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दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में क्यों नहीं मिल रहा है नॉन-कोविड मरीजों को इलाज?

बुधवार (12 जनवरी) को 22 वर्षीय शाहनवाज़ को पहली बार पैरालिसिस अटैक आया था. उनकी मां और बड़े भाई इमरान तुरंत शहनवाज को लोनी से लोक नायक जय प्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल ऑटो से लेकर पहुंचे. शाहनवाज ऑटो में बैठा था और इमरान इमरजेंसी में पता करने गए लेकिन उन्हें वहां इलाज के लिए मना कर दिया गया.

24 वर्षीय इमरान न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, "यहां का प्रशासन कह रहा है कि यहां केवल गंभीर मरीजों का इलाज होगा या फिर जिन्हें कोविड हुआ हो उनका. क्या मेरा भाई गंभीर नहीं है? उसे पैरालिसिस अटैक आया है. अब मैं आरएमएल अस्पताल जाऊंगा." इमरान और उनकी मां चिंता और हड़बड़ी में थे वे तुरंत ऑटो में बैठकर एलएनजेपी अस्पताल से आरएमएल की ओर चले गए.

दरअसल कोविड के बढ़ते मामलों के बीच दिल्ली में अस्पतालों में रूटीन चेकअप, ओपीडी और गैरजरूरी सर्जरी को रोक दिया गया है. पिछले महीने से कई स्वास्थ्यकर्मी भी कोविड संक्रमण का शिकार हुए हैं. कारणवश उन मरीज़ों को जिन्हें कोविड संक्रमण नहीं है लेकिन किसी अन्य बीमारी से जूझ रहे हैं उन्हें इलाज नहीं मिल पा रहा.

एलएनजेपी अस्पताल

नूर जहां अपने पांच वर्षीय बेटे को एलएनजेपी अस्पताल लेकर आई हैं. उनका बेटा सुबह सात बजे खेलते-खेलते फर्श पर फिसलकर गिर गया था जिससे उकके सिर पर चोट आ गई. वह दिल्ली के शाहदरा की रहने वाली हैं. वह बताती हैं कि वे सुबह से चार अस्पतालों के चक्कर लगा चुकी हैं लेकिन कहीं उनके बेटे को इलाज नहीं मिला.

"सबसे पहले हम अपने लड़के को आइएचबीएएस (इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंस) लेकर गए थे. उन्होंने वहां से चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय ले जाने की सलाह दी. हम वहां गए तो जीबी पंत ले जाने को कह दिया. वहां के प्रशासन ने एलएनजेपी अस्पताल गेट नम्बर 4 ले जाने को कहा. यहां लेकर आए तो आरएमएल अस्पताल जाने को बोल रहे हैं क्योंकि यहां इलाज नहीं करेंगे. हम सुबह से परेशान हैं. हमारा बेटा चल नहीं पा रहा है. उसके सर पर चोट लगी है. सुबह से अस्पताल से अस्पताल टहलाया जा रहा है." नूर जहां कहती हैं.

सफदरजंग अस्पताल

सफदरजंग अस्पताल में एक व्हीलचेयर पर बैठे 40 वर्षीय राजबीर अपने इलाज का इंतजार कर रहे हैं. वह दो महीने पहले अपनी पत्नी के साथ उत्तर प्रदेश के फर्रुक्खाबाद से दिल्ली आए थे. राजबीर कम्पिल गांव में मजदूरी किया करते थे. एक दिन बिजली का तार उनके पैर पर गिर गया और उनका एक पूरा पैर जल गया. उनके सात बच्चे हैं. वह एक गरीब परिवार से आते हैं. गांव में इलाज ना मिलने के कारण गांव के लोगों ने पैसे इकठ्ठा करके उन्हें दिल्ली इलाज के लिए भेजा है.

उनकी पत्नी गीता बताती हैं, "इनका एक पूरा पैर जल चुका है. पिछले बुधवार ((5 जनवरी) को इनका ऑपरेशन होना था. हर बार डॉक्टर इनका कोविड टेस्ट करता था. ऑपरेशन वाले दिन इन्हें कोविड पॉसिटिव बता दिया गया जिसकी हमें रिपोर्ट भी नहीं दी गई. इन्हें कोविड वार्ड में शिफ्ट कर दिया. आज (12 जनवरी) पांचवे दिन इन्हें बिना चेकउप किए छोड़ दिया गया है. हमें यह भी नहीं बताया गया है कि आगे क्या करना है. डॉक्टर ने तीन हफ्ते बाद फरवरी में बुलाया है. तब इनका फिर से चेकअप होगा."

