Report
त्रिपुरा में एक मस्जिद जलाई गई, लेकिन पुलिस उसे सिर्फ एक 'प्रार्थना कक्ष' बता रही है
क्या मस्जिद और प्रार्थना कक्ष अलग होते हैं? क्या एक मस्जिद जो उपयोग में न हो मस्जिद बनी रहती है? यह सवाल त्रिपुरा पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अक्टूबर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में जारी बयानों के मद्देनजर उत्पन्न हुए हैं.
गृह मंत्रालय ने 13 नवंबर को एक बयान में कहा, "ऐसी खबरें प्रसारित हो रही हैं कि त्रिपुरा में गोमती जिले के काकराबन इलाके में एक मस्जिद में तोड़फोड़ हुई है और उसे क्षतिग्रस्त कर दिया गया है... यह खबरें फर्जी हैं और तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करती हैं."
बयान में कहा गया कि 'हाल के दिनों में त्रिपुरा में किसी भी मस्जिद को नुकसान पहुंचाने का कोई मामला सामने नहीं आया है'.
हालांकि दो एफआईआर और जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी कहती हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने 19 से 26 अक्टूबर के बीच त्रिपुरा में क्षतिग्रस्त हुई कम से कम तीन मस्जिदों का दौरा किया- दो उत्तरी त्रिपुरा जिले की पनिसागर उपखंड में, और एक गोमती जिले के काकराबन उपखंड में हैं, जिनका गृह मंत्रालय के बयान में सीधे तौर पर उल्लेख है.
इन ढांचों के जले हुए अवशेषों के अलावा, त्रिपुरा पुलिस द्वारा दर्ज की गईं एफआईआर से भी यह पता चलता है कि अक्टूबर में 'अज्ञात बदमाशों' ने दो मस्जिदों में तोड़फोड़ की और उन्हें जला दिया. एक पनिसागर में और दूसरी काकराबन में. दोनों घटनाएं आधी रात को हुईं और उनके बीच 48 घंटे का अंतर था.
जैसा कि स्थानीय उपासकों ने भी बताया, दोनों एफआईआर में कहा गया है कि यह ढांचे मस्जिद के हैं जो उपयोग में हैं. यह त्रिपुरा पुलिस के नए दावों के विपरीत है कि वह अब उपयोग में नहीं थे, या केवल 'प्रार्थना कक्ष' थे.
दरगाह बाजार मस्जिद, काकराबन, गोमती
अगरतला से 60 किलोमीटर दूर काकराबन के हुरिजाला गांव के निवासियों ने बताया कि 20 अक्टूबर की सुबह उन्होंने जो दृश्य देखे वह विचलित करने वाले थे. दरगाह बाजार मस्जिद, जिसका नाम पास के बाजार के नाम पर रखा गया था, कथित तौर पर आग की लपटों में घिरी हुई थी.
ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें राकेश मियां नाम के एक व्यक्ति ने इस बारे में बताया, जिनका घर मस्जिद से 40 गज की दूर है. उन्होंने कहा कि सुबह 4 बजे तक पुलिस मौके पर पहुंची और दमकल की एक गाड़ी ने आग पर काबू पा लिया. लेकिन आग ने पूरी तरह एस्बेस्टस से बनी हुई मस्जिद को काफी नुकसान पहुंचाया.
उसी शाम काकराबन पुलिस थाने ने इस मामले में एक प्राथमिकी दर्ज की, जिसे न्यूज़लॉन्ड्री ने देखा है. यह एफआईआर क्रमांक 74/2021 राकेश मियां के पिता रहमत अली द्वारा दर्ज कराई गई.
प्राथमिकी में राकेश मियां का उल्लेख करते हुए कहा गया है, "मामले का तथ्य है' कि वह 'शौच के लिए घर से बाहर गए थे' और उन्होंने 'देखा कि शिकायतकर्ता के घर के सामने स्थित दरगाह बाजार मस्जिद के अंदर आग लगी है."
प्राथमिकी में आगे कहा गया है कि यह देखते ही राकेश मियां शोर मचाने लगे और 'उनके परिवार के अन्य सदस्यों के साथ-साथ स्थानीय लोग भी वहां आ गए और आग बुझाने की कोशिश की'. 'उन्होंने काकराबन के दमकल सेवा को बुलाया' जो बाद में मौके पर पहुंचे और 'आग पर काबू किया'.
