Assembly Elections 2022

उत्तर प्रदेश चुनाव 2022: महिलाओं के लिए कैसी रही योगी सरकार?

रीता गौतम की बेटी रोशनी (बदला हुआ नाम) घर में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं, उसके खुद के कुछ सपने थे. घर की आर्थिक हालत खराब थी इसलिए वह बीएड की पढ़ाई करना चाहती थीं और परीक्षा की तैयारी कर रही थीं. 22 वर्षीय रोशनी उन्नाव में स्थित कांशीराम कॉलोनी में रहती थीं. यह मकान उन्हें मायावती शासन के दौर में मिला था. छोटे से दो कमरे के मकान में रोशनी अपनी छोटी बहन, भाई और मां के साथ रहती थीं.

मां परचून की एक छोटी सी दुकान चलाती हैं और पिता आगरा की एक फैक्ट्री में काम करते थे. रोशनी टेलरिंग और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर पैसा कमाती थीं. लॉकडाउन के दौरान एक दुर्घटना में पिता के चेहरे और पीठ पर चोट आई थी, तब रोशनी ने रजोल सिंह की कपड़े की दुकान में काम करना शुरू कर दिया.

लेकिन रोशनी और उसका परिवार नहीं जनता था कि यही नौकरी एक दिन उसकी जान ले लेगी.

घटना 8 दिसंबर की है. रोशनी को बार-बार रजोल सिंह का कॉल आ रहा था. 45 वर्षीय रजोल सिंह समाजवादी सरकार में मंत्री रहे स्वर्गीय फतेह बहादुर सिंह के बेटे हैं.

40 वर्षीय रोशनी की मां रीता, 8 दिसंबर के दिन को याद करती हैं. वह बताती हैं, "उस दिन रोशनी यह बोलकर घर से गई थी कि वह रजोल सिंह से मिलने जा रही है. वह उसको परेशान करता था और उस से शादी करना चाहता था. मेरी बेटी ऐसा नहीं चाहती थी. रजोल ने रोशनी को धमकी दी थी कि अगर रोशनी मिलने नहीं आई तो वह उसके पिता और भाई को जान से मार देगा. इस डर से मेरी बेटी उससे मिलने गई थी."

रोशनी पास ही में एक कपड़े की दुकान में काम किया करती थी. यह दुकान रजोल सिंह की है. रीता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि रजोल सिंह रोशनी को अपशब्द बोलता और उसके साथ छेड़छाड़ किया करता था, इसलिए रोशनी ने तंग आकर नौकरी छोड़ दी थी.

रोशनी अपनी मां के सबसे करीब थी क्योंकि पिता आगरा में काम करते थे और भाई लखनऊ में था. इसलिए मां घर पर उनका ख्याल रखने के लिए, रोशनी और उसकी छोटी बहन साथ रहा करती थीं. छोटी बहन पांचवी कक्षा में है. भाई और पिता के पीछे से रोशनी ही घर को संभालती थी.

रीता का कहना है कि रोशनी उनसे कुछ भी नहीं छुपाती थी क्योंकि उनके बीच मां-बेटी का नहीं बल्कि दोस्तों जैसा रिश्ता था.

रोशनी की मां रीता बताती हैं, "रजोल मेरी बेटी को परेशान करता था. मेरी बेटी मुझसे कुछ नहीं छुपाती थी. एक दिन वह बहुत रो रही थी. उसने मुझे बताया कि रजोल सिंह ने उसका बलात्कार किया है. हम गरीब दलित परिवार से हैं. हमने डर के कारण कुछ नहीं बोला और रोशनी की नौकरी छुड़वा दी. रोशनी ने दुकान जाना बंद कर दिया. यह बात घर में केवल मुझे और उसे पता थी."

कितना मुश्किल था एक एफआईआर लिखवाना?

8 दिसंबर के दिन रोशनी अपना मोबाइल घर पर ही भूल गई. अंधेरा होना शुरू हो गया तो रीता को चिंता होने लगी थी कि शाम 7 बजे तक भी उनकी बेटी घर नहीं लौटी.

रीता ने बताया, "शाम के 7 बज गए थे. रोशनी घर नहीं आई. मोबाइल घर पर छोड़ गई थी इसलिए मैंने रजोल सिंह को कॉल किया. उसने मुझसे कहा कि रोशनी रात तक घर आ जाएगी लेकिन रात के 10 बजे तक भी रोशनी का कुछ पता नहीं चल पाया था."

