Assembly Elections 2022
योगी आदित्यनाथ: एक उग्र भगवाधारी
1.
1998 में भारत ने पहली बार उस दक्षिणपंथी, हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी को केंद्र में सरकार बनाने का मौका दिया जो भारत को 'हिंदू राष्ट्र' बनाने में विश्वास रखती है. रामजन्म भूमि आंदोलन के शुरू होने के एक दशक में ही पार्टी की ताकत काफी बढ़ गई थी. 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहाने वाले हिंदू कारसेवकों को संगठित करने के लिए देश भर में यह अभियान चलाया गया था. ऐसा माना जाता है कि अयोध्या में मुस्लिम आक्रांता बाबर ने हिंदुओं के भगवान राम की जन्मभूमि पर मंदिर को तोड़कर यह मस्जिद बनाई थी. इस आंदोलन की चपेट में आकर पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए, हजारों जानें गईं और लाखों लोग घायल हुए. इससे भी कहीं महत्वपूर्ण बात यह हुई कि इस घटना ने आधुनिक भारत के भविष्य को अलग दिशा दे दी- एक सेकुलर गणतंत्र, हिंदू बहुसंख्यकवाद और सांप्रदायिक राजनीति का गढ़ बनने की ओर चल पड़ा.
उसी साल (1998) पूर्वी उत्तर प्रदेश की गोरखपुर सीट से एक युवा सांसद, 26 वर्षीय योगी आदित्यनाथ ने भी चुनाव जीता.
2017 में, इस घटना के 19 साल बाद, उन्होंने राम जन्मभूमि विवाद के प्रदेश यानी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली.
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला और तीसरा सबसे गरीब प्रदेश है जो भारत की संसद में सबसे ज्यादा सांसद भेजता है और देश की राजनीति को कई मायनों में प्रभावित करता है. जो पार्टी यूपी को जीत लेती है वह केंद्र की राजनीति पर भी असर डालती है.
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2.
अजय सिंह बिष्ट का जन्म उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को अलग करके बनाए गए राज्य उत्तराखंड में हुआ था. 22 वर्ष की उम्र में गणित से स्नातक बिष्ट, गोरखनाथ मठ में आकर सन्यासी हो गए. यह मठ उत्तर प्रदेश में गोरखपुर में 11वीं शताब्दी के संत गुरु गोरखनाथ के नाम पर है. उनकी शिक्षाओं पर बना नाथ संप्रदाय किसी भी प्रकार की मूर्ति पूजा या किसी एक भगवान में आस्था नहीं रखता था और उसमें सभी जाति और पूजा पद्धतियों के लोगों को अपनाने की सौहार्दपूर्ण संस्कृति थी. आज भी मठ में महंत गैर ब्राह्मण होते हैं जोकि हिंदू जाति व्यवस्था को तोड़ती है जिसमें केवल ब्राह्मण ही किसी मठ या संप्रदाय के प्रमुख बन सकते हैं. मठ के विशाल प्रांगण के अंदर स्कूल, अस्पताल और गौशालाएं चलती हैं.
मठ का सदस्य बनने के बाद अजय बिष्ट को नया नाम मिल गया और वो योगी आदित्यनाथ बन गए. उन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया, अपने बाल मुंडवा दिए, जीवन भर के लिए भगवा वस्त्रों को अपनाया और आधिकारिक तौर पर अपने पिता का नाम बदलकर अपने आध्यात्मिक गुरु और गोरखनाथ मठ के प्रमुख, महंत अवैद्यनाथ का नाम उनकी जगह लिखवा दिया.
पिछली शताब्दी में गोरखनाथ मठ के कुछ महंतों ने मठ के पूर्व के आचार-विचार और संस्कृति से हटकर, उसे हिंदुत्व की राजनीति का केंद्र बना दिया. हिंदुत्व या राजनैतिक हिंदुत्व भाजपा की गंगोत्री यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा है. आरएसएस खुलकर फासीवादी मानसिकता का समर्थन करता है. गोरखनाथ मठ अब कई हिंदू भगवानों की मूर्तियों की पूजा करता है और मठ के महंत सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेते हैं.
आदित्यनाथ से पहले महंत रहे अवैद्यनाथ गोरखपुर से चार बार सांसद रहे और राम जन्मभूमि आंदोलन में एक मुख्य किरदार थे. उनसे पूर्व के महंत, दिग्विजयनाथ, हिंदू महासभा के सदस्य थे, जो कि एक कट्टरवादी संगठन है. इस संगठन के ऊपर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगा था. उन्हें 27 जनवरी, 1948 को एक जनसभा में गांधीजी की हत्या के लिए हिंदुओं को भड़काने के वजह से 9 महीने जेल में रहना पड़ा था. गांधीजी की हत्या के 2 वर्ष बाद वह हिंदू महासभा के मुख्य सचिव बन चुके थे. तब उन्होंने चर्चित बयान दिया था कि कि अगर वे सत्ता में आए तो मुसलमानों से 5-10 सालों के लिए वोट देने का अधिकार छीन लेंगे ताकि मुसलमान प्रशासन को यह तसल्ली दिला सकें कि वे राष्ट्रवादी हैं.
गोरखपुर में पले-बढ़े एक लेखक उमैर अहमद कहते हैं, "जिस समय आदित्यनाथ मठ के सदस्य बने तब पूर्वी उत्तर प्रदेश संगठित अपराध या माफिया की चपेट में था."
शहर में उत्तर भारत के सबसे बड़े रेलवे जंक्शनों में से एक मौजूद था और रेलवे के बड़े ठेकों को लेकर गैंग्स के बीच अक्सर खूनी टकराव होते थे. बेरोजगारी और खराब सामाजिक और आर्थिक मानकों की वजह से इलाके में अपराध जड़ जमा चुका था. शहर को अक्सर "पूरब का शिकागो" और "सिसली का एक हिस्सा" कहा जाता था.
अक्सर होने वाली गैंगवार, वर्चस्व की लड़ाई कहलाती थीं. इस कालखंड में पुलिस ने कई गैंगस्टरों को मारा. इनमें से अधिकतर ब्राह्मण या ओबीसी तबके से थे.
उमैर कहते हैं, "आदित्यनाथ ने अपनी सवर्ण जाति ठाकुर पहचान का इस्तेमाल किया, अपने पूर्वजों से अलग जनता के बीच जाना शुरू किया और युवाओं में पैदा हो रहे रोष का इस्तेमाल कर अपना कद बढ़ाया."
वह अब वर्चस्व की लड़ाई का हिस्सा बन गए थे.