राजबीर हमें बताते हैं कि पिछले दो हफ्तों से उनकी ड्रेसिंग भी नहीं हुई है. साथ ही उन्हें अब ऑपरेशन की कोई उम्मीद नहीं. "हम गरीब परिवार से आते हैं. हमारे पास यहां रुकने के लिए अब पैसे नहीं बचे हैं." राजबीर रोते हुए कहते हैं.

एम्स अस्पताल

50 वर्षीय जयराम माझी एम्स अस्पताल में अपनी बेटी 18 वर्षीय नैना कुमारी का इलाज करा रहे हैं. उनकी बेटी का किडनी ट्रांसप्लांट (ऑप्रेशन) होना है. 12 जनवरी को जब वह डॉक्टर को दिखाने पहुंचे तो डॉक्टर ने उन्हें फरवरी में आने को कहा है. उस से पहले उन्हें दो टेस्ट कराने को भी कहा है. माझी कहते हैं, "टेस्ट कराने के लिए ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है. हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि प्राइवेट टेस्ट करा सकें. हम जब भी ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लेने के लिए कॉल करते हैं या तो बिजी बताता है या नम्बर बंद आता है."

जयराम माझी झारखंड में छोटे किसान हैं. वह नैना कुमारी के इलाज के लिए सितम्बर 2021 में दिल्ली आए थे. तब से उनकी बेटी का इलाज एम्स अस्पताल में चल रहा है.

"मेरा दिल्ली में रहने का खर्च 30 हजार रुपए महीना है. एम्स में डायलिसिस नहीं करने दिया यह कहकर कि हर हफ्ते यहां डायलिसिस करने की सुविधा नहीं है. इसके चलते मुझे प्राइवेट में जाना पड़ता है. उसे तकलीफ होती है. मैं एक किसान हूं. हर महीना कर्ज लेकर इलाज करा रहा हूं. लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है." जयराम कहते हैं.

एम्स अस्पताल में जयराम जैसे कई लोग हैं जिनका इलाज बीच में ही रुक गया है.

58 वर्षीय आरके शर्मा सर्जरी विभाग के बाहर अपनी पत्नी 46 वर्षीय शिखा शर्मा के साथ मायूस बैठे हैं. वह चाहते थे कि उनका स्टेंट निकाल दिया जाए. उनके गॉलब्लेडर में पथरी थी. शिखा बताती हैं, "हमारा अपॉइंटमेंट था. रिसेप्शन पर कहा कि पहले मरीज़ का कोविड टेस्ट करा कर लाओ जिसके लिए डॉक्टर लिखकर देंगे उसके बाद ही अपॉइंटमेंट मिलेगा. लेकिन डॉक्टर ऐसा लिखकर दे नहीं रहे." आरके शर्मा परिवार में अकेले कमाने वाले थे. कोविड की पहली लहर (2020) में बतौर सहायक प्रॉफेसर उनकी नौकरी चली गई. साथ ही उनके दोनों बेटे भी बेरोजगार हैं. ऐसे में दवाओं का खर्च उठा पाना और प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने उनके लिए नामुमकिन है.

ऐसे ही हम कई और परिवारों से मिले जिन्हें इमरजेंसी या सर्जरी विभाग से बिना इलाज के ही लौटा दिया जा रहा था.

इलेक्टिव ओटी को भी फिलहाल के लिए हर अस्पताल में बंद कर दिया गया है. रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के महासचिव डॉ. सर्वेश पांडेय ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "इलेक्टिव ओटी को फिलहाल बंद किया गया है. लेकिन इमरजेंसी सेवाओं में इलाज के लिए किसी को मना नहीं किया जा रहा." इलेक्टिव ओटी का मतलब है वो सर्जरी जिसे तुरंत इलाज की जरूरत नहीं है और जिसे भविष्य के लिए स्थगित किया जा सकता है.

