Assembly Elections 2022

ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की विधानसभा सीट सिराथू की पड़ताल

इलाहाबाद से कुछ दूर स्थित कौशांबी एक पिछड़ा क्षेत्र माना जाता है. यहां तीन विधानसभा सीटों- सिराथू, मंझनपुर और चायल में 27 फरवरी को मतदान होगा.

इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की सिराथू सीट से केशव प्रसाद मौर्य चुनाव लड़ रहे हैं. केशव प्रसाद मौर्य भाजपा का 'मौर्य' चेहरा हैं. केशव प्रसाद मौर्य के जरिए, भाजपा की गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को साधने की जुगत जारी है.

गैर यादव ओबीसी समीकरण और मौर्य समाज का मूड समझने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम सिराथू पहुंची.

केसरिया गांव उत्तर प्रदेश के किसी भी आम गांव की तरह है. ईंटों से बने मकान, छोटी-छोटी गुमटी में चाय की दुकान और हरे भरे खेत.

सर्दियों के चलते महिलाएं घरों के बाहर धूप सेक रही हैं. यहीं पर हमारी मुलाकात 60 वर्षीय शांति देवी से हुई. कुछ देर के बाद वह हमें अपने पड़ोसी के घर के अंदर ले गईं. ईंट की एक दीवार पर केशव प्रसाद मौर्य का एक बड़ा सा कैलेंडर टंगा हुआ था. उस पर लिखा था, “कमल का बटन दबाएं और भाजपा को भारी मतों से जिताएं”, चुनाव के इस समय में ऐसे तमाम पोस्टर और स्टिकर, केसरिया गांव के हर घर और दुकान में दिखना आम सी बात है.

शांति देवी कहती हैं, "जो मुझे खाना देगा यानी योगी-मोदी, उसे वोट दूंगी.”

कोविड महामारी के मद्देनजर केंद्र द्वारा 2020 में शुरू की गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत शांति देवी और उनके पति को हर महीने पांच किलो राशन मिल रहा है. साथ ही उन्हें पीडीएस योजना के तहत 35 किलोग्राम अतिरिक्त राशन भी मिलता है. आगामी चुनावों को देखते हुए सरकार ने कथित तौर पर, गरीब कल्याण योजना का लाभ मार्च 2022 तक बढ़ा दिया है.

शांति के पास तीन बीघा जमीन है जिस पर वह खेती करती हैं. वह आवारा पशुओं की समस्या से परेशान हैं जो उनके खेत बर्बाद कर रहे हैं. शांति कहती हैं, "पांच किलो राशन में क्या होता है? आवारा पशु हमारी फसल उजाड़ देते हैं."

मई 2017 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खानों और गौ तस्करी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी. अपनी हिंदुत्व की राजनीति को एक कदम आगे बढ़ाते हुए योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में, “गौहत्या” करने वालों पर 10 साल की जेल और पांच लाख जुर्माना लगाने का फैसला लिया. वहीं अंग-भंग करने पर सात साल की जेल और तीन लाख रुपए तक जुर्माना. ऐसे मामलों में दूसरी बार पकड़े जाने पर गैंगस्टर एक्ट लगेगा.

छुट्टा यानी मालिकों द्वारा खुले छोड़ दिए गए आवारा पशु, ग्रामीण उत्तर प्रदेश की एक बड़ी समस्या हैं, शांति देवी कहती हैं, "हम इन गायों को खुला नहीं छोड़ सकते. जब भी इन्हें गौशाला में बंद करने की बात होती है, हमें यह कहकर भेज दिया जाता है कि जगह नहीं है. ऐसे में हम इनका क्या करें?"

शांति देवी का जीवन कई चुनौतियों से भरा हुआ है. कुछ देर पड़ोसी के घर बैठने के बाद उन्होंने हमें अपना घर दिखाया. उनके घर में शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा भी नहीं है, जबकि गांव में जगह-जगह दीवारों पर इसके फायदे लिखे हुए हैं. शांति के घर के पीछे एक हिस्से में टॉयलेट की एक सीट लगी है जिसे साड़ी और तिरपाल से ढका हुआ है. इसमें कोई सीवेज नहीं है.

शांति के घर के सामने 41 वर्षीय रामजी गुप्ता का मकान और एक छोटी सी खाने-पीने के सामान की दुकान है. उनका कहना है कि वह पुश्तों से भूमिहीन हैं लेकिन वोट योगी सरकार को देंगे क्योंकि उन्होंने राम मंदिर का काम कर दिया. "योगी सरकार ने हिन्दू-मुस्लिम का मसला हल कर दिया और राम मंदिर का कार्य पूरा कर दिया."

