Report
भारत में कुपोषण का संकट और गहराया, देशभर में 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित
कुपोषण भारत की गम्भीरतम समस्याओं में एक है फिर भी इस समस्या पर सबसे कम ध्यान दिया गया है. आज भारत में दुनिया के सबसे अधिक अविकसित (4.66 करोड़) और कमजोर (2.55 करोड़) बच्चे मौजूद हैं. इसकी वजह से देश पर बीमारियों का बोझ बहुत ज्यादा है, हालांकि राष्ट्रीय परिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते है कि देश में कुपोषण की दर घटी है लेकिन न्यूनतम आमदनी वर्ग वाले परिवारों में आज भी आधे से ज्यादा बच्चे (51%) अविकसित और सामान्य से कम वजन (49%) के हैं.
कुपोषण पर ताजा सरकारी आंकड़े दिखा रहे हैं कि भारत में कुपोषण का संकट और गहरा गया है. इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से आधे से ज्यादा यानी कि 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं. इस बात की जानकारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में दी है. मंत्रालय ने समाचार एजेंसी पीटीआई द्वारा एक आरटीआई के जवाब में कहा कि यह 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों का संकलन है.
देश में कुल 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं. मंत्रालय का अनुमान है कि कोरोना महामारी से गरीब से गरीब व्यक्ति में स्वास्थ्य और पोषण संकट और बढ़ सकता है. इस पर चिंता जताते हुए मंत्रालय ने कहा कि 14 अक्टूबर 2021 तक भारत में 17.76 लाख बच्चे अत्यंत कुपोषित (एसएएम) और 15.46 लाख बच्चे अल्प कुपोषित (एसएएम) थे. ये आंकड़े अपने आप में खतरनाक हैं, लेकिन पिछले नवंबर के आंकड़ों से तुलना करने पर ये और भी ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं. दोनों साल के आंकड़ों में एक बड़ा फर्क यह है कि पिछले साल छह महीनों से छह साल की उम्र तक के गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या केंद्र ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लेकर सार्वजनिक की थी. इस साल ये आंकड़े सीधे पोषण ट्रैकर से लिए गए हैं, जहां आंगनवाड़ियों ने खुद ही इनकी जानकारी दी थी.
एक फर्क और है- इस साल के आंकड़ों में बच्चों की उम्र के बारे में नहीं बताया गया है, हालांकि कुपोषण को लेकर परिभाषाएं वैश्विक हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गंभीर रूप से कुपोषित (एसएएम) बच्चे वो होते हैं जिनका वजन और लंबाई का अनुपात बहुत कम होता है या जिनकी बांह की परिधि 115 मिलीमीटर से कम होती है. इससे एक श्रेणी नीचे यानी अत्यधिक रूप से कुपोषित (एमएएम) बच्चे वो होते हैं जिनकी बांह की परिधि 115 से 125 मिलीमीटर के बीच होती है. दोनों ही अवस्थाओं का बच्चों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर होता है. एसएएम अवस्था में बच्चों की लंबाई के हिसाब से उनका वजन बहुत कम होता है. ऐसे बच्चों का इम्यून सिस्टम भी बहुत कमजोर होता है और किसी गंभीर बीमारी होने पर उनके मृत्यु की संभावना नौ गुना ज्यादा होती है. एमएएम अवस्था वाले बच्चों में भी बीमार होने की और मृत्यु की संभावना ज्यादा रहती है.
महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, असम और तेलंगाना में भी कुपोषित बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है. भारत के लिए सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि दुनिया के सबसे जाने माने शहरों में गिनी जाने वाली राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी एक लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं.
नवंबर 2020 और 14 अक्तूबर 2021 के बीच एसएएम बच्चों की संख्या में 91 प्रतिशत की वृद्धि देखी गयी है, जो अब 9,27,606 (9.27 लाख) से बढ़कर 17.76 लाख हो गयी है. पोषण ट्रैकर के हवाले से आरटीआई के जवाब के मुताबिक महाराष्ट्र में कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक 6.16 लाख दर्ज की गयी, जिसमें 1,57,984 बच्चे अल्प कुपोषित और 4,58,788 बच्चे अत्यंत कुपोषित थे. इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर बिहार है जहां 4,75,824 लाख कुपोषित बच्चे हैं. तीसरे नंबर पर गुजरात है, जहां कुपोषित बच्चों की कुल संख्या गुजरात में कुल 3.20 लाख है. इनमें 1,55,101 (1.55 लाख) एमएएम बच्चे और 1,65,364 (1.65 लाख) एसएएम बच्चे शामिल हैं.
अगर अन्य राज्यों की बात करें तो, आंध्र प्रदेश में 2,67,228 बच्चे (69,274 एमएएम और 1,97,954 एसएएम) कुपोषित हैं. कर्नाटक में 2,49,463 बच्चे (1,82,178 एमएएम और 67,285 एसएएम) कुपोषित हैं. उत्तर प्रदेश में 1.86 लाख, तमिलनाडु में 1.78 लाख, असम में 1.76 लाख और तेलंगाना में 1,52,524 लाख बच्चे कुपोषण के शिकार हैं.
बच्चों के कुपोषण के मामले में नयी दिल्ली भी पीछे नहीं है. राष्ट्रीय राजधानी में 1.17 लाख बच्चे कुपोषित हैं. बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 46 करोड़ से अधिक बच्चे हैं.
इसके अलावा ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर भी भारत का स्थान और नीचे गिरा है. 116 देशों में जहां 2020 में भारत 94वें स्थान पर था, वहीं 2021 में वह गिर कर 101वें स्थान पर पहुंच गया है. भारत अब अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हो गया है. यह बेहद चिंताजनक है.
(साभार- जनपथ)
Also Read: कोविड-19 ने भारत को कुपोषण की ओर धकेला
Also Read
-
A massive ‘sex abuse’ case hits a general election, but primetime doesn’t see it as news
-
‘Vote after marriage’: Around 70 lakh eligible women voters missing from UP’s electoral rolls
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
The Cooking of Books: Ram Guha’s love letter to the peculiarity of editors
-
‘Need to reclaim Constitution’: The Karnataka civil society groups safeguarding democracy