Media
बिना जांच और आरोप सिद्ध हुए ही दैनिक भास्कर ने बता दिया आतंकी
दैनिक भास्कर की वेबसाइट पर 15 सितंबर 2021 को एक खबर प्रकाशित हुई. जिसका शीर्षक है “2 दिनों में UP से 6 आतंकी गिरफ्तार: ATS का आतंकियों की प्लानिंग पर फुल स्टाप, ISI मॉड्यूल के हैं एजेंट, एक IED और भारी मात्रा में कारतूस व असलहा बरामद”.
इस खबर के अंदर जो तस्वीर लगी है उसपर लिखा है “ये हैं यूपी के आतंकी चेहरे”. 6 लोगों के फोटो से साथ उनका नाम लिखा गया है. उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधक दस्ता द्वारा गिरफ्तार लोगों में रायबरेली के मूलचंद उर्फ संजू उर्फ लाला, प्रयागराज के जीशान कमर, लखनऊ के मोहम्मद अमीर जावेद, उंचाहार के मो. जमीन उर्फ जमील खत्री, प्रतापगढ़ के मो. इम्तियाज उर्फ कल्लू और प्रयागराज के मो. ताहिर उर्फ मदनी शामिल हैं.
अभी तक की खबर को पढ़ने के बाद पाठक को यही लग रहा होगा कि यह 6 लोग सच में आतंकी ही हैं. जिन्हें कोर्ट ने आतंकी घोषित कर दिया. लेकिन अखबार ने अगले ही दिन अपनी दूसरी खबर में बताया कि इन 6 लोगों में से दो लोगों को दिल्ली पुलिस ने पूछताछ के बाद छोड़ दिया.
सवाल है कि एक दिन पहले जो लोग आतंकी थे उन्हें पुलिस ने कैसे छोड़ दिया? अगर छोड़ा तो इसका मतलब की वह आतंकी नहीं थे? यहां तक कि खुद दैनिक भास्कर ने अपनी दूसरी खबर में लिखा है, आतंकी साजिश में शामिल होने के संदेह में हिरासत में लिए गए इम्तियाज और मोहम्मद जमील को दिल्ली पुलिस ने पूछताछ के बाद छोड़ दिया है.
क्या यह माना जा सकता हैं कि जिन लोगों को 15 सितंबर को पुलिस ने पकड़ा वह सब आतंकी होने के संदेह पर हिरासत में लिए गए थे, लेकिन वह आतंकी हैं या नहीं इसे साबित किया जाना बाकी है. क्या अखबार ने जो पहले इम्तियाज और मोहम्मद जमील को आतंकी कहा, वह उनसे मांफी मांगेगे या स्पष्टीकरण देंगे कि भास्कर से गलती हुई है?
पत्रकारिता का सिद्धांत है जब तक किसी पर आरोप सिद्ध ना हो जाए उसे दोषी कहा या लिखा नहीं जा सकता. लेकिन फिर भी पत्रकारिता के मूल्यों से दूर होते अखबार पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए संदिग्ध को सीधे आतंकी लिख रहे हैं.
क्या है पूरी खबर
दरअसल, यूपी एटीएस ने 14 सितंबर को उत्तर प्रदेश के कई जिलों में छापेमारी कर छह लोगों को गिरफ्तार किया. एटीएस के मुताबिक केंद्रीय एजेंसी व दिल्ली स्पेशल की सूचना पर यूपी में लखनऊ, प्रतापगढ़, रायबरेली व प्रयागराज में छापेमारी की गई थी.
गिरफ्तार लोगों के पास से जिंदा बम और अन्य की निशानदेही पर भारी मात्रा में कारतूस व असलहा बरामद हुआ. यूपी एटीएस ने सभी को गिरफ्तार कर दिल्ली स्पेशल सेल को सौंप दिया था.
दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तारी पर बयान जारी करते हुए कहा था कि केंद्रीय खुफिया एजेंसी से उसे इस गिरोह को लेकर विश्वसनीय इनपुट मिला था. इनपुट के मुताबिक़, पाकिस्तान एक गैंग के जरिए भारत में सीरियल आईईडी ब्लास्ट की योजना बना रहा है. इनपुट में संकेत मिला था कि दिल्ली के ओखला इलाके से कोई इस योजना को चला रहा था. फिर स्पेशल सेल ने पूरी साजिश का पता लगाने के लिए एक टीम बनाई.
अन्य मीडिया संस्थानों ने क्या लिखा
इस गिरफ्तारी को सभी मीडिया संस्थानों ने प्रमुखता ने छापा है. फिर चाहे वह हिंदी हो या अंग्रेजी. इंडिया टुडे, टाइम्स ऑफ इंडिया, टीवी 9, इंडिया डॉटकाम और कई अन्य मीडिया संस्थानों ने भी इसे खासी तवज्जो दी. हालांकि इन्होंने अपनी खबर में संदिग्ध आतंकी शब्द का उपयोग किया. किसी ने भी गिरफ्तार लोगों को आतंकी बताकर पेश नहीं किया.
यहां तक की उत्तर प्रदेश के एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने मीडिया से बातचीत में भी संदिग्ध आतंकी शब्द का जिक्र किया.
लेकिन इसके बावजूद दैनिक भास्कर ने आतंकी शब्द ही लिखा. आतंक के झूठे आरोप में 14 साल जेल में बिताने के बाद रिहा हुए मोहम्मद आमिर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “आतंक शब्द एक कलंक है, यह आरोप लगने के बाद लोग आपको शक की निगाह से देखने लगते हैं. परिवार के लोगों को तंज सुनना पड़ता है और सामाजिक बहिष्कार सहना पड़ता है.”