जब पूरी रात रोशनी घर नहीं आई तब रीता ने, रोशनी के पिता 45 वर्षीय मुकेश को कॉल कर के आगरा से उन्नाव बुला लिया. पिता 10 दिसंबर को उन्नाव सदर कोतवाली राजोल सिंह के खिलाफ एफआईआर लिखवाने पहुंचे लेकिन पुलिस ने मना कर दिया. मुकेश आरोप लगाते हैं, "पुलिस ने एफआईआर में रजोल सिंह का नाम लिखने से इंकार कर दिया और केवल गुमशुदगी की शिकायत लिखी. उसके बाद पुलिस एक महीने तक टहलाती रही. कोई कार्रवाई नहीं हुई."

दो महीने बाद 24 जनवरी को रोशनी की मां लखनऊ में अखिलेश यादव की गाड़ी के सामने आकर कूदने का प्रयास किया. मुकेश ने हमसे कहा, "पुलिस कुछ कार्रवाई नहीं कर रही थी. उसने दो बार आरोपी को थाने बुलाया. दोनों बार आरोपी रजोल सिंह ने हमारी बेटी को ढूंढ़कर लाने की बात कही. दो महीने तक हम इंसाफ के लिए भीख मांगते रहे. जब कहीं, कुछ सुनवाई नहीं हुई, तब हमारे पास आखिरी विकल्प लखनऊ जाना ही था."

इस घटना के तुरंत बाद ही पुलिस होश में आ गई और 25 जनवरी को रजोल सिंह की गिरफ्तारी हो गई.

"भीख मांगकर लड़ेंगे न्याय के लिए लड़ाई"

अब तक भी मामला सूर्खियों में अपनी जगह नहीं बना पाया था. दो महीने पहले घर से लापता हुई रोशनी का शव, रजोल सिंह के पिता के बनाए दिव्यानंद आश्रम के बगल में पड़ी ज़मीन से हाल ही में बरामद किया गया. परिवार को इसका शक पहले से था.

रोशनी की मां बताती हैं, "पहले हम दरोगा प्रेम नारायण दीक्षित को लेकर दिव्यानंद आश्रम आए थे. उन्होंने पूरा आश्रम खोल कर दिखा दिया लेकिन दो-तीन मंजिला कोठी को नहीं दिखाया गया और इसी में मेरी लड़की बंद थी. उसके बाद प्रेम नारायण दीक्षित ने मोबाइल स्विच ऑफ कर लिया था. अगर दरोगा जी उस कमरे को खुलवाकर देखते तो हमारी बेटी जिंदा होती."

उन्होंने आगे यह भी बताया कि चाबी दिव्यानंद आश्रम के महंत के पास थी जो आश्रम की देख-रेख करते हैं, लेकिन उन्होंने यह कहकर घर खोलने से मना कर दिया कि वो रजोल सिंह और उनके परिवार की निजी सम्पति है.

इस मामले में अब तक की कार्यवाही के बारे में जानने के लिए हमने उन्नाव में तैनात सीओ कृपाशंकर से बात की. उन्होंने हमें बताया, "इस मामले में पुलिस जांच कर रही है. हमने मुख्य आरोपियों रजोल सिंह और सूरज सिंह को गिरफ्तार कर लिया है. आगे की कार्यवाही चल रही है."

मामले में पुलिस की भूमिका पर उठते सवालों पर कृपाशंकर ने कहा, "पुलिस ने क्या किया और कैसे किया, इस पर मैं कुछ टिप्पणी नहीं करना चाहता."

रोशनी के पिता मुकेश भी सदमे में हैं. वह पूरा दिन अपनी बेटी को याद करते हैं. घर के पहले कमरे में रोशनी की कई तस्वीरें फ्रेम में लटकी हैं. उस कमरे को फूलों और रंगबिरंगे सामान से सजाकर रखने वाली रोशनी के जाने से उन्हें धक्का लगा है. पिता का कहना है कि चाहे उनकी बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई कितनी भी लम्बी हो, वह इसे बीच में नहीं छोड़ेंगे.

मुकेश ने कहा, "हम भीख मांगते-मांगते न्यायालय तक पहुंच जाएंगे. जो भी खर्चा आएगा हम भीख मांगकर देंगे, लेकिन हम अपनी लड़की को जब तक न्याय नहीं दिला लेंगे, चुप नहीं बैठेंगे."

