनाव जीतने की रणनीतियां बनती हैं. गुटों के बीच आपसी आरोप-प्रत्यारोप का मैच खेला जाता है, जो अक्सर क्लब कैंपस की सीमाओं को लांघकर सोशल मीडिया के असीमित मैदान में खेला जाने लगता है.
बीते साल प्रेस क्लब चुनाव में राजनीति का एक अलग स्तर दिखाई पड़ा था. विजयी पैनल (‘लखेड़ा, विनय, ज्योतिका’ पैनल), ने चुनौती देने वाले पैनल के ऊपर आरएसएस और भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाया था. कथित तौर पर आरएसएस-भाजपा के समर्थन वाला पैनल बीते साल चुनाव नहीं जीत पाया था. चीजें कमोबेश इस बार भी वैसी ही दिख रही हैं.
पुराने पैनल से अध्यक्ष पद पर उमाकांत लखेड़ा, उपाध्यक्ष के लिए शाहिद अब्बास, जनरल सेक्रेटरी की पोस्ट पर विनय कुमार और जॉइंट सेकेट्री की पोस्ट पर चंद्रशेखर लूथरा ने जीत दर्ज की. वहीं चुनौती देने वाले पैनल से कोषाध्यक्ष पद पर सुधीर रंजन सेन ने जीत दर्ज की थी.
चुनाव में दोनों पैनलों ने कई वादे किए थे. जीतने वाले पक्ष में बीते एक साल में अपने वादों पर कितना काम किया, न्यूज़लॉन्ड्री ने यह जानने की कोशिश की.
‘लखेड़ा, विनय, ज्योतिका’ पैनल ने पिछले साल एक मैनिफेस्टो जारी किया था. इस बार इस पैनल में ज्योतिका नहीं है. चार पेज के इस मेनिफेस्टो का नाम था- ‘प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध’. इसके दूसरे पेज पर बताया गया था प्रेस क्लब के पास क्या-क्या मौजूद है. तीसरे पेज पर बताया गया कि ‘हमने अब तक क्या दिया’ है और आखिरी पेज पर ‘‘हम क्या करेंगे’ इसका जिक्र है. हारा फोकस “हम क्या करेंगे” वाले हिस्से पर रहेगा.
‘‘हम क्या करेंगे”
‘लखेड़ा, विनय, ज्योतिका’ पैनल ने ‘हम क्या करेंगे’ वाले हिस्से में निम्नलिखित वादे किए थे.
1. सरकारी नियमों के मुताबिक प्रेस क्लब के सदस्यों और उनके परिजनों को कोरोना वैक्सीन लगवाई जाए.
2. बिना पीआईबी मान्यता वाले सदस्य पत्रकारों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए.
3. सदस्यों को उनकी व्यावसायिक जरूरतों के लिए निःशुल्क कानूनी परामर्श प्रदान करना.
4. पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया अवार्ड्स’ की स्थापना.
5. फोटो और वीडियो पत्रकारों के लिए सुविधाओं में बढ़ोतरी.
6. विशेषज्ञों के साथ नियमित गोष्ठियों का आयोजन.
7. अगले साल प्रेस क्लब चुनाव में ऑनलाइन वोटिंग की संभावना तलाशना.
8. रविवार और सार्वजनिक छुट्टियों के दिन बच्चों के लिए खाने का स्पेशल मेन्यू.
9. समर कैंप, इंटरएक्टिव कार्यक्रमों के माध्यम से परिवारों और बच्चों को शामिल करने के लिए और अधिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे.
10. प्रेस क्लब की शिष्टता, संयम और गरिमा बनाए रखें.
क्या खोया, क्या पाया…
उमाकांत लखेड़ा इस बार फिर से अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में हैं. हमने उनसे बीते साल की उपलब्धियों और वायदों को लेकर विस्तार से बातचीत की.