आदित्यनाथ के मठ का सदस्य बनने के 5 वर्ष के भीतर ही, अवैद्यनाथ ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया, और उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर 1998 के लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार बनाया.
बतौर सांसद अपने पहले कार्यकाल में ही, 2002 के गुजरात दंगों के बाद जिसमें 2000 से ज्यादा मुसलमान मारे गए, उन्होंने अपनी हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया जो एक हिंसक और अल्पसंख्यक विरोधी युवा संगठन था. उस वक्त इस संगठन के लोग पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में एक लोकप्रिय नारा लगाते थे- “यूपी भी गुजरात बनेगा, गोरखपुर शुरुआत करेगा.”
इस संगठन के सदस्य आमतौर पर बेरोजगार युवा हिंदू पुरुष थे. यह संगठन, कट्टरवादी हिंदू हितों के 'रक्षक' के रूप में स्वतंत्र रूप से काम करने लगा था, और कभी-कभी 'हिंदू राष्ट्र' के मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ भी अपने उम्मीदवार उतारता था.
इनके मुख्य मुद्दे गौरक्षा, घर वापसी (ईसाइयों और मुसलमानों को दोबारा से हिंदू बनाने के लिए धर्मांतरण अभियान) और लव जिहाद (एक मुस्लिम विरोधी काल्पनिक साजिश जिसे हिंदुत्व के मानने वाले प्रचारित करते हैं) थे. इस साजिश में यह दावा किया जाता है कि मुसलमान पुरुष हिंदू महिलाओं को झूठे प्यार और आकर्षण से निशाना बनाते हैं और एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक साजिश के तहत उनका धर्मांतरण कराते हैं. संगठन के लोग अक्सर मुसलमानों से गौहत्या को लेकर मारपीट किया करते थे, हिंदू-मुसलमान जोड़ों को अलग कर आते थे और हिंदुओं का धर्मांतरण के आरोप पर चर्चों को आतंकित किया करते थे.
1998 से 2017 के बीच आदित्यनाथ पांच बार गोरखपुर से सांसद रहे. उन्होंने इस चीज का खाका तैयार करना शुरू कर दिया कि एक बहुसंख्यकवादी हिंदू राष्ट्र कैसा दिखेगा- सांस्कृतिक विविधता के लिए कोई स्थान न होना, नागरिक के रूप में मिली स्वतंत्रताओं का हनन और राजनीतिक विरोधियों का दमन.
इस दौरान गोरखपुर में कुछ सांप्रदायिक दंगे भी हुए. गोरखपुर के लगभग सभी थानों ने अपने प्रांगण में हिंदू मंदिर बना लिए और हर हफ्ते हिंदू भगवान हनुमान की साप्ताहिक पूजा करने लगे. स्थानीय जगहों के उर्दू नाम बदलकर हिंदी में कर दिए गए मसलन मियां बाजार, माया बाजार बन गया, उर्दू बाजार हिंदी बाजार बन गया और अली नगर, आर्य नगर बन गया. 2005 में उन्होंने एक 'शुद्धि' अभियान का नेतृत्व भी किया, जिसमें उत्तर प्रदेश के एटा में 1800 ईसाइयों का धर्मांतरण कर उन्हें हिंदू बनाया गया.
मठ अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता बन गया और लोगों को सरकारी और गैर सरकारी कामों में मदद की पेशकश करने लगा. हिंदू युवा वाहिनी के जरिए एक कानून को हाथ में लेने वाले 'निगरानी तंत्र' को बढ़ावा दिया गया. इसमें लोग एक दूसरे के ही खिलाफ खड़े थे. इससे भय और हिंसा का एक सिलसिला चल पड़ा.
मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक आदित्यनाथ पर 15 संगीन मामलों का आरोप लग चुका था जिनमें नफरती भाषा, हत्या का प्रयास और सांप्रदायिक हिंसा भड़काने जैसे आरोप थे. सत्ता में आने पर उन्होंने अपने खिलाफ दाखिल सभी मामले खारिज कर दिए.
लाठी के जोर की वकालत करने वाले योगी को सजा की बजाए प्रोन्नति मिली. उनको बीच में रखकर, एक कल्ट यानी अंधभक्ति का माहौल खड़ा किया गया जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, विकास, शिक्षा और रोजगार के सवालों को पीछे रखकर धार्मिक पहचान को प्रमुखता से हवा दी गई.
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3.
यह स्वतंत्र भारत में पहली बार हुआ, जब एक सक्रिय धार्मिक व्यक्ति को सार्वजनिक पद पर बिठाया गया था.
मुख्यमंत्री बनने के एक साल के भीतर ही मुख्यमंत्री आवास, राज्य का सचिवालय, सार्वजनिक इमारतें, सरकारी दफ्तरों के परदे और तौलिए, पुलिस थाने, रोडवेज की बसें, शौचालय, सड़क के डिवाइडर, टोल प्लाजा, सरकारी स्कूलों में बस्ते, सम्मान और अनुदान के प्रमाण पत्र और यहां तक कि राज्य का हज ऑफिस, जो मक्का जाने वाले मुसलमानों के लिए बना हुआ दफ्तर है, सबको भगवा रंग से रंग दिया गया.
हालांकि राज्य में पहले भी सार्वजनिक संपत्ति सत्ता में आने वाले राजनीतिक दलों के हिसाब से नीली और लाल-हरी होती रही थीं, लेकिन इस बार बात अलग थी.
2008 में, उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में हिंदू युवा वाहिनी द्वारा आयोजित विराट हिंदू चेतना रैली में आदित्यनाथ ने दावा किया कि हिंदू संस्कृति और मुसलमान संस्कृति कभी साथ नहीं रह सकतीं और एक धर्म युद्ध होना अटल था. उनकी आधिकारिक वेबसाइट पर उनके बहुत से लेखों में इस्लाम के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देने वाले 'हिंदू खतरे में', 'सावधान यह इस्लामिक आतंकवाद है' जैसे लेख भी हैं.
2015 में जब सुपरस्टार शाहरुख खान ने लेखकों, फिल्म निर्माताओं, वैज्ञानिकों और इतिहासकारों का भारत में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता का समर्थन किया, तो आदित्यनाथ ने उनकी तुलना पाकिस्तानी आतंकवादी हाफिज सईद से की. हिंदू बहुमत को उनकी फिल्मों का बहिष्कार करने की अपील की और उन्हें 'पाकिस्तान चले जाने' की सलाह दी.
