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बाल विवाह के चलते हर साल हो रही है 22 हजार से ज्यादा बच्चियों की मौत
पश्चिम बंगाल में रहने वाली अमीना जब 15 साल की थीं तब कोविड-19 के कारण किए लॉकडाउन में उनके पिता की नौकरी चली गई. ऐसे समय में अपने परिवार को पालने की जद्दोजहद के बीच उन्हें अमीना के विवाह का प्रस्ताव मिला. वो मान गए क्योंकि इस शादी से मिलने वाला पैसा उनकी बहुत सारी वित्तीय समस्याओं को हल कर सकता था.
हालांकि अमीना की मां के विरोध के बाद वो इस प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए राजी हो गए. आज अमीना स्कूल जाती हैं और अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं. पर सबकी किस्मत अमीना जैसी नहीं होती, उस जैसी न जाने कितनी बच्चियों की बचपन में ही शादी कर दी जाती है.
हाल ही में अंतराष्ट्रीय संगठन सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी नई रिपोर्ट 'ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021' से पता चला है कि बचपन में ही विवाह हो जाने के कारण हर साल करीब 22 हजार से ज्यादा बच्चियों की जान जा रही है, जिसका मतलब है कि बाल विवाह हर रोज 60 से ज्यादा बच्चियों की जान लील रहा है.
इनमें से ज्यादातर जानें बचपन में ही गर्भावस्था और प्रसव का बोझ ढोने के कारण हो रही हैं, क्योंकि छोटी उम्र में बच्चियों को इससे जुड़ी स्वास्थ्य संबंदी जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है, जबकि देखा जाए तो उस उम्र में उनका शरीर इसके लिए तैयार नहीं होता है.
यदि बाल विवाह के चलते बच्चियों की होने वाली मौत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो दुनिया में सबसे ज्यादा जाने मध्य और पश्चिम अफ्रीका में जा रही हैं, जहां बाल विवाह की दर सबसे ज्यादा है. अनुमान है कि वहां बाल्यावस्था में ही होने वाले विवाह के चलते हर साल करीब 9,600 बच्चियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है. यही नहीं यदि क्षेत्रीय स्तर पर देखें तो यहां किशोरावस्था में होने वाली मातृ मृत्यु दर दुनिया में किसी अन्य स्थान की तुलना में करीब चार गुना ज्यादा है.
वहीं यदि दक्षिण एशिया की बात करें तो यह आंकड़ा 2,000 है, जिसका मतलब है कि बाल विवाह के चलते हर रोज दक्षिण एशिया में छह बच्चियों की मौत हो जाती है. पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में यह आंकड़ा 650 मौतें प्रतिवर्ष है, इसके बाद दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन में हर होने वाली 560 बच्चियों की मौत के लिए यही वजह जिम्मेदार हैं.
हर वर्ष 18 साल की उम्र से पहले हो जाता है 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह
बाल विवाह की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप यूएनएफपीए द्वारा जारी हालिया आंकड़ों से लगा सकते हैं जिसके अनुसार हर साल करीब 1.2 करोड़ बच्चियों का विवाह 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाता है. अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 65 करोड़ महिलाओं और लड़कियों का विवाह उनके 18 साल की उम्र पूरा करने से पहले ही हो चुका था. दुनिया भर में बाल विवाह के मामले सबसे ज्यादा पूर्वी और दक्षिण अफ्रीका में सामने आते हैं जहां 31 फीसदी लड़कियों का विवाह बचपन में ही हो जाता है. जिसका उनके शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है. यह सीधे तौर पर इनके मानव अधिकारों का हनन है.
विषेशज्ञों के अनुसार बाल विवाह बच्चियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा पर असर डाल रहा है. यह न केवल यौन हिंसा को बढ़ावा दे रहा है साथ ही उनके स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहा है. बचपन में ही विवाह हो जाने के कारण इन बच्चियों को जोखिम भरी गर्भावस्था और प्रसव का सामना करना पड़ता है, जो उनके जीवन के लिए बड़ा खतरा है. यही नहीं यह एचआईवी के जोखिम को भी बढ़ा रहा है. अनुमान है कि प्रति हजार में से 95 बच्चियां 15 से 19 वर्ष की आयु में पहली बार मां बनी थीं.
