Assembly Elections 2022
उत्तर प्रदेश: ‘हमारे यहां तो दाल बनाने के लिए भी दो किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है’
उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य 28 जनवरी को आगरा में थे. आगरा देहता से भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी बेबी रानी मौर्य के लिए प्रचार करने पहुंचे उप-मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि आगरा के क्षेत्र में पीने के पानी की बड़ी समस्या है. लेकिन इससे भी बड़ी समस्या बुंदेलखंड में थी. थी कि नहीं? (जनता से पूछते हैं ) - और बुंदेलखंड में आज पानी की समस्या समाप्त करके हर घर नल से जल पहुंचा देने का काम, डबल इंजन की सरकार ने पूरा कर देने का काम किया है. यह योजना केवल बुंदेलखंड या यूपी के लिए नहीं पूरे हिंदुस्तान के लिए है.’’
जहां से मौर्य बुंदेलखंड में घर-घर पानी पहुंचाने का दावा कर रहे थे, वहां से महज 50 किलोमीटर दूर हाथरस और एटा जिले के कई गांवों में पानी आज भी एक बड़ी समस्या है. यहां पीने के लिए ही नहीं बल्कि दाल या सब्जी बनाने के लिए कोई दो किलोमीटर दूर से तो कोई चार किलोमीटर दूर से पानी भरकर लाता है.
हाथरस शहर से करीब 17 किलोमीटर दूर एहन गांव पड़ता है. टूटे बदहाल रास्ते से न्यूज़लॉन्ड्री की टीम इस गांव पहुंची. गांव में प्रवेश करते ही हमारी मुलाकात उमेश कुमार सिंह से हुई. 50 वर्षीय सिंह खेती करते हैं. पानी की समस्या पर बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘इस गांव के लगभग आधे हिस्से का पानी खारा हो चुका है. मेरी गली में तो इतना खारा पानी आता है कि उससे दाल तक नहीं गलता है. हमें दाल या सब्जी बनाने के लिए दूर से पानी लाना पड़ता है. सरकारी इंतज़ाम न के बराबर है. घर-घर पाइप तो लगा, लेकिन वह जगह-जगह से टूटा हुआ है. जो थोड़ा बहुत पानी आता है वो भी खारा ही होता है.’’
अलग-अलग सरकारों से नाउम्मीद हो चुके उमेश कुमार सिंह कहते हैं, ‘‘वोट मांगने आते हैं तब कहते हैं कि घर-घर पानी पहुंचा देंगे. पिछली बार योगी-मोदी के कारण यहां बीजेपी के विधायक वीरेंद्र सिंह राणा जीत गए. जीतने के बाद कभी देखने तक नहीं आए. अब फिर आएंगे क्योंकि वोट चाहिए. वोट सबको चाहिए लेकिन हमारी परेशानी कोई नहीं समझ रहा है. अबकी मुश्किल से राणा की जीत होगी.’’
हाथरस और आस पास के इलाकों में खारे पानी की समस्या कोई नई नहीं है. किसी गांव में बीस साल पहले, तो किसी में चालीस साल पहले तक मीठा पानी आता था. कई गांव ऐसे हैं जहां पहले मीठा पानी आता था लेकिन अब वहां का पानी भी खारा हो रहा है. एहन गांव को ही लें तो यहां के कुछ क्षेत्रों में आज भी पीने लायक पानी आता है.
एहन लाडपुर गांव के रहने वाले रिंकू गौतम, किताब कॉपी की दुकान चलाते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए गौतम कहते हैं, ‘‘हम तो बचपन से यही स्थिति देख रहे हैं. मीठे पानी की कमी इस क्षेत्र की बड़ी समस्या है. यहां से दो-तीन किलोमीटर दूर चंद्रवारा में एक नलकूप है, जहां से हम पानी लाते है. अगर वहां पानी नहीं मिलता तो आरओ का पानी खरीदकर पीते हैं. कई बार तीन-चार किलोमीटर दूर श्याम नगरिया में निजी ट्यूबेल है, वहां से पानी भरकर लाना पड़ता है. हमारे यहां जो पानी है उसका इस्तेमाल बर्तन धुलने और नहाने में किया जाता है. पानी इस हद तक खराब है कि इसे मवेशियों को पिलाने पर उनका दूध तकरीबन चार से पांच लीटर कम हो जाता है. कई लोग तो मवेशियों के लिए भी पानी भरकर लाते हैं.’’