उनके मुख्यमंत्री रहते उत्तर प्रदेश की पारस्परिक भाईचारगी को गहरा धक्का लगा है.
मार्च 2018 में मुख्यमंत्री बनने के एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा में कहा कि वह एक स्वाभिमानी हिंदू हैं और इसलिए वह ईद नहीं मनाते, जो कि एक मुसलमान त्योहार है. यह प्रदेश में आमतौर पर जीवन का हिस्सा रहने वाली सांस्कृतिक विविधता, जिसे स्थानीय भाषा में गंगा-जमुनी तहजीब कहा जाता है, से बिल्कुल अलग था.
2011 की जनगणना के हिसाब से उत्तर प्रदेश के 19 प्रतिशत नागरिक मुसलमान हैं. प्रदेश हमेशा से हिंदू और मुस्लिम सांस्कृतियों की साझेदारी का प्रतीक रहा है. सदियों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान की वजह से एक साझा विरासत चाहे वह खानपान हो, कत्थक कला हो, त्योहार, साहित्य या पहनावा हो, दोनो ही समुदायों के दैनिक जीवन में आपसी निर्भरता दिखती है.
हर होली पर बाराबंकी जिले में सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की सफेद मजार, लाल, पीले, गुलाबी, बैंगनी आदि रंगों में रंग जाती है. वारिस अली शाह 19वीं शताब्दी के एक संत थे और उन्होंने सूफी संस्कृति में ही वारसी मत की शुरुआत की थी. उनका मानना था कि धर्म प्यार और स्नेह पर आधारित होते हैं. उनके अनुयायियों में हिंदू, मुसलमान, ईसाई और सिख सभी लोग थे और उन्हें अपने धर्म या संप्रदाय में बने रहने की आजादी थी. इस सहिष्णुता के ही प्रतीक स्वरूप उन्होंने मजार पर होली मनाने का रिवाज शुरू किया जो एक शताब्दी से अधिक समय से चला आ रहा है.
26 नवंबर, 2017 को स्थानीय निकाय के चुनावों में प्रचार करते हुए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने देवा शरीफ को दी जाने वाली बिजली को मुद्दा बनाकर सांप्रदायिक मतभेद को बढ़ावा दिया. उन्होंने कहा, "देवा को 24 घंटे बिजली मिली, महादेवा को नहीं. हम इसे बदलेंगे." उन्होंने यह इसी जिले में स्थित लोधेश्वर महादेव मंदिर के संदर्भ में कहा. सर्वधर्म समभाव की संस्कृति के बावजूद उन्होंने दोनों पूजा स्थलों को एक सांप्रदायिक पहचान दे दी.
लोधेश्वर महादेव मंदिर, देवा शरीफ से एक घंटे की दूरी पर बाराबंकी की रामनगर तहसील में घाघरा नदी के किनारे महादेवा गांव में है. मंदिर भी अपनी सौहार्दपूर्ण संस्कृति के लिए जाना जाता है. सदियों से मंदिर के बाहर प्रसाद की दुकानें, पूजा के लिए आवश्यक सामग्री, क्रॉकरी, बर्तन, खिलौने और कला के नमूनों की दुकानें, हिंदू और मुसलमान दोनों ही चलाते आ रहे हैं. इतना ही नहीं मंदिर पर आयोजित दो सालाना मेले, जिनमें पहला मार्च-अप्रैल के महीने में शिवरात्रि पर और दूसरा अक्टूबर-नवंबर में मवेशियों का मेला, दोनों ही गांव की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा हैं. हिंदू और मुसलमान दोनों ही इनमें पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लेते हैं. बीते समय में, मंदिर के पीठासीन पुजारियों ने सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाई है.
2017 में 30 वर्षीय महंत आदित्यनाथ तिवारी जो अपनी छवि योगी आदित्यनाथ की तरह ही गढ़े हुए हैं, और खुद को 'छोटा योगी' कहलाना पसंद करते हैं, इस मंदिर के मुख्य पुजारी बनाए गए.
आदित्यनाथ का अनुसरण करते हुए, छोटा योगी ने स्थानीय हिंदू युवा वाहिनी की मदद से मंदिर के पास 200 साल पुराने मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने और मंदिर प्रांगण के बाहर से सभी मुसलमान दुकानदारों को निकालने के अभियान शुरू कर दिया.
इस इलाके से कई सांप्रदायिक दंगों की घटनाओं की खबरें आईं, जिनमें कई मुसलमान दुकानदारों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका के तहत गिरफ्तार किया गया. इस कानून के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को 12 महीने तक संदिग्धों को बिना किसी मुकदमे और अपील के हिरासत में रखने का अधिकार होता है.
शकीला जिनके बेटे रिजवान को गिरफ्तार किया गया, पूछती हैं, "मैं इन लोगों से पूछना चाहती हूं, क्या यह भूल गए हैं कि कैसे एक मुसलमान दर्जी अयोध्या में सालों से रामलला की सेवा करता रहा है? क्या हर साल आने वाले श्रद्धालुओं का ध्यान रखकर हमने महादेव की सेवा नहीं की है?"
वह कहती हैं कि घर के कमाऊ सदस्य की इस प्रकार गिरफ्तारियों के चलते, देश में सबसे खराब सामाजिक और आर्थिक मानकों पर रह रहे मुसलमान समाज, और कमजोर हो रहे हैं. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक करीब-करीब 31% भारतीय मुसलमानों में से एक तिहाई गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे हैं.
आदित्यनाथ सरकार के पहले 18 महीनों में 160 लोगों पर रासुका लगाई गई जिनमें से अधिकतर मजदूर तबके से, ईंट के भट्टों में काम करने वाले, रिक्शा चलाने वाले, फुटपाथ पर सामान बेचने वाले और विद्यार्थी मुसलमान थे.
जनवरी 2018 से दिसंबर 2000 के बीच, उत्तर प्रदेश प्रशासन के द्वारा दर्ज किए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के 120 मामलों में से एक तिहाई से ज्यादा मुसलमानों के खिलाफ थे, जिन पर गौहत्या का आरोप लगा था.
गाय, जिसे हिंदुओं के कुछ मतों में एक दैवीय जानवर माना जाता है, दक्षिणपंथी राजनीति का एक बड़ा बिंदु है. तथाकथित गोदी मीडिया अक्सर आदित्यनाथ को गौशालाओं में समय बिताते हुए दिखाता है, जहां वह गायों की देखभाल और पूजा करते हैं. 2021 में महामारी के दौरान ऐसी खबरें आईं थीं, कि सरकार ने गायों के लिए मेडिकल सामान के साथ एक सहायता डेस्क का गठन किया था.
