Assembly Elections 2022
यूपी रोजगार स्कीम: भर्ती, पेपर लीक, लेट-लतीफी और अदालत के चक्कर
उत्तर प्रदेश सरकार विज्ञापन के ज़रिए राज्य में बेरोज़गारी दर कम दिखा रही है. साथ ही इन विज्ञापनों में 2017 से अब तक कुल 4.5 लाख युवाओं को नौकरियां देने की बता कही गई है. लेकिन प्रदेश में छात्र परेशान हैं क्योंकि यूपी में भर्तियां लटकी हुई हैं.
25 जनवरी को बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों का सब्र टूट गया. दरअसल रेलवे भर्ती बोर्ड (आरआरबी) ने ग्रुप डी और एनटीपीसी में रिक्त पदों के लिए भर्तियों की घोषणा की थी. जिसमें धांधली और लापरवाही को लेकर छात्र उग्र प्रदर्शन करने लगे. उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद की एक वीडियो तेजी से वायरल हो रही थी. इन वीडियो में पुलिस छात्रों के लॉज में घुस गई और उन पर पर लाठी-डंडे बरसा रही थी. उन्हें दौड़ा-दौड़कर पीटा जा रहा था. ये वीडियो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पास छोटा बघाड़ा की थी. न्यूज़लॉन्ड्री ने वहां पहुंचकर इन छात्रों से बात की.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पास छोटा बघाड़ा छात्रों का गढ़ है. यहां जगह जगह कोचिंग सेंटर बने हुए हैं. इन सेंटरों पर यूपीएससी, एसएससी, आरआरबी यानी हर छोटे बड़े एग्जाम की तैयारी कराई जाती है.
इस इलाके में छात्र इतने हैं कि केवल दुकानों से काम नहीं चलता. ठेले पर अलग-अलग विषयों के स्पाइरल बाइंडिंग किए नोट्स बिकते हैं.
जाहिर है कि छात्र ज्यादा हैं, तो रहने के लिए जगह भी चाहिए. छोटा बघाड़ा क्षेत्र में कई लॉज हैं. लेकिन इन लॉजों में जीवन इतना भी आसान नहीं है. छात्र एक कमरे के 'बक्से' में रहते हैं जिसका किराया 2000 से 3000 रुपटए है. 23 वर्षीय भोलू यादव आजमगढ़ के रहने वाले हैं. वह एक किसान परिवार से आते हैं. भोलू पिछले चार साल से सरकारी नौकरियों में भर्ती की कोशिश कर रहे हैं. वह कहते हैं, "हमारे पड़ोसी सरकारी नौकरी में हैं. उन्हें देख कर सरकारी नौकरी पाने की प्रेरणा मिली."
25 जनवरी को दोपहर 3:30 बजे पुलिस पंकज मिश्रा लॉज में घुसी. भोलू उसी लॉज की दूसरी मंजिल पर रहते हैं. भोलू यादव के कमरे में एक तरफ केवल किताबों का ढेर लगा है और दूसरी बिस्तर है. कमरे में एक तरफ चूल्हा रखा है जिसपर वह खाना बनाते हैं. उनके साथ एक और साथी रहते हैं.
25 जनवरी को हुई घटना के बारे में भोलू बताते हैं, "छात्र एनटीपीसी परीक्षा परिणाम के खिलाफ प्रयाग स्टेशन पर प्रदर्शन कर रहे थे. वहां पुलिस ने छात्रों को भगाना शुरू किया. डंडे भी मारे. भगदड़ मची तो छात्र भय के कारण लॉज में घुस गए. पुलिस लॉज में घुसकर छात्रों को पकड़ने लगी."
पुलिस जब लॉज में घुसी तब भोलू पढाई कर रहे थे. उन्होंने उस दिन के बारे में बताया, "पुलिस ने दरवाज़ा और खिड़की के कांच तोड़ दिए. हम डर गए थे. दरवाजा और खिड़की बंद कर के बैठ गए. लेकिन पुलिस ने बहुत तोड़-फोड़ की."
भोलू परेशान हैं क्योंकि नौकरियां कम हो गई हैं. वह कहते हैं, "पहले तो नौकरियां नहीं आती हैं, लेट नोटिफिकेशन आता है. नोटिफिकेशन आता है तो डेट तय नहीं होती. ऐसी कई अड़चने आती हैं. यूपीएसएसएससी वन रक्षक की नौकरी 2019 में निकाली थी लेकिन आज तक भर्ती नहीं हुई है."
