Opinion

आईएंडबी मंत्रालय की चिट्ठी, टेलीविज़न मीडिया का बेअंदाज रवैया और विदेशी खबरों की चोरी का जाल

24 फरवरी, 2022 से भारतीय टेलीविजन चैनलों पर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध पर सामग्री परोसी जा रही है. 10 जनवरी को रूसी दूतावास ने एक लंबे चौड़े बयान में यूक्रेन को लेकर भारतीय मीडिया की रिपोर्टों पर आपत्ति जताई थी. दूतावास ने कहा कि ‘यूक्रेन की स्थिति को इन रिपोर्टों में तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है.

रूसी दूतावास के बयान में कहा गया था- 'यूक्रेन की सेना को खुलेआम अमेरिका और नाटो देशों से समर्थन मिलता है और ये सेना को हथियारों की सप्लाई करते हैं.’ लेकिन भारतीय मीडिया में यूक्रेन और रुस के बीच युद्ध की सामग्री के लेकर कोई फर्क नहीं देखा गया.

अतीत के किस्से

भारतीय मीडिया में खासतौर से टेलीविजन चैनलों में विदेशों की ख़बरों के नाम पर परोसी जाने वाली सामग्री को लेकर कभी गंभीर विमर्श नहीं किया जाता है. जबकि उन सामग्री के पीछे देश के घरेलू हालात को प्रभावित करने का राजनीतिक उद्देश्य शामिल होता है.

महत्वपूर्ण पत्रिका फ्रंटलाइन के संपादक समर सेन 1963 में आनंद बाजार पत्रिका में सहायक संपादक थे. तब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पीसी सेन ने संपादकों व पत्रकारों की एक बैठक की और उनसे अनुरोध किया कि पूर्वी पाकिस्तान में होने वाली सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को इस कदर प्रकाशित न करें कि उसका असर पश्चिम बंगाल के जनजीवन पर हो. समर सेन ने इस बैठक की राय से समाचार पत्र को अवगत करा दिया. लेकिन सेन को दूसरे दिन अपने समाचार पत्र में यह देखकर हैरानी हुई कि पूर्वी पाकिस्तान की घटनाओं को फिर से बहुत प्रमुखता से प्रकाशित किया गया था.

उन्होंने तत्काल समाचार समूह के मालिक को मुख्यमंत्री पीसी सेन की बैठक में की गई सहमति की याद दिलाई. जवाब में मालिक ने उनसे कहा कि वे चाहें तो ऐसी स्टोरी को अपने संपादन वाले समाचार पत्र में नहीं छापें, लेकिन वे बांग्ला में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र में ऐसा नहीं कर सकते हैं, क्योंकि उनका प्रतिद्वंदी समाचार पत्र ऐसी स्टोरी प्रकाशित कर रहा है. लेकिन उसके दूसरे दिन सेन ने पाया कि उनके संपादन में निकलने वाले समाचार पत्र में भी न सिर्फ वैसी ही खबरें, बल्कि उस तरह की कई और स्टोरी छपी थीं, जिसे उन्होंने नहीं छापने का फैसला किया था. तब सेन ने संस्थान से इस्तीफा दे दिया था.

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने विदेशों से जुड़ी खबरों को लेकर 23 अप्रैल, 2022 को गंभीर आपत्ति जताते हुए एक एडवायज़री जारी की है. इस फैसले के पीछे रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की भारतीय हिंदी टेलीविजन चैनलों द्वारा पेश की जा रही भ्रामक तस्वीर है. पत्र में 18 अप्रैल से 20 अप्रैल तक विभिन्न टेलीविजन चैनलों पर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को लेकर प्रसारित की गई कुछ सामग्री का हवाला देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय कहता है कि हाल के दिनों में कई सैटेलाइट टीवी चैनलों ने घटनाओं और घटनाओं का कवरेज अप्रमाणिक, भ्रामक, सनसनीखेज और गंदी भाषा का इस्तेमाल किया गया हैं. ये सब कानून उल्लंघन हैं.