क्योंकि आदित्यनाथ अब सत्ता में हैं इसलिए आधिकारिक भोजनों में मांस अब नहीं बनता. दक्षिणपंथी हिंदू विचारधारा अक्सर यह किंवदंती फैलाती है कि भारत एक शाकाहारी देश है. जबकि डाटा से पता चलता है कि केवल 20 प्रतिशत भारतीय ही शाकाहारी हैं. बाकी 80 प्रतिशत, जिनमें हिंदू बहुमत, मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध आदि शामिल हैं, मांस खाते हैं. 15 प्रतिशत गौमांस भी खाते हैं. तथ्यों और सहज बुद्धि से परे हिंदुत्व को बढ़ावा देने वाले, "गौरक्षा" को मुसलमानों को "गौहत्यारा" बताकर निशाना बनाने के लिए करते हैं.
उनकी सरकार ने उत्तर प्रदेश में कसाई खाने के व्यवसाय को निशाना बनाया है, जो देश के पांच मिलियन डॉलर के भैंस मांस के निर्यात में करीब दो तिहाई हिस्सेदारी रखता है. खबरों के अनुसार पिछले साढ़े चार सालों में सरकार ने 150 अवैध बूचड़खानों को बंद किया है और राज्य में 319 तथाकथित गौतस्करों को गिरफ्तार किया है.
गिरफ्तारियों के अलावा, राज्य में कई मुसलमान गौहत्या की अफवाहों पर भीड़ द्वारा घेरकर मारे जा चुके हैं.
समीउद्दीन जिन्हें उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में जून 2018 में गौहत्या के आरोप के चलते भीड़ ने बुरी तरह घायल कर दिया था, कहते हैं, "कोई गाय, चाकू, कुल्हाड़ी या खून नहीं था. हम पर हमला किया गया क्योंकि हम मुसलमान हैं." उस घटना में समीउद्दीन के दोस्त कासिम को मार दिया गया था.
पिछले साढ़े चार सालों में बहुसंख्यकवादी सांप्रदायिक भावना के प्रसार के बीच उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था भी उसी पटरी पर चल पड़ी है. गोरखपुर की तरह ही पुलिस थानों में हिंदू त्यौहारों को मनाए जाने को प्रोत्साहित किया जाता है.
इससे यह भी प्रतिबिंबित होता है कि सामाजिक हाशिए पर पड़े लोगों की हत्या, पुलिस तंत्र का हिस्सा बन गई है. पुलिस के द्वारा ज्ञात अपराधियों को गोली मार देना पुलिस एनकाउंटर के तौर पर राज्य की नीति का हिस्सा बन गया है.
2017 के अपने चुनाव अभियान में, आदित्यनाथ ने यूपी के अपराध के आंकड़ों के लिए, राज्य की जनसंख्या के धार्मिक बंटवारे का इस्तेमाल कर गिरती हुई कानून व्यवस्था के लिए मुसलमान समाज की ओर इशारा किया था. उन्होंने कहा कि अपराधियों को मारा जाएगा. वह भी तब, जब उनकी सरकार ने सत्ता में आते ही उन्हीं के खिलाफ लगे सारे अपराधिक मामलों को वापस ले लिया.
उनकी सरकार के चार साल से अधिक समय में, अक्टूबर 2021 तक, यूपी पुलिस ने 151 लोगों को मुठभेड़ में मारा है और 3,196 लोगों को गोली मारकर घायल किया है. इसे आम भाषा में पुलिस एनकाउंटर कहा जाता है. इनमें से लगभग सभी विचाराधीन थे, करीब 40 प्रतिशत मुसलमान थे, और बाकी अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ी जातियों से आते थे. 2015 के एनसीईआरटी के डाटा के मुताबिक, जेलों में बंद दो तिहाई से ज्यादा कैदी विचाराधीन हैं. विचाराधीन कैदियों में से 55% से अधिक मुसलमान, दलित या आदिवासी हैं.
कई जांचों में बात बाहर आई है कि यह हत्याएं, आकस्मिक होने वाले एनकाउंटर जहां पुलिस को आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ती है, कि बजाय पूर्व नियोजित और निशाना बनाकर की गई थीं.
मारे गए लोगों में 17 से 45 साल आयु के लोग थे, जो परिवार के इकलौते कमाने वाले थे और उन पर दस-पांच हजार या सोने की अंगूठी या खाना चुराने जैसे मामूली अपराधों के आरोप थे. आदित्यनाथ सरकार एनकाउंटरों की संख्या को अपनी सालाना रिपोर्ट में उपलब्धी की तरह गिनाती है, उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करते हुए पुलिस के लोगों को सम्मानित किया गया है. हत्याओं की जांच की मांग करने वाले परिवार के सदस्यों को धमकियां दी गई हैं और उनके घरों को तोड़ा गया है.
नसरीन, जिनके पति फुरकान को अक्टूबर 2017 में मारा गया, पूछती हैं, "अगर हम ऐसे ही खतरनाक अपराधियों का परिवार हैं, तो हमारे पास दिन में दो वक्त की रोटी के लिए भी पैसे क्यों नहीं हैं? हम अभी एक कच्चे मकान में क्यों रहते हैं?"
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आदित्यनाथ सरकार को एक दर्जन से ज्यादा नोटिस जारी किए हैं. जनवरी 2019 में संयुक्त राष्ट्र के विशेष मानवाधिकार दूत ने भारत सरकार को इन हत्याओं के प्रति चेताते हुए लिखा कि यह राज्य के द्वारा पूर्व नियोजित हत्याएं थीं. लेकिन आदित्यनाथ की सरकार ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया.
2016 से 2019 के बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ऐसे 2008 मामले दर्ज किए जिनमें अल्पसंख्यकों या दलितों को प्रताड़ित किया गया, इनमें भीड़ के द्वारा हत्या यानी लिंचिंग के मामले भी शामिल थे. इनमें से 43% नफरती अपराध अकेले उत्तर प्रदेश से थे, जो उसे अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासी समुदायों के लिए देश में सबसे असुरक्षित बनाते हैं.
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4.
मेरठ के जाति विरोधी समूह ब्लू पैंथर्स के अध्यक्ष सुशील गौतम कहते हैं, "आदित्यनाथ विरोध की कोई जगह नहीं चाहते, खास तौर पर दलित समाज के लिए."