एलएनजेपी अस्पताल में मरीजों के इलाज की "गंभीरता" को देखते हुए इलाज के लिए भर्ती या भेजा जा रहा है. एलएनजेपी में सिक्योरिटी गार्ड बताते हैं, "एलएनजेपी एक कोविड डेडिकेटिड अस्पताल है. यहां कोविड मरीजों का इलाज हो रहा है. इमरजेंसी में केवल गंभीर मरीजों को देखा जाएगा."

क्या है वजह?

फिलहाल दिल्ली के हॉस्पिटल में डॉक्टर्स के बीच तेजी से कोविड संक्रमण फैल रहा है. दिल्ली के प्रमुख पांच हॉस्पिटल्स के ही करीब 800 से ज्यादा डॉक्टर कोविड पॉजिटिव हो गए हैं. पॉजिटिव डॉक्टर्स के संपर्क में आए डॉक्टर्स और पैरामेडिकल स्टाफ भी आइसोलेशन में हैं. पिछले हफ्ते एम्स में काम करने वाले करीब 350 रेसिडेंट डॉक्टर कोविड पॉजिटिव हो गए. वहीं सफदरजंग अस्पताल में 150 और आईमेल अस्पताल में 100 के करीब रेजिडेंट डॉक्टर कोविड संक्रमित पाए गए हैं. इसमें पैरामेडिकल स्टाफ, टेक्नीशियन और फैकल्टी की गिनती नहीं है. अगर उनका आंकड़ा जोड़ दिया जाए तो अस्पताल में कोविड संक्रमित मेडिकल स्टाफ का आंकड़ा बहुत अधिक बढ़ जाएगा.

5 जनवरी को डॉ अनुज अग्रवाल का कोविड टेस्ट पॉजिटिव आया था. दूसरी लहर के दौरान भी वह कोविड सक्रमित हुए थे जबकि उन्हें वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं. वह कहते हैं, "अस्पतालों में हर तीसरा डॉक्टर या तो कोविड पॉजिटिव है या उसे कोई न कोई लक्षण है. 6 जनवरी तक का आंकड़ा बताता है कि सफदरजंग अस्पताल में 165 डॉक्टर कोविड पॉजिटिव थे. यह पूरे भारत में हर अस्पताल की हालत है."

आखिर क्यों अस्पतालों में रूटीन चेकअप, ओपीडी और गैरजरूरी सर्जरी को रोक दिया गया है? डॉ अनुज इस पर जवाब देते हैं, "चूंकि स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है और दूसरी बात यह है कि ओपीडी परिसर में मरीजों की भीड़ से बचने के लिए ओपीडी पंजीकरण के घंटे कम कर दिए गए हैं"

बता दें कि नीट पीजी की काउंसलिंग ने भी डॉक्टरों की किल्लत पर असर डाला है. अक्टूबर महीने से रुकी नीट पीजी की काउंसलिंग के कारण रेजिडेंट डॉक्टरों पर इलाज का बोझ बढ़ गया था. एक रेजिडेंट डॉक्टर दिन भर में 100 से अधिक मरीजों का इलाज कर रहा था. डॉक्टरों की शिकायत थी कि ऐसे में उनकी मानसिक स्थिति पर असर पड़ता है. देशभर के रेजिडेंट डॉक्टर रुकी कॉउंसलिंग को जल्द करवाने के लिए नवंबर 2021 से अदालत पर दबाव बना रहे थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कॉउंसलिंग शुरू करने का फैसला सुनाया जिसके बाद मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (एमसीसी) ने 12 जनवरी से अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर नीट पीजी 2021 काउंसलिंग प्रक्रिया शुरू कर दी है.

डॉक्टरों में तेजी से फैल रहा कोविड का नया वैरिएंट?

डॉ अनुज बताते हैं, "वास्तव में नया वैरिएंट ओमिक्रॉन अधिक संक्रामक और अधिक संचरित होता है. इसलिए अधिक स्वास्थ्यकर्मी इसकी चपेट में आ रहे हैं. राहत की बात यह है कि वायरस के इस वैरिएंट का प्रभाव फेफड़ों पर अधिक नहीं पड़ रहा है और मरीज होम आइसोलेशन में ठीक हो सकता है."

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