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यूपी पुलिस का आरोप: उमर गौतम ने की भारत का 'जनसंख्या संतुलन' बदलने की कोशिश, कहां हैं सबूत?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से कुछ दिन पहले, भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनावी घोषणा पत्र, लोक कल्याण संकल्प पत्र, पेश किया. इस में पार्टी ने राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून में न्यूनतम 10 साल की कैद और एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान करने का वादा किया.
इस कानून को नवंबर 2020 में पारित किया गया था और वर्तमान में इसमें 10 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है.
हालिया चुनाव अभियान में धर्मांतरण और 'सोशल इंजीनियरिंग' के डर को हवा देना भाजपा के चुनावी मुद्दों में से एक रहा है. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए धर्मांतरण विरोधी कानून का जिक्र करते हैं. पिछले साल अक्टूबर में आदित्यनाथ की जीवनी लेखक शांतनु गुप्ता ने, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार वाली पत्रिका ऑर्गनाइजर के एक लेख में धर्मांतरण विरोधी कानून को 'सर्जिकल स्ट्राइक' बताया था.
गुप्ता ने ऐसे कुछ मामलों के बारे में विस्तार से लिखा. इस्लामिक दावाह केंद्र के संस्थापक और अध्यक्ष मोहम्मद उमर गौतम की गिरफ्तारी उनमें से एक है: "आतंकवाद विरोधी दस्ते ने पाया कि गौतम ने कथित तौर पर 1,000 से अधिक लोगों को इस्लाम स्वीकार करवाया था और उनके पुराने धर्म में दोबारा जाने की संभावना को ख़त्म करने के लिए उनमें से कई की मुसलमानों से शादी करवा दी."
गुप्ता के अनुसार पूछताछ के दौरान गौतम ने यह माना था की वह 'आर्थिक रूप से कमजोर समाज के लोगों' को धर्मांतरण के लिए निशाना बनाते हैं.
दरअसल एटीएस की ओर से दाखिल चार्जशीट में ऐसा कोई बयान नहीं है.
इसके विपरीत, चार्जशीट में दर्ज है कि 56 वर्षीय गौतम ने जबरन धर्म परिवर्तन के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, "मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है. यदि आप ऐसा कह रहे हैं तो मुझे दिखाइए कि क्या मैंने किसी को पैसे या नौकरी का प्रलोभन दिया है?"
गुमशुदा लोगों से धर्म परिवर्तन की साजिश तक
गौतम को जून 2021 में दो लापता व्यक्तियों के बारे में शिकायत दर्ज होने के बाद गिरफ्तार किया गया था.
22 वर्षीय अब्दुल मनन और 24 वर्षीय आदित्य गुप्ता के लापता होने की सूचना उनके पिताओं ने दी थी. दोनों मूक-बधिर हैं और विकलांगों के लिए आवासीय विद्यालय, नोएडा डेफ सोसाइटी, में पढ़ते हैं. जब उन्होंने बताया कि उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया है तो दोनों के परिवारों ने विरोध किया. मनन ने अपना नाम बदल लिया था (जो पहले मन्नू यादव था). गुप्ता ने अपना नाम नहीं बदला, लेकिन खतना कराने की बात स्वीकार की. मनन और गुप्ता दोनों के पास आईडीसी (इस्लामिक दावाह सेंटर) द्वारा जारी किए गए धर्मांतरण प्रमाण पत्र थे. गुप्ता के प्रमाणपत्र पर तारीख 14 जनवरी 2021 है और मनन का प्रमाणपत्र 11 नवंबर 2020 का है.
मनन और गुप्ता अंततः अपने आप घर लौट आए लेकिन उनके लापता होने की जांच में जो मोड़ आया, उसे मीडिया के कुछ वर्गों ने 'यूपी का धर्मांतरण रैकेट' कहा.