लड़की के शव की दो बार पोस्टमॉर्टम जांच हुई, जिसमें अंतर निकलकर सामने आया है. जहां 11 फरवरी को हुए पहले पोस्टमॉर्टम से पता चला कि गला घोंटने के कारण दम घुटने से उसकी मौत हुई, वहीं दूसरी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में 15 फरवरी 2022 को थ्रॉटलिंग के कारण दम घुटने को मौत का कारण बताया गया है.पहली रिपोर्ट में चोट का कोई जिक्र नहीं था. स्थानीय मीडिया से बात करते हुए, एफएसएल विशेषज्ञ डॉ जी खान ने स्वीकार किया कि दोनों रिपोर्ट अलग-अलग थीं.

उत्तर प्रदेश, अपराधियों का प्रदेश

एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा महिला से जुड़े - 39,385 मामले दर्ज हुए. इनमें बलात्कार के 2,779, और अपहरण के सबसे ज्यादा 12,913 मामले दर्ज हुए हैं. यानी महिला अपराधों की बात करें, तो प्रदेश में रोजाना 135 अपराध दर्ज हुए हैं. वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक उत्तर प्रदेश में साल 2020 की तुलना में, साल 2021 के अंदर महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों को लेकर की गई शिकायतों में 30% की बढ़ोतरी हुई है.

2017 में, उन्नाव से भाजपा के तत्कालीन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा था. यह आरोप पीड़िता की मां आशा सिंह ने लगाया था. इस मामले में शीर्ष अदालत ने कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी करार दिया और उम्र कैद की सजा सुनाई थी. लेकिन इस मामले में पीड़िता के पिता की मौत पुलिस हिरासत में ही हो गई थी. 2018 में कुलदीप सिंह के बड़े भाई ने पीड़िता के पिता पर मारपीट की एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसके बाद पुलिस हिरासत में पिता की मौत हो गई. 2019 में पीड़िता अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ गाड़ी से जा रही थी, हाईवे पर उसकी टक्कर ट्रक से हुई. पीड़िता के चाचा ने कुलदीप सिंह सेंगर पर हत्या का आरोप लगाया जो बाद में अदालत में खारिज हो गया, लेकिन 2010 में 'हत्या के प्रयास' के एक मामले में उन्नाव अदालत ने पीड़िता के चाचा को जेल में डाल दिया.

आशा सिंह

पीड़िता निशा (बदला हुआ नाम) और मां आशा सिंह उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की पीड़ित हैं. आशा सिंह इस बार खुद चुनावी मैदान में उतरी हैं. कांग्रेस ने 'मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं' अभियान के तहत आशा सिंह को उन्नाव सदर सीट से टिकट दिया है. आशा सिंह का दावा है कि वे इंसाफ दिलाने के लिए चुनाव लड़ रही हैं.

आशा सिंह बेहद साधारण परिवार से आती हैं. वह घरेलू महिला हैं जिन पर परिवार संभालने की जिम्मेदारी रहती है. सुबह से वह चुनाव प्रचार के लिए लग जाती हैं. जब हम उनसे मिलने के लिए पहुंचे तो उनकी बेटी निशा सुबह का नाश्ता तैयार कर रही थी. एक बाल्टी में रॉड डालकर नहाने के लिए पानी गरम किया जा रहा था. हाथ में गुलाबी बैंड बांधकर, नारंगी साड़ी में आशा सिंह हमसे मिलने के लिए आईं.

योगी सरकार में पुलिस के काम के बारे में उन्होंने हमें बताया, "योगी सरकार हत्यारी सरकार है. भाजपा सरकार में हमें न्याय नहीं मिला. हमें अदालत ने न्याय दिया. योगी सरकार में पुलिस पर दबाव रहता है. इसलिए किसी लड़की को इंसाफ नहीं मिलता, जब तक कि वो लापता न हो जाए या उसकी हत्या हो जाए. अगर पुलिस अपना काम समय पर करती तो उन्नाव में लड़की की लाश जमीन से नहीं निकलती."

वे आगे कहती हैं, "प्रियंका गांधी शुरू से अब तक हमारे साथ खड़ी रहीं. 'मैं लड़की हूं, लड़ सकती हूं,' यह नारा उन्होंने दिया है. मैं सभी लड़कियों को इंसाफ दिलाना चाहती हूं. प्रियंका गांधी ने मुझपर विश्वास जताया है."

2017 दुष्कर्म पीड़िता निशा रसोई में खाना बना रही थीं, तब हमारी मुलाकात उनसे हुई. वह कॉलेज में बीए की पढ़ाई करती हैं और नौकरी की तलाश में हैं. "मैंने पीएम और मुख्यमंत्री दोनों को खत लिखे, लेकिन कहीं से जवाब नहीं आया." निशा ने कहा.

किसे वोट देंगी महिलाएं?