पत्र के अनुसार रूस-यूक्रेन संघर्ष पर रिपोर्टिंग के संबंध में यह देखा गया है कि- चैनल झूठे दावे कर रहे हैं और अकसर अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों / अभिनेताओं को गलत तरीके से उद्धृत कर रहे हैं. वैसी सुर्खियों /टैगलाइनों' का उपयोग कर रहे हैं जो न सिर्फ 'निंदनीय है बल्कि पूरी तरह से समाचार से संबंधित भी नहीं हैं. इन चैनलों के कई पत्रकारों और समाचार एंकरों ने दर्शकों को भड़काने के इरादे से मनगढ़ंत और अतिशयोक्तिपूर्ण सामग्री परोसी. पत्र में बकायदा टेलीविजन चैनलों द्वारा प्रसारित सामग्री के कुछ उदाहरण दिए गए हैं.

1. एक चैनल ने 18 अप्रैल, 2022 को एक समाचार आइटम 'यूक्रेन में एटमी हड़कंप' प्रसारित किया, जिसमें उसने उल्लेख किया कि रूस यूक्रेन पर परमाणु हमले की योजना बना रहा है. इसने स्थिति को और सनसनीखेज बना दिया और उल्लेख किया कि आने वाले कुछ दिनों में हमला होगा. रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का भी गलत हवाला दिया गया है.

2. युद्ध की अफवाहों में लिप्त एक अन्य चैनल ने इस हद तक तथ्यहीन अटकलों को हवा देना जारी रखा जिसमें दर्शकों के मन में डर पैदा करने की प्रवृत्ति स्पष्ट है. उसमें यह दावा किया गया कि रूस ने यूक्रेन पर परमाणु हमले के लिए 24 घंटे की समय सीमा दी है.

3. एक चैनल ने 18 अप्रैल, 2022 को 'परमाणु पुतिन से परेशान जेलेंस्की', 'परमाणु एक्शन की चिंता, जेलेंस्की को डिप्रेशन' शीर्षक से बेबुनियाद सनसनीखेज खबर प्रसारित की और विदेशी जानकारों /एजेंसियों को गलत उद्धृत किया और कई असत्यापित दावों को प्रसारित किया. "आधिकारिक रूसी मीडिया स्पष्ट रूप से बताता है कि तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया है." चैनल ने झूठे दावों के साथ फुटेज भी दिखाया कि रूसी राष्ट्रपति अपने साथ एक "परमाणु ब्रीफकेस" ले जा रहे हैं.

4. एक अन्य चैनल ने 19 अप्रैल को गलत रिपोर्ट की और असत्यापित दावे किए, ऐसा ही एक दावा था- 'अमेरिकी एजेंसी सीआईए का मानना ​​है कि रूस यूक्रेन पर परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा.'

5. एक चैनल ने बार-बार परमाणु युद्ध होने के सनसनीखेज दावे किए. 19 अप्रैल, 2022 को इसने इस शीर्षक से प्रसारित किया: 'परमाणु निशाना ' हैरतअंगेज खुलासा विश्व युद्ध का'. चैनल ने कई बार 'युद्ध को बढ़ावा देने वाले' दावे किए.

6. एक प्रमुख चैनल ने प्रसारित किया कि 'यूक्रेन से पुतिन की परमाणु योजना तैयार?', 'परमाणु हमला होना तय है?' ऐसी सनसनीखेज सुर्खियों के तहत गलत रिपोर्टिंग कर दर्शकों को गुमराह किया. यह 19 अप्रैल, 2022 को प्रसारित किया गया था. चैनल अकसर इस तरह के भ्रामक और गुमराह करने वाले टैगलाइन का उपयोग करता है.

7. यह पाया गया कि एक चैनल ने प्राइम टाइम के दौरान सक्रिय संघर्ष पर सनसनीखेज अटकलें लगाईं. इसमें 'एटम बम गिरेगा' जैसी मनगढ़ंत सुर्खियों का इस्तेमाल किया गया. तीसरा विश्व युद्ध शुरू होगा?' 19 अप्रैल, 2022 को.

