Assembly Elections 2022

गोरखपुर: किस पार्टी में खुद को सुरक्षित मानते हैं ब्राह्मण और मुसलमान?

गोरखपुर उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित विधानसभा सीटों में से एक है. यहां स्थित गोरखनाथ मठ आस्था का प्रतीक माना जाता है. योगी आदित्यनाथ ने यहां अपने जीवन के 25 साल गुजारे हैं. यहीं रहते हुए उन्होंने पांच बार सांसद का चुनाव जीता और साल 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गए.

ऐसा माना जाता है यूपी में दो पॉवर सेंटर हैं- एक गोरखनाथ मठ और दूसरा तिवारी हाता (हरिशंकर तिवारी के आवास को गोरखपुर में हाता के नाम से जाना जाता है). चिल्लूपार विधानसभा का सियासी समीकरण एक राजनीतिक परिवार के हाते से शुरू होकर वहीं समाप्त हो जाता है. यह सीट हमेशा से ब्राह्मण वर्चस्व की रही है. इस क्षेत्र से उत्तर प्रदेश के पंडित हरिशंकर तिवारी जैसे बाहुबली आते रहे हैं. वर्ष 1985 में हरिशंकर तिवारी ने इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और तब से चिल्लूपार की सत्ता उनके परिवार के हाथों में ही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता, सियासी माहौल बनाने या बिगाड़ने का माद्दा रखते हैं. फिर चाहे समाजवादी पार्टी हो, बसपा, कांग्रेस या सत्तारूढ़ भाजपा सभी ने ब्राह्मणों को लुभाने की जीतोड़ कोशिश की है.

यह सब बस इसलिए क्योंकि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता करीब 12 से 14 प्रतिशत माना जाता है. करीब 115 सीटें ऐसी हैं जिनमें ब्राह्मण मतदाताओं का अच्छा प्रभाव है. साल 2007 के विधानसभा चुनाव में करीब 40 फीसदी ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट दिया था. 2012 के विधानसभा चुनावों में यह संख्या 38 प्रतिशत हो गई वहीं पिछले विधानसभा चुनावों में 80 फीसदी ब्राह्मण वोट भाजपा के साथ था.

गोरखपुर का चिल्लूपार, ऐसी ही ब्राह्मण बाहुल्य हॉट सीट है जहां चार लाख 304 मतदाता हैं. इनमें से 2,24,625 पुरुष और 1,75,668 महिला मतदाता हैं. इनमें से करीब एक लाख मतदाता ब्राह्मण हैं.

यहां रहने वाले ब्राह्मण परिवारों का झुकाव हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी के हक में लग रहा है, वे समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन भाजपा को वोट न देने के पीछे उनकी अपनी वजहें भी हैं.

‘यह ब्राह्मण वर्चस्व की लड़ाई है’

बेलसड़ी गांव चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र में है. गांव में हर तरफ बड़े खेत और बड़े मकान हैं जो दर्शाता है कि यहां समृद्ध ब्राह्मण परिवार रहते हैं.

कुनाल चतुर्वेदी और विशाल चतुर्वेदी अपने घर के बाहर आंगन में बैठे हुए थे. गांव के कुछ और लोग भी कुर्सियों पर बैठे हुए थे. चुनाव पर चर्चा हो रही थी. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने भी चर्चा में बैठकर चिल्लूपार में ब्राह्मण मतदाताओं का मन समझने की कोशिश की.

27 वर्षीय कुनाल चतुर्वेदी अध्यापक हैं. वह बताते हैं, "लगातार भाजपा द्वारा ऐसे कामों को किया जा रहा है जो ब्राह्मण पक्ष में नहीं हैं. जिसमें बिना किसी कारण खुशी दुबे को बेवजह जेल में रखना और अंकित शुक्ला के हत्यारे के साथ बैठने वाली पार्टी के साथ गठबंधन करना शामिल है. इसके अलावा कई बार इनके नेता ब्राह्मणों को लेकर अपमानजनक शब्द कहते हैं, फिर भी वो भाजपा से टिकट पाते हैं. इन सबके विरोध में ब्राह्मण भाजपा के खिलाफ वोट डालेगा."

