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किसानों से बाजरा खरीदने के महीने भर बाद ‘खराब’ बता वापस कर रही मध्य प्रदेश सरकार

मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में विजयपुर ब्लॉक के आरौदा गांव निवासी 52 वर्षीय लक्ष्मीनारायण शर्मा 15 बीघा के किसान हैं. उन्होंने 21-22 दिसंबर 2021 को सरकार को 19 क्विंटल बाजरा बेचा था. यह खरीद सरकारी दर यानी 2,250 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर हुई थी. शर्मा इंतजार कर रहे थे कि हमेशा की तरह ही सरकार, उनकी फसल की कीमत खरीद के चार से पांच दिन बाद अकाउंट में डाल देगी. हालांकि इस बार यह इंतजार लंबा चला और 14 जनवरी को एक फोन आया, और सूचना दी गई कि आपका बाजरा सरकार नहीं लेगी क्योंकि वह खराब है. आप इसे वापस ले जाएं.

शर्मा यह सुनकर हैरान रह गए. वे दूसरी फसल में खाद-पानी डालने के लिए पैसे आने का इंतजार कर रहे थे लेकिन अब तो बाजरा वापस लेने के लिए फोन आ गया. वे अब तक समझ नहीं पाए कि वे आगे क्या करेंगे. ऐसे फोन शर्मा के गांव में ही तकरीबन छह और लोगों को आया है. विजयपुर में ऐसे किसानों की संख्या 216 है.

दरअसल दिसंबर की शुरुआत में यहां बाजरे की खरीद शुरू हुई थी, जो 31 दिसंबर तक चली. इस बार खरीद की जिम्मेदारी ‘सेवा सहकारी संस्थान सहसराम’ की थी. संस्थान ने 10,285 क्विंटल की खरीद की. इसमें से महज 3,284 क्विंटल बाजरा ही सरकारी खरीद संस्थान मध्य प्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज कॉरपोरेशन लिमिटेड ने अपने पास रखा, बाकी करीब सात हजार क्विंटल को खराब बता कर वापस कर दिया. अब संस्थान किसानों को फोन कर बाजरा वापस लेने के लिए कह रहा है.

मध्य प्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज कॉरपोरेशन लिमिटेड, मध्य प्रदेश कंपनी अधिनियम 1956 के तहत पंजीकृत मध्य प्रदेश सरकार की एक प्रमुख आपूर्ति और खाद्यान्न वितरण कंपनी है. इसके द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर प्रदेश के किसानों से गेहूं, धान एवं मोटे अनाज की खरीद की जाती है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरण किया जाता है.

‘सेवा सहकारी संस्थान सहसराम’ के प्रबंधक मुन्नालाल धाकड़ न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘मैं तो बुरी तरह से फंस गया हूं. सरकार ने बाजरा लेने से साफ इंकार कर दिया है. हम किसानों को इसे वापस ले जाने के लिए फोन करते हैं तो वे उल्टा-सीधा बोलते हैं. अब तक कोई ले नहीं गया. सारा बाजरा गोदाम में रखा हुआ है. जिसकी सुरक्षा के लिए एक गार्ड रखा गया है. इससे सोसायटी का हर रोज नुकसान हो रहा है. हमारी तो कोई सुन ही नहीं रहा है. मौसम भी आजकल खराब है.’’

सरकार पर कैसे कोई भरोसा करे?

यहां के गढ़ी गांव के 15 किसानों को बाजरा वापस ले जाने के लिए फोन गया है. इसमें से छत्रपाल सिंह धाकड़ भी एक हैं. तीन एकड़ में खेती करने वाले 38 वर्षीय धाकड़ ने 20 दिसंबर को 30 क्विंटल बाजरा बेचा था, जिसकी कीमत करीब 65 हजार रुपए तय हुई थी. इसमें से इन्हें एक भी रुपया नहीं मिला. धाकड़ न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘बीते दो-तीन दिन से बाजरा वापस ले जाने के लिए फोन आ रहे हैं. कारण पूछने पर कह रहे हैं कि बाजरा खराब है. जबकि हमारा बाजरा अच्छा था. एक नंबर का था. ऐसा पहली बार हुआ कि खरीद करने के बाद वापस लेने के लिए कहा जा रहा है. हमने वापस लेने से मना कर दिया.’’