वे कहते हैं, ‘‘अपने वादों का एक बड़ा हिस्सा हमने पूरा कर दिया है. हालांकि कुछ चीजें रह गई लेकिन उसके पीछे कुछ आर्थिक कारण रहे. इसके अलावा कोरोना के कारण हमारी प्राथमिकता में कई बदलाव करने पड़े. क्लब बीच में सेकेंड वेव के कारण कई महीने बंद रहा. इसलिए भी कई चीजें नहीं हो सकीं. कोरोना में जहां लोगों को नौकरियां जा रही थीं, प्रेस क्लब के किसी एक कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकाला गया. उन्हें आर्थिक मदद भी की. जबकि कोरोना के कारण क्लब कई महीनों तक बंद रहा. क्लब अगर नियमित चलता तो और भी दूसरे काम करते.’’
हमने लखेड़ा से चुनाव में किए हर वादे को लेकर सवाल किया.
प्रेस क्लब के सदस्यों और उनके परिजनों को कोरोना वैक्सीन लगवाई जाए.
लखेड़ा कहते हैं, “बीते साल अप्रैल महीने में क्लब के चुनावी नतीजे आए. उसी दौरान कोरोना की दूसरी लहर आ गई थी. हमने लॉकडाउन में ही चार्ज लिया. थोड़ी दिनों बाद जब वैक्सीन आई तो काफी महंगी मिल रही थी. लोगों के अस्पतालों में वैक्सीन के लिए लाइन में खड़े होने पर भी वह सबको नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में हमने प्रेस क्लब में वैक्सीनेशन कैंप लगाया. हमारे जो सदस्य हैं वे अपने पूरे-पूरे परिवार के लोगों को लेकर आए और वैक्सीन लगवाई. कई लोगों ने अपने ड्राइवर और घरेलू सहयोगियों को भी वैक्सीन दिलवाई. इससे जुड़ी तस्वीरें आप सोशल मीडिया पर देख सकते हैं. हमने अपने यहां काम करने कर्मचारियों और उनके परिजनों को भी वैक्सीन लगवाई है.”
बिना पीआईबी मान्यता वाले सदस्य पत्रकारों के लिए सामाजिक सुरक्षा पर चर्चा.
इसको लेकर लखेड़ा कहते हैं, ‘‘कोरोना के कारण करीब तीन महीने तक बंद रहने के बाद प्रेस क्लब जब जुलाई में खुला, तब हमने इस बारे में चर्चा शुरू की. हमने इंश्योरेंस को लेकर चर्चा शुरू की. दो-तीन एजेंसियों से बात भी की. तब तक दिसंबर आ गया और कोरोना की तीसरी लहर आ गई. उसके बाद हमने फैसला किया कि नए वित्त वर्ष के बाद इसे शुरू करेंगे.’’
वे आगे कहते हैं, ‘‘प्रेस क्लब आर्थिक संकट से गुजर रहा था. काफी संख्या में पत्रकारों की नौकरी चली गई या उनके वेतन में कटौती कर दी गई. ऐसी स्थिति में क्लब को सक्रिय रखने के लिए हमें काफी कोशिश करनी पड़ी. सामूहिक इंश्योरेंस को लेकर कंपनियों से हमारी बात चल रही है. इसके जरिए हम वर्किंग पत्रकारों और फोटोग्राफरों को इंश्योरेंस दिलाएंगे.’’
लेकिन जो कर्मचारी प्रेस क्लब में काम कर रहे हैं उनका भी इंश्योरेंस नहीं है. क्या सामूहिक इंश्योरेंस में उन्हें भी शामिल किया जाएगा? इस सवाल पर लखेड़ा कहते हैं, ‘‘जी, इसमें प्रेस क्लब में काम करने वाले कर्मचारी भी शामिल होंगे. ऐसा नहीं है कि इंश्योरेंस नहीं है तो हम अपने कर्मचारियों की मदद नहीं करते. जब भी जरूरत पड़ती है, क्लब अपने कर्मचारियों की आर्थिक मदद करता है. बीते दिनों दो-तीन कर्मचारियों का निधन हुआ. उनके परिजनों को क्लब के खाते से हमने आर्थिक मदद दी है.’’