रिंकू गौतम हमें आसपास के गांवों के नाम बताते हैं जहां के लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. गौतम के मुताबिक, ‘‘हमारे पड़ोस के 20 गांवों के लोग इसी परेशानी से जूझ रहे हैं. लाडपुर, एहन, मिर्जापुर, कुभैना, श्याम नगरिया, सामंत नगरा, पावरा, महानवई - इन गांवों में पीने के लिए दो-दो किलोमीटर दूर से पानी लाया जाता है. अभी आप इन गांवों में जाएं तो लोग साईकिल, मोटरसाईकिल पर पानी का ड्रम लिए आते-जाते दिख जाएंगे.’’
महानवई गांव एटा जिले में पड़ता है. यह हाथरस और एटा जिले के बॉर्डर पर है. देर शाम जब हम पहुंचे तो गांव से करीब एक किलोमीटर दूर से ही हमें लोग साईकिल-मोटरसाईकिल पर पानी भरकर ले जाते नज़र आने लगे. पानी भर कर ले जाने वालों में लड़कियों की संख्या कम थी. गांव वालों की मानें तो जिनके घर के पुरुष बाहर कमाने जाते हैं, उनके घर की महिलाएं ही पानी भरने जाती हैं.
शाम को हमारी मुलाकात अशोक कुमार से हुई. कुमार पानी की समस्या पूछने पर कहते हैं, ‘‘क्या करेंगे जानकर आप? अभी रात के सात बज गए. थोड़ी देर बाद में आवारा पशुओं से खेत की रखवाली के लिए चला जाऊंगा. खारे पानी के कारण यहां एक ही फसल हो पाती है. आवारा पशु अगर खेत में घुस गए तो कुछ भी बचने की संभावना नहीं. रातभर खेत की रखवाली करने के बाद सुबह पांच बजे के पानी भरने के लिए निकल जाऊंगा. मेरे पास तीन भैंसें और एक बछड़ा है. हम अपने यहां का पानी मवेशियों को भी नहीं पिलाते. दूध कम होने और बीमारी होने का डर रहता है. तो सुबह चार ड्रम लेकर जाता हूं और एक बार में 60 लीटर पानी भरकर लाता हूं. दिनभर में तीन बार तो मुझे पानी भरने जाना ही पड़ता है. जीवन तो पानी भरने और खेतों की रखवाली में ही गुज़र रहा है.’’
महानवई गांव में प्रवेश करते ही एक मंदिर है. मंदिर के बगल में तीन सरकारी हैण्डपंप लगे हुए हैं, जिनमें से दो खराब हैं. गांव के कुछ लोग यहां पानी भरने आते हैं. मंदिर से आगे बढ़ने पर सड़क किनारे दो और पंप नजर आते हैं. इसमें से भी एक खराब है. यहां हमारी मुलाकात 22 वर्षीय छोटे खान से हुई. खान पानी भर रहे थे.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘यहां हर घर में एक व्यक्ति पानी भरने के लिए होते हैं. पानी ढोने के कारण छह महीने में साईकिल तो डेढ़ साल में मोटरसाइकिल खराब हो जाता है. हर रोज़ सुबह और शाम, मैं पानी भरने आता हूं. हमारे यहां तो भैंस नहीं है. अभी तो शाम हो गई है इसलिए भीड़ कम है. नहीं तो यहां पर लाइन लगी रहती है. नंबर से पानी भरा जाता है.’’
जब हमने खान से यहां की पानी की समस्याओं को लेकर सवाल किया तभी वहां खड़े लड़के ने कहा, ‘‘जब से होश संभाले हैं तब से पानी भरने आते है. पंप खराब हो जाता है तो आपस में चंदा करके लोग बनवाते हैं.’’
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम अगले दिन दोबारा सुबह के छह बजे महानवई गांव पहुंची. कड़ाके की ठंड के बावजूद सुबह-सुबह लोग सड़कों पर पानी का ड्रम लेकर आते नज़र आए. सुबह-सुबह पानी भरने वालों में लड़कियों की संख्या भी काफी नज़र आई. सबसे पहले पानी के लिए पहुंचे 14 वर्षीय गुलज़ार ने बताया कि अगर पानी लेकर न जाएं तो घर पर चाय भी नहीं मिल पाएगी.
