Assembly Elections 2022
पंजाब चुनाव 2022: मालवा के देहात में फैल रही बीमारियां चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन पा रहीं
“पिछले कई महीनों से हमारे इलाके में जो भी पत्रकार आता है, वह पूछता है कि किसकी हवा चल रही है. हमारा एक ही जवाब होता है काले पीलिया और कैंसर की. हम जिन बिमारियों में सड़ रहे हैं, उनके बारे में कोई सवाल-जवाब नहीं करता. सबको बस हमारे वोट के बारे में जानना है, दुख तकलीफों के बारे में नहीं.”
पंजाब के मानसा जिले के ख्याली चहलांवाली गांव के निवासी बलकार सिंह ने हमारा स्वागत उनके गांव में इन्हीं शब्दों से किया. बलकार गांव के शहीद उधमसिंह क्लब के मेंबर हैं, जो उनके गांव में आने वाली समस्याओं पर काम करता है. बलकार ने हमें बताया, “हमारे गांव में हर दूसरे घर में काला पीलिया है और हर चौथे-पांचवें घर में कैंसर. हम अभी गुरूद्वारे से हमारे गांव की महिला के भोग से ही आए हैं, जिनकी कैंसर से मौत हो गई थी. गांव में दो साल में ही कैंसर से दस से ज्यादा लोगों की मौत हुई हैं.”
बोलते-बोलते बलकार सिंह अचानक रुक गए और उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से एक कागज पर पंजाबी में लिखी हुई उन लोगों के नामों की लिस्ट निकाली जो कैंसर और काले पीलिया से पीड़ित हैं. लिस्ट दिखाने के बाद वह हमें अपने दोस्त सतनाम सिंह के घर ले गए, जिनकी माता दलीप कौर की बीती 8 फरवरी को कैंसर से मौत हो गई थी और आज (16 फरवरी) उनका भोग (अंतिम अरदास/तेहरवीं) था. सतनाम सिंह से हमने उनकी माता की मौत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, “कैंसर था जी मेरी मां को. बठिंडा, संगरूर, बीकानेर सब जगह धक्के खाए पर मर गईं. आयुष्मान वाला कार्ड भी एक ही जगह चला, बाकि हर जगह खूब पैसे भरने पड़े. मेरा चाचा भी कैंसर से पीड़ित है. गांव के कम से कम 20 लोग इस समय कैंसर से पीड़ित हैं, और कितने ही मर लिए. सरकार न कोई कैम्प लगवाती है और न ही यह जांच करवाती है कि हमारे गांव में इतना कैंसर किस वजह से हो रहा है.”
सतनाम ने भीतर से लाकर अपनी मां की तस्वीर दिखाई. सतनाम के 60 वर्षीय चाचा नछत्तर सिंह भी कैंसर से झूझ रहे हैं. पास खड़े गांव के नौजवान बलजिंदर सिंह ने बताया, “बड़े डॉक्टर बोलते हैं कि इस गांव में मुख्य तो काला पीलिया की बीमारी है, जो एक उम्र के बाद पककर लीवर के कैंसर में तब्दील हो जाती है.”
बलजिंदर हमारा हाथ पकड़कर गांव में घुमाने लग गए. जिस घर के बाहर कोई आदमी मिलता, बलजिंदर उन्हीं से ही काला पीलिया के बारे में पूछते. हर दूसरे परिवार में यह दिक्कत हमें मिली. अपने घर के बाहर खड़े जसविंदर सिंह हमें हमारा हाथ पकड़कर घर के अंदर ले गए और आवाज मारकर अपने 17 वर्षीय बेटे लाडी सिंह को बुलाया. अपने बेटे के सर पर हाथ फेरकर जसविंदर बताते हैं, “यह आठ साल का था, जब हमें पता चला कि इसे कैंसर है. पिछले दस सालों से हम अस्पतालों में लिए घूम रहे हैं, अब जाकर कुछ आराम पड़ा है लड़के को. गांव में सभी का यही हाल है. बीमारी ने हमें कर्जदार बना दिया है. गांव में कई लोगों को इसके इलाज के लिए अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी है.”