एफआईआर में ढांचे की स्थिति भी बताई गई है, "आग की घटना के कारण, उक्त मस्जिद का एक हिस्सा और सारा सामान पूरी तरह जल गया."स्थानीय लोगों ने बताया कि दरगाह बाजार मस्जिद 18 साल पहले बनी थी
इसके पीछे कौन था? 'शिकायतकर्ता ने यह भी कहा कि उन्हें नहीं पता कि उक्त मस्जिद में आग लगाने की घटना में कौन शामिल था.'
हुरिजाला के रहने वाले 37 वर्षीय मिजानुर रहमान ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यह मस्जिद 18 साल पहले बनी थी और रोज की नमाज के लिए इस्तेमाल की जाती थी, लेकिन वहां जुमे की नमाज नहीं होती थी. उन्होंने कहा, "यह गांव बहुत बड़ा है. स्थानीय जामा मस्जिद कई किलोमीटर दूर है, वहां तक पैदल चलकर जाने में कुछ घंटे लगते हैं. हम वहां केवल शुक्रवार को ही जाते हैं. बाकी दिनों में नमाज के लिए हम इस मस्जिद का इस्तेमाल करते थे। इसलिए इसे बनाया गया था."
हुरिजाला के ग्राम प्रधान और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बहार मियां को रफीक मियां नाम के एक व्यक्ति ने तड़के दो बजे आग लगने की सूचना दी. रफीक मियां मस्जिद कमेटी के सदस्य हैं. “किसी ने जरूर मस्जिद में आग लगाई होगी. वहां कोई स्थायी बिजली कनेक्शन नहीं है और न ही वह किसी अन्य ढांचे से घिरा हुआ है. निश्चित रूप से इस घटना के पीछे कोई है," उन्होंने कहा.
इस हफ्ते की शुरुआत में त्रिपुरा पुलिस ने समाचार वेबसाइट एचडब्ल्यू न्यूज़ से जुड़ी दो पत्रकारों- समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा को यह कहने के लिए गिरफ्तार किया कि मस्जिद के अंदर कुरान की एक प्रति जला दी गई थी.
बहार मियां ने कहा कि उन्होंने भी जले हुए पन्ने देखे थे. उन्होंने बताया कि 'दिल्ली से आए कुछ अधिवक्ता उन हिस्सों को ले गए'.
हुरिजाला में करीब 900 परिवार हैं, जिनमें 150 मुस्लिम हैं. बहार के मुताबिक स्थानीय बाजार से गुजरने वाले व्यापारियों के अलावा करीब 70 से 80 परिवार इस मस्जिद का इस्तेमाल करते हैं.
काकराबन के अनुमंडल पुलिस अधिकारी ध्रुबा नाथ ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पुलिस ने अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं की है. उन्होंने कहा, "हम जांच की प्रक्रिया में हैं. हमें ठोस सबूत मिलने चाहिए. स्थानीय लोग हमारी मदद कर रहे हैं.”
"यह मूल रूप से एक प्रार्थना कक्ष है," नाथ ने कहा. "मुख्य मस्जिद एक किलोमीटर दूर है."
नाथ की टिप्पणी दर्शाती है कि त्रिपुरा पुलिस ने किस प्रकार हिंसा पर बात करने की रणनीति बदल ली है.
13 नवंबर को गृह मंत्रालय के बयान के बाद से ही पुलिस दरगाह बाजार मस्जिद को 'प्रार्थना कक्ष' कह कर संबोधित कर रही है.
14 नवंबर को जब पुलिस ने एचडब्ल्यू न्यूज़ की दो पत्रकारों को मस्जिद की घटना पर सोशल मीडिया पोस्ट के लिए हिरासत में लिया, तो उनकी प्रेस विज्ञप्ति ने ढांचे को 'आधा जला हुआ प्रार्थना कक्ष' बताते हुए कहा कि वह 'शरारती तत्वों द्वारा लगाई आग से क्षतिग्रस्त हो गया'.
जबकि मामले के संबंध में तीन सप्ताह पहले दर्ज की गई प्राथमिकी में ढांचे को एक 'मस्जिद' बताया गया है, जैसा कि वहां इबादत करने वाले स्थानीय लोगों ने भी कहा.
हालांकि, त्रिपुरा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि प्राथमिकी में लिखी बातें शिकायतकर्ता के शब्दों पर आधारित थीं, और इसे पुलिस द्वारा स्वीकृति के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए.