दलित, दबे-कुचले के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक मराठी शब्द है, जिसे भारत में अनुसूचित जातियों ने अपना लिया है. दलित उत्तर प्रदेश की जनसंख्या का 21 प्रतिशत हैं और राज्य की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. शताब्दियों तक, हिंदू जाति व्यवस्था के अंतर्गत उनका उत्पीड़न होता रहा है. छुआछूत जैसी सामाजिक और आर्थिक रूप से पृथक कर देने वाली कुरीतियों को आज भी उनसे भेदभाव करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में हर दूसरा अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति और हर तीसरा दलित और मुसलमान गरीब है, और यह केवल आर्थिक गरीबी नहीं है.
आदित्यनाथ के ऊपर जातिवाद का आरोप कई बार लगा है.
मई 2017 में आदित्यनाथ ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में दलित परिवारों के साथ एक जनसभा की. उनके आने से एक दिन पहले, परिवारों में साबुन और शैंपू बांटे गए जिससे वह सभा में आने से पहले अपने को साफ सुथरा कर सकें. इस कदम की दुनिया भर में आलोचना हुई.
जहां एक तरफ भारत का संविधान सरकारी कॉलेजों और नौकरियों में अनुसूचित जातियों अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ों को सामाजिक न्याय के लिए आरक्षण देता है, वहीं आदित्यनाथ ने आरक्षण नीति का विरोध किया है.
सुशील कहते हैं, "सरकार के अधिकतर बड़े पुलिस अधिकारी ठाकुर हैं. उनकी सरकार में खुलकर अगड़ी जातियों का प्रभुत्व है."
अप्रैल 2017 में, उनके सत्ता में आने के एक महीने के अंदर ही, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में शब्बीरपुर गांव के अंदर दलित समाज को जिला प्रशासन के द्वारा बीआर अंबेडकर की मूर्ति लगाने की मंजूरी, ठाकुर समाज के द्वारा आपत्तियों के बाद नहीं दी गई. अंबेडकर एक समाज सुधारक, भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष और दलित-बौद्ध आंदोलन से प्रभावित थे. दलित समाज उन्हें अपना नायक मानता है.
कुछ ही हफ्तों के अंदर इसी गांव में ठाकुर समाज को महाराणा प्रताप का एक जुलूस निकालने की मंजूरी मिल गई. इसके बाद मुठभेड़ हुई और भीड़ ने दलित इलाके में 55 घर जला दिए, कई लोग बुरी तरह घायल हुए. इसके बाद हुए प्रदर्शन में 50 से ऊपर दलित और केवल दो ठाकुर गिरफ्तार हुए.
प्रशासन के द्वारा ऐसा ही एकपक्षीय व्यवहार फिर से अगस्त 2018 में हुआ, जब मेरठ के उल्डेपुर गांव में दलित समाज को शहर के बीच चौधरी चरण सिंह पार्क में प्रदर्शन करने की मंजूरी नहीं मिली. लोग गांव में राजपूतों के द्वारा एक दलित लड़के के मारे जाने के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए इकट्ठा हुए थे. यह उसी गांव के ठाकुर पुरुषों के द्वारा उसी जगह पर आरोपी के समर्थन में इकट्ठा होने के दो हफ्ते बाद हुआ.
जितनी बार लोग प्रदर्शन करने के लिए आए, धारा 144 लगा दी गई, सुशील बताते हैं, "पिछले साढ़े चार सालों से मेरठ शहर का एक बड़ा हिस्सा धारा 144 के तहत है. वे विरोधियों या असंतोष दिखाने वालों को को बर्दाश्त नहीं करते."
धारा 144 के अंतर्गत पांच या उससे ज्यादा लोग किसी भी इलाके में इकट्ठा नहीं हो सकते.
हालिया रिपोर्टस् के अनुसार, भारत में संसाधनों के आभाव की वजह से हर पांचवा दलित बच्चा पढ़ाई छोड़ देता है. उनकी सरकार ने दलित छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति के नियम सामाजिक-आर्थिक मानकों से बदलकर कट-ऑफ नंबर कर दिए हैं. अब वंचित और शोषित समाजों से आने वाले छात्रों को यह भत्ता तभी मिलेगा जब उनके कम से कम 60% नंबर आएंगे. इस निर्णय की काफी आलोचना हुई है.
इतना ही नहीं, हाल ही में अक्टूबर 2021 में अपनी कैबिनेट में बढ़ोतरी करने में भी उन्होंने अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को दूर रखा.
इस साल 22 जनवरी को, विधानसभा चुनावों से एक महीना पहले, चुनाव अभियान के अंतर्गत, आदित्यनाथ और उनके साथ कुछ और भाजपा नेताओं ने गोरखपुर में एक दलित परिवार के घर पर खाना खाया.
सुशील कहते हैं, "हम सब जानते हैं कि दलित समाज के लोग मिनरल वाटर नहीं पीते. लेकिन आदित्यनाथ एक बिसलेरी की बोतल के साथ बैठे थे. तो वह अस्पृश्यता की प्रथा को तोड़ना नहीं, बल्कि एक फोटो ऑप था. अगर वह हमारे साथ सही में बराबरी का व्यवहार करना चाहते हैं, तो उन्हें हमारे साथ गटर में उतरना चाहिए, वह काम जो पारंपरिक रूप से हम पर थोप दिए गए!"
शताब्दियों तक दलित समाज के एक बड़े हिस्से को जबरदस्ती सर पर मैला उठाने के लिए मजबूर किया जाता रहा. भारत में इस पर 1993 में प्रतिबंध लगा लेकिन यह आज भी जारी है.
उत्तर प्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या एक प्रतिशत से भी कम है लेकिन उनमें से 80 प्रतिशत भूमिहीन हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में 50 प्रतिशत आदिवासी घर रहने लायक नहीं हैं. उत्तर प्रदेश के कई स्थानीय समुदाय जो अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आते हैं, उनके प्रशासन के दौरान निष्कासन झेल रहे हैं.
17 जुलाई 2019 को सोनभद्र जिले में एक नरसंहार में 10 लोग मारे गए और 25 घायल हुए. गोंड समाज के लोगों ने, गांव के मुखिया यज्ञदत्त जो गुर्जर समाज से आते हैं, की दावे वाली जमीन को खाली करने से मना कर दिया था. हालांकि समाज के लोगों ने आदित्यनाथ के दफ्तर में चेतावनी पहले से दी थी लेकिन प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया.
पूर्व आईपीएस ऑफिसर और ऑल इंडिया पीपल्स फ्रंट के अध्यक्ष एसआर दारापुरी कहते हैं, "आदिवासी पिछले सात दशकों से भूमि को जोतते रहे हैं. आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आने के बाद, आदिवासियों को स्थानीय भूमि माफिया ने जमीन जोतने से रोकने के लिए धमकाया है."