हालांकि अच्छी खबर यह है कि 2000 के बाद से बाल विवाह के मामलों में गिरावट दर्ज की गई है. 2000 के आस-पास 20 से 24 साल की हर तीन में से एक महिला ने यह जानकारी दी थी कि उनका विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हुआ था. वहीं 2017 में यह आंकड़ा पांच में से एक पर आ गया था. जहां 15 वर्ष से छोटी बच्चियों के बाल विवाह की दर 2000 में 11 फीसदी थी वो 2017 में घटकर 5 फीसदी पर आ गई है. फिर भी दुनिया के कई देशों में यह कुरीति आज भी जारी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विकासशील देशों में हर साल 15 से 19 वर्ष की आयु की करीब 1.2 करोड़ बच्चियां, बच्चों को जन्म देती हैं. वहीं 15 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के लिए यह आंकड़ा करीब 7.8 लाख है.
जहां पिछले एक दशक में दक्षिण एशिया में बाल विवाह के मामलों में कमी आई है. वहीं अब बाल विवाह का यह बोझ उप सहारा अफ्रीका पर आ गया है. जहां एक दशक पहले बाल विवाह का आंकड़ा पांच में से एक था वो अब बढ़कर तीन में से एक हो गया है. हालांकि यदि संख्या की बात करें तो अभी भी दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा बच्चों का विवाह बचपन में हो जाता है.
कोरोना काल में आसान नहीं होगा बच्चियों का जीवन
ऊपर से जिस तरह से कोरोना महामारी ने दुनिया को प्रभावित किया है उसका असर बाल विवाह पर भी पड़ा है. यूएनएफपीए का अनुमान कि इससे लिंग आधारित हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है. यही नहीं अनुमान है कि जिस तरह से इस महामारी के चलते जिस तरह से रोकथाम संबंधी कार्यक्रमों में व्यवधान आया है उसके कारण अगले एक दशक में 20 लाख से ज्यादा खतना के मामले सामने आएंगे.
वहीं सेव द चिल्ड्रन का अनुमान है कि कोविड-19 के चलते दुनिया में जो आर्थिक संकट आया है उसके चलते 2020 में 10 लाख अतिरिक्त बच्चियों को गर्भावस्था का बोझ सहना पड़ा था. वहीं यूएनएफपीए के अनुसार इस महामारी के कारण गर्भनिरोधक उपयों में आए व्यवधान के चलते अनचाहे गर्भ के हर साल 14 लाख मामले सामने आ सकते हैं. वहीं यूनिसेफ का अनुमान है कि इस महामारी के चलते 2030 तक बाल विवाह के एक करोड़ अतिरिक्त मामले सामने आ सकते हैं. इसी तरह दक्षिण एशिया में 2025 तक और 10 लाख बाल विवाह के मामले सामने आ सकते हैं, जिसमें भारत भी शामिल है.
सिर्फ अफ्रीका और दुनिया के अन्य पिछड़े देशों में ही नहीं भारत और दुनिया के कई विकसित देशों में आज भी यह कुप्रथा जारी है. सेव द चिल्ड्रन द्वारा जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक अकेले तेलंगाना में अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच बाल विवाह की कोशिश के 1355 मामले सामने आए थे जोकि पिछले वर्ष की तुलना में करीब 27 फीसदी ज्यादा है. यह आंकड़ा दिखता है कि चोरी-छिपे ही सही देश में यह कुप्रथा आज भी न केवल मौजूद है बल्कि इसमें वृद्धि भी हो रही है.
ऐसे में यह जरूरी है कि इस समस्या को गंभीरता से लिया जाए. न केवल क़ानूनी तौर पर बल्कि सामाजिक तौर पर भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा का विरोध करने की जरूरत है. जरूरी है कि बच्चियों की आवाज बुलंद की जाए, उन्हें भी अपने फैसले लेने का हक है. उन्हें भी अपने जीवन को संवारने, पढ़ने लिखने, खेलने और बेहतर भविष्य बनाने का हक है, जिसे छीना नहीं जा सकता.
(साभार डाउन टू अर्थ)
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