aravalli
हरियाणा के पूर्व पर्यावरण मंत्री और अन्य नेताओं ने किया अरावली में अवैध निर्माण
दिल्ली से करीब एक घंटे के सफर के बाद अरावली पर्वत श्रृंखला का विस्तृत रूप नजर आने लगता है. अरावली, भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है, जो दिल्ली से लेकर गुजरात के अहमदाबाद तक फैली है.
राजस्थान के थार से उड़ते रेत को दिल्ली आने से रोकने के साथ-साथ बारिश के पानी को जमा कर भूजल स्तर को बेहतर करने में अरावली की बड़ी भूमिका मानी जाती है. लेकिन शहरीकरण, लगातार बढ़ते अतिक्रमण और खनन के कारण अरावली का वन क्षेत्र लगातार कम होता जा रहा है. 2018 में केंद्रीय अधिकारिता कमेटी की एक रिपोर्ट में सामने आया कि राजस्थान में 15-20 फीसद पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं. दरअसल अवैध खनन के चलते राजस्थान के अरावली क्षेत्र के 128 में से 31 पहाड़ियां विलुप्त हो गई हैं.
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन न्यायधीश मदन बी लोकुर ने नाराजगी जताई थी और कहा था, ‘‘अगर देश से पहाड़ ही गायब हो जाएंगे तो क्या होगा? क्या लोग हनुमान बन गए हैं, जो पहाड़ियां लेकर भागे जा रहे हैं?’’
यह स्थिति सिर्फ राजस्थान की नहीं है. सरकारी अनदेखी से हर जगह अरावली के पहाड़ और जंगल दिन-ब-दिन तबाह हो रहे हैं. हरियाणा, जहां इस पर्वत श्रृंखला का बड़ा हिस्सा है वो भी इससे अछूता नहीं है.
हरियाणा में अरावली श्रृंखला गुरुग्राम, फरीदाबाद महेंद्रगढ़, रेवाड़ी और मेवात में है. फरीदाबाद जिले में अरावली के अंतर्गत 9,000 हेक्टेयर वन क्षेत्र है. इसके एक बड़े हिस्से में ताकतवर लोगों द्वारा अवैध रूप से विवाह हॉल, आश्रम, गौशाला और शूटिंग रेंज बनाकर कब्जा कर लिया गया है.
फरीदाबाद जिले में 5,439 हेक्टेयर वन भूमि पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए) 1900 के अंतर्गत आते हैं. पीएलपीए हरियाणा में भी लागू होता है.
ऐसा नहीं है कि अरावली की बदहाली अभी ही शुरू हुई है. बीते एक सदी से अधिक समय से अरावली का दोहन किया जा रहा है. ‘एम्पायर एंड एनवायर्नमेंटल एंग्जायटी’ में स्कॉलर जेम्स बीट्टी लिखते हैं, ‘‘साल 1900 में, पंजाब में मिट्टी के कटाव और रेत के बहाव को रोकने के लिए पीएलपीए कानून पारित किया गया था. दरअसल ब्रिटिश सरकार की कुछ नीतियों की वजह से वनों की कटाई और भूमि का ‘अनियंत्रित शोषण’ हुआ.''
आजादी के बाद भी जंगलों को बचाने के लिए पीएलपीए लागू है. सालों पहले इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पीएलपीए के अंतर्गत आने वाली भूमि को वन संरक्षण अधिनियम (एफसीए), 1980 के तहत संरक्षित किया जाएगा. इसका मतलब है कि केंद्र सरकार की अनुमति के बगैर उक्त भूमि का उपयोग ‘‘गैर-वन उद्देश्य’’ के लिए नहीं किया जा सकता है.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश और चेतावनी को यहां धडल्ले से मजाक बनाया गया और अरावली को बर्बाद किया गया. जून 2020 में फरीदाबाद प्रशासन ने हरियाणा सरकार को बताया कि जिले में लगभग 577 हेक्टेयर वन भूमि पर कुल 130 से ज्यादा अतिक्रमण है.
कौन हैं ये ताकतवर लोग?