भोलू मानते हैं कि रोजगार सभी युवाओं का प्राथमिक मुद्दा है.
कुछ किलोमीटर दूर सोनकर लॉज है जहां भी 25 जनवरी के दिन पुलिस ने लॉज में घुसकर छात्रों को मारा था. लॉज में रहने वाले एक छात्र रवींद्र पांडे ने लोहे की खिड़की में छेद की ओर इशारा किया जिसे पुलिस ने डंडा मारकर तोड़ दिया था. रवींद्र ने खिड़की को फिलहाल अखबार से ढक दिया है.उन्होंने कहा, "जिस तरह से आतंकवादियों को एक जगह से खदेड़ा जाता है, उसी तरह उस दिन पुलिस ने छात्रों के साथ व्यवहार किया था.
अमेठी निवासी रविंद्र पिछले 6-7 साल से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं.
वह कहते हैं, “मैं शिक्षकों की भर्ती से संबंधित परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. 2012 में परीक्षा हुई थी जिसका परिणाम 2018 में घोषित किया गया. इसी तरह 2018 में आयोजित हुई परीक्षाओं के परिणाम 2021 में घोषित किए गए. पेपर लीक और अन्य अनियमितताओं के साथ अक्सर परीक्षाओं के परिणामों को संसाधित करने में लंबा समय लगने का मतलब है कि मेरे जैसे लोग जो पहले ही 40 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुके हैं, उनके लिए भविष्य में अवसर खत्म हो चुके हैं."
पिछले साल जारी एक रिपोर्ट-कार्ड में, योगी आदित्यनाथ सरकार ने दावा किया था कि राज्य ने स्थायी आधार पर 3.5 लाख और अनुबंध के आधार पर अन्य 4.5 लाख नौकरियां दी हैं. यूपी सरकार की ओर से जुलाई 2021 में एक पूरे पृष्ठ के समाचार पत्र विज्ञापन में दावा किया गया कि वे 74,000 रिक्तियों और भरने की प्रक्रिया में हैं.
हालांकि छात्र नेता ऐसे दावों का खंडन करते हैं. सीपीआईएम (एल) के छात्र विंग से जुड़े सुनील मौर्य ने बताया, “हमारे अनुमान के मुताबिक, विभिन्न सरकारी विभागों में लगभग 25 लाख रिक्तियां हैं. अगर राज्य सरकार लगभग 5 लाख नौकरियां देने का दावा कर रही है, तो वे ब्रेक-अप क्यों नहीं जारी करते?"
"यूपी में परीक्षा को लटकाकर रखा जाता है"
उत्तर प्रदेश में पिछले पांच सालों में कई भर्तियां आई लेकिन लटकी रह गईं. अभी तक भर्तियों का परिणाम आना बाकी है. कई परिक्साहों का प्रश्नपत्र लीक हो गया. मई 2016 में UPSSSC ने 405 पदों के लिए आबकारी सिपाही भर्ती का नोटिफिकेशन जारी किया था. 2017 में अखिलेश सरकार बदल गई. नई सरकार ने अपना 5 साल का कार्यकाल भी लगभग पूरा कर लिया है लेकिन इन 405 पदों के लिए आई एक भी भर्ती अब तक पूरी नहींं हो सकी है.
जौनपुर के निवासी आकाश कुमार दुबे इंजीनियरिंग की पढाई खत्म कर चुके हैं और पिछले चार साल से सरकारी नौकरी के लिए इलाहाबाद में तैयारी कर रहे हैं. आकाश ने हम से कहा, "हमने सोचा था पिछली सरकार में जूनियर इंजीनियर की बंपर भर्तियां निकली थी इसलिए यह सोचकर मैंने प्राइवेट नौकरी नहीं करी कि एक- दो साल तैयारी कर लेंगे तो जूनियर इंजीनियर एग्जाम निकल जाएगा."
उन्होंने आगे कहा कि योगी सरकार में इंजीनियरों का दमन हुआ है. आकाश कहते हैं, "लेकिन इस (योगी) सरकार ने इंजीनियरों की हालत खराब कर दी. 2016 में यूपीएसएसएससी (कंबाइंड सब/ जूनियर इंजीनियर रिक्रूटमेंट) का फॉर्म भरवा लिया गया, लेकिन उसकी परीक्षा पांच साल बाद 19 दिसंबर को कराई गई. फिर 2018 में फॉर्म निकाले गए लेकिन अभी तक कोई नोटिफिकेशन नहीं आया है. 30 जनवरी की डेट मिली थी, लेकिन कोरोना और फिर चुनाव की वजह से परीक्षा नहीं हुई. अब पोस्टपोन कर के 3 अप्रैल डेट दे दी है. इतनी अनिश्चयता है कि यह भी फिक्स नहीं कि वो एग्जाम समय पर हो ही जाए."