कुनाल का मानना है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में, ब्राह्मणों ने भाजपा के लिए वोट डाला था लेकिन इस बार वे ऐसे नेता का चुनाव करेंगे, जो सबके सामने ब्राह्मण हित की बात करता है. "इस बार हम विनय शंकर तिवारी को वोट डालने जा रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वो ब्राह्मणों के मुखर नेता हैं और हमारे साथ खड़े हैं." कुनाल ने कहा.

विनय शंकर तिवारी समाजवादी पार्टी की तरफ से चिल्लूपार सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. पिछली बार उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के चुनाव चिह्न पर सीट हासिल की थी.

कुनाल के भाई 29 वर्षीय विशाल चतुर्वेदी सेल्स अफसर हैं. वह भी योगी सरकार से खुश नहीं हैं. कहते हैं, "इस सरकार में जातिवाद हुआ है. हिन्दू- मुस्लिम को लड़ाया गया. गोरखपुर के अलावा ब्राह्मणों और ठाकुरों के बीच आपको कहीं और इतना वंशवाद और रंजिशवाद देखने को नहीं मिलेगा. इसकी नींव मठ के लोगों ने रखी है. आज इसका परिणाम आम जनता को झेलना पड़ रहा है."

बीते 20 वर्षों में यह दूसरा मौका था जब 2017 में एक ठाकुर ने उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. साल 2017 में ही भाजपा के तत्कालीन उन्नाव विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का मामला सामने आया. बलात्कार के दोषी सेंगर को, पीड़िता और उसके परिवार के लम्बे संघर्ष के बाद उम्र कैद की सजा सुनाई गई. हाथरस में दलित लड़की के साथ कथित गैंगरेप और हत्या का आरोप भी चार ठाकुर व्यक्तियों पर लगा.

कानपुर के बिकरू गांव में दो और तीन जुलाई 2020 को माफिया और गैंगस्टर विकास दुबे के गुर्गों ने, डीएसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी. घटना के बाद विकास दुबे अपने साथियों के साथ फरार हो गया. इसमें उसका शार्प शूटर अमर दुबे भी शामिल था जिसे हमीरपुर में हुए एक एनकाउंटर में पुलिस ने ढेर कर दिया. अमर के एनकाउंटर के बाद पुलिस ने उनकी पत्नी खुशी दुबे को गिरफ्तार कर लिया. आरोप है कि बिना न्यायिक प्रक्रिया के ही विकास दुबे का एनकाउंटर कर देने से ब्राह्मण समाज आक्रोशित है.

इन सब घटनाओं ने ब्राह्मणों में 'ठाकुरवाद की वापसी' की धारणा को जन्म दिया है.

विशाल का कहना है, “ब्राह्मण समाज सक्षम और प्रगतिशील है लेकिन उसके स्वाभिमान से समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इस बार ब्राह्मणों के मुखर नेता विनय शंकर तिवारी को वोट डालेंगे. ब्राह्मणों को ये समझना होगा कि एक बार ब्राह्मणों ने हुंकार भर ली तो वह शासन को हिलाने का काम करेगी."

25 वर्षीय पूनम चतुर्वेदी घर पर अपनी सास के साथ रहकर गृहस्थी का काम-काज संभालती हैं. पूनम विनय शंकर तिवारी के किए काम गिनवाते हुए बताती हैं, "विनय शंकर तिवारी ने सड़क बनवाई और उसका चौड़ीकरण भी किया है. वही गांव में बिजली लेकर आए."

हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान विनय शंकर तिवारी ने एक पर्चा जारी किया. इसमें विधायक निधि में मिले पैसों का ब्योरा लिखा है.