उन अधिकारी ने कहा कि 'प्रार्थना कक्ष' में लगी आग में इस्लाम की पवित्र पुस्तक नहीं जली थी. उन्होंने कहा, "स्थानीय लोग आपको भ्रमित और गुमराह कर रहे हैं. आपको उनसे पूछना चाहिए कि असली मस्जिद कहां है. वह कुछ दूरी पर स्थित है और वहीं पर जुमे की नमाज होती है. यह केवल एक प्रार्थना कक्ष है."
'मनमाना' भेद
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस्लाम के विद्वानों से मस्जिद और प्रार्थना कक्ष के इस कथित भेद पर उनकी राय मांगी. "यह जरूरी नहीं है कि हर मस्जिद में जुमे की नमाज हो," दिल्ली में कश्मीरी गेट स्थित शिया जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अली मोहसिन तकवी ने कहा, "ऐसी कई मस्जिदें हैं जहां जुमे की नमाज नहीं होती लेकिन वह फिर भी मस्जिदें हैं. एक मस्जिद को मस्जिद होने के लिए गुंबद और मीनारों की भी जरूरत नहीं होती है."
जमात-ए-इस्लामी हिंद में शरिया काउंसिल के सचिव मुहम्मद रजीउल इस्लाम नदवी ने कहा कि मस्जिदें दो प्रकार की होती हैं. "जामा मस्जिदों के विपरीत, छोटी मस्जिदों में आमतौर पर जुमे की नमाज नहीं होती है," उन्होंने कहा.
"यह कहना गलत है कि वह मस्जिदें नहीं हैं. पुलिस द्वारा एक मस्जिद और एक प्रार्थना कक्ष के बीच मनमाने तौर पर अंतर किया जा रहा है. भले ही किसी मस्जिद में जुमे की नमाज नहीं होती हो, फिर भी वह मस्जिद ही होती है," उन्होंने कहा.
पनिसागर जामा मस्जिद, उत्तरी त्रिपुरा
उत्तरी त्रिपुरा के पनिसागर में एक और मस्जिद, जिसे पनिसागर जामा मस्जिद कहा जाता है, अब कालिख से ढकी है; अवशेष के रूप में केवल इसकी काली छत और जले हुए फर्नीचर बचे हैं.
स्थानीय लोगों का आरोप है कि काकराबन की मस्जिद की तरह पनिसागर जामा मस्जिद को जो शहर के रीजनल कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन (आरसीपीई) के बगल में स्थित है- 21-22 अक्टूबर की रात में जला दिया गया था. यह घटना उस विहिप रैली के पांच दिन पहले घटी जिसके बाद पास के चमटीला गांव की एक और मस्जिद में तोड़फोड़ की गई और रोवा बाजार की दो दुकानों में आग लगा दी गई थी.
इस मामले में 11 नवंबर को एफआईआर दर्ज कराई गई जिसे न्यूज़लॉन्ड्री ने देखा. प्राथमिकी में कहा गया है, 'मामले का तथ्य संक्षेप में यह है कि 21/10/2021 की रात किसी समय कुछ अज्ञात बदमाशों ने पनिसागर टाउन जामा मस्जिद में तोड़फोड़ की. बदमाशों ने कई कीमती सामान भी जला डाले. अगले दिन 22/10/2021 को जब शिकायतकर्ता मौके पर पहुंचे तो उन्होंने यह सब कुछ देखा.'
इसमें प्राथमिकी दर्ज कराने में देरी पर सफाई देने की भी कोशिश की गई है. "शिकायतकर्ता ने कहा कि मस्जिद समिति के सदस्यों से उनकी सहमति लेने हेतु बातचीत के कारण पीएस (थाने) में शिकायत दर्ज कराने में देरी हुई."
इस मामले में शिकायतकर्ता अब्दुल बासित हैं. न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि वह मस्जिद कमेटी के सचिव हैं. उन्होंने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से मना कर दिया.
हालांकि, मस्जिद समिति के एक अन्य सदस्य ने स्थानीय अधिकारियों के 'हमले' के डर से नाम न छापने की शर्त पर दावा किया कि बासित ने शिकायत 23 अक्टूबर को दर्ज की थी जिसे न्यूज़लॉन्ड्री ने भी देखा, लेकिन पुलिस ने शिकायत के प्रारूप में त्रुटियों का हवाला देते हुए उसे दर्ज करने में 'देरी' की.