क्या आपने प्राइवेट नौकरी के बारे में नहीं सोचा? इस सवाल पर आकाश कहते हैं, "मेरे कई दोस्त प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं. उन्हें महीने के 12 से 15 हजार रूपए मिलते हैं."
किस सरकार के काम से खुश हैं छात्र? इस पर आकाश ने कहा, "इंजीनियर अखिलेश यादव को पसंद करते हैं. वह बीटेक ग्रेजुएट हैं. वह इस डिग्री का महत्त्व समझते हैं. उनकी सरकार में इंजीनियरों के लिए सबसे ज्यादा भर्तियां आई हैं."
प्रतापगढ़ के निवासी और 25 वर्षीय सिद्धांत पांडे इलाहबाद में रहकर पिछले चार साल से यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं. उनका मानना है कि सरकार की मंशा बेरोज़गारी कम करना नहीं है.
"मैंने पिछली सरकार भी देखी और बीजेपी सरकार भी देख रहा हूं. काम कोई नहीं करना चाहता है. भर्तियां दोनों की सरकार में निकाली गईं लेकिन आयोग की लेट-लतीफी सही नहीं है. एनटीपीसी का उदहारण देख लीजिए. तीन साल से वैकेंसी क्लियर नहीं हो पा रही है. एग्जाम हो भी गया तो कोई न कोई अनियमिता रहती है. मामला दो साल तक कोर्ट में चलता रहता है. यूपीपीआरपीबी (उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती और प्रोन्नति बोर्ड) द्वारा 2016 में आयोजित यूपीएसआई (उत्तर प्रदेश पुलिस सब-इंस्पेक्टर) परीक्षा के उम्मीदवार अभी तक भर्ती की प्रतीक्षा कर रहे हैं." सिद्धांत ने कहा.
सिद्धांत का कहना है कि इन सब कारणों से छात्रों का यह उम्मीद खत्म हो रही है कि पढ़ने से नौकरी मिल सकती है.
छात्र भ्रष्टाचार को भी बेरोज़गारी की एक बड़ी वजह समझते हैं.
सिद्धांत आगे कहते हैं, "रोजगार सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा होना चाहिए लेकिन इसे सबसे कम रखा जाता है. भ्रष्टाचार भी बहुत अधिक है. रिजल्ट आ जाता है लेकिन यह नहीं बताया जाता कि हमारे कितने प्रश्न सही हैं. कोई आंसर-की नहीं दी जाती है. हमें पता ही नहीं होता हम कितना सही या गलत करके आए हैं."
"बेरोजगारी पर मुखर होकर बोले तो होगी कार्रवाई"
20 वर्षीय विकास पटेल सोनकर लॉज में रहते हैं. वह आईईआरटी कॉलेज में बीटेक की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि 25 जनवरी को पुलिस उनके कमरे में घुस आई और उनका मोबाइल ले गई. विकास को आज तक उनका मोबाइल नहीं मिला है.
युवा मंच के नाम से मशहूर स्थानीय छात्र मंच के संयोजक राजेश सचान पिछले साल 120 दिनों तक बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन पर बैठे थे. इस साल एनटीपीसी आरआरबी के विरोध के हिंसक होने के तुरंत बाद कर्नलगंज पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर में उन्हें अचानक मुख्य आरोपी के रूप में नामित किया गया और पांच दिनों के लिए जेल में रखा गया.
सचान का दावा है कि उन्हें टारगेट किया गया क्योंकि उन्होंने छात्रों के लॉज में हुई हिंसा का वीडियो एनएचआरसी को भेजा था. "मैंने यह वीडियो एनएचआरसी, चुनाव आयोग और पीएमओ को टैग कर ट्वीट किया था. मुझे निशाने पर लेने के लिए यह तात्कालिक वजह बनी." सचान कहते हैं.
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के संयोजक, 40 वर्षीय अवनीश कुमार पांडेय, अखिलेश यादव के कार्यकाल में यूपीपीसीएस 2016 परीक्षा भर्ती में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस लड़ रहे हैं. यही नहीं वह यूपी-पीसीएस (मेंस) 2011 में आरक्षण नीति में अनियमता और फिर 2015 में पेपर लीक में जांच के लिए भी लड़ाई लड़ रहे हैं.
