Opinion
मोदी बनाम मनमोहन कार्यकाल: लोक कल्याण का किसने किया बेहतर काम?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) का पांचवां संस्करण हाल ही में प्रकाशित हुआ.
यह लेख इस सर्वेक्षण के कुछ मुख्य बिंदुओं का अवलोकन करने के साथ-साथ सर्वेक्षण के डाटा को कुछ ऐतिहासिक संदर्भ भी प्रदान करता है. मुख्य रूप से हम यह देखेंगे कि एनएफएचएस के द्वारा मापे गए आंकड़ों के अनुसार मानव विकास के कई सूचकांकों में, मौजूदा मोदी सरकार और पिछली यूपीए सरकार में कितना बदलाव आया है.
लेकिन उससे पहले, थोड़ी सी पृष्ठभूमि.
भारतीय गणतंत्र ने हमेशा से एक कल्याणकारी राज्य होने का प्रयास किया है. जहां पर सरकार अपने सभी नागरिकों को आर्थिक और सामाजिक मदद देने में एक सक्रिय भूमिका निभाती है. आजादी से लेकर हर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दल ने इस नीति का पालन किया है, हमेशा गरीबी में रह रहे करोड़ों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के इरादों का दावा किया है. सत्ता में आने पर, इन दलों ने अपने कथनों को प्रतिबिंबित करने वाली असंख्य योजनाएं लागू की हैं. चाहे वह अच्छे इरादे हों, मूल्यों की राजनीति या केवल चुनावी गणित, लोक-कल्याण, भारत में राजनैतिक परिवेश और लोक नीति का मुख्य स्तंभ है.
लेकिन इरादे, खास तौर पर लोग नीति में नतीजों में नहीं बदलते.
किसी भी जनकल्याण की पहल के परिणामों को आंकना एक महत्वपूर्ण चुनौती होती है. किसी भी प्रयास में हुए निवेशों पर नजर रखना आसान है. लेकिन जमीन पर उसके नतीजों को नापने का कोई सरल फीडबैक तंत्र नहीं है, खास तौर पर कल्याण के क्षेत्रों में जैसे खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि. इस कमी को दूर करने का एकमात्र तरीका, विस्तृत सर्वे करना और उनके सांख्यिकी विश्लेषण के दुष्कर काम की जिम्मेदारी लेना है.
भारत में पूरे देश के घरों से व्यवस्थित डाटा इकट्ठा करने का एक प्रयास राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण है. एनएफएचएस पूरे भारत में बड़े स्तर पर, कई दौर में किया जाने वाला सर्वे है. यह स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक मुद्दे, साक्षरता और सार्वजनिक सुविधाओं - जनकल्याण के सभी मानकों, के सूचकांकों को एक विविध स्तर पर मापता है. स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के द्वारा कमीशन किया गया यह सर्वेक्षण, पहली बार 1992-93 में किया गया था और तब से चार बार किया जा चुका है.
एनएफएचएस की वेबसाइट के अनुसार, "एनएफएचएस के हर क्रमवार होने वाले राउंड के दो विशिष्ट लक्ष्य रहे हैं. 1- स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय और दूसरी एजेंसियों की नीतिगत और अभियान की आवश्यकताओं के लिए स्वास्थ्य व परिवार कल्याण से जुड़ा आवश्यक डाटा मुहैया कराना. 2- स्वास्थ्य व परिवार कल्याण के उभरते हुए जरूरी मुद्दों पर जानकारी मुहैया कराना."
इसकी परिणति के लिए, सर्वेक्षण में बहुआयामी विषयों जिनमें स्वास्थ्य, शिक्षा और रहन-सहन को लेकर विस्तृत जानकारी इकट्ठा की जाती है, जिससे जमीन पर निचले स्तर तक का विस्तृत डाटा सेट तैयार होता है. उदाहरण के लिए, हालिया सर्वेक्षण में, 6,36,699 घरों 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों से 131 प्रमुख सूचकांकों की जानकारी इकट्ठा की गई है और यह जिला स्तर तक जमीनी डाटा मुहैया कराता है.