हमने उनसे सवाल किया कि क्या आप भाजपा को वोट केवल इसी वजह से देंगे या केशव प्रसाद मौर्य के काम से भी संतुष्ट हैं?

इसके जवाब में राम जी ने केवल इतना कहा, "हम ताकतवर से युद्ध नहीं कर सकते."

'मुफ्त राशन से क्या होगा?’

हम यहां से कुछ ही कदम दूर 'मौर्य का मोहल्ला' पहुंचे. यह कॉलोनी 10 दिसंबर 2020 को वजूद में आई. यहां गांव के अधिकतर मौर्य परिवार रहते हैं. 45 वर्षीय रुश्मा देवी के चार बच्चे हैं. उनके दोनों बेटे मुंबई में टेलरिंग और मजदूरी करते हैं. उनकी एक बेटी की शादी हो गई है. वह अपनी छोटी बेटी के साथ घर पर अकेले रहती हैं. उनकी कोई खेती नहीं है. वह मिड डे मील बनाती हैं और कभी-कभी मजदूरी कर के अपना घर चलाती हैं. बिना प्लास्टर किये हुए ईंटों के जिस घर में वह रहती हैं, यह पिछले साल उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मिला था. वह हमारे साथ बाहर आंगन में एक चारपाई पर बैठकर बाते कर रही थीं, तभी उन्होंने हमें बताया कि उन्हें याद नहीं कि आखिरी बार उनकी पगार कब आई थी.

"आखिरी बार दिवाली (2021) के समय मुझे 1500 रुपए मिले थे." रुश्मा ने बताया.

गांव के अन्य परिवारों की तरह ही रुश्मा को भी मुफ्त राशन मिलता है. हमने उनसे पूछा कि वह इस बार के चुनाव में किस पार्टी को पसंद कर रही हैं? उन्होंने जवाब में कहा, "जिसे पूरा गांव वोट देगा, मैं भी उसी को वोट दूंगी. मैं चाहती हूं कि आने वाली सरकार गांव के पास सिराथू में ही फैक्ट्री लगाए, ताकि गांव के लड़कों को बाहर जाकर नौकरी करने की जरूरत न पड़े."

22 वर्षीय बिपिन कुमार ने बचपन से केशव प्रसाद मौर्य को केसरिया गांव में आते-जाते देखा है. वह पेशे से वेल्डर हैं, लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनके पास कोई काम नहीं है. उनका मानना है कि केशव प्रसाद मौर्य ने युवाओं के रोजगार के बारे में कभी नहीं सोचा. वे कहते हैं, "अगर पार्टी में हमारे बीच से भी कोई है लेकिन उसे हमारी चिंता नहीं है, तो हम कब तक उसके बारे में सोचते रहेंगे?"

बिपिन आगे कहते हैं, “हमें मुफ्त राशन नहीं चाहिए. सरकार ने मुफ्त राशन और मुफ्त सिलिंडर दिया है लेकिन कोई हमें गैस भरवाने के लिए 900 रुपए कहां से देगा?"

भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने मतदाताओं के भीतर निराशा भी पैदा की है. साल 2020 में, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भाजपा की कल्याणकारी योजनाओं के लिए 'नया कल्याणवाद' शब्द का प्रयोग किया था. इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे एक लेख में उन्होंने कहा था कि एक मतदाता, मुफ्त राशन और सिलेंडर हमेशा याद रखता है. मतदाता को शायद उसे मिलने वाले मौलिक अधिकारों, जैसे शिक्षा के अधिकार से ज्यादा फर्क न दिखाई पड़े, लेकिन घर पर रखा मुफ्त सिलेंडर हमेशा उसके सामने रखा है जो उसे सरकार की योजनाओं की याद दिलाता रहता है.

केसरिया गांव से करीब 200 मीटर दूर एक दलित बस्ती है. यहां पर अभी भी कच्ची सड़कें और गंदे नाले हैं.

35 वर्षीय नानकी दिहाड़ी मजदूर हैं और दिन का 250 रुपए कमा लेती हैं. वह परेशान हैं क्योंकि उन्हें विधवा पेंशन नहीं मिल रही. नानकी बताती हैं, "मुझे अभी भी मासिक विधवा पेंशन नहीं मिलती है. पीएम आवास योजना के तहत घर मिला है लेकिन यहां शौचालय नहीं बना था. शौचालय के निर्माण के लिए हमें अपनी जेब से 4000 रुपए भरने पड़े थे."

जब हमने उनसे पूछा कि वह किसे वोट देने का सोच रही हैं? नानकी ने सोचकर जवाब दिया, "अभी मैंने अपना मन नहीं बनाया है."