उत्तर प्रदेश के उन्नाव में, महिलाओं के प्रमुख मुद्दे सफाई, खुले में शौच, घरेलू हिंसा, पुलिस की मनमानी और छेड़छाड़ हैं, लेकिन पार्टियां इन मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ रही. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम उन्नाव की कांशीराम कॉलोनी और उन्नाव सदर क्षेत्र में महिलाओं का मूड जानने के लिए पहुंची.

अर्चना और मोहसीना

40 वर्षीय अर्चना कहती हैं, "मैं पास के थाने में घरेलू हिंसा का केस दर्ज कराने गई थी. वहां की महिला कांस्टेबल हाथ के नाखून काट रही थीं और उल्टा मेरे पहनावे पर टिपण्णी करने लगीं. मैंने जींस और टी-शर्ट ही पहना हुआ था. इसमें गलत क्या था?"

अर्चना के बगल में खड़ी 38 वर्षीय मोहसीना ने कहा, "योगी जी कहते हैं कि उन्होंने जगह-जगह पुलिस खड़ी कर रखी है, लेकिन शाम होते ही कांशीराम कॉलोनी इलाके में आवारागर्दी शुरू हो जाती है. हम अपनी बेटियों को खुद स्कूल और ट्यूशन छोड़ने जाते हैं. उन्हें अकेले कहीं बाहर नहीं निकलने देते. यहां का माहौल अच्छा नहीं है."

35 वर्षीय ज्योति एक हाथ से दिव्यांग हैं. वह पिछले 10 साल से पेंशन पाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन उन्हें कोई सरकारी सहूलियत नहीं मिल पाती, क्योंकि ऑफिस पहुंचते ही अधिकारी ज्योति को लौटा देते हैं. उनके दो छोटे बच्चे हैं और पति का एक्सीडेंट हो गया है, जिसके बाद से घर की जिम्मेदारी पूरी तरह से ज्योति के कंधों पर आ गई है.

ज्योति

ज्योति कहती हैं, "हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है. मुफ्त राशन देने से क्या होता है? सब्जी, तेल और गैस के लिए पैसा चाहिए. मेरे हाथ के कारण मुझे कहीं काम नहीं मिलता. लॉकडाउन के समय घर की स्थिति ऐसी हो गई थी कि पड़ोसियों से खाना मांगकर अपने बच्चों को खिलाया."

इतना कहकर ज्योति रोने लगती हैं.

आंसू पोंछकर ज्योति ने हिम्मत बांधी और आगे कहा, "मैं सुबह 9 बजे से काम की तलाश में निकली हूं लेकिन मुझे कही काम नहीं मिल रहा. मेरे बच्चे भूखे हैं."

हमने इन महिलाओं से पूछा कि वे यूपी चुनाव में किस पार्टी को सत्ता पक्ष में देखना चाहती हैं.

अर्चना ने कहा, "मायावती और सपा सरकार ने योगी सरकार से अच्छा काम किया है."

ज्योति ने कहा, "हम उसे वोट देंगे जिसने हमें रहने के लिए छत दी. मायावती."

55 वर्षीय हमीदा उमर पेशे से पुलिस में काउंसलर हैं. वह महिलाओं के पारिवारिक मामलों में उनकी काउंसलिंग करती हैं. महिलाओं के प्रति पुलिस के रवैये पर वह बताती हैं, "महिलाएं जब शिकायत लिखवाने आती हैं तो पुलिस उल्टा महिलाओं के पहनावे और काम पर तंज कसने लगती हैं. पुलिस कहती है कि तुमने ही कुछ गलत किया होगा और महिलाओं को भगा देती हैं. योगी राज में पुलिस और सरकार ने कुछ काम नहीं किया. महिला सुरक्षा के नाम पर तो यूपी सरकार बिल्कुल निकम्मी निकली."

हमीदा को कांग्रेस पर विश्वास है. "मायावती ने अपने उद्धार के अलावा कुछ नहीं किया. उन्होंने बस बड़े-बड़े हाथी बनवाए लेकिन महिलाओं के लिए कुछ नहीं किया. एक मौका प्रियंका गांधी को मिलना चाहिए."

इन सभी के विपरीत भाजपा समर्थकों का कहना है कि लव जिहाद जैसा कानून लाकर, योगी सरकार ने महिला सुरक्षा का एक नया आयाम छू लिया है. भाजपा महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष (उन्नाव) साधना दीक्षित ने हमसे कहा, "उन्नाव में पीड़िता के साथ जो हुआ वह विरोधियों की साजिश है. योगी जी लव जिहाद पर कानून लाए. हम महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं."

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