यहां से मिर्जापुर गांव पहुंचे. यहां लोगों ने हमें नल का पानी दिखाया जो पीले रंग का था. ग्रामीणों ने बताया कि इसे पीने से दस्त की बीमारी तो कुछ ही घंटों में शुरू हो जाती है. यहां मिले गया प्रसाद न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘खारे पानी की समस्या के कारण दस्त, चर्म रोग जैसी बीमारियां तो होती ही हैं. हमारे गांव में कई लोगों की मौत कैंसर से भी हो रही है. उसका कारण खारा पानी ही है ये नहीं कह सकते हैं, लेकिन हमें ऐसा लगता है कि वजह यही है. ये जो पानी आप देख रहे हैं इसे चिड़िया पी ले, तो मर जाती है. इतना खारा है यहां का पानी. हम बिना शैंपू के नहा भी नहीं सकते हैं. बाल बिलकुल उलझ जाते हैं. दाल तो इससे उबलती ही नहीं. अगर सब्जी बना दें या आटा गूँथ दें तो खाने का स्वाद ही बिगड़ जाता है. ऐसे में हमें दो से तीन किलोमीटर दूर से पानी भरके लाना पड़ता है.’’
एक तरफ जहां सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने के दावे कर रही है, वहीं यहां के किसान अपने खेत से महज एक ही फसल उपजा पाते है. इसकी बड़ी वजह पानी की कमी के साथ-साथ खारे पानी का जमीन पर पड़ने वाला असर है. यहां ज़्यादातर लोगों की खेती मॉनसून पर ही निर्भर है. जिनके पास पंप का इंतज़ाम है, वे अपनी खेती तो कर लेते हैं लेकिन पंप लगाने में 30 से 40 लाख रुपए खर्च होते हैं. ऐसे में कुछ ही किसान ऐसा कर पाते हैं. बाकी किसान एक ही फसल उपजा पाते हैं, जिसके कारण यहां खेती एक नुकसान का सौदा है.
एक तरफ जहां घर के एक सदस्य की ज़िम्मेदारी पानी भरने की है, वहीं दूसरी तरफ किसान एक ही फसल उपजा पाते हैं और खारे पानी की वजह से तरह-तरह की बीमारियां फैलती हैं. ऐसा नहीं है कि सरकारें इससे अनजान हैं, और न ही यह आज की समस्या है. खुद केशव प्रसाद मौर्य आगरा क्षेत्र में खराब पानी का ज़िक्र करते नज़र आते हैं.
इसके अलावा इस विषय को लेकर लोकसभा में स्थानीय भाजपा सांसद राजवीर दिलेर ने 2019 में सवाल पूछा था. उसके जवाब ने तत्कालीन जल शक्ति मंत्री रतन लाल कटारिया ने बताया था, ‘‘पेयजल राज्य का विषय है. 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार ने जल जीवन मिशन शुरू किया है. इसके तहत हाथरस जिले में तीन चालू, पेय जल आपूर्ति परियोजनाएं हैं.’’
जहां एक तरफ सरकार 2024 तक घर-घर नल के जरिए पानी पहुंचाने के दावा कर रही है, वहीं हाथरस और एटा ऐसे जिले हैं, जहां पानी सालों से एक बड़ी समस्या है. वहां इस योजना की स्थिति बदहाल है. 2 अगस्त 2021 को लालगंज से बसपा की सांसद संगीता आज़ाद के सवालों के जवाब में, जल शक्ति राज्यमंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने जवाब दिया. जवाब के मुताबिक हाथरस में 90.80 प्रतिशत घरों तक नल जल आपूर्ति नहीं हो पाई है. वहीं एटा में भी कुछ हद तक यही स्थिति है. यहां 87.81 प्रतिशत घर, नल जल आपूर्ति रहित हैं.
1991 के बाद सिकंदराराऊ विधानसभा क्षेत्र से कोई भी विधायक, दूसरी बार चुनाव नहीं जीत पाया है. भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक साल 1991 में जनता दल, 1993 में सपा, 1996 में भाजपा, 2002 में निर्दलीय, 2007 में फिर भाजपा, 2012 में बसपा तो 2017 में एक बार फिर भाजपा जीती. भाजपा ने राणा को दोबारा उम्मीदवार बनाया है. उनके पास इस रिकॉर्ड को तोड़ने का मौका है लेकिन खारे पानी को लेकर कुछ लोगों में नाराज़गी है. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि 90 के दशक में यहां मीठे पानी का इंतज़ाम करने की कोशिश की गई, उसके बाद से तो नेता गांव से बाहर नलकूप डलवाकर, अपनी ज़िम्मेदारी से छुट्टी पा लेते हैं. और लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है. साल दर साल सरकारें बदलती रहीं लेकिन हमारी परेशानी नहीं बदली. ऐसे में किस सरकार से नाराज़ हों और किसे वोट करें. हमारे लिए तो सब एक जैसे हैं.
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