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एनजीटी ने कोका-कोला और पेप्सिको पर लगाया 25 करोड़ रुपए का जुर्माना

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले व गाजियाबाद में स्थित कोका कोला और पेप्सी के बोटल प्लांट पर बिना अनुमति (एनओसी) भू-जल दोहन करने और बदले में भू-जल को रीचार्ज न करने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 24.82 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया है. ग्रेटर नोएडा स्थित इन कंपनियों में कोका कोला के लिए काम करने वाली मैसर्स मून बेवरेजस लिमिटेड के दो प्लांट (एक ग्रेटर नोएडा और दूसरा गाजियाबाद) और पेप्सिको के लिए काम करने वाली ग्रेटर नोएडा स्थित वरूण बेवरेजेस लिमिटेड का नाम शामिल है.

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 25 फरवरी, 2022 को सुशील भट्ट बनाम मून वेबवरेजेस लिमिटेड के मामले में सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया. पीठ ने कहा कि करीब 500 करोड़ रुपए का सालाना टर्नओवर रखने वाली इन कंपनियों पर यदि प्रोजेक्ट कॉस्ट के हिसाब से फीसदी निकाला जाएगा तो यह पर्यावरणीय क्षति की तुलना में कम होगा, इसलिए इनसे भू-जल रीचार्ज दोहन व बदले में रीचार्ज न करने की कुल लागत का दोगुना पर्यावरणीय हर्जाना वसूला जाएगा, जिसका इस्तेमाल ग्राउंड वाटर को बेहतर करने के लिए किया जाएगा.

पीठ ने मैसर्स मून बेवेरेजेस लिमिटेड के ग्रेटर नोएडा स्थित प्लांट (पीपी-1) पर पर्यावरणीय क्षति के लिए 18,538,350 रुपए और गाजियाबाद के साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र मे स्थित प्लांट पर 13,24,80,000 रुपए पर्यावरणीय जुर्माना लगाया है. इसके अलावा पेप्सी प्लांट के लिए काम करने वाले वरुण बेवरेजेस लिमिटेड के ग्रेटर नोएडा स्थित प्लांट पर 9,71,33,440 रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया है. पीठ ने कहा है कि संबंधित प्लांट को जुर्माने की यह रकम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय भूजल प्राधिकरण को दो महीनों में जमा करनी होगी.

पीठ ने जुर्माने के विषय में कहा कि केंद्रीय भूजल प्राधिकरी की 2020 गाइडलाइन के मुताबिक सेमी क्रिटिकल कटेगरी में मौजूद यूनिट को भू-जल दोहन के बदले में 100 फीसदी रीचार्ज करना होता है, हालांकि रीचार्ज करने की दर गाइडलाइन में नहीं बताई गई है. इसलिए सीपीसीबी की रिपोर्ट में बताई गई दोहन की दर को ही रीचार्ज दर के तौर पर तय किया जाता है. गाइडलाइन के मुताबिक प्रतिदिन 5 रुपए घन मीटर दोहन चार्ज है और सीपीसीबी के हिसाब से प्रतिदिन 1693 रुपए घन मीटर दोहन की अनुमति होगी. ऐसे में सेमी क्रिटिकल एरिया में यही दर रीचार्ज की भी मानाी जाएगी. इस तरह परियोजना प्रत्सावक पर प्रतिवर्ष 30,89,725 रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना तय हुआ जो कि छह वर्षों के लिए 1,85,38,350 रुपए हुआ. इसी तरह से दो अन्य यूनिट पर 13.25 करोड़ और 9.71 करोड़ रुपए को चार वर्षों का दोगुना करके पर्यावरणीय जुर्माना तय किया गया है.

पीठ ने मामले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश भू-जल विभाग और संबंधित जिलाधिकारियों की एक संयुक्त समिति बनाई है. पीठ ने कहा कि यह समिति रेस्टोरेशन प्लान दो महीनों में तैयार करके अगले छह माह में इसे लागू कराए. इसके बाद आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट भी एनजीटी को मुहैया कराए.

पीठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश भू-जल विभाग और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, को आदेश दिया है कि वह व्यावसायिक मकसद से भू-जल निकासी करने वाली विभिन्न श्रेणियों का उत्तर प्रदेश में एक सर्वे करें. साथ ही अध्ययन कर यह पता लगाएं कि इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है. और सुझाव भी दें कि भू-जल पर निर्भरता को अत्यधिक दोहन वाले इलाकों में कम कैसे किया जा सकता है.

(साभार- डाउन टू अर्थ)