छत्रपाल इससे होने वाली परेशानियों का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘हमने जो बाजरा दिया वो मिलेगा नहीं. क्योंकि जब बेचते हैं तो नाम लिखा नहीं होता कि कौन सा बाजरा किस किसान का है. अब पता नहीं कैसे वे तय कर रहे हैं कि इसी किसान का बाजरा खराब था. हम वापस तो नहीं लेंगे. कुछ किसानों को इकठ्ठा कर धरना-प्रदर्शन करेंगे. बाजार में 1500 रुपए क्विंटल बाजरा बिक रहा है. वहीं सरकार 2,250 रुपए ली थी. अब तो न हमें पैसा मिल रहा और न हमारा बाजरा. नुकसान ही नुकसान है. जब खरीदे तब ही गुणवत्ता की जांच क्यों नहीं की?’’

यहां के किसानों की अब चिंता यह है कि जब सरकार खरीद करती है तब स्थानीय व्यापारी भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के आसपास की ही कीमत देते हैं ताकि किसान कुछ उत्पाद उन्हें भी बेचे. अब खरीद का समय भी एक तरह से खत्म हो गया है. दूसरी बात, व्यापारियों को पता है कि यहां के सैकड़ों किसानों का काफी बाजरा वापस आया है तो वे अब इस मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे और 1200 से 1500 रुपए क्विंटल की कीमत देंगे. जिससे किसानों को काफी नुकसान होगा.

बिक्री की रसीद दिखाते लक्ष्मीनारायण शर्मा

लक्ष्मीनारायण शर्मा भी इसी तरफ ध्यान दिलाते हैं, वे कहते हैं, ‘‘जब हमने बेचा था तब बाजरा देखकर लिया. तब किसी ने नहीं कहा कि खराब है. बाकी किसान अगर वापस लेते हैं तो हम भी ले लेंगे. सरकार से जबरदस्ती तो होती नहीं न. वहां से वापस लेकर मंडी में बेचना पड़ेगा. जहां हमें 1500 या 1600 जो भी रेट निकलेगा उसी पर बेचना पड़ेगा. बाजरा बेचने के लिए किराए के ट्रैक्टर पर लेकर गए थे, तीन-चार दिन वहां रुके रहे, जब नंबर आया तो बिका. वहां तौलने के भी पैसे दिए, अब वापस लाने के लिए ट्रैक्टर लेकर जाना पड़ेगा. परेशानी तो है. सरकार अगर ऐसा करेगी तब उसपर कैसे कोई भरोसा करेगा.’’

इसी तरह की परेशानी और मजबूरी की कहानी पार्वती वडोदा गांव के 30 वर्षीय बंटी धाकड़ भी सुनाते हैं. पिता के निधन के बाद खेती का काम देखने वाले बंटी ने 22 क्विंटल बाजरा बेचा था, वे वापस नहीं लेने की बात कहते हैं. इनके गांव में 10 लोगों को बाजरा वापस लेने के लिए फोन आया है.

इकलौप गांव के प्रभु धाकड़ भी उन किसानों में से एक हैं जिन्हें बाजरा वापस ले जाने के लिए फोन आया है. प्रभु ने 43 क्विंटल बाजरा बेचा था, वे न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ''हम वापस नहीं लेंगे. फसल देखकर खरीदा था और अब कह रहे हैं कि खराब है. उनके मुताबिक बाजरे में सांवलापन बढ़ गया है.’’

प्रभु आगे कहते हैं, ‘‘बाजरा समान्यतः भूरे रंग का होता है लेकिन इस बार बारिश ज़्यादा हुई है, थोड़ा सांवलापन बढ़ गया है. हालांकि वो ही बाजरा हम भी घर पर खा रहे हैं. ऐसे में हम वापस नहीं लेंगे. भले ही आंदोलन करना पड़े.’’