पिछले दो सर्वेक्षण 2004-05 और 2015-16 में किए गए थे. इन सर्वेक्षणों ने राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर, कई सामाजिक आर्थिक आयामों से नीतिगत प्रभाव और झुकावों की दिशा क्या है, पता करने के लिए एक समृद्ध डाटा सेट मुहैया कराया.
ऐसा इत्तेफाकन हुआ हो या योजना के अनुसार, लेकिन पिछले तीन सर्वेक्षणों का समय राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता परिवर्तन के समानांतर बैठता है. एनएफएचएस 3 (2004-05) और एनएफएचएस-4 (2014-15) के बीच डाटा में बदलावों के लिए, मोटे तौर पर, 2004 से 2014 तक चलने वाली यूपीए सरकार को जिम्मेदार माना जा सकता है. इसी प्रकार एनएफएचएस-4 (2014-15) और एनएफएचएस-5 (2019-21) के बीच डाटा में बदलाव की जिम्मेदारी मोदी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को दी जा सकती है.
बेशक, ऐसे सभी प्रकार के व्यापक निष्कर्षों में बहुत ज्यादा सरलीकरण हो सकता है. किंतु कुछ बड़े स्तर के अवलोकन और निष्कर्षों को निकाला जा सकता है, जो कि केवल कथानक के बजाय पूरी तरह से डाटा पर आधारित हों.
यह ध्यान रखने वाली बात है कि समय भले ही यूपीए और एनडीए वर्षों से मेल खा रहा हो, लेकिन स्वास्थ्य और शिक्षा, जिनकी प्रमुखता से बात हो रही है, राज्यों के अधिकार के विषय हैं. हालांकि इन क्षेत्रों में केंद्र सरकार काफी नीतिगत प्रभाव कई केंद्रीय योजनाओं और बजट के व्यय, दोनों ही से डालती है, तब भी राज्य सरकारें और नीतियां हर राज्य में अंतिम नतीजों को कहीं ज्यादा प्रभावित करती हैं. वैसे भी, यूपीए और एनडीए के वर्षों के बीच तुलना करने का कारण किसी एक सरकार पर कोई जिम्मेदारी डालना नहीं है, बल्कि इस बात का अंदाजा लगाना है कि समय के साथ चीजें कैसे बदली हैं. साथ ही समय के साथ बदलते हुए झुकाव की तुलना करना नवीनतम डाटा को संदर्भ प्रदान करता है.
जैसा कि पहले जिक्र हुआ, एनएफएचएस 5 के अंतर्गत 131 सूचकांकों की जानकारी इकट्ठी की जाती है. इस विश्लेषण को रुचिकर बनाए रखने के लिए, हमने सभी में से 20 प्रमुख मानकों के झुकावों को देखा है जिन्हें पांच अलग-अलग आयामों में रखा जा सकता है:
रहन-सहन का स्तर
बाल पोषण
व्यस्क पोषण
मां और बच्चे का स्वास्थ्य
बुनियादी शिक्षा
यह बात ध्यान रखने लायक है कि इस विश्लेषण के लिए चुने गए अधिकतर सूचकांक, सरकार के सीधे दखल से प्रभावित होते हैं जोकि पूरे सर्वेक्षण के बाकी सूचकांकों से अलग हैं, जो व्यक्तिगत चुनावों और सामाजिक परिवेश से प्रभावित हो सकते हैं (जैसे कि लिंग अनुपात, कम उम्र में शादी, परिवार नियोजन आदि)
जीवन की गुणवत्ता
एनएफएचएस एक परिवार को मिली बुनियादी सुविधाओं की जानकारी इकट्ठा करता है, जिसमें जीवन की गुणवत्ता को बड़े रूप से प्रभावित करने वाली सभी चीजों तक पहुंच- यानी पीने का साफ पानी, स्वच्छता, बिजली और खाना बनाने के लिए साफ इंधन तक पहुंच शामिल हैं.