लखेड़ा आगे कहते हैं, ‘‘कोरोना के समय हमने कर्मचारियों को नहीं निकाला, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कुछ महीने तक आधा वेतन दिया. जब चीजें कुछ बेहतर हुईं तो इस दिवाली पर हमने उन्हें एक महीने का वेतन बोनस के रूप दिया. ऐसा करने वाला यह इकलौता प्रेस क्लब है.’’
सदस्यों को उनकी जरूरतों के लिए निःशुल्क कानूनी परामर्श
लखेड़ा बताते हैं, “जी यह पूरा हो गया है. हमने एक लॉ-फर्म के साथ एमओयू अर्थात समझौता साइन किया है. अब किसी भी पत्रकार को किसी भी तरह की कानूनी सलाह चाहिए, तो वे बिना किसी फीस के सलाह ले सकते हैं.”
लखेड़ा यह दावा भी करते हैं कि अगर इस संवाददाता की जानकारी में कोई ऐसे पत्रकार हों जिन्हें कानूनी सलाह चाहिए, तो उन्हें भेज दीजिए और हम उन्हें वकील का नंबर दे देंगे. साथ में लखेड़ा यह भी बताते हैं कि दो वकील उपलब्ध हैं. एक वकील का नाम अशोक अरोड़ा है और दूसरे का नाम वे उस समय भूल रहे थे.
पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया अवार्ड्स’
मुंबई प्रेस क्लब हर साल ‘रेड इंक’ से साथ मिलकर उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए साझा अवार्ड देता है. लंबे समय से मांग रही है कि प्रेस क्लब ऑफ इंडिया भी राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह का पत्रकारिता पुरस्कार शुरू करे. बीते साल इस मांग को मेनिफेस्टो में शामिल किया गया था, लेकिन इस बार भी यह शुरू नहीं हो पाया.
इसको लेकर लखेड़ा कहते हैं, ‘‘जब हम चुने गए उसके बाद से क्लब बंद था. कोरोना के कारण हमें कुछ ही महीने काम करने का मौका मिला. जब पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए अवार्ड देना है तो हम नहीं चाहते कि आनन-फानन में दे दिया जाए.’’
लखेड़ा आगे कहते हैं, ‘‘एक बात मैं फिर दोहरा रहा हूं, आर्थिक संकट के कारण हमें अपने कई प्रोजेक्ट को बंद करना पड़ा. अवार्ड देने के लिए पैसे की जरूरत होती है. हम सरकार या प्राइवेट लोगों से कोई मदद नहीं लेते हैं. हमारे कुछ सदस्यों के द्वारा स्पॉन्सर किए जाने के बाद हमने कल्याण बरुआ मेमोरियल अवार्ड दिया. हमने 1857 के आसपास चांदनी चौक के इलाके में अंग्रेज़ों द्वारा फांसी पर लटकाए जाने वाले मौलवी बाकर के नाम पर अवार्ड देना शुरू किया, क्योंकि उसके लिए हमें स्पांसर मिल गए थे. उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए प्रेस क्लब ऑफ इंडिया अवार्ड देगा, इसके लिए हम काम कर रहे हैं.’’
फोटो और वीडियो पत्रकारों के लिए सुविधाओं में बढ़ोतरी
लखेड़ा बताते हैं, “प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में न्यू मीडिया सेंटर बना है. हमने काफी बेहतरीन मीडिया सेंटर बनाया है. यहां मौजूद हर कंप्यूटर में जरूरी तमाम सॉफ्टवेयर मौजूद हैं. पहले फ्रीलांस फोटोग्राफर और दूसरे लोग फोटोशॉप के लिए भटकते रहते थे, अब वे यहां आते हैं और अपना काम करते हैं.”
लखेड़ा आगे कहते हैं, “आप किसी भी समय वहां जाकर देखेंगे तो पत्रकार खबर फाइल करते हुए नजर आएंगे. चूंकि हमारे पास बिल्डिंग नहीं है. इसलिए यहां बैठकर काम करने की समय सीमा तय की गई है.”
