Opinion

कैसे कर सकते हैं दिल्ली की बर्बाद हवा पर आपात नियंत्रण

दिल्ली में फिर से एक बार दम घोटने वाली सर्दी शुरू हो चुकी है. पिछले कई सालों से हर सर्दी में प्रदूषण के दमघोटूं लहर की लगातार पुनरावृत्ति ने हमें दुखी कर दिया है. लेकिन किसी को इसकी परवाह नहीं है.

हर साल इसी तरह प्रदूषण का दौर आता है और चला जाता है. हम भी इस दौर के गुजरने के साथ ही इसकी पीड़ा को भूल जाते हैं. अगर हम अपनी पीड़ा को इसी तरह भूलते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम स्वच्छ हवा पाने के अपने अधिकार को खो देंगे. जानलेवा प्रदूषण की जिम्मेदारी एक दूसरे पर थोपने की चिल्लपों समाचार पत्रों की सुर्खियां जरूर बन सकती हैं लेकिन इससे आने वाली सर्दियों में प्रदूषण से राहत नहीं मिल सकती है.

अतः प्रदूषण से लड़ने के क्रम आगे बढ़ते हुए हमें तीन प्रश्नों को हमेशा ध्यान में रखना होगा. पहला, पिछले कई सालों से नवंबर का महीना दम घोटने वाला क्यों बना हुआ है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या हम इस समस्या के मूल कारणों से अनभिज्ञ हैं?

दूसरा, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अब तक क्या प्रयास किए गए हैं और यह सफल क्यों नहीं हो रहे हैं? तीसरा, ऐसा क्या प्रयास किया जाए जिससे हम प्रदूषकों के जहरीले स्तरों वाली हवा में सांस लेने से खुद को बचा सकें?.

प्रदूषण के कारणों को समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है. प्रदूषण स्थानीय रूप से उत्पन्न होता है, पड़ोसी राज्यों से आता है या इसके लिए यह दोनों कारक सम्मिलित रूप से जिम्मेदार हैं इसे आसानी से समझा जा सकता है.

उदाहरण के लिए इस सर्दी को ही लें. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के मेरे सहयोगियों ने दिवाली से एक दिन पहले यह आंकड़ा दिया कि इस बार हवा की गुणवत्ता पहले से बेहतर थी. उन्होंने इसके लिए देर से बारिश और हवा की अच्छी गति को जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद धूमधाम से दिवाली मनाई गई और पटाखे फोड़े गए. हालांकि, अगर हवा चलती रहती तो वायु की गुणवत्ता पर इनका प्रभाव बहुत कम पड़ता, लेकिन यही वह समय था जब देश में दो चक्रवातीय व्यवस्था टूट रही थी. इसके कारण दिल्ली सहित पूरे उत्तर भारत में एक प्रति-चक्रवतीय हवा के पैटर्न का निर्माण हुआ. स्थिर हवा के कारण दिवाली के कोहरे बिखर नहीं पाए साथ ही स्थानीय प्रदूषर्को का भी हवा में घुलना जारी रहा.

इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों से पराली जलाने से निकलने वाला धुआं आना शुरू हो गया. बारिश के कारण धान की कटाई में देरी हुई थी और किसान जल्दी से खेतों को खाली कर गेहूं की बुवाई के लिए तैयार करना चाहते थे इसलिए उन्होंने एक साथ ही खेतों में पड़ी पराली में आग लगा दी. इस प्रकार से प्रदूषकों का एक जहरीला कॉकटेल तैयार हो गया.

यहां एक बात स्पष्ट है कि खराब हवा के लिए कोई एक कारक जिम्मेदार नहीं है. साथ ही कौन सा कारक कितना जिम्मेदार है और इसके सटीक प्रतिशत आकलन पर विवाद करना भी व्यर्थ है.

शहरों में प्रदूषण के स्रोत क्या हैं इस पर उत्सर्जन सूची के नाम से दो मुख्य अध्ययन हमारे पास हैं. हालांकि, प्रतिशत आकलन में भिन्नता हो सकती है लेकिन इन अध्ययनों से कमोबेश इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्र, धूल और कचरा जलाना ही शहरी प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं.

