Report

पत्रकार का आरोप: पुलिस हिस्ट्रीशीटर बनाकर रासुका के तहत गिरफ्तार करने पर आमदा

किसी जमाने में बेहतरीन लाठी चलाने वाले लठैतों के लिए मशहूर बांदा जिला आज की तारीख में मुरुम-बालू के अवैध खनन के लिए बदनाम है. सरकारी नुमाइंदों और माफियाओं के सरंक्षण में हो रहे इस गैरकानूनी काम के खिलाफ अगर कोई आवाज उठाता है तो पूरी प्रणाली उसके पीछे पड़ जाती है और उसे सताना शुरू कर देती है. मौजूदा तारीख में सरकार की इस प्रणाली के निशाने पर बांदा के जाने माने पत्रकार और समाजसेवी आशीष सागर दीक्षित, जिन्हें स्थानीय पुलिस हिस्ट्रीशीटर बनाकर रासुका के तहत गिरफ्तार करने पर आमदा है.

पत्रकारिता और सामाजिक आंदोलन के जरिए कई राजनैतिक पार्टियों के नेताओं के गैरकानूनी कार्यों को उजागर करने वाले दीक्षित को इस बात का खौफ है कि या तो पुलिस गुंडा या गैंगस्टर एक्ट के तहत मामले दर्ज कर देगी या फिर उनका फर्जी एनकाउंटर करवा देगी. दीक्षित की यह चिंता लाजमी भी लगती है क्योंकि पिछले कुछ समय से पुलिस का उनके प्रति रवैया संदेहास्पद है. उनका मानना है कि बेबाकी से खनन माफियाओं के खिलाफ लिखने के चलते उनके साथ इस तरह का व्यवहार हो रहा है.

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत के दौरान इस पूरे मामले के बारे में जानकारी देते हुए दीक्षित कहते हैं, "इस पूरे मामले की शुरुआत 14 जून 2021 से हुई थी. बांदा की पैलानी तहसील के अमलोर गांव में मुरुम की एक खदान चलती थी. यह खदान गाजियाबाद के रहने वाले भाजपा नेता रविंद्रकांत त्यागी के बेटे विपुल त्यागी और बसपा नेता जयराम सिंह चलाते हैं. जयराम यहां के लोकल माफिया हैं और उन्होंने 2014 में खनिज के अपर मुख्य अधिकारी आनंद सिंह चौहान की हत्या कर दी थी, लेकिन एक साल बाद वो जमानत पर रिहा हो गए थे. उसके बाद उनकी दबंगई और ज्यादा बढ़ गई थी. वो विपुल त्यागी के साथ खुलकर खनन करने लग गए थे. इस बढ़ते अवैध खनन को देखते हुए अमलोर की सरपंच ने जून 2021 में मुझसे मदद मांगी थी जिसके बाद रिपोर्टिंग के जरिए मैंने अवैध खनन के बारे में लिखना शुरू किया और मुख्यमंत्री से लेकर स्थानीय अधिकारी तक शिकायत करता रहा."

"जब मैंने रिपोर्टिंग करना शुरू किया तो 14 जून को जयराम सिंह ने मेरी गैर मौजूदगी में मेरे घर आकर मेरे पिता और बड़े भाई को मुझे उठवाने की धमकी दी थी. इसके बाद मीडिया में इस मामले को लेकर काफी बवाल भी हुआ. मैंने अपना काम जारी रखा और उस दौरान मैंने यह पाया कि तत्कालीन अपर पुलिस अधीक्षक महेंद्र चौहान, तत्कालीन एसडीएम रामकुमार और डीएम आनंद कुमार सिंह भी अवैध खनन में माफिया का साथ दे रहे थे. इन तीनों का नाम सामने आने पर सितम्बर के महीने में अपर पुलिस अधीक्षक चौहान का निलंबन हो गया और बाकि दो अधिकारियों का तबादला कर दिया गया." उन्होंने कहा.

