Report
हीटवेव से कैसे बचें? 122 साल में मार्च के महीने में सबसे अधिक तापमान किया गया रिकॉर्ड
यह एक संयोग ही है कि जब जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ पैनल (आईपीसीसी) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट का तीसरा और अंतिम हिस्सा जारी किया तभी भारत के कई हिस्सों में असामान्य तापमान दर्ज किया जा रहा है. इस साल का मार्च पिछले सवा सौ साल के इतिहास में सबसे गर्म रहा. राजधानी दिल्ली में पिछले सोमवार को करीब 42 डिग्री तापमान दर्ज किया गया जो सामान्य से 8 डिग्री अधिक है. इस कारण चल रही हीटवेव यानी लू से समाज के सबसे कमजोर और गरीब लोगों के स्वास्थ्य और रोजगार पर सबसे अधिक असर पड़ रहा है.
हीटवेव की मार और प्रभावित राज्य
देश के कई हिस्से अभी हीटवेव की चपेट में हैं. मौसम विभाग ने पहाड़ी, मैदानी और तटीय इलाकों में हीटवेव के लिए अलग-अलग परिभाषा तय की है. मैदानी इलाकों में हालात को हीटवेव की श्रेणी में तब रखा जाता है जब तापमान कम से कम 40 डिग्री हो. पहाड़ी इलाकों में यह सीमा 30 डिग्री है. इसके साथ सामान्य से 4.5 डिग्री या अधिक तापमान वृद्धि होने पर भी उसे हीटवेव कहा जाता है लेकिन अगर यह तापमान वृद्धि 6.4 डिग्री से अधिक हो जाए तो उसे अत्यधिक हीटवेव (यानी सीवियर हीटवेव) की श्रेणी में रखा जाता है.
हीटवेव घोषित करने का एक अन्य तरीका यह है कि जब किसी स्थान का वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री या इससे अधिक हो और अत्यधिक हीटवेव के लिए यह सीमा 47 डिग्री रखी गई है.
तटीय इलाकों में तापमान से अधिक नमी परेशानी का कारण बनती है. यहां सामान्य से 4.5 डिग्री अधिक तापमान होने और अधिकतम तापमान 37 डिग्री या उससे अधिक होने पर हीटवेव मानी जाती है. मौसम विभाग ने पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली, राजस्थान, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश समेत 15 से अधिक राज्यों में हीटवेव का प्रभाव रहता है. दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरल में भी कभी-कभी हीटवेव महसूस की जाती है.
क्यों चुप है स्वास्थ्य विभाग?
अहमदाबाद स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक दिलीप मावलंकर के मुताबिक मौसम विभाग आंकड़ों के आधार पर जानकारी दे रहा है लेकिन जिस बात पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है वह ये कि स्वास्थ्य विभाग चुप है.
मावलंकर कहते हैं, “हीटवेव के कारण हो रही मौतों का कोई क्रमवार और स्पष्ट आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग नहीं दे रहा है. इसका एक कारण यह भी है कि इसे (लू के असर को) आंकने के लिए कोई सिस्टम भारत में नहीं है. हीटवेव का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव बस एक गेस वर्क (अनुमान के आधार पर) ही है.”
विशेषज्ञ कहते हैं कि जहां बाढ़, चक्रवात और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सरकार और समाज में एक समझ और तैयारी दिखती है वहीं हीटवेव के असर को गंभीरता से नहीं लिया जाता और उसका प्रभाव अनदेखा रह जाता है. मावलंकर के मुताबिक इस असर को बारीकी से आंकने के लिए सांख्यिकीविद् की मदद ली जानी चाहिए लेकिन भारत में इसका अभाव है.
वह कहते हैं, “डॉक्टर का काम मरीज का इलाज करना है. लेकिन कोई सांख्यिकीविद् (आंकड़ा विशेषज्ञ) ही यह अलर्ट कर सकता है कि किसी शहर में अचानक मौतों की संख्या क्यों और किस वजह से बढ़ रही हैं.”