दारापुरी कहते हैं कि आदित्यनाथ सरकार आदिवासी पहचान को सशक्त रूप से प्रदर्शित किए जाने से खुश नहीं है. अलग-अलग समाज अपने रीति-रिवाज, कर्मकांड और पूजा पद्धति का पालन करते हैं.
हिंदुत्व का प्रोजेक्ट इन अलग-अलग छोटे-छोटे समाज को बड़े हिंदू प्रकोष्ठ में लाने के लिए काम करता रहा है.
दारापुरी कहते हैं, "स्थानीय जनजाति के द्वारा अपनी गैर हिंदू पहचान को बल देना उन्हें अच्छा नहीं लगता, और इसलिए इन जनजातियों को निष्कासन के द्वारा दंडित किया जा रहा है."
5.
2014 में अपनी वेबसाइट www.yogiadityanath.in पर अपने लिखे निबंध महाशक्ति - भारतीय शक्ति के संदर्भ में, के अंदर आदित्यनाथ लिखते हैं कि महिलाएं मुक्त छोड़े जाने और स्वतंत्र होने के लिए सक्षम नहीं हैं.
आदित्यनाथ महिलाओं को पुरुषों के द्वारा रक्षा, उनको नियंत्रित और फेमिनिज्म जैसे पश्चिमी विचारों से बचाए जाने में पूरी तरह विश्वास करते हैं, क्योंकि उससे सामाजिक अनुशासन खतरे में पड़ सकता है.
वह लिखते हैं, "अस्तु, हमारे शास्त्रों में जहां स्त्री की इतनी महिमा वर्णित की गई है वहां उसकी महत्ता और मर्यादा को देखते हुए उसे सदा संरक्षण देने की बात भी कही गई है. जैसे ऊर्जा को यदि खुला और अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो वह व्यर्थ और विनाशक भी हो सकता है वैसे ही शक्ति स्वरूपा स्त्री को भी स्वतंत्रता की नहीं उपयोगी रूप में संरक्षण और चैनेलाइजेशन की आवश्यकता है."
महिलाओं के प्रति उनका दृष्टिकोण हिंदुत्व की विचारधारा में रचा बसा है. एक महिला को केवल एक मां, बेटी या बहन के रूप में ही देखा जाता है, एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में नहीं.
वह लिखते हैं, "क्योंकि इस प्रकार संरक्षित स्त्री शक्ति की ऊर्जा ही महापुरुषों की जन्मदात्री और धात्री बनती है तथा आवश्यकतानुसार स्वयं भी घर से रणभूमि तक प्रकट होकर आसुरी शक्तियों का संहार करती है… अन्यथा पश्चिम से आ रही नारी स्वतंत्रता की आंधी अंदर से उन्हें उखाड़ कर कुएं से निकालकर खाई में डाल देगी और इस प्रकार घर परिवार और समाज के निर्माण में राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और मातृभूमि को परम वैभव तक पहुंचाने में उनकी अपेक्षित भूमिका बाधित होगी."
उनके विचार अप्रत्याशित रूप से नाजी जर्मनी में आदर्श महिला के विचार से मेल खाते हैं, जिनका अपने घर के बाहर कोई कैरियर नहीं होता था और उनकी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी एक अच्छी पत्नी बनना, आर्यन नस्लों की जनसंख्या बढ़ाना और 'पितृभूमि' के लिए लड़ने वाले बेटों को बड़ा करना था.
वे संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत सीटें देने के लिए प्रस्तावित महिला आरक्षण बिल के भी विरोध में हैं. उनके अनुसार इससे परिवार की संरचना में उनकी भूमिका पर असर पड़ेगा. वह लिखते हैं, "यह तय कीजिए कि स्त्री को सक्रिय राजनीति में, बाहरी दुनियादारी में, पुरुषों के समान हिस्सेदारी देने से कहीं हमारे परिवार की मां, बहन, बेटी अपने स्वरूप और महत्व को तो नहीं खो देंगी."
परंतु महिलाओं के कई चुनावों में एक अलग चुनावी धड़े के रूप में भूमिका निभाई जाने के कारण, 2014 में प्रकाशित होने के बाद यह लेख अब वेबसाइट से हटा दिया गया है.
एनसीआरबी के डाटा के अनुसार 2012 में, पूरे भारत के अंदर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, इनमें से आधे मामले उत्तर प्रदेश से थे.
आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रीकाल के दौरान सभी जातियों और धर्मों की महिलाओं ने बुरे से बुरे अपराध देखे.
जून 2017 में आदित्यनाथ के शपथ लेने के 3 महीने बाद ही उन्नाव जिले में भाजपा के एक विधायक कुलदीप सेंगर ने एक 17 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया. दो साल तक मुख्यमंत्री ने सेंगर को संरक्षण दिया जबकि पीड़ित परिवार ने लगातार खतरों को झेला. न्याय पाने की जद्दोजहद में पीड़िता ने मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने संज्ञान नहीं लिया. इसके बजाय उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया गया और तत्पश्चात पुलिस हिरासत में उनकी मौत हो गई. उनके परिवार पर बार-बार हमले हुए उसके चाचा गिरफ्तार हुए, परिवार की महिलाएं ट्रक से एक्सीडेंट में मारी गई और उसमें पीड़िता को खुद और उनके वकील गंभीर रूप से घायल हुए. जब इस मामले का संज्ञान उच्चतम न्यायालय ने लिया, सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन किए और विपक्ष के दलों ने संसद में इस मुद्दे को उठाया, तब जाकर कहीं सेंगर की गिरफ्तारी हुई और दिसंबर 2019 में उन्हें सजा हुई.
इस घटना के नौ महीने के भीतर ही सितंबर 2020 में एक 19 वर्षीय दलित महिला के साथ सवर्ण जाति के चार पुरुषों ने सामूहिक बलात्कार किया. यह घटना लखनऊ से 380 किलोमीटर दूर हाथरस जिले में हुई. इस घटना के बाद 10 दिनों के भीतर कोई गिरफ्तारी नहीं हुई थी.
उसके साथ हुई हिंसा की वजह से उसकी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई जिससे उसका पूरा शरीर पंगु हो गया, उसकी जीभ काट दी गई. दो हफ्ते बाद दिल्ली के एक अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया. राज्य सरकार ने, पीड़िता के परिवार की रजामंदी के बिना आधी रात को जबरदस्ती पीड़िता के शरीर का क्रियाकर्म कर दिया.
