Opinion

क्या यह बजट भद्दे व्हाट्सएप संदेशों के लिए बना है

फरवरी और मार्च के महीनों में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसलिए किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट भाषण इतना ठंडा होगा. इस भाषण के लिए मेरी जानकारी में इससे बेहतर शब्द नहीं है.

राजनीतिक विशेषज्ञ और दिल्ली के पत्रकार उम्मीद कर रहे थे कि उनका भाषण चुनावी जोश से ओत-प्रोत होगा, जिसमें मतदाताओं के लिए बहुत सारे उपहार शामिल होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

सीतारमण ने अपने भाषण में 'ड्रोन' शब्द का चार बार और 'डिजिटल' शब्द का 36 बार उपयोग किया. लेकिन इस भाषण को किसी भी तरह पढ़ने में आसान और समझने योग्य व्हाट्सएप फॉरवर्ड में बदला नहीं जा सकता, आखिरकार आजकल इसी माध्यम से अधिकांश बातें बताई-समझाई जाती हैं. और लोग इन्हीं पर गहन चिंतन करके जटिल विषयों को समझते हैं.

आइए 'डिजिटल' शब्द के उपयोग को कुछ विस्तार से देखें. इसका उपयोग निम्न संदर्भों में किया गया: केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा विकसित करने के लिए, एक डिजिटल विश्वविद्यालय बनाने के लिए जो विश्वस्तरीय गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करे, और क्रिप्टो पर कर लगाने के लिए. इनमें से कुछ भी ऐसा नहीं है जो औसत मतदाता को तुरंत उत्साहित कर दे.

उसी प्रकार 'युवा' शब्द का प्रयोग छह बार किया गया, लेकिन उन्हीं संदर्भों में जिनसे लोग उत्साहित नहीं होंगे.

या 'रोजगार' शब्द को ही लें, जो भाषण में छह बार इस्तेमाल हुआ. एक उदाहरण देखें: 'कृत्रिम सतर्कता, भू-स्थानिक तंत्र और ड्रोन, सेमीकंडक्टर और इसका पारितंत्र, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, जीनोमिक्स तथा फार्मास्युटिकल्स, ग्रीन एनर्जी, और स्वच्छ आवागमन तंत्रों में बड़े पैमाने पर धारणीय विकास की सहायता करने तथा देश को आधुनिक बनाने की भारी संभावना है. यह युवाओं के लिए रोजगार अवसर प्रदान करते हैं तथा भारतीय उद्योग जगत को अधिक प्रभावी और प्रतिस्पर्धी बनाते हैं.'

या फिर इसे देखें: 'राष्ट्रीय पूंजीगत वस्तु नीति, 2016 का उद्देश्य 2025 तक पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन को दोगुना करना है. इससे रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और इसके परिणामस्वरूप आर्थिक क्रियाकलाप बढ़ेंगे.'

यह बड़े क्लिष्ट वाक्य हैं जिन्हें सरल बनाकर व्हाट्सएप पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है. इन वाक्यों को हिंदी भाषा का मीडिया अपने पहले पन्ने या टीवी की सुर्खियों में यह कहकर बार-बार नहीं चला सकते कि कैसे सरकार ने इस बजट में सांता क्लॉज की भूमिका निभाई है और लोगों को वह सौगात दी है जिसका वह इस चुनावी मौसम में इंतजार कर रहे थे.

इस साल के बजट भाषण में उस सरल प्रश्न का भी उत्तर नहीं मिलता जिसे कई लोग बजट प्रस्तुत होने के अगले दिन तक मीडिया रिपोर्ट्स में खोजते हैं, इसमें मेरे लिए क्या है?

यह सवाल मारुति के पुराने विज्ञापन की तरह है, 'कितना देती है'. बजट के बाद ज्यादातर लोगों के मन में यह सवाल होता है कि 'क्या मिल रहा है'. इस साल बजट भाषण में इस सवाल का कोई जवाब नहीं था.