गुरुग्राम-फरीदाबाद रोड से गुजरते हुए जगह-जगह जंगली जानवर की उपस्थिति को लेकर बोर्ड लगा है. साथ ही गाड़ी धीमी चलाने के लिए कहा गया है. जैसे-जैसे हमारी गाड़ी फरीदाबाद के सूरजकुंड की तरफ बढ़ती है, सड़क के किनारे आलिशान निर्माण नजर आते हैं. कुछ निर्माण अब भी शान से जंगल की छाती पर खड़े है, लेकिन कुछ को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तोड़ा जा रहा है.
न्यूज़लॉन्ड्री के पास वन विभाग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए अवैध निर्माण की सूची है. जिसमें एक नाम विपुल गोयल का भी है. गोयल हरियाणा बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं और मनोहर लाल खट्टर सरकार के पहले कार्यकाल में प्रदेश के उधोग और पर्यावरण मंत्री रह चुके हैं. पर्यावरण मंत्री जिसकी जिम्मेदारी अरावली को बचाने की थी उनका नाम अरावली में अवैध निर्माण करने वालों में शामिल है.
यह सूची जून 2020 में हरियाणा सरकार के वन्यजीव और वन विभाग के फरीदाबाद जिले के डिप्टी कमिश्नर ने तैयार की थी. सूची के पहले पेज पर ही पूर्व पर्यावरण मंत्री गोयल का नाम दर्ज है. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अवैध निर्माण करने वालों ने क्या बनवाया है. गोयल के नाम के आगे ‘फार्म हाउस’ लिखा हुआ. और बताया गया है कि यहां वन संरक्षण अधिनियम के तहत निर्माण की अनुमति नहीं थी. अवैध निर्माण को लेकर गोयल को साल 2018 में भी नोटिस दिया गया था.
पूर्व मंत्री गोयल के नाम के साथ अरावली, गूगल सर्च करने पर ‘फरीदाबाद को हरा-भरा बनाने के लिए अरावली पर ड्रोन से 1 करोड़ बीजों का छिड़काव’ शीर्षक से पत्रिका अखबार की खबर सामने आती है. जुलाई 2019 में छपी इस खबर में बताया गया है, ‘‘पीएम मोदी के पर्यावरण संरक्षण के सपने को साकार करने के लिए गोयल ने एक नई पहल की है. फरीदाबाद समेत पूरे राज्य को हरा-भरा और स्वस्थ बनाए रखने के लिए उन्होंने अरावली के पहाड़ों में ड्रोन उड़ाकर एक करोड़ बीज छिड़काव करने का शुभारंभ किया.’’
करीब दो साल बाद सितंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विपुल गोयल का करीब 11 एकड़ में फैला फार्म हाउस वन विभाग ने तोड़ दिया है. फरीदाबाद का अंखिर गांव जो अरावली के अंर्तगत आता है. गोयल का फार्म हाउस इसी गांव में है. यह जमीन पीएलपीए के अधीन है.
गुरुग्राम-फरीदाबाद मुख्यमार्ग से एक अधबना रास्ता जंगल के अंदर की तरफ जाता है. यहां खड़े लोग बताते हैं कि एक किलोमीटर आगे जाइए, राधा स्वामी मंदिर से पहले वाला मंत्री जी का ही फार्म हाउस है. गोयल के फार्म हाउस तक पहुंचने के रास्ते पर कई अन्य फार्म हाउस भी बने हैं.
साल 2014 विधानसभा चुनाव के समय दिए हलफनामे के मुताबिक गोयल ने अंखिर गांव में 3.8 हेक्टेयर जमीन मार्च 2013 में 64 लाख रुपए में खरीदी थी. उस समय गोयल हरियाणा विधानसभा में सबसे अमीर विधायक थे. उनके पास करीब 106 करोड़ रुपए की संपत्ति थी.