गौतम को 16 जून 2021 को गाजियाबाद के डासना पुलिस थाने ने तलब किया. पहली बार उनके साथ कुछ नहीं हुआ. उन्हें 18 जून 2021 को फिर से पुलिस थाने में पेश होने के लिए कहा गया. उनके परिवार को याद है कि उन्हें दोपहर 2 बजे कहा गया था कि वे गौतम को शाम लगभग 7.30 बजे ले जा सकते हैं. हालांकि, जब गौतम का बेटा शाम को थाने गया तो उसे अपने पिता नहीं मिले और पुलिस ने भी कोई मदद नहीं की. अगली सुबह परिवार को सूचित किया गया कि एटीएस गौतम को लखनऊ ले गई है.
20 जून, 2021 को गौतम को औपचारिक रूप से मुफ्ती काजी जहांगीर कासमी के साथ गिरफ्तार किया गया. कासमी ने आईडीसी द्वारा जारी किए गए धर्मांतरण प्रमाणपत्रों पर हस्ताक्षर किए थे.
बाद में, एटीएस ने दावा किया कि मनन और गुप्ता के धर्मांतरण प्रमाणपत्रों ने पुलिस को लापता छात्रों और आईडीसी द्वारा कथित रूप से जबरन धर्मांतरण के बीच संबंध स्थापित करने में मदद की. हालांकि, मनन, जिसे तब तक एक पीड़ित के रूप में देखा जा रहा था, 29 जून 2021 को गिरफ्तार हो गया.
इसके बाद और गिरफ्तारियां हुईं- नवंबर 2021 तक एटीएस ने 17 गिरफ्तारियां कीं. इनमें बाल और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक सांकेतिक भाषा विशेषज्ञ, इरफान शेख भी शामिल हैं. गौतम के बेटे अब्दुल्ला को 7 नवंबर 2021 को गिरफ्तार किया गया.
सभी आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक साजिश और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के साथ-साथ, उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है.
सामुदायिक हित बनाम व्यक्तिगत चयन
अगस्त 2021 में एटीएस ने गौतम के मामले में अपनी चार्जशीट दाखिल की. इसमें एजेंसी ने आरोप लगाया कि आईडीसी उन इस्लामिक संगठनों में शामिल है जो देश में 'जनसंख्या संतुलन को बदल रहे हैं' और 'एक चरणबद्ध तरीके से कमजोर वर्ग जैसे गरीब, महिलाएं और जो मूक-बधिरों का अवैध धर्मांतरण कर भारत की एकता और अखंडता को प्रभावित कर रहे हैं'.
चार्जशीट में जांच अधिकारी ने कहा, “यदि उमर गौतम का तर्क, कि धर्मांतरण किसी की व्यक्तिगत पसंद है मान भी लिया जाए, तो जो सामाजिक या सांस्कृतिक मदद उमर गौतम द्वारा मुहैया कराई जा रही है उससे साबित होता है कि इस्लामिक दावाह केंद्र, व्यक्ति की पहचान मुस्लिम के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. जिसका उद्देश्य निश्चित रूप से जनसांख्यिकी को बदलना है.”
एटीएस का इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि आईडीसी कथित तौर पर सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरा है. क्योंकि 2021 में यूपी सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया था कि वह सुनिश्चित करेंगे कि राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून को लागू करते समय 'सामुदायिक हित हमेशा व्यक्तिगत हितों पर हावी रहें.’
न्यूज़लॉन्ड्री ने चार्जशीट की बारीकी से जांच की, जिससे पता चलता है कि एटीएस के इस आरोप की पुष्टि करना बहुत कठिन है कि आईडीसी 'जनसंख्या संतुलन को बदल रहा था.’ इसके अलावा गौतम ने लोगों को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए 'प्रलोभन' दिया, इस दावे के समर्थन में जो सबूत दिए गए हैं वह संदिग्ध हैं.
उदाहरण के लिए, एटीएस ने गौतम से कुछ इस तरह के सवाल पूछे:
"क्या आपका दावाह केंद्र, कुरान और संबंधित पुस्तकों के हिंदी से अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा में अनुवादित संस्करणों की मुफ्त प्रतियां वितरित करता है?”