साथ ही यह भी स्पष्ट है कि क्योंकि दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश और हरियाणा के पड़ोसी जिले एक ही वायु-आवरण (एयर शेड) के अंतर्गत आते हैं इसलिए इनके बीच प्रदूषकों का आवागमन होते रहता है.

अतः प्रदूषण प्रबंधन को एक सहकारी दृष्टिकोण की जरूरत है. यहां यह समझना सबसे जरूरी है कि प्रदूषण के लिए कोई अकेला कारक नहीं बल्कि सभी जिम्मेदार हैंय हमें कार्रवाई के एजेंडे को विकसित करने के लिए विभिन्न स्रोतों पर जानकारी चाहिए. हमें यह काम मिलजुल कर करना होगा. कार्रवाई की जिम्मेदारी एक दूसरे के ऊपर थोपने से काम नहीं चलेगा बल्कि सबको मिलजुल कर काम करना होगा.

साथ ही इस पर भी विचार करना होगा कि क्या किया जा चुका है और किए गए प्रयास काम क्यों नहीं कर रहे? आपको यह याद रखना चाहिए कि दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए बहुत सारे कदम उठाए गए हैं.

एक व्यापक और गतिशील एयर एक्शन प्लान भी इसमें शामिल है. इसमें प्रदूषण के एक विशेष स्रोत के खिलाफ कार्रवाई शामिल है क्योंकि इसके बारे में हमें अधिक जानकारी मिलती है. उदाहरण के लिए वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए हाल में की गई कार्रवाई ले सकते हैं. जैसे पहली पीढ़ी के वाहनों को संपीड़ित प्राकृतिक गैस में बदलने के साथ-साथ वाहन प्रौद्योगिकी और इंधन (बीएसVI) में सुधार किया गया. ट्रकों तथा भारी वाहनों जैसे सकल प्रदूषकों को शहर की सीमा में प्रवेश से रोकने के लिए भीड़-भाड़ कर (कंजेशन टैक्स) लगाया गया है. भारी वाहनों के लिए वैकल्पिक बाईपास प्रदान करने के लिए एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया गया है.

इसके अलावा सार्वजनिक परिवहन में सुधार के लिए भविष्य में मेट्रो के चौथे चरण को आंशिक रूप से मंजूरी दे दी गई है. साथ ही निजी परिवहन की आवश्यकता को कम करने के लिए पड़ोसी शहरों को जोड़ने वाले हाई स्पीड ट्रेन का निर्माण किया जा रहा है.

औद्योगिक क्षेत्रों में कोयले के उपयोग को खत्म करने के साथ-साथ कोयले से चलने वाले दिल्ली के आखिरी बिजली संयंत्र को भी बंद कर दिया गया है. हालांकि इसमें संदेह नहीं है कि तथाकथित अनधिकृत क्षेत्रों में तथा शहरी सीमा के आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों के हजारों छोटे बॉयलरों में कोयले का उपयोग जारी है.

लेकिन इससे पहले कि हम अगले कदमों के लिए जरूरी समस्याओं की सूची में जाएं आइए अब तक किए गए कार्यों के प्रभावों को समझने का प्रयास करते हैं.

पिछले कुछ वर्षों में ‘संतोषजनक’ हवा वाले दिनों की संख्या बढ़ गई है (2018 में 121 दिन से 2020 में 174 दिन). इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘गंभीर हवा’ वाले दिनों की संख्या में कमी आई है (2018 में 28 दिन से घटकर 2020 में 20 दिन). हालांकि यह पर्याप्त नहीं है.

लेकिन यह सच है कि हम प्रदूषण के वक्र (कर्व) को झुका रहे हैं. हमारी हवा साफ नहीं है लेकिन साल के कई दिनों में यह साफ रहती है.

हालांकि प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है ताकि- जब हवा की गति धीमी हो और ठंडी हवा जम जाए तब दिवाली से लेकर पराली के जलाने तक चलने वाले भयानक प्रदूषण के दौर में हम सुधार ला सकें और सुरक्षित रूप से सांस ले सकें.

वायु की गति तेज रहने पर वायु स्वतः स्वच्छ हो जाती है. लेकिन, तेज गति की अनुकूल परिस्थिति ना होने पर भी वायु में स्वतः स्वच्छ होने की क्षमता की आवश्यकता है. आइए हम वायु की इसी क्षमता पर फिर से चर्चा करें.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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