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गाजीपुर बॉर्डर: भीख नहीं हक मांग रहे हैं इसलिए 11-12 साल तक भी यहां रुक सकते हैं
विवादित कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन को एक साल पूरा हो गया है. बता दें कि आंदोलनकारी किसान 26 और 27 नवंबर को ही दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे थे. तभी से किसान दिल्ली के अलग-अलग बार्डर पर आंदोलन कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के ऐलान के बाद भी किसान आंदोलन खत्म करने के लिए तैयार नहीं हैं. किसानों का कहना है कि जब तक उनकी सभी मांगे नहीं मान ली जाएंगी तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा.
कंडेला खाप के टेकराम कंडेला जब से आंदोलन की शुरुआत हुई है तब से गाजीपुर बार्डर पर सरकार के खिलाफ धरना दे रहे हैं. वह न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानूनों की वापसी काफी देरी से की है. इस दौरान हमारे 700 से ज्यादा किसानों की मौत हो गई. अभी हम वापस नहीं जाएंगे, हमारी सभी मांगों को माना जाए तभी हम वापस जाएंगे.”
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से गाजीपुर बार्डर पर आए 45 साल के कुलदीप सिंह कहते हैं, “अभी तक सरकार ने सिर्फ तीनों काले कृषि कानूनों को ही वापस लिया है. अभी एमएसपी पर भी कानून बनना है. एक साल बाद पीएम मोदी कुछ बोले हैं, अभी यह आंदोलन खत्म नहीं होगा.”
एक साल पूरा होने पर देशभर से किसान तीनों बार्डर (गाजीपुर,सिंघु और टिकरी) पर आ रहे हैं. साथ ही यहां मीडिया का भी जमावड़ा देखने को मिला.
कुलदीप सिंह आगे कहते हैं, "लोकतंत्र को बचाने के लिए आप को अपना संघर्ष करना पड़ेगा और इन चोरों से देश को बचाने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ेगा. यह तीनों लोगों की सरकार है. बीजेपी की सरकार होती तो अभी तक कानून कब के वापस हो जाते. यह कॉर्पोरेट की सरकार है. जितना बीजेपी के नेता नहीं बोले उससे ज्यादा हमारे खिलाफ गोदी मीडिया वालों ने बोला है. अगर हमारी मीडिया अच्छी होती तो आंदोलन इतने दिन नहीं चलता."
शाहजहांपुर से आए 48 वर्षीय किसान जरनैल सिंह लाडी पीएम मोदी के उस बयान पर खफा नजर आते हैं, जिसमें पीएम ने कहा था कि हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए. जरनैल सिंह कहते हैं, “पहली बात तो यह है कि किसान छोटा या बड़ा नहीं होता, यह उनकी सोच का फर्क है. हमारे आंदोलन में देशभर के किसान शामिल हैं. हर राज्य से किसान आए हैं, कोई एक-दो राज्य से किसान नहीं आए है.”
मेरठ से आए नरेश गुर्जर मावी गाजीपुर बॉर्डर पर कई मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहते हैं, “हमारी सभी मांगे मान ली जाएगी तो हम तुरंत चले जाएंगे वर्ना 2024 तक यही रहेगें. उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी जाने वाली है. कानून वापसी से कोई फर्क नहीं पडे़गा.”
मीडिया द्वारा यह पूछे जाने पर कि किसान कब जाएंगे इस पर नरेश गुर्जर कहते हैं, “मीडिया वाले तो बिके हुए हैं. यहां क्या हम उनके घर से खा रहे हैं. हम किसान अपना पैदा किया हुआ अन्न खा रहे हैं, न तो हमें मोदी और न ही योगी खाना दे रहे हैं. यह सवाल तो मीडिया को सरकार से करना चाहिए कि किसान घर क्यों नहीं जा रहे हैं.”
75 वर्षीय अभय राम कंडेला भी गाजीपुर बॉर्डर पर एक साल से बैठे हैं. वह बीच-बीच में अपने घर जाते रहते हैं लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. वह कहते हैं, “बच्चों के भविष्य के लिए यहां बैठे हैं. हम अगर आंदोलन में मर भी गए तो आने वाली पीढ़ी के लिए तो कुछ करके जाएंगे. ताकि वे हमें याद रखें. यह सरकार हम पर जुल्म ढा रही है. हमारी सभी मांगों को नहीं मान रही है. जब तक हमारी सभी मांगें नहीं मानी जाएंगी तब तक हम यहां से हिलने वाले नहीं हैैं."
रामपुर निवाली 45 वर्षीय उमेश आंदोलन में सातवीं बार आए हैं और जब भी आते हैं तो 15 से 20 दिन तक रुककर जाते हैं. वह कहते हैं, “मेरे पास जमीन कम है लेकिन मैं फिर भी आंदोलन में आता हूं. आज महंगाई आसमान छू रही है. बाजार में निकलने से पहले 10 बार सोचना पड़ता है. यह सरकार न किसानों की सुन रही है न गरीब आदमी की. यह सरकार हर मामले में फेल है. भले ही सरकार ने कानूनों को वापस लेने की बात कह दी हो लेकिन सवाल यह है कि आंदोलन में बैठे किसानों का एक साल कौन लौटाएगा. यहां जो 700 से ज्यादा लोग मरे हैं उनकी जिम्मेदारी कौन लेगा. दूसरी बात जब तक किसानों की सभी बातें नहीं मान ली जाती हैं तब तक यहां से कोई भी किसान आंदोलन छोड़कर नहीं जाएगा."
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