“क्या आप मुसलमानों के साथ-साथ गैर-मुसलमानों को मस्जिदों का एक निर्देशित दौरा करवाते हैं?”
“क्या कोई निर्दिष्ट समूह है जो गैर-मुसलमानों को इस्लाम को बेहतर ढंग से समझने और इसे अपनाने में मदद करता है?"
गौतम ने उपरोक्त गतिविधियों को स्वीकार किया लेकिन यह भी कहा कि इनमें से कोई भी काम जबरन नहीं किया जाता.
पुलिस ने उमर के मोबाइल से बरामद आईडीसी ब्रोशर को भी सबूत के तौर पर पेश किया है.
एटीएस के अनुसार, ब्रोशर में हाल ही में धर्मांतरित हुए लोगों को वित्तीय और कानूनी सहायता प्रदान करने के वादे को, 'जबरन' धर्मांतरण कराने के तरीके के रूप में देखा जाना चाहिए. इसके अलावा (इस्लामिक ऑनलाइन विश्वविद्यालय के अंतर्गत) अंतरधार्मिक संवादों और कक्षाओं के आयोजन को 'मतारोपण' के प्रयासों के रूप में परिभाषित किया गया है.
परेश हारोडे आईडीसी की 'शोषणकारी रणनीति' का खुलासा करते हैं. हारोडे का दावा है कि उन्हें 2015 में, उनके कॉलेज के सहपाठी प्रसाद कांवरे द्वारा इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए मजबूर किया गया था. कांवरे महाराष्ट्र में आईडीसी की गतिविधियों के देख-रेख करते थे.
चार्जशीट में हारोडे ने कहा, “कांवरे ने मुझसे कहा था कि जो लोग मोमिन नहीं हैं, वे सभी नरक की आग में जलेंगे. मैंने उनसे कहा कि किसी धर्म को मानना या न मानना एक निजी मामला है, फिर धर्म परिवर्तन क्यों करना चाहिए? जिस पर उन्होंने (कांवरे) ने जवाब दिया कि जो काफिर हैं, उन्हें नरक में जाने से बचाओ."
हारोडे ने 2018 में फिर से हिंदू धर्म अपना लिया.
सुप्रीम कोर्ट के वकील अबू बकर सब्बाक इस मामले में कुछ आरोपियों की पैरवी कर रहे हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि "चाहे वह ब्रोशर हो या बरामद किए गए कंवर्जन रजिस्टर, कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि धर्मांतरण के बदले पैसे या नौकरी दी जाएगी. वह यह सिद्ध नहीं करते हैं कि किसी भी प्रकार का प्रलोभन दिया गया था."
सब्बाक ने बताया कि उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम 2021 में, प्रलोभन की अवधारणा को अच्छी तरह से परिभाषित नहीं किया गया है. सब्बाक ने कहा, "अधिनियम में भी प्रलोभन के बारे में ठीक तरीके से नहीं बताया गया है. और इस मामले में भी उसी तरह का दृष्टिकोण दिखाई देता है.”
इस्लाम की खोज
धर्म परिवर्तन को औपचारिक रूप देने के लिए धर्मांतरित हुए लोगों को, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित एक हलफनामा दाखिल करना आवश्यक है. यह प्रक्रिया हो जाने के बाद एक धर्मांतरण प्रमाणपत्र, जैसा कि आईडीसी ने मनन और गुप्ता को दिया था, जारी किया जा सकता है.
गौतम को खुद इस बात का अनुभव था कि आवश्यक कानूनी दस्तावेज जुटाने की प्रक्रिया कितनी जटिल हो सकती है, क्योंकि उन्होंने भी 1984 में हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लिया था. पंतनगर विश्वविद्यालय में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान हुई एक दुर्घटना के बाद गौतम की उनके एक मुस्लिम मित्र नासिर खान ने खूब देखभाल की, जिसके बाद उन्हें इस्लाम में दिलचस्पी हो गई.