चित्र 1 दिखाता है कि पिछली तीन एनएफएचएस सर्वेक्षणों के दौरान हमारा कैसा प्रदर्शन रहा है. इस सूची में स्वास्थ्य बीमा का एक अतिरिक्त सूचकांक भी शामिल किया गया है.
ऊपर दिए आंकड़े एक उत्साहवर्धक तस्वीर पेश करते हैं. सभी पांचों मानक, एक सुधरता हुआ ट्रेंड दिखाते हैं, जो करोड़ों के लिए बहुत अच्छी खबर है जिनकी पहुंच में अब यह जीवन-रक्षक और जीवन-सुधार की सुविधाएं हैं. यहां ध्यान देने वाली बात है कि ऊपर दिए कुछ सूचकांक जैसे खाना बनाने के लिए स्वच्छ इंधन और बेहतर पीने का पानी और सफाई मोदी सरकार की मुख्य योजनाओं, उज्जवला और स्वच्छ भारत से जुड़े हुए हैं.
साफ ईंधन पहुंच में होने को लेकर एक रोचक तथ्य: सरकार का आधिकारिक दावा है कि भारत में 99 प्रतिशत से ज्यादा घरों में एलपीजी सिलेंडर उज्जवला योजना के अंतर्गत पहुंच गए हैं. लेकिन जैसा ऊपर डाटा दिखाता है कि भारत के 60 प्रतिशत से कम घरों में ही इसका लगातार प्रयोग हो रहा है. आंकड़ों में यह बेमेल इस बात को उजागर करता है कि कई परिवारों के पास भले ही सरकार के द्वारा दिया गया एलपीजी कनेक्शन हो, लेकिन वह शायद सिलेंडर भरवाने के पैसे नहीं दे पा रहे.
तब भी सर्वेक्षण के नतीजे साफ दिखाते हैं कि 2014-15 के मुकाबले 2021 में ज्यादा लोगों के पास यह सुविधा पहुंच गई है. यह मोदी सरकार के लिए अच्छी बात है. लेकिन एनडीए के वर्षों में हुई प्रगति को जांचने का एक बेहतर तरीका, उसके सुधारों की गति की यूपीए के वर्षों की गति से तुलना करना है. जैसा कि पहले उल्लेख किया गया एनएफएचएस-3, एनएफएचएस-4 और एनएफएचएस-5 के कालखंड, डाटा को इतने साफ तौर पर बांटने की सुविधा देते हैं.
चित्र 2 यह तुलना दिखाता है. यहां ध्यान रखने वाली एक बात यह है कि चित्र मानकों में बदलाव ठीक प्रकार से तुलना कर पाने के लिए सामान्यीकृत करके प्रतिवर्ष कर दिया गया है. उदाहरण के लिए, यदि एक मानक एनएफएचएस-3 (2004-05) और एनएफएचएस-4 (2014-15) के बीच 20 प्रतिशत ऊपर जाता है, तो उसका सामान्यीकृत सालाना बदलाव दो प्रतिशत (20/10) होगा. 2004-05 से 2015-16 (यूपीए वर्षों) की 2015-16 से 2019-21 (एनडीए वर्षों) की तुलना करते हुए, मानकों को सामान्य कर प्रतिवर्ष में बदल देने के इस तरीके को पूरे लेख में इस्तेमाल किया गया है.
ऊपर का चार्ट दिखाता है कि अगर स्वच्छ इंधन स्वच्छ पानी और सफाई कि पहुंच की बात की जाए तो 2014-15 की तुलना में काफी ज्यादा सुधार हुए हैं. खासतौर पर, हर साल औसतन चार प्रतिशत से ज्यादा ऐसी जनसंख्या तक सैनिटेशन पहुंचा जिनके पास एनडीए सरकार के दौरान पहले नहीं था. यही आंकड़ा यूपीए वर्षों के दौरान दो प्रतिशत से थोड़ा कम था. यह डाटा दिखाता है कि मोदी प्रशासन के अंतर्गत स्वच्छ भारत और उज्जवला अभियानों से जमीन पर सुधार हुए हैं. इसके लिए मोदी सरकार को श्रेय मिलना चाहिए क्योंकि इन तीन आवश्यक मानकों में बढ़त के आगे कहीं ज्यादा फायदे होते हैं.