लीवर के कैंसर से ही झूझ रही सिमरनजीत कौर पर उस समय पहाड़ टूट पड़ा जब उन्हें तीन साल पहले पता चला कि उनको भी लीवर का कैंसर है. 37 वर्षीय सिमरनजीत के पति चार एकड़ के किसान थे, लेकिन अपनी पत्नी के इलाज के लिए उन्हें दो एकड़ जमीन बेचनी पड़ी. सिमरनजीत ने हमें बताया, “मुझे पहले काला पीलिया था, जो धीरे-धीरे कैंसर बन गया. अब थोड़ी ठीक हूं. अब दवाई सिरसा (हरियाणा) से चल रही है.”
हमने गांव और जिले से इलाज के बारे में सवाल किया तो उन्होंने एकटख जवाब दिया, “हमारे गांव में तो कोई अस्पताल ही नहीं है. मानसा शहर में एक अस्पताल है, लेकिन वहां डॉक्टर हमें बाहर से ही इलाज की सलाह देते हैं. इसलिए हम हरियाणा से दवाई ले रहे हैं. वहां हमारा कार्ड (आयुष्मान) भी नहीं चलता. पर मरता आदमी क्या करे.”
पास खड़े उनके पति हरदीप सिंह बीच में ही बोल पड़ते हैं, “चलो हमारे पास तो थोड़ी बहुत जमीन थी, कुछ बेचकर काम चल गया. जिनके पास बिल्कुल जमीन नहीं है, वो क्या बेचें. मैं आपको ले चलता हूं हमारे गांव के ही एक मजदूर परिवार में. मियां-बीवी दोनों को दिक्कत है” हरदीप हमें अपने दोस्त बलदेव सिंह और राजकौर के घर ले गए. पशुओं का चारा लेकर आई राजकौर ने हमें बताया, “मेरे और मेरे घरवाले दोनों को ही काला पीलिया है जी. पर इलाज के लिए पैसे नहीं हैं. प्राइवेट में इलाज महंगा है, सरकारी अस्पताल में हम जैसे गरीबों को कोई पूछता नहीं. हम तो आराम भी नहीं कर सकते. दिहाड़ी करने नहीं गए तो भूख से मर जाएंगे.”
काले पीलिया के बारे डॉ केपी सिंह ने हमें बताया, “हेपेटाइटिस सी को देसी भाषा में काला पीलिया कहते हैं. यह बीमारी मालवा बेल्ट के कई इलाकों में फैली हुई है, जिनमें मानसा और मोगा जिले मुख्य हैं. इस बीमारी के पकने के कारण ही लीवर के कैंसर का जन्म होता है. यह बीमारी असुरक्षित स्वास्थ्य संबंध और झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा एक ही सुई से सारे गांव को इंजेक्शन लगा देने जैसी गलतियों से होती है. इस बीमारी को किसी गांव से तभी जड़ से खत्म किया जा सकता है, जब सही ढंग से स्वास्थ्य विभाग की टीम पूरे गांव को मॉनिटर करे और पूरा इलाज चलाए. छिटपुट प्रयासों से तो यह नहीं रूकती.”
इस बीमारी के खिलाफ लड़ने के लिए गांव के नौजवानों ने एक कमेटी भी बनाई हुई है जो पंजाब के मुख्यमंत्री से लेकर संबंधित अधिकारियों तक कई पत्र लिख चुकी है, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. इस कमेटी के मेम्बर बलकार सिंह ने मुझे कई पत्र दिखाते हुए कहा, “ये देखो सर. चिट्ठियां लिख-लिखकर थक चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. अब चुनाव चल रहे हैं, तो जो भी नेता आता है, वो कहता है कि नाली बनवालो-गली बनवालो. हमें नहीं चाहिए नालियां. हमें तो बस इस बीमारी से छुटकारा चाहिए, ताकि कम से कम जिंदा तो रह सकें.”
Also Read
-
Another Election Show: Hurdles to the BJP’s south plan, opposition narratives
-
‘Not a family issue for me’: NCP’s Supriya Sule on battle for Pawar legacy, Baramati fight
-
‘Top 1 percent will be affected by wealth redistribution’: Economist and prof R Ramakumar
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
Never insulted the women in Jagan’s life: TDP gen secy on Andhra calculus, BJP alliance