गौतम की पत्नी 51 वर्षीय रजिया बताती हैं, "नासिर मेरे पति को हर हफ्ते अपनी साइकिल पर मंदिर ले जाता था." जब गौतम ने नासिर से पूछा कि वह इतनी मेहनत से गौतम के साथ मंदिर क्यों जाते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, "मेरे ईश्वर को खुश करने के लिए. मेरा मजहब मुझे अपने साथ के लोगों की देखभाल करना सिखाता है."
विभिन्न धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के एक साल बाद गौतम ने इस्लाम अपनाने का फैसला किया. रज़िया याद करती हैं कि गौतम ने अपने परिवार और अपने ससुराल वालों को अपने फैसले के बारे में बताने के लिए एक साथ बुलाया था.
आईडीसी की स्थापना 20 से अधिक वर्षों के बाद 2010 में हुई. इसके नाम में दावाह शब्द का अर्थ है "निमंत्रण".
आईडीसी एक धर्मार्थ संस्था थी, जो इस्लाम में धर्मांतरित होने वालों को उनकी नई धार्मिक पहचान को औपचारिक रूप देने के लिए आवश्यक कागजी कार्रवाई करने में मदद करती थी. जिसके लिए उन्हें शुल्क देना पड़ता था.
आईडीसी ने हाल ही में लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों को कंबल बांटने जैसे अभियानों में भी भाग लिया था.
रजिया ने कहा, "अगर कोई मेरे पति से इस्लाम कबूल करने की इच्छा जाहिर करता था तो उनकी भूमिका एक सूत्रधार की होती थी जो दस्तावेज जुटाने में उनकी मदद करता था". दोनों की शादी को 30 साल से ज्यादा हो चुके हैं.
गौतम की गिरफ्तारी के बाद से आईडीसी बंद है.
एटीएस ने दावा किया है कि गौतम ने मनन और गुप्ता जैसे लोगों को इस्लाम में परिवर्तित करने के लिए प्रलोभन दिया, लेकिन चार्जशीट में दर्ज अलग-अलग बयानों से पता चलता है कि गिरफ्तार किए गए सभी धर्मांतरित लोग गौतम से मिलने के पहले से इस्लाम में रूचि रखते थे.
एटीएस के अनुसार मनन पर किसी राहुल अहमद (जन्म नाम राहुल भोला) ने इस्लाम अपनाने के लिए दबाव बनाया था, और मनन ने कथित तौर पर गुप्ता को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया. फिर भी घटनाओं का यह सिलसिला चार्जशीट में दर्ज बयानों में कहीं नजर नहीं आता.
4 जुलाई 2021 को एटीएस को दिए अपने बयान में, अहमद ने कहा कि 2013 में अपने दोस्त फैसल के साथ दिल्ली की निजामुद्दीन मस्जिद में जाने के बाद उसकी इस्लाम में रूचि हो गई.
अहमद ने अपने बयान में कहा, "फैसल ने कहा कि जैसे तुम भगवान में विश्वास करते हो, वे (धर्मोपदेशक) हमें बताते हैं कि एक ही ईश्वर या अल्लाह है. तुम्हारा भगवान अच्छा नहीं है, तुमको इस्लाम अपना लेना चाहिए.” अहमद ने 2018 में इस्लाम धर्म अपना लिया और कानूनी दस्तावेजों के लिए गौतम से संपर्क किया.
इसी तरह, 5 जुलाई, 2021 को मनन ने अपने बयान में कहा कि शकील नाम के एक मुस्लिम मित्र की संगति के कारण बचपन से ही उन्हें इस्लाम को लेकर उत्सुकता थी. मनन ने अपने बयान में कहा, "2017 में मैंने इस्लाम के बारे में अधिक जानकारी एकत्र करना शुरू किया और 2018 तक मैंने इस्लाम अपनाने का मन बना लिया था." उन्होंने कहा कि खुद को एक मुस्लिम के रूप में पंजीकृत करने की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से, गगन नाम के एक दोस्त ने गौतम से उनका परिचय कराया था.