दीक्षित कहते हैं, "इसके बाद अनुराग पटेल बांदा के नए डीएम बनकर आए और पुलिस अधीक्षक का कार्यभार संभाला अभिनन्दन सिंह ने. इन दोनों ने भी जयराम सिंह, त्यागी, राहुल सिंह गुड्डू जैसे मुरुम-बालू माफियाओं को पीछे से समर्थन देना शुरू कर दिया था. इसके पहले जब हमने अपने साथियों के साथ मिलकर अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया तो हमारी एक साथी उषा निषाद के खिलाफ फर्जी मुकदमा लगा कर 120बी के तहत मामला दर्ज कर दिया. उषा बालू के अवैध खनन के खिलाफ जलसखी नाम का संगठन चलाती हैं. इसके अलावा एक अन्य साथी अमित गुप्ता जो खदानों में जाकर वीडियों बनाते थे उन पर भी 120बी के तहत केस दर्ज कर दिया गया. पुलिस ने उषा के नाबालिग भतीजे को भी नहीं बक्शा था और उस पर छेड़छाड़ का झूठा केस दर्ज करा दिया गया. हैरानी की बात यह है कि इन मामलों के खिलाफ गांव वालों ने उषा के समर्थन में हलफनामे पुलिस को दिए लेकिन कोई कार्यवाई नहीं हुई."

वह आगे बताते हैं, "हमारे साथियों के बाद पुलिस और खनन माफिया की प्रणाली ने मुझे निशाना बनाना शुरू किया है. सबसे पहले 14 नवम्बर को रात के करीब 10बजे एक दर्जन वर्दी और सादे कपड़े पहने पुलिस वाले मेरे घर के बाहर पहुंच गए और दरवाजा खोलने के लिए कहने लगे. लेकिन जब हमने यह कहते हुए दरवाजा नहीं खोला कि रात के वक्त हम उनके साथ नहीं जाएंगे तो वो धमकी देकर वापस लौट गए. पुलिस विभाग के दो कर्मचारी अगले दिन फिर मेरे घर पहुंचे और मेरे खिलाफ सामाजिक आंदोलन के चलते लगे मुकदमों का रिकॉर्ड लेना शुरू किया व मेरी आमदनी वगैरह के बारे में पूछने लगे, जबकि यह कोई नया रिकॉर्ड नहीं है और इसके बारे में पुलिस को पहले से ही जानकारी है. मेरे खिलाफ जन आंदोलन के तहत छह मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें से एक भी मामले में मुझे न सजा हुई है न जेल हुई है. लेकिन 5 जनवरी 2022 को मुझे पता चला कि मेरे खिलाफ हिस्ट्रीशीट बना दी गई है. हिस्ट्रीशीट पेशेवर अपराधियों के खिलाफ बनाई जाती है और उसे बनाने से पहले डीजीपी, आईजी, लोकल इंटेलिजेंस यूनिट से अनुमति लेनी पड़ती है लेकिन मेरे मामले में एसपी अभिनन्दन सिंह ने हिस्ट्रीशीट की फाइल बनाकर सीधे आईजी (इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) सुरेंद्र भगत को अनुमोदन के लिए भेज दी है जो कि गलत है."

वह कहते हैं, "इस मामले को लेकर मैंने आईजी सुवेंद्र भगत से मुलाकात भी की और उनके सामने सभी तथ्यों को रखा है. उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि वह इस मामले की जांच करवाएंगे. हिस्ट्रीशीट बनाने का पुलिस अधीक्षक का एक ही मकसद है कि वो मुझ पर रासुका लगाना चाहते हैं."

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में जब बांदा के राकेश कुमार सिंह, सीओ सिटी पुलिस बांदा, से बातचीत की तो वह कहते हैं, "मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है. लेकिन आप जो उनकी पैरवी कर रहे हैं वह इस काबिल नहीं है. हिस्ट्रीशीट के लिए वो बिल्कुल उपयुक्त उमीदवार हैं. उनके जैसे और भी पत्रकारों पर हमने हिस्ट्रीशीट बनाई है.

वहीं सुवेंद्र भगत, पुलिस महानिरीक्षक चित्रकूट रेंज कहते हैं, "हां आज सुबह इस मामले को लेकर उन्होंने (आशीष दीक्षित) आवेदन दिया है. इस मामले की जानकारी मैं पुलिस अधीक्षक से लूंगा और उसके बाद ही इसके बारे में कुछ कह सकूंगा .

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में बांदा के पुलिस अधीक्षक अभिनन्दन सिंह से भी बात करने की कोशिश की थी लेकिन उनकीओर से हमें कोई जवाब नहीं दिया गया है जवाब मिलते ही उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

Also Read: खनन माफियाओं के खिलाफ खबर करने पर पत्रकार को जान से मारने की धमकी!

Also Read: पत्रकार की हत्या, शक के दायरे में अवैध खनन और पारिवारिक रंजिश