न्यूज़लॉन्ड्री को यह भी पता चला कि इस आगजनी का पहला चश्मदीद एक हिंदू व्यक्ति था, जिसने 22 अक्टूबर की सुबह मस्जिद समिति के एक सदस्य को कथित तौर पर इस बारे में आगाह किया.
हालांकि, उपर्युक्त वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि मस्जिद अब 'उपयोग में नहीं है' और वहां केवल 'नशेड़ी' जाते हैं. "वह छोटी स्तर की आग थी जो शायद इन्हीं नशेड़ियों की वजह से लगी होगी," उन्होंने कहा. "हमें स्थानीय अग्निशमन विभाग तक में अलर्ट नहीं मिला."
दो उपासकों ने इस दावे का खंडन किया और कहा कि हर शुक्रवार को एक दर्जन लोग मस्जिद में नमाज अदा करते हैं. उनका कहना था कि मस्जिद की एक कार्यात्मक समिति भी है जो ढांचे की देखभाल करती है.
इस दावे के समर्थन में उन्होंने 18 जनवरी, 2021 को मस्जिद के अध्यक्ष और सचिव को पनिसागर के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया एक ज्ञापन दिखाया. यह दस्तावेज 'सरकारी खास भूमि/सार्वजनिक परिसरों पर बनाए गए अनधिकृत धार्मिक संरचनाओं को विस्थापित करने/हटाने' से संबंधित था. उसमें चार मंदिरों और 'आरसीपीई कॉलेज के पास की मस्जिद' को सूचीबद्ध किया गया था.
मस्जिद कमेटी ने 20 जनवरी 2021 को एसडीएम के ज्ञापन का जवाब देते हुए कहा था कि मस्जिद का निर्माण सीआरपीएफ के जवानों ने 1982 में किया था. स्थानीय उपासकों के अनुसार 1999 के आसपास जब वह 'लौट रहे थे तो मुस्लिम सीआरपीएफ जवानों ने मस्जिद को स्थानीय मुसलमानों को सौंप दिया था', समिति ने जवाब में कहा था.
“धीरे-धीरे, उक्त मस्जिद पनिसागर अनुमंडल जुम्मा मस्जिद बन गई. उपमंडल के विभिन्न कोनों से एसडीएम और अन्य कार्यालयों में आने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग इस मस्जिद में नमाज अदा करते हैं... कभी-कभी आरसीपीई कॉलेज के प्रोफेसर और छात्र और बीएसएफ के जवान भी नमाज अदा करने आते हैं," जवाब में कहा गया.
जहां एक ओर इससे पता चलता है कि मस्जिद 'परित्यक्त' नहीं थी, पुलिस ने आधिकारिक बयानों में इसे उजागर न करने के लिए अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया.
‘उत्तरी त्रिपुरा के पनिसागर में कल विरोध प्रदर्शन के दौरान कोई मस्जिद नहीं जलाई गई,’ त्रिपुरा पुलिस ने 27 अक्टूबर को ट्वीट किया. 'मस्जिद जलाने या क्षतिग्रस्त होने या लाठी आदि के संग्रह की जो तस्वीरें शेयर की जा रही हैं सब फर्जी हैं और त्रिपुरा की नहीं हैं.'
त्रिपुरा के पुलिस महानिरीक्षक सौरभ त्रिपाठी ने 28 अक्टूबर को एएनआई को बताया, "जो वीडियो और तस्वीरें फैलाई जा रही हैं उनका पनिसागर की घटना से कोई संबंध नहीं है."
इन बयानों में यह नहीं कहा गया है है कि कोई मस्जिद जलाई ही नहीं गई, बल्कि या दावा किया गया है कि 26 अक्टूबर को विहिप की रैली के दौरान कोई मस्जिद नहीं जलाई गई.
जामा मस्जिद में आग रैली से पांच दिन पहले 21 अक्टूबर को लगाई गई थी.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस संबंध में गृह मंत्रालय को प्रश्न भेजे हैं. अगर उनकी कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
Also Read
-
Decoding Maharashtra and Jharkhand assembly polls results
-
Adani met YS Jagan in 2021, promised bribe of $200 million, says SEC
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
What’s Your Ism? Kalpana Sharma on feminism, Dharavi, Himmat magazine
-
महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजों का विश्लेषण