आमिर कहते हैं, “बिना कोर्ट में साबित हुए ही किसी को आतंकी नहीं कहा जा सकता. वहीं जब पुलिस किसी को गिरफ्तार करती है तो मीडिया उसे आतंकवाद जैसे आरोपों के साथ ब्रेकिंग खबर और अखबारों में पहले पन्ने पर प्रकाशित करती है लेकिन जब वह रिहा हो जाता है तब उस खबर को मीडिया महत्व नहीं देता.”
जेल से रिहा हुए आमिर को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद दिल्ली पुलिस ने पांच लाख रुपए हर्जाने के तौर पर दिए थे. उन्होंने अपने अनुभवों को किताब फ्रेमेड एज़ ए टेरेरिस्ट में दर्ज किया है.
वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा दैनिक भास्कर की इस रिपोर्ट पर कहते हैं, “यह खबर दिखाती है कि जिस पत्रकार ने मौलिक रूप से इस खबर को लिखा है उसकी ट्रेनिंग कैसी हुई है? मीडिया एथिक्स का पालन हो रहा है या नहीं यह पत्रकार की बुनियादी ट्रेनिंग का हिस्सा है. अगर वह ऐसा कर पा रहे हैं तो उन्हें पत्रकार बने रहने का कोई हक नहीं है.”
वह आगे कहते हैं, “जिन लोगों को दिल्ली पुलिस ने छोड़ दिया है उन्हें इन अखबारों के खिलाफ केस करना चाहिए. यह पत्रकारिता के सिंद्धांतों के खिलाफ है.”
“पुलिस अपने बयान में क्या कह रही है और क्या नहीं, इसकी जांच करना पत्रकार का काम है. वह पुलिस के बयान पर ही खबर चलाकर किसी को आतंकी लिख रहा है तो यह पत्रकारिता के नियमों के खिलाफ है” लखेड़ा कहते हैं.
दैनिक भास्कर ने अपनी खबर में 6 लोगों की फोटो तो लगाई ही है साथ ही में वह किस जिले में कहां रहते थे, वो भी प्रकाशित किया है.
भारतीय प्रेस परिषद द्वारा पत्रकारों के लिए जारी एथिक्स में मीडिया ट्रायल बिंदु में बताया गया है कि पीड़ित, गवाहों, संदिग्धों और अभियुक्तों का अत्यधिक प्रचार नहीं करना चाहिए, यह उनके निजता के अधिकारों का हनन होता है. साथ ही बताया गया है कि मीडिया कोर्ट के समान्तर खुद भी ट्रायल ना करें.
प्रेस परिषद की एथिक्स में ही समाचार लेखन वाले बिंदू में बताया गया है कि, प्रेस को यह याद रखना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ ही उसके पास लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में जिम्मेदारी भी है. समाचार पत्रों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वे इस आजादी का गलत उपयोग कर खुद सबूत बनाएं और फिर सबूतों का उपयोग कर अखबार में प्रकाशित करें.
ऐसा पहली बार नहीं है जब भास्कर ने इस तरह की खबर की है. इससे पहले इंदौर के महू में जासूसी का आरोप लगने के बाद भास्कर समेत स्थानीय मीडिया ने तीन बहनों का मीडिया ट्रायल कर दिया था.
मीडिया में इस दौरान तीनों बहनों की निजता की धज्जी उड़ाई गई. लड़कियों के नाम उजागर कर दिए गए, उनके बारे में तमाम जानकारियां सार्वजनिक की गईं. आखिर में पुलिस जांच में कुछ नहीं मिला. लेकिन जांच के दौरान मीडिया द्वारा किए गए ट्रायल के कारण उनका घर से निकला दूभर हो गया. सबसे हैरानी की बात तो यह थी कि, यह सब उन लड़कियों के खिलाफ किया गया जिनके पिता खुद सेना से रिटायर थे.
मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार भास्कर की रिपोर्ट पर कहते हैं, “इस तरह की पत्रकारिता समाज के लिए खतरनाक है. यह सत्ता को खुश करने वाली पत्रकारिता है, जो न्यायिक प्रक्रिया को भूल जाती है. अखबार की प्रतिबद्धता किसकी तरफ है जनता की तरफ या सत्ता के साथ?”
पुलिस के बयान पर खबर लिख देने पर विनीत कुमार कहते हैं, सवाल है कि अखबार क्या प्रेस रिलीज पर पत्रकारिता कर रहा है. उसकी खुद की पत्रकारिता इसमें क्या है? अगर बयान पर ही खबर लिखी जा रही है तो वह कंपोजर का काम हुआ इसमें पत्रकारिता कहा है.”
किसी को भी आतंकी लिख देने पर वह आगे कहते हैं, “भारत में जनता की याददाश्त बहुत कमजोर है, उसी का फायदा मीडिया उठाता है. उसे लगता है कि वह कुछ भी लिख देगा और फिर लोग भूल जाएंगे. इसलिए हम देखते हैं कि किसी को भी आतंकी, पाक जासूस आदि बोल या लिख दिया जाता है, लेकिन जब वह रिहा होते हैं तो अखबार और चैनल उसे बहुत ही छोटे में दिखाकर खत्म कर देते है.”
दैनिक भास्कर की इस रिपोर्ट को लेकर हमने अखबार के संपादक से संपर्क किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.
(भास्कर ने अपनी पहली कॉपी में मोहम्मद जमील लिखा है लेकिन दूसरी कॉपी में मोहम्मद जलील कर दिया. जबकि मोहम्मद जमील ही सही है)
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways Indian media missed the Nepal story
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
Hafta letters: Bigg Boss, ‘vote chori’, caste issues, E20 fuel