हमारी जिन किसानों से बात हुई प्रभु उसमें पहले हैं जो बारिश के कारण बाजरे के रंग में आए परिवर्तन का जिक्र करते हैं. इसका जिक्र लक्ष्मीनारायण और छत्रपाल धाकड़ भी करते हैं, लेकिन दूसरी तरह से.

छत्रपाल की मानें तो उनके जैसे छोटे किसानों की फसल तो ठीक थी लेकिन कुछ बड़े किसानों ने खराब गुणवत्ता वाले बाजरे को, सस्ती दरों पर बाहर से खरीदकर सरकार को बेच दिया. वे समझाते हुए कहते हैं, ‘‘बड़े किसान 100 से 150 क्विंटल तक बाजरे का रजिस्ट्रेशन कराते हैं. वे करते क्या हैं कि बाहर से खराब गुणवत्ता वाली फसल 1500-1600 रुपए क्विंटल के हिसाब से खरीदकर यहां 2,250 रुपए में बेच देते हैं. इसके लिए सहकारी संस्थान के लोग प्रति क्विंटल सौ रुपए लेते हैं. यह पहले भी होता था लेकिन इस बार वापस हो गया. जिसकी मार हम किसानों को झेलनी पड़ रही है.’’

इस पर लक्ष्मीनारायण भी सहमति जताते हैं. धाकड़ की तरह ही शर्मा कहते हैं, ‘‘इन बड़े किसानों के कारण हमें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.’’

सरकारी दबाव में की खरीदारी?

एक तरफ जहां किसानों का दावा है कि उनका बाजरा खराब नहीं था, वहीं खरीद करने वाली सहकारी संस्था के प्रबंधक की मानें तो फसल खराब होने के कारण वे खरीदारी नहीं करना चाह रहे थे लेकिन सरकारी दबाव में उन्हें खरीदनी पड़ी.

मुन्नालाल धाकड़ न्यूज़लॉन्ड्री से एक पत्र साझा करते हैं, जो मध्य प्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज कॉर्पोरेशन श्योपुर के जिला प्रबंधक (डीएमओ) को लिखा गया है. 9 दिसंबर 2021 को लिखे गए इस पत्र का विषय, ‘बाजरा के गुणवत्ता के संबंध में’ है. पत्र में लिखा है, ‘‘खरीदी केंद्र में कुछ-कुछ किसानों का बाजरा गुणवत्ताहीन है, जिसके कारण हम खरीदारी रोक रहे हैं.’’

इससे एक दिन पहले, 8 दिसंबर 2021 को भी एक पत्र सोसायटी द्वारा जिला प्रबंधक को भेजा गया जिसमें बाजरे की गुणवत्ता मापने के लिए यंत्र की मांग की गई थी.

8 और 9 दिसंबर 2021 को सोसायटी द्वारा लिखा गया पत्र

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए मुन्नालाल धाकड़ कहते हैं, ‘‘गुणवत्ता मापने के लिए संयंत्र तो शासन ने नहीं दिया. ऐसे में हमने खरीद पर रोक लगा दी. इसी बीच एक दिन डीएमओ श्योपुर यहां खरीद केंद्र पर आए. किसानों ने उनके सामने अपनी बात रखी तो वे मौखिक रूप से मुझे खरीद का आदेश देकर चले गए. लिखित में कुछ नहीं दिया. उनके जाने के बाद मुझे मजबूरी में किसानों की फसल खरीदनी पड़ी.’’

धाकड़ आगे कहते हैं, ‘‘सवाल यह है कि डीएमओ साहब के कहने पर मैंने खरीदारी की. इसके अलावा 10 हजार क्विंटल में से सात हजार तो वापस ही कर दिया. यानी हमारे यहां से जो बाजरा गया उसमें से ज्यादातर खराब था, तो पहले ट्रक के पहुंचने के साथ ही मना क्यों नहीं कर दिया? अब मैं दोनों ही तरफ से पीसा जा रहा हूं. किसान वापस ले जाने को तैयार नहीं हैं, फोन करने पर वे उल्टा सीधा बोलते हैं. दूसरी तरफ सरकार ले नहीं रही है.’’