इस मामले को मीडिया ने विस्तार से कवर किया जिसकी वजह से पूरे देश में प्रदर्शन हुए. आदित्यनाथ ने दावा किया कि हाथरस घटना का फायदा, उनकी सरकार के विकास से क्षुब्ध लोग उठा रहे हैं और पूरे प्रदेश में साजिश करके दंगा भड़काना चाहते हैं.
एक हफ्ते के अंदर ही, इस घटना पर रोशनी डालने की वजह से, कई लोगों पर राज्य में शांति भंग करने, राजद्रोह, सांप्रदायिक नफरत की साजिश और भड़काने के 19 मामले दर्ज कर लिए गए. इसमें पत्रकार सिद्दकी कप्पन की गिरफ्तारी भी शामिल है, जो इस केस को कवर करने जा रहे थे. उनके ऊपर दुर्दांत कानून यूएपीए लगा दिया गया और वह पिछले 16 महीनों से जेल में हैं.
उनकी सरकार ने कांसेप्ट आर नाम की मुंबई में स्थित एक पीआर कंपनी की सेवाएं ली जिसने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में यह विचार फैलाने की कोशिश की कि 'हाथरस लड़की का बलात्कार नहीं हुआ' था.
पूर्व सांसद और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी की पोलित ब्यूरो की सदस्य सुभाषिनी अली कहती हैं, "वह महिलाओं की प्रगति और सशक्तिकरण में रुचि नहीं रखते. उनकी रूचि तभी जागती है जब एक हिंदू महिला किसी मुसलमान पुरुष के साथ होती है."
2009 में लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान आदित्यनाथ ने एक भाषण में कहा, "अगर वह एक हिंदू लड़की उठाएंगे, तो हम सौ मुसलमान लड़कियां उठाएंगे."
आदित्यनाथ ने खुलकर हिंदू महिलाओं के मुस्लिम पुरुषों के साथ प्रेम संबंधों का विरोध किया है, वह इसे लव जिहाद कहते हैं.
इस थ्योरी की राज्य की कई एजेंसियों ने जांच की है और इस प्रकार के सुनियोजित प्रयास का कोई भी सबूत नहीं मिला है. यह विचार सांप्रदायिक तो है ही उसके साथ-साथ यह हिंदू महिलाओं की समझ का हनन करता है, उनकी संप्रभुता, हक, रजामंदी और चुनाव के अधिकार को नकारता है.
2017 में मुख्यमंत्री बनने के कुछ समय बाद ही, उन्होंने "एंटी रोमियो दल" का गठन किया, जो सार्वजनिक जगहों पर युवा महिलाओं और पुरुषों को नैतिकता के नाम पर निशाना बनाते थे, और महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के नाम पर यह जानने के लिए उनके पहचान पत्र देखते थे कि कहीं हिंदू महिला मुस्लिम पुरुष को डेट तो नहीं कर रही. 22 मार्च 2017 से 30 नवंबर 2020 के बीच इन "एंटी रोमियो दलों" ने 14,454 लोगों को गिरफ्तार किया.
नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 लागू किया. योगी आदित्यनाथ सरकार के द्वारा राज्य में महिलाओं की सुरक्षा के लिए चलाए जा रहे अभियान "मिशन शक्ति" के कुछ ही दिनों बाद इसे पारित किया गया. इसे आम तौर पर "लव जिहाद कानून" के नाम से जाना जाता है.
इस कानून के अंतर्गत धर्म परिवर्तन एक गैर जमानती अपराध बन जाता है जिसमें 10 साल तक की सजा हो सकती है अगर ऐसा बहला-फुसलाकर या लालच देकर किया गया हो. इस कानून के अंतर्गत उत्तर प्रदेश में विवाह के लिए धर्म परिवर्तन भी जिलाधिकारी के लिए मंजूर किया जाना आवश्यक है.
दिसंबर 2021 में, लव जिहाद कानून के अंदर उत्तर प्रदेश में पहली सजा हुई, जब कानपुर में एक युवा मुस्लिम पुरुष पर 10 साल के कारावास और 30,000 रुपए का जुर्माना लगाया गया.
सुभाषिनी अली कहती हैं, "यह मुस्लिम पुरुषों को गिरफ्तार करने और हिंदू महिलाओं को नियंत्रित करने का एक हथियार है, जिससे वे संपत्ति के रूप में देखने वाले समाज में अपने विवाह का निर्णय खुद न ले सकें."
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6.
मई 2021 में हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने गंगा नदी के किनारे सैकड़ों बेनाम शवों पर रिपोर्ट की. उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में मौतें हुई थीं. दो महीने बाद, देश भर में भास्कर के कई दफ्तरों पर आयकर विभाग के छापे पड़े. विपक्षी दलों ने इसे मीडिया को डराने और दबाने का प्रयास बताया.
किसी एक महत्वाकांक्षी तानाशाह की तरह वह सूचना के मुक्त आदान प्रदान पर नियंत्रण रखते हैं और विचारों की स्वतंत्रता पर रोक आलोचना के सभी संभावित माध्यमों पर पकड़ बना कर रखते हैं. उनकी सरकार के दौरान सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना करने की वजह से 200 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
डॉ कफील खान गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में शिशु रोग विभाग में लेक्चरर थे. 27 अगस्त 2017 को, अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म हो जाने के कारण 63 बच्चों की मौत हो गई. इन मौतों पर पूरे देश का ध्यान गया. डॉक्टर खान ने अपनी जेब से पैसा खर्च कर ऑक्सीजन के सिलेंडर खरीदे जिससे स्थिति को संभाला जा सके और उन्हें मीडिया ने एक हीरो की तरह सम्मान दिया. तीन दिनों तक उत्तर प्रदेश सरकार ऑक्सीजन की कमी की वजह से किसी भी मौत के होने से इनकार करती रही. उनके खिलाफ कई मामले दर्ज किए गए जिनमें रासुका भी था.
उनको गिरफ्तार किया गया और 500 से ज्यादा दिनों तक उत्तर प्रदेश के कई जिलों में रखा गया और आखिरकार उन्हें उनकी नौकरी से निकाल दिया गया.
डॉक्टर खान कहते हैं, "उनके चारों ओर एक छद्म उल्लास का माहौल गढ़ दिया गया है, और जो कोई भी उनके प्रति खराब खबरें या आलोचना लाता है उसे कुचल दिया जाता है."