इसके लिए 2014 और 2017 के बीच अवनीश को वर्तमान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से समर्थन भी मिला था और उस समय उन्होंने विरोध-प्रदर्शन में भी भाग लिया था.
अवनीश कहते हैं, "पूर्व सरकार में हमने कई बार आंदोलन किया. अब भी कर रहे हैं. हम कोर्ट के चक्कर भी लगा रहे हैं. लेकिन न पूर्व सरकार, न ही इस सरकार में कुछ मिल रहा है. हम चाहते हैं पूर्व सरकार में जांच का जो आश्वासन मिला था, वह पूरी कराई जाए. सीएम योगी आदित्यनाथ का नौकरियों पर आंकड़ा 3.5 लाख से शुरू हुआ और 4.5 लाख पर पहुंच गया है. सरकार केवल इतना सार्वजनिक कर दे कि किस विभाग में उसने कितनी नौकरियां दी हैं. सच पता चल जाएगा कि पूर्व सरकार की भर्तियों को जोड़कर यह आंकड़ा बनाया गया है और अभी भी भर्ती नहीं हुई है. छात्र कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे हैं. सरकार दमन का तरीका अपना रही है जो उचित नहीं है."
मध्य प्रदेश के रीवा जिले से इलाहबाद विश्वविद्यालय से पीजी की पढ़ाई कर रहे छात्र सत्यम कुशवाहा पिछले पांच वर्षों से यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं. वह कहते हैं, "यूपी में छात्रों का बोलना मना है. अगर छात्र आंदोलन करते हैं तो उन पर लाठी-डंडे बरसाए जाते हैं. अगर आप तब भी बात नहीं मानेंगे तो जेल में उठाकर डाल दिए जाओगे. मैं खुद इसका गवाह रहा हूं. मेरी उम्र केवल 22 वर्ष है और मुझपर 17 मुकदमे दर्ज कर चुकी है केवल इसलिए क्योंकि मैंने बेरोजगारी के खिलाफ बोला."
वह आगे कहते हैं, "यहां कई छात्र आत्महत्या कर रहे हैं. छात्र यहां दस-दस साल तैयारी करते हैं. उनकी उम्र निकल जाती है लेकिन नौकरियों पर भर्ती नहीं होती. छात्र-छात्राएं फ़्रस्ट्रेट हो जाते हैं और मजबूरी में आत्महत्या करते हैं. "
सुमित गौतम शिक्षा भर्ती की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने हमें बताया, "उत्तर प्रदेश सरकार कह रही है कि उसने 1 लाख 37 हजार शिक्षक भर्ती निकाली हैं. दरअसल पिछली सरकार में 1.37 हजार शिक्षा मित्रों का समायोजन हुआ था. योगी सरकार ने उसे रद्द कर दिया और उन्हीं भर्तियों को निकाला. 2021 में यूपीटीईटी का एग्जाम रद्द कर दिया था क्योंकि पेपर लीक हो गया."
छात्र सिद्धांत बहुत नाउम्मीदी के साथ कहते हैं, "नेताओं को मालूम है कि जनता को जाति और धर्म में उलझा कर रखो. यूपी में क्षेत्रवाद और जातिवाद बहुत ज्यादा है. मुख्य मुद्दे दब जाते हैं. सरकार बार-बार परीक्षा टाल देती है. ऐसे में घर से भी दबाव रहता है. घर वाले बहुत उम्मीद के साथ लड़कों को इलाहबाद भेजते हैं लेकिन समय जितना बढ़ता जाता है, उनकी अपेक्षाएं भी खत्म होने लगती हैं."
द लास्ट बंगलो: राइटिंग्स ऑन इलाहाबाद नामक पुस्तक में लेखक अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा ने प्रयागराज में प्रचलित विविध संस्कृति की व्याख्या करते हुए लिखा है कि अंग्रेजों के समय से शहर में जनसांख्यिकी में कैसे बदलाव आया. इलाहबाद में रेलवे और डाकघर हुआ करते थे. इसी के साथ विभिन्न राज्यों के लोगों को औपनिवेशिक शहर इलाहाबाद में लाया गया क्योंकि उन्हें बेहतर भविष्य के लिए अवसर और आशा मिली. आज, शहर के लगभग हर गली में कोचिंग संस्थानों से भरा हुआ है. फिर भी रोजगार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.
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