पूनम भाजपा को वापस वोट न देने की वजह बताती हैं, "इस सरकार में महंगाई बढ़ गई है. तेल और गैस के दाम आसमान छू रहे हैं. हमारे लिए घर चलाना मुश्किल हो रहा है."

विनय शंकर तिवारी के पिता श्रीशंकर तिवारी का एक लंबा इतिहास रहा है. 1985 के विधानसभा चुनाव में पंडित हरिशंकर तिवारी निर्दलीय विधायक हुए. 1997 से 2000 तक यूपी सरकार में मंत्री रहे. 2017 चुनाव में विनय शंकर तिवारी, भाजपा के राजेश त्रिपाठी को हराकर विधायक बने.

विनय शंकर तिवारी ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा, "पूरे प्रदेश का ब्राह्मण उपेक्षित महसूस कर रहा है. किसी भी सरकार का कार्यकाल ही उसका वास्तविक चिट्ठा होता है. भाजपा ने पांच साल ब्राह्मणों का उत्पीड़न किया. सीतापुर का नरसंहार, विवेक तिवारी की हत्या, गोरखपुर के अंकुर शुक्ला की हत्या, ये सब ब्राह्मण-विरोधी कुछ घटनाएं हैं. बिकरू हत्याकांड में, जानबूझकर एनकाउंटर के नाम पर ब्राह्मणों की हत्या की गई. पूरे प्रदेश का ब्राह्मण आज इस बात से आंदोलित है कि पांच साल भाजपा ने ब्राह्मणों का उत्पीड़न किया है."

गोरखनाथ मठ और तिवारी हाता के बीच अंतर बताते हुए विनय शंकर तिवारी कहते हैं, "विचारधारा का अंतर है. वो लोग रूढ़िवादी सोच के हैं और हम सर्व समाज की बात करते हैं."

हालांकि गोरखनाथ मंदिर के पास रहने वाले पवन ऐसा नहीं सोचते. भाजपा कार्यकर्ता पवन कुमार त्रिपाठी गोरखपुर विकास प्राधिकरण के सदस्य भी हैं. गोरखनाथ मंदिर और तिवारी हाता से जुड़े ब्राह्मण-ठाकुर विवाद पर वह कहते हैं, "पिछले चुनाव में 86 फीसदी ब्राह्मणों ने अपना वोट भाजपा को दिया था. इस बार भी हमें उम्मीद है कि 90 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मण भारतीय जनता पार्टी को वोट देंगे."

पवन आगे कहते हैं, "एक दौर था जब गोरखपुर में दो माफिया हुआ करते थे. वे आपस में अपना वर्चस्व बनाकर लड़ते थे और जातिगत नारे देकर लोगों को बरगला कर रखते थे. मंदिर आस्था का स्थान है. उसे गुंडों का स्थान नहीं बताया जाए."

गोरखनाथ मंदिर, मुस्लिम राजनीति और देश में सीएम की छवि

योगी सरकार एक के बाद एक लव-जिहाद और गोकशी पर कानून लेकर आई. फैजाबाद का नाम बदलकर ‘अयोध्या छावनी’ करने जैसे बदलाव, 'अब्बा जान', 80 बनाम 20 जैसे बयानों से ऐसा लगता है कि सत्ता किसी कट्टर हिन्दू नेता को संभालने के लिए दे दी गई है.

लेकिन प्रदेश की राजनीति में चाहे जितने उबाल आते हों, गोरखनाथ मठ के आसपास साम्प्रदायिक दुर्भाव नहीं दिखाई देता. गोरखनाथ मंदिर में हर साल मकर संक्रांति पर खिचड़ी मेला लगता है. इस मौके पर मंदिर परिसर में कई मुसलमान दुकानदार अपनी दुकान लगाते हैं. इस मेले मे मुस्लिम महिलाओं की अच्छी खासी भीड़ जुटती है. मुसलामानों और गोरखनाथ मठ के बीच एक आर्थिक निर्भरता है लेकिन उनके कुछ स्थानीय मुद्दे भी हैं.