8. एक चैनल ने युद्ध के बारे में असत्यापित और गलत खबरों के साथ दर्शकों को गुमराह किया. इनमें से कई चैनलों के एंकर अतिशयोक्ति में बात करते हैं और अन्य स्रोतों को गलत तरीके से उद्धृत करते हुए तथ्यात्मक रूप से गलत टिप्पणी करते हैं. ऐसी ही एक ख़बर 'मारियुपोल फिनिश्ड! 20 अप्रैल, 2022 को फुल एंड फाइनल'.

9. एक चैनल ने यूक्रेन पर आगामी परमाणु हमले का सबूत होने का दावा करते हुए मनगढ़ंत तस्वीरें प्रसारित कीं. यह पूरी तरह से काल्पनिक समाचार दर्शकों को गुमराह करने और उनके अंदर मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल पैदा करने के इरादे से लगती है. शो का शीर्षक 'ये रात कयामत वाली है?' 20 अप्रैल, 2022 को प्रसारित हुआ.

10. एक चैनल के पत्रकार ने कई तथ्यहीन टिप्पणियां कीं, जो 'रूस परमाणु हमला कब करेगा? कहां करेगा?' चैनल ने 20 अप्रैल, 2022 को ''विश्व युद्ध के मुहाने पर दुनिया'' जैसे टैगलाइन का इस्तेमाल किया.

इन बातों को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने मनमाना प्रसारण कर रहे टेलीविजन चैनलों के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है. पहली बार कठोर शब्दों में सलाह दी जाती है कि ऐसी किसी भी सामग्री को प्रकाशित और प्रसारित करने से तत्काल बचना चाहिए जो केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम, 1995 का उल्लंघन करती है. उपरोक्त का कड़ाई से अनुपालन किया जाना चाहिए.

भारतीय मीडिया में विदेश की खबरों के स्रोत

भारत में विदेश की खबरें समाचार एजेंसी से मीडिया कंपनियों को मिलती हैं. भारतीय कानूनों के अनुसार विदेश की खबरों के वितरण की जिम्मेदारी अंग्रेजी की भारतीय न्यूज़ एजेंसी यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) और हिंदी की यूनीवार्ता और प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) एवं हिंदी में भाषा को दी गई है.

इन समाचार एजेंसियों के संवाददाता गिने चुने मसलन चीन, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों में तैनात है. ज्यादातर ये एजेंसियां अमेरिका की समाचार एजेंसी एपी , फ्रांस की एएफपी और ब्रिटेन की रॉयटर्स की खबरों को भारत में मीडिया कंपनियों को बेचती हैं. रॉयटर्स और रूस की समाचार एजेंसी तास की खबरें यूएनआई को दी जाती हैं जहां से भारत की मीडिया कंपनियों तक पहुंचती हैं.

यूएनआई के ग्राहक बेहद कम हैं और इन दिनों तो इसकी हालात जर्जर कर दी गई है. पीटीआई को अमेरिकी एजेंसी एपी अपनी सामग्री बेचती है और वह भारत की मीडिया कंपनियों को भेजती है. यहां मसला यह है कि विदेशी एजेंसियां सीधे भारतीय मीडिया कंपनियों को सामग्री सप्लाई नहीं कर सकती हैं. लेकिन इस कारोबार में लगे मीडिया संस्थानों ने कई तरह के अवैध रास्ते निकाल लिए हैं.

ताकतवर देशों की समाचार एजेंसियां दुनिया भर के कमजोर देशों में अपना प्रभावशाली दखल रखती हैं. भारत में पहले समाचार एजेंसियां लोकतंत्र और संविधान को ध्यान में रखकर विकसित की गई थीं. अब एजेंसियों का चरित्र बदल दिया गया है और कई निजी कंपनियां भी इस कारोबार में शामिल हो गई हैं.