हालांकि हर कोई अपनी चुनावी पसंद को लेकर नानकी की तरह अनिश्चित नहीं है. मार्च 2020 में लगे लॉकडाउन के बाद देशभर में लाखों मजदूरों ने अपने गांव वापस पलायन शुरू कर दिया था. उसी दौरान इसी बस्ती में रहने वाले दिलीप कुमार, सरोज और बौद्ध राम, अम्बाला से पैदल चलकर सिराथू लौटे थे. उसके बाद से तीनों बेरोजगार हैं.

दिलीप ने हमसे कहा, "हम समझ नहीं पा रहे हैं कि काम के लिए जुगाड़ कैसे किया जाए. हमने अपना मन बना लिया है कि इस सरकार को पूरी तरह से उखाड़ फेंका जाना चाहिए."

53 वर्षीय अबरार अहमद इस बार शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य पर वोट देना चाहते हैं. अबरार और केशव आठवीं कक्षा तक साथ पढ़े हैं. दोस्ती के नाते वह चाहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य ही चुनाव जीतें. हालांकि योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए "80 बनाम 20" वाले भाषण से वह आहत हुए हैं. वह कहते हैं, "मुख्यमंत्री का ऐसा कहना अशोभनीय है. सरकार हमारे माता-पिता समान है, और आप ही हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं?"

अबरार भाजपा के काम से खुश नहीं हैं लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के साथ उनके पुराने रिश्ते के नाते वह उन्हीं को वोट देंगे. "मैं चाहता हूं केशव प्रसाद मौर्य चुनाव जीते और इस बार उपमुख्यमंत्री नहीं बल्कि मुख्यमंत्री बनाए जाए."

जीत का रास्ता कितना आसान है?

दलित बस्ती के पीछे और अबरार के घर से 100 मीटर दूर ही केशव प्रसाद मौर्य का घर है.

बस्ती के कई लोग कहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य का भतीजा रवि मौर्य और उसका दोस्त आशु मौर्य स्थानीय दबंग हैं. एक शख्स ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया, "पिछले साल13 फरवरी को आशु सोनकर पर कथित रेप का आरोप लगा था और उस पर एफआईआर दर्ज हुई थी. जिसके बाद पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. आशु और रवि साथ घूमा करते थे. आज भी इनका दबदबा है." स्थानीय पत्रकारों ने इन आरोपों की पुष्टि की है.

जिन लोगों ने भी हमें ये बातें बताई सब के अंदर एक डर था और इसलिए वे अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते हैं.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में गैर- ओबीसी वोट निर्णायक भूमिका निभाते हैं. उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी का कुल वोटिंग प्रतिशत 40 प्रतिशत रहता है. इन में 7 प्रतिशत यादव, 5 प्रतिशत मौर्य, और 5 प्रतिशत कुर्मी निर्णायक वोट बैंक साबित होते हैं. 2017 चुनाव की तरह इस बार भी, भाजपा का पूरा जोर गैर-ओबीसी और गैर-जाटव मतदाताओं को लुभाने में है.

लेकिन इस बार पल्लवी पटेल की उम्मीदवारी ने सिराथू में इस बार मुकाबला रोचक बना दिया है. अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल, डॉ. सोनेलाल पटेल की बेटी हैं और समाजवादी पार्टी के निशान पर केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरी हैं.

1995 में बसपा के प्रसिद्ध नेता डॉ. सोनेलाल पटेल ने कांशीराम से मतभेदों के चलते पार्टी से किनारा कर लिया था और अपना दल की नींव रखी. पिछड़े तबकों, मुख्यतः कुर्मी व मौर्य समाज के प्रतिनिधित्व के हक़ पर बनी इस पार्टी को 2014 के लोक सभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन कर सफलता मिली. लेकिन पारिवारिक खटास के चलते, 2015 में पार्टी दो हिस्सों -अपना दल (कमेरावादी) और अपना दल (सोनेलाल) में बंट गई. अपना दल (कमेरावादी) की कमान डॉ. सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल ने संभाली है, जो इस बार का चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ रही हैं. वहीं अपना दल (सोनेलाल) का नेतृत्व उनकी दूसरी बेटी अनुप्रिया पटेल के पास है जो भाजपा के साथ गठबंधन में हैं.

पल्लवी पटेल ने न्यूज़लॉन्ड्री को दिए इंटरव्यू में कहा, "मैं चुनाव शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर लड़ रही हूं. भाजपा गुंडों की पार्टी है. उसे जनता खुद हटाकर सबक सिखाएगी." पल्लवी पटेल का मानना है कि सिराथू की जनता इस बार अपनी "बहू" पल्लवी को अपना नेता चुनेगी.

(दिलशाद अहमद के सहयोग से)

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