चार्जशीट में गुप्ता की मां लक्ष्मी का भी एक बयान शामिल है. जो कहती हैं कि उनका बेटा 2012 से वासिफ नाम के किसी व्यक्ति के संपर्क में था. लक्ष्मी अपने बयान में कहती हैं, "उसने (वासिफ) मेरे बेटे को इस्लाम के बारे में बताया था, जिसके बाद मैंने उसे डांटा था. लेकिन किसी तरह वे फिर भी संपर्क में रहे.”
हवाला का पैसा
गौतम के खिलाफ जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप तो निराधार लगते हैं लेकिन एटीएस के पास उनका एक बयान जरूर है, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया है कि उन्हें हवाला के जरिए विदेशों से आईडीसी के लिए पैसा मिला था.
25 जून 2021 को, पूछताछ के दौरान एटीएस ने उनके द्वारा किए गए लेनदेन में से कई को संदिग्ध बताया था.
उनमें से कुछ निम्न हैं:
- चार्जशीट में एटीएस ने कहा, "2010 में आईडीसी के गठन से जून 2021 तक प्राप्त लगभग दो करोड़ रुपयों में से 52 लाख रुपए विदेशों से उमर गौतम को प्राप्त हुए. जिसकी पुख्ता वजह पता नहीं है."
- गौतम ने कहा है कि इन पैसों को परोपकारी कार्यों के लिए भेजा और इस्तेमाल किया गया था. उन्होंने एटीएस को बताया, "मेरे कई ऐसे दोस्त हैं जो मुझे विदेशों से पैसे भेजते हैं. इस पैसे का इस्तेमाल गरीबों की मदद के लिए किया जाता है.”
2002 से 2009 के बीच जब उनके खाते में 34 लाख रुपए जमा हुए, तब गौतम मरकजुल मारिफ एजुकेशन रिसर्च सेंटर की फंडरेज़िंग कमेटी के प्रमुख थे. (वह 1994 से 2010 के बीच संगठन की दिल्ली शाखा से जुड़े रहे). कुछ पैसे कतर-स्थित निवासियों से मिले थे, जबकि अन्य स्थानीय दानकर्ताओं ने दिए थे. इनमें असम के राजनितिक दल ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट या आईयूडीफ के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल भी शामिल थे (1995 से 2007 के बीच, गौतम ने अजमल के स्वामित्व वाली एक कंपनी के लिए काम किया था).
गौतम ने एटीएस को बताया कि 2011 से 2021 के बीच प्राप्त राशि "विभिन्न व्यक्तियों ने गरीबों की मदद करने के उद्देश्य से" दी थी. इसी तरह गुड़गांव के एक इंजीनियर ने, "गरीबों के लिए परमार्थ कार्यों में सहायता के लिए" 2018 से 2021 के बीच 2,87,000 रुपए जमा कराए.
फरवरी 2020 में रियाध के सैयद आरिफ पाशा ने आजाद सुभानी ह्यूमन फाउंडेशन के लिए गौतम को 25,75,000 रुपए दिए, जो कि दिल्ली की शिव विहार कॉलोनी में दंगा पीड़ितों की मदद करने के लिए थे. अन्य 3,33,000 रुपए मुंबई के एक धर्मांतरित व्यक्ति ने दिए, जो एक मदरसे को वित्तीय मदद देना चाहते थे.
यह पूछे जाने पर कि क्या हवाला के जरिए उन्हें विदेशों से पैसा मिला है, गौतम ने 'हां' में जवाब दिया और इस प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया.