अगर कहा जाए तो भारतीय मीडिया में विदेशी खबरों से जुड़ी जो सामग्री प्रसारित व प्रकाशित होती है उसका बहुत बड़ा हिस्सा फर्जीवाड़े से हासिल किया जाता है. भारतीय मीडिया में विदेश की खबरों का फर्जीवाड़ा ऐतहासिक है लेकिन सरकार ने कभी भी इस संबंध में कोई प्रभावकारी हस्तक्षेप नहीं किया है. यहां तक कि एक भी ऐसा अध्ययन नहीं है जिससे यह पता चले कि फर्जीवाड़ा किस स्तर का है और उसका देश के अंदरूनी राजनीतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक असर किस तरह का होता है.

हिंदी मीडिया में विदेशी खबरों का खेल

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध से संबंधित जिस तरह की सामग्री प्रसारित की है वे ज्यादातर हिंदी समाचार चैनलों के हैं. मंत्रालय ने केवल तीन दिनों तक प्रसारित कुछेक सामग्री का उदाहरण दिया है. ऐसा क्यों किया, यह जानना मुश्किल है. हमने मंत्रालय में कई अधिकारियों से संपर्क कर यह जानने की कोशिश की लेकिन सभी अधिकारी एक दूसरे को बॉल पास करते रहे. दो महीने के बाद अचानक से यूक्रेन और रूस की सामग्री के पीछे क्या कहानी है और क्या इससे मीडिया कंपनियों में विदेशी खबरों से खेलने का खेल रुकेगा, यह भरोसे से कोई नहीं कह सकता.

दिल्ली के जहांगीरपुरी एवं देश के विभिन्न हिस्सों में रामनवमी के आसपास सांप्रदायिक तनाव का जिस तरह से विस्तार हुआ उसमें हिंदी समाचार चैनलों की बड़ी भूमिका देखी गई. भड़काऊ, मनगढंत, भ्रामक, झूठी, सनसनीखेज समाग्री के प्रसारण की बाढ़ दिखी. क्या सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाली सामग्री पर लगाम लगाने के लिए रूस और यूक्रेन के उदाहरणों का इस्तेमाल भर किया गया है?

हिंदी मीडिया विदेशी खबरों का इस्तेमाल बिना किसी जवाबदेही और मनमाने तरीके से करता है. हिंदी मीडिया विदेशी खबरों की सबसे ज्यादा चोरी करता है. वह मुख्यत: देश यानी घरेलू स्तर पर असर डालने के लिए विदेश से जुड़ी सामग्री का इस्तेमाल करता है और किसी भी तरह की जवाबदेही से मुक्त महसूस करता है.

ऊपर संपादक समर सेन के उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए इस्लामिक देशों और खासतौर से पड़ोसी देशों से जुड़ी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है. पाकिस्तान और बांग्लादेश से जुड़ी सामग्री तो सांप्रदायिक नज़रिए से खासतौर से इस्तेमाल की जाती है. इसके ढेरों उदाहरण हैं.

इसका दूसरा इस्तेमाल राष्ट्रवाद की उत्तेजना पैदा करने के लिए किया जाता है. अश्लीलता को बेचने के लिए तो धड़ल्ले से विदेशों से जुड़ी तस्वीरों व सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है.

इस तरह एक पूरी सूची तैयार की जा सकती है कि हिंदी मीडिया घरेलू स्तर पर लोगों को तरह-तरह से प्रभावित करने के लिए किस तरह से विदेशों से जुड़ी सामग्री का इस्तेमाल करता है. नेपाल का उदाहरण हाल ही में देखने को मिला था जब हिंदी मीडिया के संवाददाताओं को वहां से लोगों ने खदेड़ दिया था. अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने जब नेपाल के हित में एक बयान दे दिया था तो वह भारत विरोधी और चीन समर्थक करार दे दी गई थीं.

विदेशी सामग्री को लेकर हिंदी मीडिया कभी कठपुलती तो कभी मदारी की तरह का व्यवहार करते दिखती है.

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