विद्युतीकरण और जीवन बीमा की सुविधा होने में, सुधार की दर लगभग समान ही है. एनडीए के कालखंड में विद्युतीकरण थोड़ा धीमा बढ़ता हुआ लगता है लेकिन ऐसा शायद इसलिए कि 99 प्रतिशत देश के पास पहले से ही बिजली है, जिससे आगे विकास के लिए गुंजाइश नहीं बचती. यह जरूर है कि सर्वेक्षण बिजली आपूर्ति के बारे में पूछता है, बिना खलल के बिजली आपूर्ति के बारे में नहीं. इसलिए बिजली आपूर्ति में सुधार की बहुत गुंजाइश है, लेकिन उस को मापने का सर्वेक्षण में तरीका नहीं है.
बाल पोषण
आगे देखते हैं कि बच्चों से शुरुआत कर, पोषण के मामले में चीजें कैसी रही हैं.
चित्र 3 पिछले तीन सर्वेक्षणों से बाल पोषण के पांच मुख्य मांगों के ट्रेंड दिखाता है.
क) 5 वर्ष से कम की मृत्यु दर: प्रति हजार 5 वर्ष का होने से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या.
ख) शिशु मृत्यु दर: प्रति हजार 1 वर्ष का होने से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या.
ग) स्टंटिंग: उम्र से कम लंबाई वाले बच्चों का प्रतिशत. यह दीर्घकालिक या बार-बार होने वाले अल्पपोषण को दिखाता है.
घ) वेस्टिंग: अपनी लंबाई के हिसाब से कम वजन के बच्चों का प्रतिशत. यह तीक्ष्ण या हाल ही में हुए अल्पपोषण को दिखाता है.
ड) एनीमिया: एनीमिया से ग्रस्त बच्चों का प्रतिशत. अनन्या में एक व्यक्ति के अंदर इतने स्वस्थ लाल रक्त कण नहीं होते जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन ले जा सकें. एनीमिया जिसे लो हीमोग्लोबिन भी कहा जाता है किसी को भी थका और कमजोर महसूस करा सकता है. एनीमिया होने की सबसे आम वजह पोषक तत्वों की कमी है, खास तौर पर लोहे की.
संपूर्ण आंकड़े, एनीमिया के अलावा हर मानक पर मामूली से सुधार दिखाते हैं. एनएफएचएस-4 के 58.6 प्रतिशत के मुकाबले ताजा सर्वेक्षण में 67.1 प्रतिशत बच्चे एनीमिक पाए गए जोकि चौंकाने वाला है. सर्वेक्षण में इन आंकड़ों को जानने के लिए रक्त की जांच की जाती है.
दूसरे मानकों में भी जिनमें कुल मिलाकर तो सुधार हुआ है, लेकिन संख्या अभी भी इतनी कम है कि हर 3 में से एक बच्चा अविकसित है और हर पांच में से एक बच्चा कमजोर है.
चित्र 4, यूपीए और एनडीए के सालों के पांचो सूचकांकों को दिखाता है.
ऊपर का चित्र दिखाता है कि 2014- 15 के बाद मृत्यु दर और अविकसित में सुधारों की गति धीमी पड़ गई, हालांकि बहुत ज्यादा नहीं. कमजोरों में थोड़ा सा सुधार दिखाई दिया है, खास तौर पर तब जब वह यूपीए के वर्षों के दौरान यह स्थिति खराब हो गई थी. जैसे कि पहले चर्चा की गई थी, एनडीए के वर्षों में बचपन में एनीमिया की संख्या में बदलाव वास्तव में नकारात्मक हो गया था. कुल मिलाकर ऊपर का चार्ट यह दिखाता है कि बहुत जरूरत होते हुए भी, बाल कुपोषण के निवारण में हमारी प्रगति धीमी पड़ गई है.