विशेषज्ञों के साथ नियमित गोष्ठियां
मेनिफेस्टो में विशेषज्ञों से निरंतर बातचीत के वादे पर लखेड़ा कहते हैं, “हमारे यहां मीडिया सेंटर का उद्घाटन होना था. हमने सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को पत्र लिखा और बताया कि बांग्लादेश के सूचना मंत्री डॉक्टर हसन महमूद आए रहे हैं. आप प्रेस क्लब आएं. मंत्री जी का ऑफिस, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया से केवल 50 मीटर दूर है पर वो नहीं आए. इसके अलावा पीआईबी कार्ड समेत दूसरी अन्य समस्याओं को लेकर हमने अनुराग ठाकुर से मिलने के लिए समय मांगा, लेकिन उन्होंने कभी हमें समय नहीं दिया.”
लखेड़ा के अनुसार यहां अन्य प्रोग्राम भी हुए. यहां केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान आए थे. वे कहते हैं कि मीडिया और संसद को लेकर जो सेमिनार आयोजित की गई थी उसमें भी कई सांसद आए थे.
“जब पेगासस का मामला सामने आया, भारत के कई पत्रकारों, नेताओं, मंत्रियों और जजों का फोन टैप करने की जानकारी सामने आई, तो हमने इसके जानकारों और इसकी चपेट आए लोगों को बुलाकर बातचीत की थी.”
ऑनलाइन वोटिंग
यह व्यवस्था क्लब में अभी तक लागू नहीं हुई है. लखेड़ा के अनुसार ऑनलाइन वोटिंग के लिए एक ‘लॉन्ग टाइम मेकेनिज्म’ की जरूरत है. हमने कोटेशन मंगवाया जिसमें काफी खर्च आ रहा था. इसलिए अभी पारंपरिक वोटिंग प्रक्रिया को ही जारी रखा गया है, भविष्य में ऑनलाइन वोटिंग पर विचार किया जाएगा.
परिवारों और बच्चों को शामिल करने के लिए नए कार्यक्रमों का आयोजन
लखेड़ा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “जब भी कोरोना की पाबंदी से छूट मिली हमने ऐसे कार्यक्रम किए. हमारे यहां एक जनवरी पर कार्यक्रम हुए. उसके बाद लोहड़ी पर कलाकारों ने कार्यक्रम प्रस्तुत किया. ऐसा कर प्रेस क्लब को फैमिली क्लब बनाने में हम सफल हुए हैं. पहले हमारे यहां रविवार को आठ-दस लोग आते थे लेकिन अब आप किसी भी रविवार को जाएं, पूरा कैंपस लोगों से भरा होता है. बच्चों के लिए हमने आइसक्रीम कॉर्नर की व्यवस्था की जो पहले नहीं थी. हमने सस्ती दर पर आइसक्रीम की व्यवस्था की. क्लब को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाया और इस कारण यहां महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है.”
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए प्रेस क्लब
प्रेस क्लब से यह उम्मीद की जाती है कि मीडिया पर होने वाले हमलों के खिलाफ वह आगे बढ़कर बोलें. हमने उमाकांत लखेड़ा से सवाल किया कि पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर प्रेस क्लब ने बीते साल क्या काम किया है?
इसके जवाब में वे कहते हैं, ‘‘जब-जब पत्रकारों पर किसी भी तरह के हमले हुए, प्रेस क्लब उसके खिलाफ खड़ा हुआ. चाहे पेगासस के जरिए पत्रकारों की कॉल रिकॉर्ड करने का मामला हो या बलिया में पत्रकारों पर हुए हमले हों. कोरोना के बहाने जब संसद भवन में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगाई गई, तो प्रेस क्लब ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया था. हालांकि सरकार ने आज की तारीख में भी रोक लगाई हुई है, लेकिन हम लगातार आवाज उठाते रहे हैं. पीआईबी धारकों की मान्यता रोकने की कोशिश के खिलाफ भी हमने संघर्ष किया.’’
