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एनएल चर्चा 192: कृषि कानूनों की वापसी और वीर दास पर विवाद
एनएल चर्चा के इस अंक में प्रधानमंत्री द्वारा कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा, स्टैंडअप कॉमेडियन वीर दास की कविता पर विवाद, दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण, पंजाब में किसानों पर पराली जलाने के लिए दर्ज मामले, पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का उद्घाटन, करतारपुर कॉरिडोर, जम्मू कश्मीर में एनकाउंटर और त्रिपुरा में दो पत्रकारों की गिरफ्तारी इस हफ्ते की चर्चा के मुख्य विषय रहे.
इस बार चर्चा में बतौर मेहमान वरिष्ट पत्रकार निधीश त्यागी मौजूद रहे. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस और सह संपादक शार्दूल कात्यायन भी चर्चा में शामिल हुए. चर्चा का संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत अतुल ने कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा और किसान आंदोलन से किया. वे कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि किसानों ने एक आंदोलन किया और बहुत आसानी से उन्हें सफलता मिल गई. किसानों ने इन क़ानूनों की वापसी के लिए एक बड़ी क़ीमत चुकाई है."
अतुल सवाल करते हुए कहते हैं, "इसमें कोई शक नहीं कि इन कानूनों की वापसी के पीछे राजनीतिक हित भी शामिल हैं. पंजाब में किस तरह से राजनीति करवट ले रही है, उत्तर प्रदेश में किस तरह के संदेश आ रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाक़ा इस नज़रिये से काफी महत्वपूर्ण है, लकीमपुर खीरी की घटना से भी कई सबक मिले हैं. तो इन क़ानूनों की वापसी का पंजाब और यूपी के लिए क्या संदेश हो सकता है?"
इस सवाल पर निधीश कहते हैं, "पहले तो हमें यह मानना चाहिए कि जो सत्याग्रह है चाहे किसानों का हो या शाहीन बाग़ का वह काम करता है. उसके आगे आप कितना भी दादागीरी कर लें. भले ही सरकार के मुंह से यह ध्वनि बार-बार निकलती है कि उखाड़ लो क्या उखाड़ लोगे. हमें जो करना है हम करेंगे. प्रधानमंत्री का जो भाषण था, वह यही कहते हैं कि हमारी तो नीयत अच्छी थी हमारे इरादे शुभ थे और ठीकरा किसानों पर फोड़ा कि तुम मूर्ख हो. मैंने तो बहुत समझाने का प्रयास किया, तुम ही नहीं समझ पाए. और समझाने का तरीक़ा तो हम देख ही रहे थे. किसी ने कहा सर फोड़ दो, किसी ने किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी समझाने के लिए."
नीधीश आगे कहते हैं, "यह राजनीतिक समीकरण बैठाने का प्रयास तो है ही. हमने देखा था कि पिछले चुनावों में पश्चिम उत्तर प्रदेश में कैसे जाट-मुसलमान आपस में लड़ रहे थे. हालांकि दोनों ही किसानी के बैकग्राउंड से आते हैं. इसका असर भी हुआ. इस बार वो दोनों एक हो गए और अब बीजेपी के जो लोग हैं उनका अपने ही गांव में जाना आसान नहीं रहा. पंजाब के लिहाज से देखें तो यह अमरिंदर सिंह के लिए लांच पैड है. इसका असर कितना होगा यह नवंबर के अंत या दिसंबर तक सामने आएगा. मुझे ऐसा लगता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह ख़ासा धीमी आंच में पकता हुआ गुस्सा है."
इस मुद्दे पर मेघनाद कहते हैं, "अभी काफी नुकसान हो चुका है, किसानों का गुस्सा है कि एक साल तक सरकार ने उन्हें सुना नहीं और जैसे ही चुनाव आ गए तब उन्होंने फैसला ले लिया. इसका असर पड़ेगा. प्रधानमंत्री ने यह ज़रूर कहा कि आप लोग घर चले जाइये लेकिन राकेश टिकैत के बयान का संदेश साफ है कि आंदोलन अभी जारी रहेगा. जब संसद में कानून वापस होगा तभी वापसी होगी.”
मेघनाद आगे कहते हैं, "यह एक स्मार्ट चाल चली है सरकार ने क्योंकि जो शीत सत्र संसद का अभी शुरू होने वाला है उसमें हंगामा होने वाला था. पिछला सत्र इसी वजह से वाश आउट हो गया था. विपक्ष को इसमें काफी मौक़ा मिल रहा था सरकार को घेरने का. लखीमपुर की जो घटना हुई उसकी वजह से और 26 नवंबर को किसान आंदोलन का एक साल पूरा होने पर भी बड़ी तैयारियां चल रही थीं. आने वाले समय में काफी चीज़ें होने वाली थीं इसलिए यह फैसला लिया गया है."
इस विषय पर शार्दूल कहते है, “आवाज को दबाया नहीं जा सकता. जबकि इतने लोग पुरजोर तरीके से कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे है. यह 700 लोग नहीं मरते अगर सरकार का मिजाज सभी को डंडे के हांकने का नहीं होता, तो यह नौबत ही नहीं आती.”
कृषि कानूनों की वापसी के अलावा वीर दास की विवादित कविता और भारत की छवि पर भी विस्तार से चर्चा हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइमकोड
00:00 इंट्रो
1:55- 6:10 हेडलाइंस
6:30- 34:32 कृषि कानून और किसान आंदोलन
34:35- 1:02:30 वीर दास और दो भारत
1:02:31 - सलाह और सुझाव
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पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए.
शार्दुल कात्यायन
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निधीश त्यागी
ऐने एपलियम की किताब - ट्विलाइट ऑफ डेमोक्रेसी
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शुक्रवार शाम के प्राइम टाइम और शनिवार सुबह अख़बारों की हेडलाइंस
अतुल चौरसिया
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हरिशंकर परसाई की किताब पगडंडियों का ज़माना
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प्रोड्यूसर- लिपि वत्स
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह /तस्नीम फातिमा
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