तो क्या हम अपनी वयस्क जनसंख्या को खिलाने में कुछ बेहतर कर पा रहे हैं?
चित्र 5 वयस्क पोषण सूचकांकों का डाटा दिखाता है: कम बॉडी मास इंडेक्स और एनीमिया. हर वर्ग में दिखाए गए आंकड़े, कम बीएमआई और एनीमिया वाले पुरुष/महिलाओं का प्रतिशत है.
वयस्क पोषण के निष्कर्ष मिले-जुले हैं. कम बीएमआई वाली जनसंख्या का प्रतिशत, जिसे वयस्कों में अल्पपोषण का ही एक रूप समझा जा सकता है, समय के साथ घटा है. लेकिन एनएफएचएस-4 से एनएफएचएस-5 की तुलना में ज्यादा पुरुष और महिलाएं एनीमिक पाए गए. यह देखते हुए कि इसी समय में बच्चों में भी अनीमिया बढ़ा, इसके कारणों का पता लगाने की आवश्यकता है.
चित्र 6, यूपीए और एनडीए वर्षों के बीच में वयस्क पोषण मानकों में अंतरों की तुलना करता है.
जैसा कि हम जानते हैं एनीमिया एनडीए सालों के दौरान और बिगड़ा. दोनों कालखंडों में कम बीएमआई रखने वाली वयस्क जनसंख्या का एक हिस्सा कम हुआ है लेकिन इस मोर्चे पर प्रगति की गति एनडीए वर्षों के दौरान धीमी पड़ गई है.
माता का स्वास्थ्य और बच्चा वैक्सीनेशन
आगे, कुछ स्वास्थ्य मानकों को देखते हैं: प्रसव के दौरान उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाएं और शिशु वैक्सीनेशन. यहां दिखाए गए माता के स्वास्थ्य और बच्चा वैक्सीनेशन को नापने के आंकड़े एनएफएचएस सर्वेक्षणों में इकट्ठा किए गए आंकड़ों का केवल एक अंश है, जो कुल ट्रेंड्स का एक प्रतिनिधि है.
चित्र 7, माता के स्वास्थ्य के दो सूचकांकों का डाटा दिखाता है: संस्थागत जन्मों की संख्या और उन औरतों की संख्या जो गर्भ के दौरान कम से कम 4 बार डॉक्टर को दिखा सकीं. इसमें उन बच्चों (2 साल से कम) की संख्या भी है जिनका वैक्सीनेशन हो गया था. तीनों ही मानकों पर हर सर्वे में चीजें बेहतर हुई हैं.
एनएफएचएस-3 और एनएफएचएस-4 के बीच में बच्चे की डिलीवरी के लिए स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंच में काफी तेज उछाल आया था. बाकी दो मांगों पर सुधार की गति लगभग समान थी, जिसमें एनडीए के वर्षों के दौरान बचपन में होने वाले वैक्सीनेशन की दर में थोड़ी सी बढ़त आई थी. इन ट्रेंडों को चित्र 8 में देखा जा सकता है, जो यूपीए और एनडीए के सालों में सामान्यीकृत सालाना बदलाव की तुलना करता है.
साक्षरता
आखिर में उन सूचकांकों की ओर देखते हैं जो बुनियादी शिक्षा को मापते हैं: पुरुष और महिलाओं की बुनियादी साक्षरता और महिलाओं के लिए कैसी भी स्कूली हाजिरी. यहां यह बताना जरूरी है कि यह डाटा स्कूल में हाजिरी की दर या शैक्षिक नतीजे नहीं बताता. इसलिए इसको शैक्षणिक समानता का मानक नहीं मानना चाहिए. इसकी जगह यह बुनियादी साक्षरता को दिखाता है, जोकि मानव विकास का एक आवश्यक पहलू है लेकिन शिक्षा से थोड़ा अलग है.
चित्र न पिछले तीन सर्वेक्षणों के ट्रेंड दिखाता है. जहां एक तरफ पुरुषों के लिए मूल साक्षरता अधिक है (84.4 प्रतिशत) जो कि महिलाओं से ज्यादा है (71.4 प्रतिशत), पुरुषों में साक्षरता पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले थोड़ी सी गिरी है. महिलाओं के लिए साक्षर कही जा सकने वाली महिलाओं और जो स्कूल जा रही हैं वह दोनों ही आंकड़े एक सतत बढ़ता हुआ ट्रेंड दिखाते हैं.
यह कहते हुए भी इन दोनों ही मानकों पर बढ़त, साक्षरता और किसी भी स्कूल में हाजिरी, एनडीए के वर्षों के दौरान धीमी पड़ गई है. इसे नीचे चित्र 10 में देखा जा सकता है जिसमें तुलनात्मक आंकड़े दिखाए गए हैं. दुनिया के लिए कुल साक्षर संख्या भी थोड़ी सी गिर गई है जो कि नीचे चार्ट में नकारात्मक संख्या के रूप में दिखाई पड़ती है.
कुल मिलाकर साक्षरता का डाटा यह इशारा करता है कि एनडीए वर्षों में यूपीए वर्षों के मुकाबले बुनियादी शिक्षा का नुकसान हुआ है.
तो इस लेख में प्रस्तुत किए गए डाटा से, उस क्षेत्र संबंधी सांख्यिकीय झुकाव के अलावा और क्या निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं?
यह तर्क दिया जा सकता है कि यह डाटा प्रधानमंत्री मोदी के अंतर्गत जनगणना को पहुंचाने और अवधारणा बनाने में एक नीतिगत बदलाव हुआ है. आवश्यक चीजों और सुविधाओं जैसे एलपीजी सिलेंडर, पानी का कनेक्शन और वैक्सीनेशन की डिलीवरी पर अधिक जोर और देखा जाने वाला अंतर पड़ा है. इन सुधारों ने विनाशक जनसंख्या के एक बड़े हिस्से पर सकारात्मक असर डाला है, और सरकार उसके लिए श्रेय लेने का हक रखती है.
उसी समय, थोड़ा कम साकार क्षेत्रों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण- जो केवल खुद के स्तर पर नहीं बल्कि तंत्र के स्तर पर मानवीय पूंजी को बढ़ाने वाली और टिकाऊ सशक्तिकरण का निर्धारक है या तो उल्टा चला गया है या धीमा पड़ गया है. अरविंद सुब्रमण्यम और उनके साथी भी यही बिंदु रखते हैं, और इस नीतिगत बदलाव को "नया कल्याणवाद" कहते हैं.
यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है कि जनकल्याण की डिलीवरी में यह बदलाव चुनावी गणित का कोई बड़ा प्लान है, प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण का प्रतिबिंब है, चुनौती की भयावहता का एक संकेत है या सिर्फ मौजूदा प्रशासन की शक्ति और कमजोरियों का एक नमूना है. आखिर स्वास्थ्य लाभ, पोषण और साक्षरता में बड़े स्तर पर सुधार को एक अलग प्रकार की क्षमता चाहिए जो एक बार की सुविधाओं जैसे एलपीजी सिलेंडर, शौचालय और वैक्सीनेशन जैसी सुविधाएं पहुंचाने से अलग है.
लेकिन एक बात जो निर्विवाद है वह यह कि एनएफएचएस-5 का डाटा आम जनता की जमीनी हकीकतों में एक समृद्ध दृष्टि प्रदान करता है और कई सरकारी पहलों के प्रभाव को दिखाता है. बस केवल उम्मीद की जा सकती है कि नीति निर्माता इस पर सावधानीपूर्वक ध्यान दे रहे होंगे.
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