मठ से दस कदम दूर मुस्लिम महोल्ला है. साल 2019 में 55 वर्षीय फिर्दोसिया खातून को साल 2019 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिला था. लेकिन आर्थिक मदद काफी नहीं थी इसलिए उन्होंने घर बनवाने के लिए कर्ज लिया था. लॉकडाउन के बाद से ही काम मिलना मुश्किल हो गया है. फिर्दोसिया कपड़े का धागा बनाने का काम करती हैं, जिससे वो महीने में करीब 2000 रुपए ही कमा पाती हैं.

सर पर छत और मुफ्त राशन ने गरीबी में उनका जीवन कुछ आसान बनाया है, लेकिन हर महीने केवल 2000 रूपए कमाने वाली फिर्दोसिया को महंगाई और कर्ज ने गरीबी से उठने नहीं दिया है.

फिर्दोसिया कहती हैं, "महंगाई बढ़ गई है. सिलिंडर में जैसे-तैसे गैस भरवाते हैं. तेल, चना, आटा सब महंगा हो गया है." लेकिन उनका मानना है कि योगी सरकार में मिल रहे मुफ्त राशन से उनकी काफी मदद हुई है. वे अपनी बात पूरी करते हुए कहती हैं, "योगी सरकार ने हमें मुफ्त राशन दिया. अगर सरकार वो न देती तो हम सड़क पर आ जाते. हमें उनका काम बहुत अच्छा लगा."

फिर्दोसिया के पड़ोस में रहने वाली 35 वर्षीय मीना खातून भी मुफ्त राशन और आवास के लाभ से खुश हैं, हालांकि लॉकडाउन के बाद से बिना काम के घर चला पाना मुश्किल हो गया है. जब हमने पूछा कि वह किसे सत्ता में देखना चाहती हैं, तो मीणा ने जवाब दिया, "हमें जिसने छत दी हम उसी को वोट देंगे. हम मोदी को पसंद करते हैं."

50 वर्षीय चौधरी कैफुल वरा गोरखनाथ मठ के सामने एक दुकान चलाते हैं. योगी आदित्यनाथ ने छह महीने पहले ही उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी का अध्यक्ष चुना है.

कहा जाता है कि योगी सरकार मुस्लिम विरोधी कानून लेकर आई. इन सभी कानूनों को एक-एक कर कैफुल समझाते हैं, "जिसके पास लाइसेंस है वो बूचड़खाना चला रहा है. जो अवैध काम कर रहा है बस उसी के लिए रुकावट आई है. लव जिहाद जैसा कोई कानून नहीं है. हमारे धर्म में यह लिखा है कि जिस से शादी करिए, उसका धर्म परिवर्तित करा कर ही उस से शादी कर सकते हैं. इसलिए किसी अन्य धर्म के लोगों के साथ शादी करिए ही नहीं."

वह आगे कहते हैं कि सपा को लगता है कि उन्होंने मुसलामानों को "खरीद" लिया है. कैफुल अपनी बात रखते हैं, "सपा को लगता है कि मुसलमान उन्हीं को वोट देंगे. ऐसा नहीं है. मुझसे कई लोग पूछते हैं- आप गोरखनाथ मंदिर के पास रहते हैं, आपको डर नहीं लगता? मेरा जवाब 'नहीं' होता है. हमारी जो भी परेशानियां होती हैं महाराज जी सुनते हैं."

गोरखपुर की नौ विधानसभा सीटों पर 3 मार्च को मतदान होगा. जिसके बाद 10 मार्च को परिणाम घोषित होंगे.

Also Read: एक और चुनावी शो: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर में क्या है माहौल?

Also Read: गोरखपुर: कोविड के समय हुईं 40 से अधिक मौतें चुनाव ड्यूटी से जुड़ी हैं, लेकिन क्या महामारी एक चुनावी मुद्दा है?