श्योपुर के डीएमओ एके द्विवेदी, धाकड़ के आरोपों से इंकार करते हैं. वह कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं, मैं खराब फसल खरीदने के लिए क्यों कहूंगा? सोसायटी वाले सालों से गेहूं, बाजरा समेत दूसरी फसलों की खरीद कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें मालूम है कि मानक और अमानक फसल कौन सी है.’’

एके द्विवेदी की मानें तो इस बार प्रदेश के दूसरे कई और जिलों में भी कॉर्पोरेशन ने खराब गुणवत्ता के कारण फसल को वापस कर दिया है. वे कहते हैं, ‘‘ग्वालियर, भिंड, मुरैना समेत कई जिलों में भी बाजरा वापस किया गया. एफसीआई से रिटायर व्यक्ति को हमारे यहां गुणवत्ता जांच अधिकारी बनाया गया. उन्होंने जांच कर बताया, उसके बाद ही फसल वापस की गई है. इन्हें वापस करने का प्रदेश के प्रमुख सचिव और जिलाधिकारी महोदय का आदेश है.’’

मध्य प्रदेश के किसान नेता, राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार कक्काजी की मानें तो मध्य प्रदेश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब सोसाइटी द्वारा अनाज की खरीद करने के बाद वापस कर दिया गया हो.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कक्काजी कहते हैं, ‘‘मैं ऐसा महसूस करता हूं कि मध्य प्रदेश में सरकार है ही नहीं. गुणवत्ता जांच अपनी जगह ठीक है लेकिन बाजरे को खरीदना और फिर वापस करना, यह किसानों के साथ मज़ाक है. इसी प्रकार इन्होंने पिछली बार रायसेन जिले में चना खरीदा था और इसके लिए किसानों से प्रति क्विंटल घूस तक लिया गया, क्योंकि सोसायटी वालों के मुताबिक पोर्टल बंद हो गया था और इसके बाद भी वे चना खरीद रहे थे. उस चने को रखे आठ महीने हो गए. अब कह रहे हैं चना वापस ले जाओ. पोर्टल बंद हो गया था. सरकार चने नहीं ले रही है. यह कितना बड़ा मजाक है.’’

आंदोलन को लेकर कक्काजी कहते हैं, ‘‘हम तो यहां दिल्ली में केंद्र सरकार से उनकी वादाखिलाफी के खिलाफ लड़ रहे हैं. वहां संगठन के लोग जरूर बात रखेंगे. किसानों के साथ हो रहे इस मज़ाक को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अगर किसानों की फसल खराब है तो उन्हें फसल बीमा का लाभ या मुआवजा दिया जाए. खाद दोगे नहीं, फसल खरीदोगे नहीं तो किसान क्या करेगा? अफसोस की बात यह है कि यह सब उस प्रदेश में हो रहा है, जहां से केंद्रीय कृषि मंत्री आते हैं.’’

इस पूरे मामले पर बात करने के लिए हमने प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल को फोन किया. उनके निजी सचिव ने हमें बताया कि बाजरा खरीद का मामला मंत्री जी के जिम्मे नहीं है. इसके लिए आप खाद्य मंत्री बिसाहू लाल सिंह से बात कीजिए.

हमने खाद्य मंत्री सिंह से बात करने की कोशिश की लेकिन उनका फोन बंद था. इनकी ओएसडी सुकृति सिंह को हमने फोन किया. उन्होंने फोन नहीं उठाया. हमने उन्हें इस रिपोर्ट से जुड़े कुछ सवाल भेजे हैंं, उनकी ओर से कोई भी उत्तर आने पर खबर में जोड़ दिया जाएगा.

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