Assembly Elections 2022
उत्तराखंड चुनाव: विकास का शोर और पलायन पर चुप्पी
उत्तराखंड के दोनों हिस्सों, गढ़वाल और कुमाऊं पर पलायन की गहरी चोट दिखती है और इसकी कोई एक ही वजह नहीं है. बहुत सारे कारणों से पलायन एक विभीषिका के रूप में तब्दील हो गया है. मिसाल के तौर पर पहाड़ के दूर-दराज के इन इलाकों में रोजगार एक बड़ी समस्या है. लोग रोजी-रोटी के लिए मैदानों या बड़े शहरों की तरफ रुख करते हैं फिर पीछे-पीछे पूरा परिवार गांव छोड़ जाता है. कुछ लोगों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं का अकाल पलायन की वजह बन जाता है तो कुछ लोग बारिश की कमी से खेती बर्बाद होने से परेशान हैं. पीने के पानी के लिए महिलाओं को कई जगह कठिन रास्तों पर लंबी दूरी तय करनी पड़ती है.
पौड़ी से लगभग 30 किलोमीटर आगे शुक्र गांव में हमारी मुलाकात सुरेंद्र सिंह से हुई. इस गांव में बहुत सारे घरों पर हमें ताला लटका मिला. सुरेंद्र सिंह सड़क के किनारे पत्थर तोड़ रहे थे. उन्होंने हमें बताया, “सबसे बड़ी समस्या है जंगली जानवरों का खौफ और पानी की कमी. इस कारण खेती नष्ट हो रही है और हमारे खेत बंजर होते जा रहे हैं.” वो गांव में क्यों रूके रहे, इस सवाल पर सुरेंद्र कहते हैं, “मैंने पहले एक दुकान की थी. वह बंद हो गई. कोरोना के समय सबकुछ बंद हो गया तो परेशानी और बढ़ गई. ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूं.”
इस कारण सुरेंद्र का बेटा केरल में कहीं किसी होटल में नौकरी करता है. वह कहते हैं कि चुनाव में कुछ ही दिन बचे होने के बावजूद किसी दल का नेता उनके गांव तक नहीं आया. शुक्र गांव में आधे से अधिक घरों में ताला लटका दिखा. जिन घरों में ताला नहीं है वहां ज्यादातर महिलाएं रह गई हैं. पुरुष कामकाज की तलाश में शहरों की तरफ चले गए हैं.
उत्तराखंड के दूसरे अहम हिस्से कुमाऊं में भी पलायन की ऐसी ही भयावह तस्वीरें सामने आईं. अल्मोड़ा जिले के भिकियासैंण ब्लॉक से गुजरते हुए हमें ऐसे घरों की श्रृंखला दिखी जहां घर के बाहर ऊंची झाड़ियां और घास उग आई है. पलायन के पीछे यहां भी वजहें कमोबेश वही हैं जो गढ़वाल में हैं. रोजगार की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव. भिकियासैंण के बाजार में कभी रोजाना लाखों रुपए की मिर्च का व्यापार होता था लेकिन बरसात की कमी ने खेती करना दूभर कर दिया है.
भारत के मौसम विभाग ने राज्य में 1951-2010 के बीच वर्षा के माहवार आंकड़ों का विश्लेषण किया और यह निष्कर्ष निकाला कि पिछले कुछ सालों में जनवरी, मार्च, जुलाई, अगस्त, अक्टूबर और दिसंबर में बरसात कम हुई है. उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक बरसात पर निर्भर है. नौकरी के साथ खेती और पशुपालन प्रमुख व्यवसाय हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में भी प्रमुख आर्थिक गतिविधि कृषि ही है जहां 60% लोग किसान हैं और 5% खेतिहर मजदूर हैं. पहाड़ी क्षेत्र बहुत हद तक मानसूनी बारिश पर निर्भर हैं. बरसात के पैटर्न में कोई भी बदलाव यहां जलचक्र और खाद्य सुरक्षा के लिये खतरा है.
दूसरी ओर बंदरों, सूअरों और दूसरे जंगली जानवरों के बढ़ते आतंक से फसल को खतरा पैदा हो गया है. तेंदुओं का आतंक भी गांवों में बढ़ गया है जिसके कारण लोग तेजी से राज्य के मैदानी जिलों या फिर दूसरे राज्यों की ओर भाग रहे हैं.
उत्तराखंड में कुल 13 जिले हैं. इनमें से 10 पहाड़ी जिले कहे जाते हैं. पिछले कुछ दशकों में पहाड़ी जिलों से हुआ तीव्र पलायन राज्य की सबसे बड़ी समस्याओं में एक है. साल 2018 में ग्रामीण विकास और पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक 70% पलायन राज्य के भीतर ही हुआ है– पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी इलाकों में.
रिपोर्ट में पलायन का जिलेवार विवरण जारी किया गया था. रिपोर्ट पलायन के अहम कारणों, इसके विभिन्न प्रकारों, तरीकों, उम्र आधारित पलायन, पलायन के बाद किस शहर में लोग जा रहे हैं और इस पलायन से गांवों पर होने वाले असर आदि के बारे में विस्तृत जानकारी देती है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक अल्मोड़ा, पौड़ी और टिहरी में 2011 के बाद से 10% आबादी का पलायन हो चुका है. इस अध्ययन का एक निष्कर्ष यह भी है कि ज्यादातर पलायन आंतरिक हुआ है यानी राज्य की सीमाओं के भीतर शहरी इलाकों में हुआ है. कुछ मामलों में यह जिले के भीतर भी हुआ है. इस रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के 734 गांवों की आबादी पूरी तरह से पलायन कर चुकी है जबकि 367 गांव ऐसे हैं जहां से 50% आबादी का पलायन हो चुका है.
यह वीडियो रिपोर्ट ऐसे ही कुछ गांवों की पड़ताल करती है.
Also Read
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
In Baramati, Ajit and Sunetra’s ‘double engine growth’ vs sympathy for saheb and Supriya
-
A massive ‘sex abuse’ case hits a general election, but primetime doesn’t see it as news
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
Know Your Turncoats, Part 9: A total of 12 turncoats in Phase 3, hot seat in MP’s Guna