2021 में महामारी के दौरान आदित्यनाथ ने ऑक्सीजन की कमी को जाहिर करने वाले कई अस्पतालों के खिलाफ रासुका के अंतर्गत कार्यवाही और संपत्ति कुर्क करने के आदेश दिए.
मई 2020 में, उन्होंने प्रदेश में सभी प्रमुख कानूनों को रद्द कर दिया जिससे बेहतर काम करने की परिस्थितियों और यूनियन बनाना मुश्किल हो गया, और लोगों को तुरंत रखना और निकालना आसान हो गया.
उन्होंने उत्तर प्रदेश के कई शहरों के उर्दू नाम बदल दिए मुगलसराय को पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर, इलाहाबाद को प्रयागराज और फैजाबाद का अयोध्या नाम हो गया. सरकार के अधिकतम संसाधन मंदिरों को बनाने में खर्च किया गया है.
उनके मुख्यमंत्री के रूप में प्रशासन के अंतर्गत यूपी की प्रति व्यक्ति आय दो हजार 1920 में भारत की औसत आय की आधी ही थी, और राज्य 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में 32वें नंबर पर था. अनुमान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद या जीएसडीपी, केवल 1.9 5% सालाना की योगिक वृद्धि दर से बढ़ा जोकि पिछली राज्य सरकारों के कार्यकाल की दर 6.92% से कम है. कुल बेरोजगारी ढाई गुना बढ़ गई है और 2012 की तुलना में युवाओं में बेरोजगारी लगभग पांच गुना है.
मार्च 2020 में, आदित्यनाथ में सीएए कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों को नामित-अपमानित करने के लिए उनके नाम, तस्वीरें और पते पूरे लखनऊ में बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर लगा दिए, जिससे उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा भी खतरे में पड़ी. यह कानून, पड़ोसी देशों के इस्लाम को छोड़कर सभी धर्मों के मानने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता की पेशकश करता है. 78 वर्षीय दारापुरी जिन्हें तीन हफ्ते के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, कहते हैं, "हमें खाना, दवाएं और चश्मा तक नहीं दिया गया."
इसके प्रतिरोध से लड़ने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने दो करोड़ अमेरिकी डॉलर विज्ञापनों पर खर्च किए.
यूपी को अक्सर "पुलिस राज", "जंगल राज", "बुलेट राज" कहा जाता है, आदित्यनाथ को उनकी सरकार के भय और हिंसा की नीति के चलते "बुलडोजधरनाथ" कहा जाता है.
दारापुरी कहते हैं, "यह दमन के सबसे बुरे कालखंडों में से एक है. यह कानून के राज के बजाय, राज का कानून है.
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उमैर कहते हैं, "एक सांसद के तौर पर गोरखपुर के विकास में उनका कोई प्रभाव नहीं रहा. उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद हुए उपचुनावों में उनकी पार्टी हार गई क्योंकि वह अपने वादों को पूरा नहीं कर सके."
फिर भी वह भाजपा के चुनावों में स्टार प्रचारक हैं.
2016 में उन्होंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के चुने जाने पर प्रशंसा की थी जिसे उनके द्वारा वैश्विक दक्षिणपंथी राजनीति में सहयोगी और मित्र ढूंढने की तरह देखा गया.
वह हिंदू राष्ट्र वादियों के अखंड भारत के सपने के दृढ़ प्रणेता हैं, जिसका उन्होंने यूपी की विधानसभा में भी समर्थन किया. यह विचार मानता है कि आज के भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, श्रीलंका और म्यांमार, मिलकर एक बड़ा हिंदू राष्ट्र हैं. इसके भारतीय उपमहाद्वीप में वैश्विक राजनीति के लिए बड़े अर्थ हैं.
कई लोग अब उन्हें प्रधानमंत्री मोदी जिनके नेतृत्व में गुजरात में अल्पसंख्यकों के खिलाफ सबसे बुरे दंगे हुए, जिसने उन्हें पिछले दो दशकों से हिंदुत्व का चहेता बना दिया की तुलना में हिंदुत्व के लिए कहीं ज्यादा कट्टरवादी और समर्पित नेता के रूप में देखते हैं.
लोग आदित्यनाथ को मोदी का उत्तराधिकारी बोल रहे हैं.
दारापुरी कहते हैं, "अगर वह सफल होते हैं तो हमारा संविधान बाहर फेंक दिया जाएगा और हिंदू प्रधानता लागू कर दी जाएगी. तब कोई जनतंत्र नहीं होगा केवल तानाशाही होगी,"
उन्होंने तानाशाह कैसे बने इसकी एक कुंजी तैयार कर दी है जब लोग आप से डरते हैं, तो आपका उन पर नियंत्रण है. उनकी सरकार मानवाधिकारों का हनन करने से नहीं झिझकती और दंडित व 'शुद्धी' के लिए तत्पर रहती है. नए कानूनों, दंडात्मक कदमों, बल और नीतियों से वह हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को लागू कर रहे हैं.
उनके चारों तरफ तैयार किया गया आभामंडल किसी को यकीन दिलाने या तर्क के लिए नहीं है. इसके बजाय जो भी उनके नेतृत्व के खिलाफ जाता है, सवाल उठाता है उसको नष्ट करने के लिए है. इस हद तक कि लोग जानते हैं कि उनकी निगरानी हो रही है, और वह खुद ही अपने को काबू में रखते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, देश की करीब 27% आबादी, अर्थात दुनिया में सबसे बड़ी संख्या में लोग भारत में बहुआयामी गरीबी में रहते हैं.
सुभाषिनी कहती हैं, "उनके जीवन का प्रक्षेपण राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लोगों के लिए अब एक गाइड है जो यह सीख गए हैं कि सांप्रदायिक जहर और विकासहीनता, उन्नति का रास्ता है."
एक हिंदू सन्यासी के रूप में, जो राम जन्मभूमि मॉडल को वाराणसी और मथुरा शहरों में दोहराने का वादा कर रहा है, आज उनका वर्चस्व संवैधानिक सीमाओं के परे जा चुका है.
सुशील कहते हैं, "उत्तर प्रदेश एक सामाजिक और आर्थिक आपातकाल की स्थिति में रहा है. अगर वह (योगी) राष्ट्रीय मंच पर आते हैं, तो वह इन्हीं तरीकों का इस्तेमाल कर, भारत को एकरूप हिंदू समाज - जिसकी एक ही पूजा पद्धति, एक ही भाषा, और एक ही विचारधारा होगी, में बदलने के लिए इस्तेमाल करेंगे."
साभार- (जगरनॉट डॉट कॉम)
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