अहमदाबाद ने 12 साल पहले दिखाया था रोडमैप
मावलंकर बिल्स ऑफ मॉर्टेलिटी ऑफ लंदन का हवाला देते हुए कहते हैं कि जो तरीका ब्रिटेन और दूसरे यूरोपीय देशों में कई सौ साल पहले स्थापित कर लिया था वैसा भारत में अभी तक नहीं है. 16वीं शताब्दी में शुरू किए गए इस तरीके में हर हफ्ते होने वाली मौतों की संख्या और कारणों का हिसाब रखा जाता है.
अहमदाबाद में 21 मई 2010 को अचानक हीटवेव के कारण एक दिन में मरने वालों की संख्या (जो अमूमन 100 के आसपास रहती थी) बढ़कर 310 हो गई. उस साल मई के महीने में 55 लाख कुल आबादी वाले अहमदाबाद में कुल 4,462 लोग मरे जबकि एक साल पहले मई के महीने में यहां केवल 3,118 लोगों की मौत हुई थी.
मौसम और स्वास्थ्य विज्ञानियों ने उसके बाद एक शोध प्रकाशित किया जिसमें यह आंकड़े दिए गए हैं. मावलंकर कहते हैं दक्षिण एशिया से इस तरह का पहला रिसर्च पेपर था. उसके बाद अहमदाबाद में हीट वेव से बचने के लिए एक हीट एक्शन प्लान लागू किया गया जिससे वहां मरने वालों की संख्या में 25-30% कमी दर्ज की गई.
जलवायु परिवर्तन का असर
आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट कहती है कि दक्षिण एशिया और विशेष रूप से भारत में गर्म दिन और रातों की संख्या बढ़ रही है. आईआईटी गांधीनगर में कार्यरत जल और क्लाइमेट एक्सपर्ट विमल मिश्रा कहते हैं कि अगर आप भारत में जलवायु परिवर्तन के संकेतों को देखना चाहते हैं तो हीटवेव काफी महत्वपूर्ण है. उनके मुताबिक हीटवेव जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं और आने वाले दिनों में इनकी संख्या और तीव्रता बढ़ेगी.
आईपीसीसी रिपोर्ट के लेखकों में से एक चांदनी सिंह, जो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट से भी जुड़ी हैं, के मुताबिक रात के वक्त बढ़ता तापमान महत्वपूर्ण है क्योंकि इंसान दिन में गर्मी झेलने के बाद रात को उसके कुप्रभाव से उबरता है. वैज्ञानिक गणनायें और अनुमान बताते हैं कि बढ़ते तापमान और नमी का मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा और जिन लोगों को पहले से बीमारियां हैं उनकी जान जाने का अधिक खतरा होगा. विशेषरूप से नवजात और बुज़ुर्ग लोगों को.
चांदनी सिंह कहती हैं, “यह समझना महत्वपूर्ण है कि किसी एक शहर में हीटवेव का असर समान रूप से नहीं दिखता है. जिन लोगों के पास कूलिंग के साधन नहीं हैं या जिन्हें काम के लिए बाहर जाना है– जैसे निर्माण क्षेत्र में लगे मजदूर, गली-मोहल्लों में घूमने वाले वेंडर– उन्हें खतरा अधिक है.”
रिसर्च में पाया गया है कि हीटवेव से निपटने में असमानता एक बाधा है. मिसाल के तौर पर वातावरण को ठंडा करने के लिए पेड़ वहीं लगाए जा सकते हैं जहां खुली जगह और संसाधन हों और यह अमीर इलाकों में अधिक होता है. इस कारण समस्या का हल ढूंढते वक्त सामाजिक-आर्थिक पहलू भी काफी अहम हो जाता है.
(साभार- mongabay हिंदी)
Also Read
-
TV Newsance 310: Who let the dogs out on primetime news?
-
If your food is policed, housing denied, identity questioned, is it freedom?
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream
-
Inside Dharali’s disaster zone: The full story of destruction, ‘100 missing’, and official apathy
-
August 15: The day we perform freedom and pack it away