Report

पराली प्रबंधन: केंद्र और पंजाब सरकार के बीच तकरार के चलते किसानों को नहीं मिल रहा लाभ

पंजाब के कुल 10.9 लाख से ज्यादा किसान परिवारों के बीच 33 फीसदी सीमांत और छोटे किसान (2 हेक्टेयर या 5 एकड़ तक) न सिर्फ कृषि उपज की लागत बढ़ने से त्रस्त हैं बल्कि पराली प्रबंधन के बोझ से भी परेशान हैं. एग्रीकल्चर सेंसस 2015-16 के मुताबिक पंजाब में 2 हेक्टेयर जमीन पर खेती-किसानी करने वाले कुल 361,850 किसान हैं जिन्हें पराली प्रबंधन के लिए प्रोत्साहन राशि दिए जाने की योजना खुद फंड की कमी के चलते बीते एक साल से बंद हो गई है.

पंजाब में पांच एकड़ तक वाले छोटे और सीमांत किसानों को पराली प्रबंधन के लिए 2500 रुपए प्रति एकड़ की मदद के लिए 2019 में राज्य सरकार की ओर से “असिस्टेंस टू फॉर्मर्स फॉर नान बर्निंग” नाम की योजना शुरू की गई थी. इस योजना के तहत पंजाब सरकार ने मार्च 2020 तक एक फीसदी से भी कम छोटे और सीमांत किसानों को लाभ दिया गया हालांकि, उसके बाद केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह योजना उलझकर रह गई और किसानों को इसका लाभ मिलना बंद हो गया है.

तीन बार लौटाया केंद्र ने प्रस्ताव, फंड की कमी

पंजाब के संयुक्त सचिव कृषि मनमोहन कालिया बताते हैं, "2019 से लेकर अब तक तीन बार केंद्र सरकार को छोटे और सीमांत किसानों को योजना के तहत 2500 रुपए प्रति एकड़ की मदद देने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है, लेकिन तीनों बार केंद्र की ओर से यह प्रस्ताव लौटा दिया गया है. हमारे पास फंड की कमी है ऐसे में योजना का लाभ किसानों को नहीं दिया जा रहा है."

2019 में 23 हजार किसानों को मिला था फायदा

2019 में जब सुप्रीम कोर्ट में पराली प्रबंधन का मामला पहुंचा था तब पंजाब सरकार ने यह कहा था कि सीमांत और छोटे किसानों को मशीनों की मदद के अलावा 2500 रुपए नगद राशि प्रति एकड़ की मदद दी जाए. उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक तौर पर कहा था कि आप यह काम शुरू करें और भारत सरकार से साझी मदद के लिए प्रस्ताव दें. इसके बाद 23 हजार किसानों (पांच एकड़ से कम वाले) के बीच 23 करोड़ रुपए की मदद राज्य सरकार ने बांटी थी लेकिन अब फंड की कमी की वजह से यह नहीं चल पा रही है.

किसानों ने कहा: एक पैसा नहीं मिला

अमृतसर के अजनाला तहसील में कोटला डूम गांव के किसान बच्चितर सिंह बताते हैं कि वह खुद पांच एकड़ खेत वाले किसान हैं. इसके अलावा किसान नौजनवान संघर्ष कमेटी के स्टेट प्रेसीडेंट भी हैं और उनसे 128 गांव के सदस्य जुड़े हुए हैं. किसी को भी आजतक पराली प्रबंधन के लिए मदद नहीं दी गई है. उन्होंने बताया कि 2019 में सभी ने इस लाभ के लिए योजना के तहत फॉर्म भरे थे.

वहीं, चिब्बा गांव के पांच एकड़ वाले किसान गुरुबचन सिंह ने कहा, "2019 में 2500 रुपए प्रति एकड़ लाभ के लिए कई छोटे किसानों ने अपनी जेब से पैसे लगाकर फॉर्म भरे तब तत्कालीन कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार थी. आजतक कोई लाभ नहीं मिला है."

किसान मांग रहे 6000 रुपए की मदद

वहीं, मौसम और डीजल की महंगाई की मार झेलने वाले किसान खेतों में पराली प्रबंधन के लिए किराए पर हैप्पी सीडर जैसी मशीनों का इस्तेमाल करने से परहेज कर रहे हैं. किसानों को पराली प्रबंधन के लिए हैप्पी सीडर का 2500 रुपए किराया देना पड़ता है. किसान बच्चितर सिंह के मुताबिक कम से कम दो बार जब खेतों में हैप्पी सीडर चलाया जाता है तब जाकर अच्छी बिजाई होती है. ऐसे में कम से कम 5000 हजार रुपए तक का खर्च किसानों को चाहिए.

पंजाब के संयुक्त सचिव कृषि मनमोहन कालिया बताते हैं, "इस वक्त कृषि लागत काफी बढ़ गई है और इसलिए किसान मशीनों का इस्तेमाल कम कर रहे हैं. करीब 15 हजार हैप्पी सीडर और 17 हजार सुपर सीडर मशीने राज्य में हैं. इनका इस्तेमाल करने के लिए लगातार जागरुकता फैलाई जा रही है."

पराली प्रबंधन में कम से कम 5000 रुपए प्रति एकड़ का खर्च

हालांकि किसानों के जरिए पराली की लागत उनपर बोझ बढ़ा रही है. पराली के लिए 6000 रुपए प्रति एकड़ की मांग करने वाले किसानों का कहना है कि 100 से ज्यादा किसानों के बीच एक हैप्पी सीडर मशीन है. ऐसे में उन्हें किराए पर लेने पर कम से कम प्रति एकड़ 5000 रुपए का खर्चा बैठता है. यदि किसान खुद से ट्रैक्टर चलाए तो खेतों में पांच बार ट्रैक्टर चलाना पड़ता है, जिसमें एक एकड़ में पांच लीटर तक का डीजल तेल खर्च हो जाता है. ऐसे में 2500 रुपए तक तो सिर्फ डीजल का खर्चा है. ट्रैक्टर चलाने का खर्चा भी यदि जोड़ दें तो 2000 रुपए अतिरिक्त लग जाते हैं. किसान पराली प्रबंधन के लिए यदि श्रमिकों को खेतों मे लगाए तो भी उसे 4000 रुपए तक प्रति एकड़ देना पड़ता है. ऐसे में किसी भी तरह से 4500 से 5000 रुपए तक किसानो को खुद लगकर खर्च करना पड़ता है.

किसान बच्चितर सिंह कहते हैं ऐसी स्थिति में हम पराली न जलाएं तो क्या करें. किसान पराली जलाएगा ही. वहीं सरकार के एक उच्च अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि चुनाव और आंदोलन के समय में पंजाब के किसानों को कौन पराली जलाने से रोक पाएगा. वैसे इस बार पराली जलाने में कमी आई है, आगे स्थिति बिगड़ सकती है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

Also Read: पार्ट 2:  पराली दहन की जड़ें हरित क्रांति से हैं जुड़ी

Also Read: कृषि कानूनों की वापसी के बीच किसान आंदोलन की चिंताएं