Report
जासूसी के उपकरणों को खरीदने के प्रस्ताव ने बीसीसीआई के अंदर मुश्किलें खड़ी कर दी हैं
गुप्त ऑडियो रिकॉर्डर, छुपे कैमरे, मोबाइल फॉरेंसिक उपकरण, अच्छे रेजोल्यूशन वाली दूरबीनें.
यह भारत में बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट या बीसीसीआई की खरीदारी की सूची की हैं, जो विश्व भर से इनको खरीदने की तैयारी कर रहा है- कथित तौर पर "फिक्सिंग करने वालों को ठीक करने के लिए."
यह ऐसा, 4 दिसंबर को कोलकाता में सालाना जनरल मीटिंग के दौरान भारतीय क्रिकेट बोर्ड के सीईओ हेमांग अमीन के द्वारा दिए गए एक प्रस्तुतीकरण के बाद लग रहा है.
जाहिर तौर पर अमीन अपनी कोई रिपोर्ट नहीं पढ़ रहे थे. वह वही बात सामने रख रहे थे जो गुजरात पुलिस के पूर्व डायरेक्टर जनरल और बीसीसीआई की भ्रष्टाचार विरोधी सिक्योरिटी यूनिट (एसीयू या एपीएसयू) के मौजूदा प्रमुख शबीर हुसैन शेखादम खांडवाला सुझा रहे हैं या मांग कर रहे हैं.
1973 बैच के आईपीएस अफसर शबीर को इसी साल इस पद पर 9 अप्रैल को शुरू होने वाले आईपीएल से पहले नियुक्त किया गया था. अजीत सिंह के बाद मिला जिनका कार्यकाल 31 मार्च को समाप्त हो गया था.
शबीर की रिपोर्ट "सेक्रेटरी के दफ्तर द्वारा भेजे गए एजेंडा दस्तावेजों" का एक हिस्सा थी जिसमें एसीएसीयू की "तकनीकी क्षमताएं बढ़ाने" के शीर्षक के अंदर उन्होंने अपनी यूनिट को सशक्त बनाने के लिए कई उपकरणों की मांग की.
बीसीसीआई के सेक्रेटरी जय शाह ने शबीर की नियुक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस पद के लिए आवेदनों की कोई मांग जारी नहीं की गई थी. उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बावजूद भी शबीर को 70 की आयु पार करने के बावजूद भी ले लिया गया.
पूर्व में बीसीसीआई ने हर नियुक्ति के लिए विज्ञापन दिया है- जिसमें एसीएसीयू के प्रमुख का पद भी शामिल है. लेकिन विश्व के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड के ऊपर जूनियर शाह की पकड़ मजबूत होने के कारण, किसी अधिकारी या राज्य की एसोसिएशन के सदस्यों ने अभी तक किसी आधिकारिक मीटिंग में इस मुद्दे को नहीं उठाया है.
इस सब का अर्थ क्या है?
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बीसीसीआई ने क्रिकेट में फिक्सिंग के विकार पर लगाम लगाने के लिए दिए गए शबीर के सुझावों पर मोहर लगाई है कि नहीं. लेकिन कुछ उच्च अधिकारियों ने इस संवाददाता को बताया कि, "उन्होंने किसी भी आधिकारिक मामले के बारे में अपने मोबाइल फोनों पर बात करना बंद कर दिया है, जब से एक स्वतंत्र मीडिया संस्थान की रिपोर्ट आई जिसमें बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के मौजूदा चीफ राकेश तिवारी का फोन नंबर उन लोगों की सूची में आया था जिन पर कथित तौर पर विवादित पेगासस सॉफ्टवेयर के द्वारा जासूसी की गई."
एक वरिष्ठ बीसीसीआई अधिकारी ने कहा, "मौजूदा एसीएसीयू प्रमुख पुलिस के उसी खेमे से हैं जहां पुलिस कमिश्नर के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान जासूसी एक आम बात थी. मुझे इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वह अपने जांचे और परखे जासूसी के उपकरणों को क्रिकेट में भी लागू कर दें."
यहां यह बात बताना आवश्यक है कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन या बीसीए के प्रमुख तिवारी भाजपा के खास हलकों में निकटता रखते हैं, और बीसीसीआई के प्रमुख अधिकारियों से उनका संपर्क किसी से छुपा नहीं है. फ्रांस के नॉनप्रॉफिट फॉर बटन स्टोरीज और बाकी वैश्विक मीडिया संस्थानों के द्वारा देखे गए लीक हुए डेटाबेस में विश्व भर के 50,000 लोगों के टेलीफोन नंबर थे, जिनके खिलाफ अलग-अलग सरकारी एजेंसियों के द्वारा पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल हुआ है या हो रहा है.
तिवारी ने 29 सितंबर 2019 को बीसीए के अध्यक्ष का कार्यभार एक विवाद के बीच में संभाला, जहां उनके ही सेक्रेटरी संजय कुमार ने बीसीसीआई को लिखा था कि वे अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने तक के लिए भी अयोग्य हैं.