हम गोयल के फार्म हाउस के सामने खड़े थे. बॉउंड्री और अंदर हुए अवैध निर्माण को को वन विभाग ने तोड़ दिया है. इधर-उधर पड़े मलवे के बीच बीजेपी का झंडा भी जमीन पर पड़ा नजर आता है. फार्म हाउस टूटने के बाद मजदूरों और इसकी देखभाल करने वाले कर्मचारियों के लिए दो कमरों का अस्थायी निर्माण हुआ है. हैरानी की बाद है वन विभाग द्वारा किए जा रहे तोड़फोड़ की रिपोर्टिंग मीडिया संस्थानों ने की, लेकिन कहीं भो गोयल का नाम सामने नहीं आया.
यहां रह रहे मजदूर अपना नाम नहीं बताते, लेकिन कहते हैं, ‘‘जब टूट रहा था तब साहेब आए ही नहीं. उनको क्या परेशानी, पैसे वाले हैं. फिर बनवा लेंगे. हमारे लिए तो ये अस्थायी रूप से बना हुआ है.’’
फरीदाबाद के एक कंस्ट्रक्शन डीलर नाम नहीं छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘यहां तीन साल पहले काम शुरू हुआ था. उन्होंने (गोयल) पेड़-पौधे कटवाए और फिर धीरे-धीरे जमीन को समतल किया. समतल करने के दौरान जो भी पत्थर निकले उसका इस्तेमाल बाउंड्री बनाने में किया गया. सब यहां इसी फार्मूले को अपनाते हैं.’’
गोयल के यहां काम करने वाले एक कर्मचारी जो अपना नाम खान बताते हैं. वह कहते हैं, ‘‘इसे समतल करने के लिए ट्रक के ट्रक मिट्टी बाहर से लाई गई. एक ट्रक के करीब 4000 रुपए लगते थे. यहां वे फार्म हाउस बनाने वाले थे.’’
गोयल जिस जगह पर फॉर्म हाउस बनाने की तैयारी कर रहे थे वहां जंगली जानवर आते रहते हैं. वहां काम रहने वाले गार्ड बताते हैं, ‘‘अक्सर ही यहां जंगली जानवर आते हैं. अभी 10 दिन पहले की बात है यहां तेंदुआ आया था. करीब एक घंटे तक हम सब डर कर छुपे रहे.’’
ऐसा नहीं है कि गोयल का ‘फार्म हाउस’ वन विभाग ने पहली बार तोड़ा है. उनके यहां सात साल से काम करने वाले एक कर्मचारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि इससे पहले भी दो बार बाउंडी तोड़ी गई थी. हालांकि बाद में इसका निर्माण करा लिया गया.
यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि जब गोयल हरियाणा के पर्यावरण मंत्री थे, तब फरवरी 2019 में हरियाणा की भाजपा सरकार ने पीएलपीए में संशोधन कर रियल स्टेट और खनन के लिए अरावली की लगभग 30,000 हेक्टेयर संरक्षित भूमि को रियल स्टेट और खनन के लिए मुक्त कर दिया. हालांकि संशोधन के अगले ही महीने इसपर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस सिलसिले में विपुल गोयल से बात की. इस पूरे मामले पर गोयल कहते हैं, ‘‘हमारी प्रॉपर्टी काफी पुरानी है. वैसे भी सिर्फ मेरे से क्या फर्क पड़ता है वहां तो दुनिया की प्रॉपर्टी है.’’
जब हमने उनसे पूछा कि आपकी करीब 11 एकड़ की जमीन यहां है. जहां फार्म हाउस था और वन विभाग ने तोड़ दिया. इस पर गोयल कहते हैं, ‘‘नहीं-नहीं, मेरी बस चार एकड़ जमीन है. वैसे सिर्फ मेरी ही नहीं हटाई गई, कई लोगों की हटाई गई है. अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश है तो हम कानून से ऊपर तो हैं नहीं. हालांकि हमने वहां कोई निर्माण ही नहीं कराया था. मेरे पास हाईकोर्ट का स्टे है और कोर्ट की इजाजत के बाद बाउंड्री की थी. एकबार कांग्रेस सरकार में बाउंडी तोड़ दी गई थी तो जिन पांच अधिकारियों ने तोड़ी थी उन्हें कोर्ट से सजा हुई थी.’’