लंदन में मजलिस अल-फलाह ट्रस्ट के महासचिव अब्दुल्ला आदम पटेल, वडोदरा-स्थित शेख सलाहुद्दीन के खाते में एक राशि जमा करते थे. पटेल गुजरात में ट्रस्ट के प्रबंधक के रूप में काम करते हैं. एक बार पैसा ट्रांसफर हो जाने के बाद, व्हाट्सएप पर गौतम और पटेल के बीच 10 रुपए के नोट की एक तस्वीर का आदान-प्रदान होता था और गौतम को उतनी ही राशि नकद में दिल्ली के चांदनी चौक की एक एजेंसी से मिल जाती थी.
धन-शोधन निवारण अधिनियम के तहत हवाला के ज़रिए पैसों का लेनदेन अवैध है.
हवाला लेनदेन में गौतम के शामिल होने के आरोप की पुष्टि फरीद मियां नाम के व्यक्ति के बयान से भी होती है, जो एएफएमआई चैरिटेबल ट्रस्ट के कंप्यूटर ऑपरेटर और अकाउंटेंट के तौर पर काम करता था. सलाहुद्दीन एएफएमआई चैरिटेबल ट्रस्ट का मैनेजिंग ट्रस्टी है.
मियां ने एटीएस को बताया कि सलाहुद्दीन ने उसे 2020 में दिल्ली में दो लाख रुपए ट्रांसफर करने के लिए अंगाडिया (कूरियर) का इस्तेमाल करने के लिए कहा था और अब तक उसने 30-35 लाख रुपए 'हवाला के जरिए' उमर गौतम को ट्रांसफर किए हैं. उसने यह भी कहा कि हवाला लेनदेन का कोई ऑडिट नहीं किया गया था और नियमित अंतराल पर सलाहुद्दीन मियां को वह दस्तावेज मिटाने के लिए कहता था, जिसमें इस लेनदेन को सूचीबद्ध किया गया था और एक पोर्टेबल एक्सटर्नल ड्राइव में सेव किया गया था.
सलाहुद्दीन को 1 जुलाई, 2021 को गिरफ्तार किया गया था. उसने 2 जुलाई, 2021 को एक बयान में एटीएस को बताया कि वह 2017 में संयोग से गौतम से मिला और उन्हें पटेल से मिलवाया.
सलाहुद्दीन अपने बयान में कहता है, "जब उमर गौतम ने मुझसे कहा कि वह ‘धर्म’ के लिए काम करता है, गैर-मुसलमानों को मुसलमान बनने में मदद करता है और पैसे, नौकरी आदि से उनकी सहायता करता है. तो मैंने यह सब लंदन के अब्दुल्ला पटेल को बताया, जो मोहम्मद गौतम की धर्मांतरण-संबंधित गतिविधियों से प्रभावित थे."
सलाहुद्दीन ने यह भी स्वीकार किया कि अब्दुल्ला पटेल से उमर गौतम को पैसे ट्रांसफर करने के लिए अंगाडिया की सेवाएं ली जा रही थीं. अंगाडिया का उपयोग करना सर्वथा अवैध नहीं है बशर्ते किसी ने प्रत्येक लेनदेन के लिए रसीदें जारी की हों. जैसा कि 2013 की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि गौतम ने लेनदेन का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा.
सलाहुद्दीन के वडोदरा में दो चैरिटेबल ट्रस्ट हैं- एएफएमआई चैरिटेबल ट्रस्ट और एबीसी ट्रस्ट. एएफएमआई गरीबों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं प्रदान करता है और एबीसी ट्रस्ट शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, गृह मंत्रालय ने दिसंबर 2021 में विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के तहत एएफएमआई के पंजीकरण को रद्द कर दिया क्योंकि वडोदरा पुलिस की रिपोर्ट थी कि यह ट्रस्ट 'अवैध इस्लामी गतिविधियों' में शामिल है.
एक पूरक चार्जशीट में एटीएस ने आरोपों में धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का प्रयास) और 123 (युद्ध छेड़ने की परिकल्पना को सुगम बनाने के आशय से छिपाना) को भी जोड़ दिया है.