लेकिन शिकायतों के बावजूद तिवारी न केवल अपने पद पर बने रहे, बल्कि उन्होंने 20 से 26 मार्च के बीच कोविड-19 की लहर के दौरान एक "अस्वीकृत" टी-20 बिहार क्रिकेट लीग का आयोजन भी किया. इसके दौरान मैच फिक्सिंग के कई आरोप लगे, और हेमांग अमीन जो उस समय सीईओ का कार्यभार संभाल रहे थे को बीसीए को एक चिट्ठी भेजने पर मजबूर होना पड़ा, जिसमें उन्होंने लीग को बोर्ड की तरफ से मंजूरी न मिलने के कारण रद्द करने का निर्देश दिया था.
लेकिन तिवारी ने तब भी टूर्नामेंट कराया, और उनके व बीसीए के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई.
कामकाज में पारदर्शिता का अभाव
जाहिर सी बात है कि बीसीसीआई को पेगासस जैसा सॉफ्टवेयर दिए जाने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि एनएसओ कंपनी जो पेगासस की निर्माता है, ने जोर देकर कहा है कि वे इसे केवल सरकारों को ही बेचते हैं. लेकिन बीसीसीआई के अधिकारी, खास तौर पर वो जिनका आजकल के प्रशासकों (जूनियर शाह और अनुराग ठाकुर समूह) से तारतम्य नहीं बैठता, इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनकी निगरानी बोर्ड में विरोध को दबाने के लिए की जा सकती है.
2016 में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद इस्तीफा देने वाले राज्य बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष कहते हैं, "कार्यकाल को लेकर उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार सेक्रेटरी (शाह) और अध्यक्ष (सौरव गांगुली) को अभी तक अयोग्य घोषित हो जाना चाहिए था."
बीसीसीआई के संविधान के अनुसार, एसीएसयू का काम उन मामलों को देखने का है जो खेल के लिए खतरा हो सकते हैं. इसमें पर्यवेक्षण, जांच, अलग-अलग राज्यों की पुलिस के साथ मिलकर काम करना और भारत में क्रिकेट प्रतियोगिताओं के सुरक्षित आयोजन के लिए प्रतिरोधी कदमों को सुनिश्चित करना है.
हालांकि उच्चतम न्यायालय के द्वारा निर्धारित जस्टिस लोधा पैनल ने सलाह दी थी कि "भारत में क्रिकेट पर बोली लगाना वैध कर देना चाहिए", लेकिन बीसीसीआई के एसीएसयू प्रमुख का इस बारे में नजरिया भिन्न है. बीसीसीआई में आने के कुछ समय बाद शबीर ने इस बात पर जोर दिया कि वे "भारत में क्रिकेट पर बोली लगाने को वैधता नहीं देना चाहते हैं."
भ्रष्टाचार कम करने के लिए क्रिकेट पर पैसे लगाने को वैध करने के पक्षधर लोगों में से एक शबीर से पहले के प्रमुख अजीत सिंह भी थे, लेकिन अब नए प्रमुख अलग महसूस करते हैं.
संपर्क किए जाने पर बीसीसीआई में कोई भी इस विवादित मुद्दे पर टिप्पणी करने को तैयार नहीं है, इसमें सीईओ भी शामिल हैं जिन्होंने फोन किए जाने पर कोई जवाब नहीं दिया.
बोर्ड में हर कोई एसीएसयू प्रमुख की इस मांग को लेकर अपने होंठ सिले हुए है. और किसी को इस बारे में खबर नहीं कि एसीएसयू प्रमुख की इस मांग को आला अधिकारियों ने मान लिया है या नहीं क्योंकि अब सेक्रेटरी आफिस से कोई जानकारी लीक नहीं हो रही.
इतना ही नहीं, यह भी मालूम चला है कि बोर्ड के सदस्यों को खाते सालाना जनरल मीटिंग के दिन सुबह 9 बजे, मीटिंग से केवल तीन घंटे पहले ही उपलब्ध कराए गए. जबकि बीसीसीआई की सर्वोच्च काउंसिल के द्वारा यह खाते एक दिन पहले ही पारित कर दिए गए थे. पूर्व में, आर्थिक रिपोर्ट सभी सदस्यों को 15 दिन पहले फाइनेंशियल कमेटी की बैठक के बाद अग्रिम रूप से उपलब्ध कराए जाने का चलन था.
Also Read
-
There’s a double standard about women cricket we’re not ready to admit
-
‘No pay, no info on my vehicle’: Drivers allege forced poll duty in Bihar
-
In Rajasthan’s anti-conversion campaign: Third-party complaints, police ‘bias’, Hindutva link
-
Silent factories, empty hospitals, a drying ‘pulse bowl’: The Mokama story beyond the mics and myths
-
6 great ideas to make Indian media more inclusive: The Media Rumble’s closing panel