हमने गोयल से हाईकोर्ट की स्टे वाली कॉपी मांगी तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया. जब हमने पूछा कि क्या आप एकबार फिर तोड़ने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट जाएंगे तो उन्होंने कहा, ‘‘आगे देखेंगे. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है. मेरे पास स्टे हाईकोर्ट का है. अगर उन्होंने गलत तोड़ा होगा तो भुगतेंगे. वैसे वहां तो बीते आठ-नौ साल से तो गौशाला चल रही थी.’’
विपुल गोयल अकेले नहीं…
अरावली में किसी भी तरह के ठोस निर्माण पर रोक है, लेकिन फरीदाबाद और गुरुग्राम में धड़ल्ले से निर्माण कार्य हुआ. कहीं मंदिर के नाम पर तो कहीं गौशाला के नाम पर. किसी ने फार्म हाउस बना लिया तो किसी ने आश्रम. यह जानते हुए कि यह अवैध है, सरकारी एजेंसियों ने पहाड़ों के ऊपर हुए इन निर्माण तक बिजली, पानी और सड़कें पहुंचा दीं. बीच-बीच में जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और सुप्रीम कोर्ट ने ऐतराज जताया तो दिखावे के लिए कुछ निर्माण तोड़े गए, लेकिन निर्माण का सिलसिला नहीं रुका.
साल 2021 एकबार फिर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि अरावली में हुए अवैध निर्माण को हटाया जाए. इसके बाद वन विभाग सक्रिय हुआ और अवैध निर्माण को तोड़ना शुरू किया गया. अभी कुछेक फार्म हाउस और शादी घर टूटे हैं, लेकिन कई अब भी मौजूद हैं.
विपुल गोयल ऐसा करने वालों में अकेले नहीं हैं. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने एनएल सेना के तहत ऐसा करने वालों की पड़ताल की तो सामने आया कि बीजेपी के पूर्व मंत्री के अलावा बीजेपी के दूसरे और कांग्रेस के नेताओं ने भी अरावली में फार्म हाउस का निर्माण किया है.
मेवला महाराजपुर गांव के रहने वाले बीजेपी नेता कैलाश बैसला ग्रीनफील्ड कॉलोनी के पार्षद रह चुके हैं. अब इनकी बेटी हेमा यहां से पार्षद हैं. 0.89 एकड़ में फैला बैसला का फार्म हाउस फरीदाबाद-गुरुग्राम रोड के किनारे है. इसके बगल में सेठी फार्म हाउस था, जिसे वन विभाग ने जमींदोज कर दिया है, लेकिन बैसला की सिर्फ बाउंड्री तोड़ी गई है.
इनको भी फरीदाबाद वन विभाग की तरफ से दो बार नोटिस दिया गया है. एक बार अक्टूबर 2018 में और दूसरी बार अप्रैल 2019 में. यह जमीन भी पीएलपीए के अंतर्गत है.
बैसला के फार्म हाउस में दो कमरे और एक बड़ा सा बरामदा बना हुआ है. बीते सात साल से इसकी देखभाल करने वाले दार्जिलिंग के रहने वाले राजेंद्र छोगा बताते हैं, ‘‘बाउंड्री तोड़ी गई है. हमलोग यहां खेती करते हैं और गौशाला भी है. यह शादी हॉल तो है नहीं न, फिर भी तोड़ दिया है.’’
राजेंद्र, गौशाला होने की बात करते हैं. बैसला भी गौशाला होने की बात दोहराते हैं. इसकी तस्दीक करता हुआ एक बैनर दिखता है. जिसपर ‘गोधाम गौशाला’ लिखा नजर आता है. जब हम राजेंद्र से गायें किधर हैं और कितनी हैं? पूछते हैं तो वे थोड़ा सकपका जाते हैं. दरअसल इनके यहां सिर्फ एक गाय और उसका बछड़ा है. जिसको इन्होंने पाला है और उससे जो दूध निकलता है, उसका इस्तेमाल अपने लिए ही करते हैं.
विपुल गोयल की तरह कैलाश बैसला भी हाईकोर्ट से स्टे मिलने की बात कहते हैं. वे हमें कोर्ट से मिला स्टे पेपर दिखाते हैं और साथ ही स्थानीय बीजेपी विधायक पर आरोप लगाते हैं. बैसला कहते हैं, ‘‘मेरे पास तो स्टे था तब भी मेरा फार्म हाउस तोड़ दिया गया. हमने वन विभाग के लोगों को कागज भी दिखाया लेकिन किसी ने सुना ही नहीं. जमीन मेरी मलिकियत है. इसे मैंने गांव के ही किसान से साल 2000 में खरीदा था. यहां बस चुन-चुन के फार्म हाउस तोड़े जा रहे हैं. जो पैसे दे दे रहे हैं उनका नहीं तोड़ा जा रहा है. मेरा तो यहां की विधायक सीमा त्रिखा ने तुड़वाया है.’’
वो तो आपकी ही पार्टी से हैं फिर क्यों तुड़वाएंगी. इसपर बैसला कहते हैं, ‘‘हिस्सा मांगती हैं. मैं कहां से उन्हें हिस्सा दूं.’’
बैसला 2011 में प्रॉपर्टी डीलर रविंदर सिंह की हत्या के आरोपियों में से एक हैं. सिंह की फरीदाबाद में एक शादी के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
बैसला के आरोप पर जिला वन अधिकारी राजुकमार कहते हैं, ‘‘यह आरोप बेबुनियाद हैं. सिर्फ मेरे कहने पर आप भरोसा न करते हुए खुद जाकर देखिए किसका तोड़ा गया और किसका नहीं. अभी तो हालांकि तोड़-फोड़ का काम रुका हुआ है. लेकिन जो गलत निर्माण था उसे तोड़ा गया. वहीं जिन्हें छोड़ा गया उनका कोर्ट में मामला चल रहा है. ऐसे में कैसे तोड़ सकते हैं?’’
केंद्रीय मंत्री और फरीदाबाद के सांसद के ‘करीबी’ ने भी कराया अवैध निर्माण
बीजेपी के युवा नेता संदीप चपराना का भी मेवला महाराजपुर में लगभग 5.22 एकड़ का फार्म हाउस था जिसपे भव्य मैरेज हॉल बनाकर चपराना ने दिल्ली के एक व्यवसाई को किराए पर दिया था. इसे भी प्रशासन ने जमींदोज कर दिया है.
चपराना को स्थानीय लोग फरीदाबाद के सांसद और केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर का करीबी बताते हैं. इनके फेसबुक पर मौजूद तस्वीरें भी इस बात की तस्दीक करती हुई नजर आती हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब यहां पहुंची तो मजदूर तोड़े गए मैरेज हॉल की ईंट साफ कर रहे थे. जनरेटर अभी वहीं पड़ा हुआ है. चपराना को वन विभाग की तरफ से 2019 में दो बार नोटिस दिया गया था.
फरवरी 2021 में चपराना को भेजे गए नोटिस जोकि न्यूज़लॉन्ड्री के पास हैं. उसमें फरीदाबाद रेंज वन अधिकारी ने कहा था कि, चपराना ने जमीन पर “गैर वानिकी गतिविधियों” को अंजाम दिया है. और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों, पीएलपीए और एफसीए का उल्लंघन किया है. साथ ही उन्होंने "अवैध अतिक्रमण", "जमीन को समतल करना", "चारदीवारी का निर्माण" और "कंक्रीट संरचनाओं का निर्माण" किया है.
वन अधिकारी ने नोटिस में चेतावनी देते हुए कहा, “सभी निर्माण को हटाया जाए और भूमि को पहले जैसे किया जाए.” अगर चपराना ने आदेश का पालन नहीं किया तो उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता, वन अधिनियम (1927) और एफसीए के तहत कार्रवाई की जाएगी.
संदीप चपराना के बड़े भाई प्रदीप न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘यह जमीन पुश्तैनी रूप से हमारी है. मैरेज हॉल हमारा था. किराए पर दिल्ली के एक आदमी को दिया गया था. जिसके बदले हमें 50 हजार रुपए महीने का किराया मिलता था. कोरोना काल आने के बाद से तो वो भी कम हो गया था. अब टूट गया. सुप्रीम कोर्ट का आर्डर है तो सबका टूट रहा है. हमारा तो सबसे पहले ही तोड़ दिया. हमारा करीब 20 लाख का नुकसान हो गया है.’’
कांग्रेस भी पीछे नहीं…
विपुल गोयल के फार्म हाउस से करीब दो किलोमीटर दूर ‘राज विलास’ नाम का मैरेज हॉल है. यह भव्य मैरेज हॉल कांग्रेस नेता महेंद्र प्रताप सिंह के स्वामित्व वाली जमीन पर बना हुआ है. सिंह 2009 से 2014 के बीच हुड्डा सरकार के कार्यकाल में राजस्व और उद्योग मंत्री रह चुके हैं.
हुड्डा सरकार में सिंह को बिजली, श्रम और रोजगार, स्थानीय निकाय, नवीकरणीय ऊर्जा, खाद्य आपूर्ति और तकनीकी शिक्षा का भी कार्यभार था. 2014 में दिए गए चुनावी हलफनामें के मुताबिक, सिंह के पास 69 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है.
सिंह की दो एकड़ की यह जमीन भी मेवला महाराजपुर में ही है. इन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में बताया है कि सितंबर 2003 में यह संपत्ति 17.5 लाख रुपए में खरीदी गई थी. हालांकि हलफनामे में भूमि को ‘कृषि भूमि के रूप में बताया गया है. जबकि वन विभाग ने जो सूची तैयार की है उसमें इस जमीन को पीएलपीए के अंतर्गत बताया गया है. विभाग ने यह नहीं बताया कि इन्हें कभी नोटिस दिया गया या नहीं.
सिंह ने 2019 के अंत में अनिल कुमार को यह जमीन किराए के रूप में दे दी थी. उन्होंने ही यहां मैरेज हॉल बनवाया है. यहां होने वाली हरेक शादी समारोह के बाद कुछ हिस्सा किराए के रूप में सिंह को मिलता है.
लाखों रुपए लगाकर कुमार ने यहां मैरेज हॉल बनवाया है. लेकिन जब यहां लोगों के मैरेज हॉल फार्म हाउस टूटे तो कुमार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘मंत्री जी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आर्डर है तो मैं क्या मदद कर सकता हूं. तुम कोशिश कर लो शायद बच जाए. फिर मैं कागज जुटाकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. अब लाखों रुपए तो मेरे ही खर्च हुए है न. कोरोना के कारण आमदनी भी नहीं हुई तो बचाने की कोशिश कर रहा हूं.’’
महेंद्र प्रताप सिंह न्यूज़लांड्री से कहते हैं, ‘‘मैं नहीं मानता कि मेरी जमीन पर अवैध निर्माण हुआ है. हमने इसे अदालत में चुनौती दी है. हरियाणा में लगभग 30 प्रतिशत संपत्तियों पीएलपीए भूमि पर हैं. उस भूमि को जंगल का हिस्सा नहीं माना जा सकता. इस पर ध्यान नहीं दिया गया और पीएलपीए की गलत व्याख्या की गई. पीएलपीए की जमीन पर अनाज उगाने वाले किसान हैं. क्या वह भूखे रहेंगे? दूसरा फरीदाबाद में कई लोगों के पास पीएलपीए की जमीन है. जंगल में निजी संपत्ति कैसे हो सकती है? यदि नहीं, तो सरकार को निजी मालिकों को मुआवजा देना चाहिए.’’
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक पीएलपीए के अंतर्गत आने वाली जमीन जंगल के तौर पर सुरक्षित रहनी चाहिए, सिंह इस व्याख्या पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “मैंने यह जमीन साल 2000 में खरीदी. इस नियम के बाद साल 1982 में यह जमीन एक निजी निर्माण करने वाली कंपनी के पास चली गई थी.”
अरावली बनाम राजनेता
हरियाणा भारत में सबसे कम वन क्षेत्र वाला राज्य है. यहां महज 1,588 वर्ग किलोमीटर ही जंगल है. यह राज्य के लिए चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि वन क्षेत्र कम होने का सीधा असर जलवायु पर होता है.