एडवोकेट अबू बकर सब्बाक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "शेख सलाहुद्दीन द्वारा भेजे गए फंड दिल्ली दंगों के बाद राहत कार्य के लिए थे. अवैध तरीकों से धन प्राप्त करने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि वह राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल होगा."
जबरन कनेक्शन
चार्जशीट में 'ड्यूसबरी मुस्लिम प्लान' का भी जिक्र है. यूनाइटेड किंगडम में ड्यूसबरी की मरकजी मस्जिद यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है. उत्तरी इंग्लैंड के इस शहर को, 2010 के मध्य में चरमपंथी इस्लामी विचारधारा के केंद्र के रूप में देखा जाता था. जहां ब्रिटिश मीडिया के दक्षिणपंथी वर्गों ने ड्यूसबरी के प्रभावशाली मुस्लिम समुदाय के बारे में चिंता व्यक्त की थी, वहीं स्थानीय लोगों कहा था कि यह शहर केवल कट्टरपंथ का केंद्र ही नहीं है.
एटीएस चार्जशीट में ड्यूसबरी के उल्लेख को सही ठहराते हुए एक दस्तावेज की ओर इशारा करती है, जो यूपी में गाजियाबाद की मसूरी कॉलोनी के एक मदरसे पर छापेमारी के दौरान बरामद किया गया था. इस दस्तावेज में "ड्यूसबरी न्यू मुस्लिम प्लान" का उल्लेख है जो युनाइटेड किंगडम में कट्टरपंथी इस्लाम के प्रसार की साजिश के बारे में है. 2011 की जनगणना के अनुसार यूके में मुसलमानों की आबादी, कुल आबादी का 4.4 प्रतिशत है.
जहां तक गौतम के इससे संबंध का सवाल है, एटीएस का दावा है कि आईडीसी के संस्थापक लोगों को इस्लाम की ओर आकर्षित करना चाहते थे और भारत में एक कट्टरपंथी मुस्लिम क्षेत्र बनाना चाहते थे. चार्जशीट में जांच अधिकारी कहते हैं कि "यह और कुछ नहीं बल्कि ड्यूसबरी न्यू मुस्लिम प्लान का भारतीय संस्करण है".
एटीएस के सवालों का जवाब देते हुए गौतम ने कहा, "मुझे ड्यूसबरी न्यू मुस्लिम प्लान की तर्ज पर बनी किसी योजना की जानकारी नहीं है."
गौतम को मिले चंदे को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिए प्राप्त धन बताने का प्रयास यदि ज्यादा लगता है, तो ड्यूसबरी का संदर्भ और भी अधिक अनुचित है. अधिवक्ता अबू बकर सब्बाक के लिए यह संदेश पढ़ना आसान है. वह कहते हैं, "इस तरह की इस्लामोफोबिक सामग्री को शामिल करने का उद्देश्य केवल धार्मिक भावनाओं को भड़काना है."
गौतम को जानने वालों को उन पर लगे आरोप बेतुके लगते हैं. उनके एक पड़ोसी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "खाना और धर्म जबरदस्ती किसी के गले से नहीं उतारा जा सकता."
चार्जशीट से यह स्पष्ट नहीं होता कि क्या एटीएस द्वारा प्रस्तुत की गई जानकारी जबरन धर्म परिवर्तन या राष्ट्र विरोधी गतिविधि साबित करने के लिए पर्याप्त है? यह 24 नवंबर 2020 और 31 अगस्त 2021 के बीच, यूपी पुलिस द्वारा धर्म परिवर्तन के खिलाफ दायर 72 चार्जशीट और 108 मामलों में से एक है. अब यह देखना है कि क्या यह मामले अदालत में संतोषजनक रूप से यह साबित कर सकते हैं कि उनकी चार्जशीट में आरोप किसी एक समूह या विचारधारा का एजेंडा नहीं, बल्कि सामुदायिक हित सिद्ध करते हैं.
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