पिछले साल के बजट भाषण को ही लीजिए, जब वित्त मंत्री के कहा, "तीन सप्ताह लंबे पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा करने के 48 घंटे के भीतर, प्रधानमंत्री ने 2.76 लाख करोड़ रुपए मूल्य की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना घोषित की. इसने 800 मिलियन (80 करोड़) लोगों के लिए मुफ्त खाद्यान्न, 80 मिलियन (8 करोड़) परिवारों को कई महीनों के लिए मुफ्त कुकिंग गैस, और 400 मिलियन (40 करोड़) से अधिक किसानों, महिलाओं, वृद्धजनों, गरीबों और जरूरतमंद लोगों के लिए सीधे नकद राशि मुहैया कराई.“

या जब उन्होंने कहा, "हम मेट्रो रेल नेटवर्क के विस्तार और सिटी बस सेवा की वृद्धि के माध्यम से सार्वजनिक परिवहन के हिस्से को बढ़ाने के लिए कार्य करेंगे. सार्वजनिक बस परिवहन सेवाओं की वृद्धि के समर्थन के लिए 18,000 करोड़ रुपए की लागत पर एक नई योजना लांच करेंगे."

इस तरह की बातें जो मीडिया की सुर्खियां बन सकती हैं और व्हाट्सएप पर फैलाई जा सकती हैं, इस साल के बजट भाषण से बिल्कुल गायब थीं.

आइए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना को देखें, जो कोविड महामारी के कारण समाज के बड़े वर्गों में व्याप्त आर्थिक संकट की वजह से बहुत लोकप्रिय रही है. यह योजना प्रत्येक व्यक्ति को पांच किलो अनाज मुफ्त देती है. अभी के लिए यह योजना 31 मार्च को समाप्त हो रही है. जबकि चुनाव उस दिन से पहले होने वाले हैं. यदि यह योजना 31 मार्च से आगे बढ़ने की घोषणा हो जाती तो निश्चित रूप से मतदाता आकर्षित होते.

तो सवाल यह है कि ऐसी सरकार जिसकी मार्केटिंग जानकारी इतनी अच्छी है, इस योजना को आगे बढ़ाने के अवसर से क्यों चूक गई? राजनैतिक के साथ-साथ इसके आर्थिक फायदे भी होते, यह देखते हुए कि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा अभी भी संकट का सामना कर रहा है.

इससे पहले कि हम इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करें, आइए 2022-23 के बजट में कुल खाद्य सब्सिडी पर एक नजर डालते हैं.

कुल खाद्य सब्सिडी का बजट 2.1 लाख करोड़ रुपए हैं. यह 2021-22 के संशोधित अनुमान के अनुसार खाद्य सब्सिडी पर लगने वाले 2.9 लाख करोड़ रुपए से काफी कम है. बजट के आंकड़ों से पता चलता है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना शायद मार्च में समाप्त हो रही है. मुफ्त में अनाज देने के लिए सरकार को भारतीय खाद्य निगम की क्षतिपूर्ति करने की जरूरत है. और अगर इसके लिए बजट ही नहीं बनाया गया है तो यह भरपाई कैसे होगी?

लेकिन यह इसे देखने का तार्किक और तथ्यात्मक नजरिया है. राजनीति हमेशा तार्किक नहीं होती. इसमें समय का भी महत्व है. और सरकार अभी भी उत्तर प्रदेश में चुनाव की तारीखों के करीब आते ही योजना को जारी रखने की घोषणा करके सबको आश्चर्यचकित कर सकती है, ताकि यह निर्णय लोगों के दिमाग में ताजा हो और उन्हें भारतीय जनता पार्टी को वोट देने के लिए प्रोत्साहित करे. जहां तक ​​बजट में खाद्य सब्सिडी के आंकड़ों का सवाल है, उन्हें कभी भी संशोधित किया जा सकता है.

(विवेक कौल ‘बैड मनी’ के लेखक हैं.)

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