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दीपक चौरसिया, अंजना ओम कश्यप और एबीपी न्यूज़ की कॉन्सपिरेसी थ्योरी
हमारे यहां मरने वाले के सम्मान में यह कहने का चलन है कि मृतक की आत्मा को शांति पहुंचे, अंग्रेजी में रेस्ट इन पीस कहते हैं. लेकिन आज के भारत में मरने वाले की आत्मा से जुड़ी शांति या फिर मृत्यु की गरिमा को बनाए रखने की सलाहियत खत्म हो चुकी है. एक पूरी फौज बैठी है मौत पर मसखरी करने के लिए. यह फौज हर किस्म का बदसूरत हल्ला करके गम के माहौल को जहरीला बना देती है. यह फौज हमारे मीडिया में भी मौजूद है और सोशल मीडिया पर भी. 8 दिसंबर को भारत की तीनों सशस्त्र सेनाओं के पहले अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का निधन एक हेलीकॉप्टर क्रैश में हो गया. उनके साथ इस हादसे में उनकी पत्नी और सेना के 11 अन्य अधिकारी भी मारे गए.
तमाम एंकर एंकराओं की सोच का एक आयातित खांचा. यह खांचा मौजूदा सत्ताधारी राजनीति की तरफ से इन्हें मुफ्त में मिला है. अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए इन्हें किसी को गद्दार साबित करना होता है. अपने देश से प्यार करने के लिए पाकिस्तान से नफरत करना इसका अनिवार्य हिस्सा है. अपने धर्म से प्यार जताने के लिए किसी और के धर्म से नफरत करना इनके लिए सबसे जरूरी है.
बीते हफ्ते खबरिया चैनलों की दुनिया के बेताज बादशाह दीपक चौरसिया ने डार्क ह्यूमर या ब्लैक ह्यूमर का मुजाहिरा किया. मोटी मोटा इसका अर्थ होता है कि तब आप तनाव, गम या अवसाद की अवस्था में हों तब भी हंसने के लिए कुछ मौके निकल पाएं. उस गम पर भी हंस सकें. जब पूरा देश गमगीन था, कंधा झुका हुआ था, हौसले की जरूरत थी तब यह महत्वपूर्ण जिम्मा दीपक चौरसिया ने अपने कंधों पर थाम लिया. पूरे होशो हवास में उन्होंने जनरल बिपिन रावत को एक बेवड़े के अंदाज में श्रद्धांजलि देने का निर्णय किया.
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