लखेड़ा आगे कहते हैं, ‘‘हमने अपना विरोध जताते हुए यह नहीं देखा कि कौन सी सरकार ऐसा कर रही है. कदम उठाने वाली सरकार चाहे कांग्रेस की हो, भाजपा की हो या लेफ्ट की, जहां भी पत्रकारिता का नुकसान नजर आया हम खड़े हुए और बोले. कश्मीर में जब पत्रकारों से प्रेस क्लब खाली करा दिया गया तो हम इसके खिलाफ खड़े हुए और वहां के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा को पत्र लिखकर उसे पत्रकारों को वापस करने की मांग की.’’
‘विजन की कमी’
एक तरफ जहां लखेड़ा का दावा है कि उन्होंने तमाम वादे पूरे किए. जो अधूरे रह गए उनके पीछे आर्थिक तंगी एक बड़ा कारण रहा. लेकिन बीते साल चुनाव हारने वाले पैनल से इस बार वॉइस प्रेसिडेंट पद के लिए चुनाव लड़ रहे पत्रकार पवन कुमार कहते हैं, ‘‘इन्होंने कुछ नहीं किया. इसके पीछे कल्पनाशीलता की कमी है.’’
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, इनके वादों में से आधे काम भी नहीं हुए. इन्होंने वैक्सीन जरूर लगवाई है लेकिन यह इनका काम नहीं था. यह सरकार का काम था.
कुमार दावा करते हैं, “एक दौर में यहां देश-विदेश के अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञों को बुलाया जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह परंपरा खत्म हो गई है. पिछले दिनों नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी भारत आए हुए थे, वे दिल्ली में घूम रहे थे. प्रेस क्लब को उन्हें बुलाना चाहिए था. लेकिन नहीं बुलाया गया. अभी रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है, इन्होंने रूस व यूक्रेन के राजदूतों को क्लब में आमंत्रित करने की अलग-अलग कोशिश की, पर ऐसा नहीं हो पाया. ऐसे लोग अगर आते हैं तो हेडलाइन बनती है, पर ये लोग कोशिश ही नहीं कर रहे हैं.’’
बातचीत के दौरान ही कुमार ने मौजूदा पैनल को वामपंथी और जेएनयू से संबद्ध होने की बात कही. हमने उनसे पूछा कि आप इतनी दृढ़ता से कह रहे हैं “इनके लोग जेएनयू में मिल जाएंगे”, इसका क्या अर्थ है? इस सवाल को पवन हंसते हुए टाल देते हैं. इसी तरह हमारे अगले सवाल को भी हंस कर टाल देते हैं. हमने पूछा तो क्या आप अपने पैनल को दक्षिणपंथी मानते हैं? कुमार हंसते हुए इसका जवाब न में देते हैं.
हमने कुमार से पूछा कि बीते साल आपके पैनल से कोषाध्यक्ष के पद पर सुधीरंजन सेन ने जीत दर्ज की थी. क्या उन्होंने ये सारे काम करने का सुझाव मौजूदा कमेटी को दिया? कुमार कहते हैं, ‘‘आपको लगता है कि सेन आइडिया देंगे और ये लोग मान जाएंगे. ऐसा नहीं होता. ये सुनते नहीं है.’’
आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच इस बार एक और पैनल ने एंट्री मारी है. यह पैनल वरिष्ठ पत्रकार रास बिहारी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहा है. इस पैनल के बारे में तमाम पत्रकारों में एकराय है कि यह भाजपा के इशारे पर मैदान में उतरा है. रास बिहारी का भाजपा के साथ करीबी संबंध जगजाहिर है.
Also Read
-
Kamala Harris’s legacy as a ‘well-behaved woman’ who couldn’t make history
-
From satire to defiance: The political power of Abu Abraham’s cartoons
-
Trump’s return: The threat to US press freedom runs parallel to India’s media crisis
-
Another oran hurdle to a Rajasthan project. This time to Adani solar plant
-
विचाराधीन आपराधिक मामलों की रिपोर्टिंग को लेकर केरल हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी