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एनएल चर्चा 198: डॉक्टरों की हड़ताल, ओमीक्रॉन का फैलाव और नफरती भाषणबाजी
एनएल चर्चा के इस अंक में नीट-पीजी काउंसलिग को लेकर जारी डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन, हरिद्वार धर्म संसद मामले में एफआईआर, छत्तीसगढ़ में धर्म संसद में महात्मा गांधी को दी गई गाली, हेट स्पीच को लेकर पाकिस्तान ने भारत के उच्चायुक्त को जारी किया समन, ओमीक्रॉन के बढ़ते मामलों के बाद दिल्ली में यलो अलर्ट, पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को हरी झंडी आदि मुख्य विषय रहे.
चर्चा में इस हफ्ते बतौर मेहमान मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज की सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर अंजलि सिंह और वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव शामिल हुए. न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन ने भी हिस्सा लिया. चर्चा का संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन पर सवाल करते हुए कहा, “ईडब्ल्यूएस कोटे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने के कारण नीट-पीजी काउंसलिंग में काफी देरी हो रही है. इससे कई छात्रों का भविष्य अधर में पड़ गया है, साथ में पिछला बैच निकल जाने के कारण इन डॉक्टरों के ऊपर काम का बोझ भी बहुत बढ़ गया है. सरकार ने इस मामले को तब तक गंभीरता से नहीं लिया जब तक की सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी नहीं आ गई. क्या इस हड़ताल के कुछ और आयाम हैं?”
इस पर डॉक्टर अंजलि कहती हैं, “अतुल, जो आपने कहा उसका एक आयाम है दूसरा यह है कि, साल 2018 तक दिसंबर में परीक्षा होती थी और मार्च से एडमिशन हो जाता था. पहले कई अलग-अलग परीक्षाएं थी लेकिन अब सिर्फ एक ही परीक्षा होती है. अब नीट पीजी की परीक्षा एक साल तक हुई नहीं है इसलिए पूरा एक साल खाली हो गया. इस मामले को सुधारने के लिए सरकार को राजनीति से परे ईडब्ल्यूएस कोटे पर विचार करना चाहिए. काम के दवाब के कारण ही डॉक्टर अपने काम पर सही से ध्यान नहीं दे पा रहे है और कहीं-कहीं हिंसा भी हो रही है.”
विवाद की जड़ में सरकार द्वारा लागू किया गया ईडब्ल्यूएस कोटे का आरक्षण है. छात्रों का कहना है कि इसे अगले सत्र से लागू किया जाय, जबकि सरकार ने इसे इसी सत्र में लागू करने की घोषणा की है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि ईडव्ल्यूएस कोटे की आय सीमा आठ लाख प्रतिवर्ष तय करने के पीछे तर्क क्या है.
अतुल सवाल करते हैं, “ईडब्ल्यूएस कोटा जब लागू हुआ था तब भी हमने इस पर बातचीत की थी. पहले काउंसिंग में देरी फिर मामला कोर्ट में गया जहां यह फंस गया. इस पर सरकार का रवैया भी सही नहीं रहा. इस बीच दिल्ली में यलो अलर्ट हो गया, तीसरी वेव आने ही वाली है और डॉक्टर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. ऐसे वक्त में डॉक्टरों के साथ सरकार को जो रवैया है, पुलिस लाठी मार रही है यह बतौर नागरिक यह हम सबको डराती है?”
इस विषय पर अभिषेक कहते हैं, “सरकार के पास प्रबंधन का कोई तरीका नहीं है. ज्यादा समय नहीं हुआ है जब वकील और पुलिस के बीच लड़ाई हुई थी. यह हाल यूपी में भी है. इस सरकार के पास ईडब्ल्यूएस की सीमा निर्धारित करने का कोई वैज्ञानिक आधार या सोच नहीं है. जब कोई समस्या आती है तब उसे सुलझाया जाता है लेकिन जब समस्या को बनाया जाता है तब उसे सुलझाया नहीं जा सकता. सरकार ने जातिगत जनगणना कभी करवाया नहीं तो उसे पता नहीं है कौन सी जाति कितनी है. ऐसे में सही तरीके से निर्णय कैसे लिया जा सकता है?”
मेघनाद कहते है, “सरकार को पता नहीं है कि क्या करना है, इसलिए कोर्ट में वह देरी कर रही है. अगर सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस कोटे को नीट पीजी से खत्म कर दिया तो लोग बोलने लगेंगे की अगर ईडब्ल्यूएस आरक्षण नीट में लागू नहीं हो रहा है तो किसी और में भी नहीं लागू होना चाहिए. अगर सरकार ने आरक्षण को लेकर कोई फैसला दे दिया तो उत्तर प्रदेश चुनाव तक बीजेपी सरकार की परेशानी बढ़ जाएगी.”
इस विषय पर शार्दूल कहते है, “अगर सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने के लिए काम किया होता तो अभी यह सब समस्या नहीं होती है. डॉक्टरों के पास भी वह सब समस्या है जो अन्य के घरों में है. इसलिए सरकार को उनकी बातें सुननी चाहिए. इस सरकार को लगता है कि उसे किसी से कुछ पूछने या समझने की जरूरत ही नहीं है, वह सब जानती है.”
इस विषय के अलावा ओमीक्रॉन के बढ़ते मामलों पर भी विस्तार से बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइमकोड
00-1:30 - इंट्रो
1:31-10:00 - हेडलाइंस
10:05-46:15 - ओमीक्रॉन के मामले
46:30-1:07:00 - रेजिडेंट डॉक्टरों की हड़ताल
1:08:33-1:16:42 - चर्चा लेटर
1:16:45- 1:39:58 - हेट स्पीच
1:40:10 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.
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प्रताप भानु मेहता का लेख - इंडियन एक्सप्रेस
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एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह
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