इस चिंता को राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने साल 2017 में स्वीकार करते हुए कहा था कि वह 2020 तक राज्य में वन क्षेत्र को 10% तक बढ़ाना चाहते हैं. जिस समय सीएम वन क्षेत्र बढ़ाने को लेकर चिंता कर रहे थे उसी समय उनके पूर्व पर्यावरण मंत्री विपुल गोयल एक फार्महाउस बनाने के लिए कानून को ताक पर रखकर जंगल को समतल कर रहे थे. जैसा कि पूर्व में कांग्रेस नेता महेंद्र प्रताप सिंह ने किया.
यहीं नहीं अपने वरिष्ठ नेताओं के नक्शेकदम पर एक "युवा नेता" और एक स्थानीय पार्षद चल रहे हैं. जो कि यह चिंताजनक है.
इसी बीच 2021 की शुरुआत में हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां उन्होंने कहा कि पीएलपीए के तहत भूमि को जंगल नहीं माना जाना चाहिए. सरकार के इस तर्क को पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चुनौती दी. इसको लेकर ‘अरावली बचाओ नागरिक समूह’ ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया और बताया कि हरियाणा सरकार की पीएलपीए की गलत व्याख्या उनके 2020 के संशोधन को सही ठहराने के लिए है.'' यह मामला अब भी कोर्ट में चल रहा है, जिससे सिंह जैसे लोगों के लिए यह तर्क देना आसान हो जाता है कि उन्होंने वन क्षेत्रों में अतिक्रमण नहीं किया है.
अरावली के प्रति राजनेताओं के रवैये की कहानी सत्ता के दुरुपयोग की है. ऐसे उल्लंघनों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. क्योंकि अतिक्रमण जैसे अपराधों को आमतौर पर मामूली माना जाता है.
ना जाने कितने ही वैज्ञानिक सबूत हैं कि इस तरह जंगलों के खत्म करने का असर तापमान में बढ़ोतरी से लेकर पानी के स्तर और खेती तक होता है. बावजूद पर्यावरण का क्षरण कर जमीन पर अतिक्रमण किया जा रहा है और जंगलों को खत्म किया जा रहा है.
ऐसा माना जाता है कि विकास को बढ़ावा देना और पर्यावरण का सरंक्षण दोनों में से एक को चुनना होता है. लेकिन हरियाणा में राजनेताओं के मामलों से पता चलता है कि यहां मामला व्यक्तिगत लालच का है और इस लालच में नियमों की छज्जियां उड़ाकर जंगलों को खत्म किया जा रहा है. वो भी उस राज्य में जहां जंगल बेहद ही कम हैं.
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इस एनएल सेना प्रोजेक्ट में हमारे पाठकों ने सहयोग किया है. यह राजदीप अधिकारी, शुभम केशरवानी, कुंजू नायक, अभिमन्यु सिन्हा, हिमांशु बधानी, मसूद हसन खान, तन्मय शर्मा, पुनीत विश्नावत, संदीप रॉय, भारद्वाज, साई कृष्णा, आयशा सिद्दीका, वरुणा जेसी, अनुभूति वार्ष्णेय, लवन वुप्पला, श्रीनिवास रेकापल्ली, अविनाश मौर्य, पवन निषाद, अभिषेक कुमार, सोमसुभ्रो चौधरी, सौरव अग्रवाल, अनिमेष चौधरी, जिम जे, मयंक बरंदा, पल्लवी दास, मयूरी वाके, साइना कथावाला, असीम, दीपक तिवारी, मोहसिन जाबिर, अभिजीत मोरे, निरुपम सिंह, प्रभात उपाध्याय, उमेश चंदर, सोमशेखर सरमा, प्रणव सत्यम, हितेश वेकारिया, सावियो वर्गीस, आशुतोष मौर्य, निमिश दत्त, रेशमा रोशन, सतकर्णी और अन्य एनएल सेना के सदस्यों द्वारा संभव हो पाया है.
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