Lakhimpur Kheri

लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए सबसे कम उम्र के लवप्रीत और सबसे बुजुर्ग निछत्तर सिंह की कहानी

लखीमपुर खीरी में किसान प्रदर्शन के दौरान मरने वाले उन आठ लोगों में सबसे युवा 20 वर्षीय लवप्रीत सिंह और सबसे बुजुर्ग 62 वर्षीय निछत्तर सिंह भी थे. यह उनका पहला और आखिरी आंदोलन था जब वे किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए.

62 वर्षीय निछत्तर सिंह के परिवार के पास पांच एकड़ जमीन है. लेकिन वो हमेशा से अपने बच्चों को सेना में भेजना चाहते थे. एक वीडियो में हरी पगड़ी में निछत्तर सिंह को देखा जा सकता है. तीन अक्टूबर को थार गाड़ी उन्हें रौंदकर घसीटते हुए ले गई.

तिकुनिया से 150 किलोमीटर दूर जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम निछत्तर सिंह के घर पहुंची तो घर के बाहर सैकड़ों लोग मौजूद थे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी परिवार से मिलने आने वाले थे. इसलिए पूरा गांव ही निछत्तर सिंह के घर के बाहर जमा हो गया. लेकिन उनका परिवार इस से खुश नहीं था, उन्हें लगता है कि बीजेपी और विपक्ष के नेता इस मामले को राजनीतिक बना रहे हैं.

जगदीप सिंह अपनी पत्नी के साथ

निछत्तर सिंह के बड़े बेटे 31 वर्षीय जगदीप सिंह कहते हैं, "हमें राजनीति नहीं करनी है. लेकिन इस हादसे के बाद साफ है कि बीजेपी किसानों को मरकर आंदोलन खत्म करना चाहती है. कोई फैसला नहीं लेना चाहती. वरना अभी तक गृह राज्यमंत्री या उनके बेटे आशीष मिश्र की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई."

वह आगे कहते हैं, "मामला राजनीतिक बन गया है इसलिए अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई है. राजनीति नहीं होती तो गिरफ्तारी हो जाती. प्रशासन इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई आदमी पुलिस को चकमा देकर भाग जाएगा."

निछत्तर सिंह

तीन अक्टूबर को जगदीप सिंह तिकुनिया जाने वाले थे लेकिन सुबह 11 बजे निछत्तर सिंह बेटे की जगह खुद ही जाने की जिद करने लगे. घर से खाना खाकर निछत्तर सिंह दोपहर 12 बजे तिकुनिया के लिए निकल गए. उनके साथ उनके पड़ोसी मित्र बलवंत सिंह भी साथ गए थे. निछत्तर सिंह की पत्नी 60 वर्षीय जसवंत कौर कहती हैं, "निछत्तर सिंह शुरू से किसान आंदोलन में शामिल होना चाहते थे. उनका मन दिल्ली में सिंघु बॉर्डर पर जाने का भी था. लेकिन किसी कारण नहीं जा पाए. तीन अक्टूबर को तिकुनिया में होने वाले प्रदर्शन का उन्हें जब पता चला तो वह वहां जाने की जिद करने लगे. यह पहली बार था जब वो किसान आंदोलन में शामिल हुए थे."

परिवार वालों को निछत्तर सिंह की मौत की खबर सोशल मीडिया से मिली. जगदीप बताते हैं, "दिन से ही सोशल मीडिया पर हिंसा की खबरें आने लगी थीं. हम परेशान हो गए थे. किसी का कॉल नहीं लग रहा था. शाम को सात बजे सोशल मीडिया पर मरने वालों की तस्वीर आने लगीं. तब हमें पता चला कि पिता जी की मौत हो गई है."

निछत्तर सिंह को उसी दिन शाम चार बजे लखीमपुर खीरी के जिला अस्पताल लाया गया था, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि निछत्तर सिंह की मौत ब्रेन हैमरेज, फ्रैक्चर और शॉक से हुई है.

बलवंत सिंह

तीन अक्टूबर के दिन रिटायर्ड सूबेदार बलवंत सिंह भी निछत्तर सिंह के साथ प्रदर्शन में मौजूद थे. वो पूरे मामले में पुलिस लापरवाही का आरोप लगाते हुए न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, "जब गाड़ियां तेज रफ्तार से आ रही थीं तब पुलिस दो सौ मीटर दूर खड़ी हो गई. गाड़ियां बीजेपी मंत्री के घर से आई थीं. उस समय पुलिस ने बैरिकेड हटा दिए थे. ड्राइवर ने पीछे से आकर गाड़ी नछत्तर सिंह पर चढ़ा दी और पुलिस देखती रही."

बलवंत सिंह आगे बताते हैं, “जब यह हादसा हुआ तब किसान प्रदर्शन कर के घर वापिस लौट रहे थे. किसानों द्वारा पत्थरबाजी की खबरें झूठी हैं. हम सभी घर वापिस जा रहे थे. किसी के हाथ में पत्थर नहीं था. रोड पर बस खड़ी थी. इसलिए गाड़ियां बस से टकराकर रोड के किनारे गिर गईं. वरना वो वहां से आसानी से भाग जाते. गाड़ी में बैठे लोग पास बने गन्ने के खेतों में भाग गए. अगर पुलिस उन्हें गन्ने के खेत से नहीं पकड़ पा रही तो और कहा से पकड़ेगी."

वह कहते हैं उन्होंने 28 साल तक सेना में सूबेदार के पद पर काम किया है.

मनदीप सिंह

निछत्तर सिंह के छोटे बेटे 25 वर्षीय मनदीप सिंह सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) में तैनात हैं. उनकी शादी अप्रैल में तय हुई थी. पिता की मौत की खबर मिलते ही वो अलमोड़ा से सुबह छह बजे घर पहुंच गए.

जगदीप कहते हैं, “उन्होंने अपना पहला वोट बीजेपी को ही दिया था. यहीं नहीं परिवार के सभी लोग बीजेपी समर्थक हैं. लेकिन पिछले एक साल से इलाके में सांप्रदायिकता बढ़ गई है. किसान आंदोलन के बाद से हिन्दू और सिखों में भी मतभेद हो गए हैं.

20 वर्षीय लवप्रीत सिंह

वहीं पलिया के पास चौखड़ा फॉर्म के रहने वाले लवप्रीत सिंह मरने वालों में सबसे युवा थे. उनकी उम्र केवल 20 वर्ष थी. लवप्रीत को विज्ञान में दिलचस्पी थी और इसलिए वो विदेश पढ़ने जाना चाहते थे. उन्होंने आईईएलटीएस (IELTS) की परीक्षा भी दी थी. लेकिन कोविड के कारण वो नहीं जा सके. खाली समय में लवप्रीत विदेश में कॉलेज ढूंढा करते थे.

तीन अक्टूबर के दिन लवप्रीत अपने गांव के दोस्त प्रभप्रीत के साथ बाइक से तिकुनिया के लिए निकले थे. तिकुनिया उनके गांव से डेढ़ घंटे की दूरी पर है. इस दौरान उन्हें रास्ते में प्रदर्शन में शामिल होने जा रहे और भी लोग मिलते चले गए. दोनों दो बजे प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे. यह पहली बार था जब लवप्रीत किसान आंदोलन में भाग लेने गए थे. लवप्रीत की बहन अमनदीप कहती हैं, "मेरा भाई राजनीति को इतने अच्छे से नहीं समझता था. वो तिकुनिया अपने दोस्त के साथ गया था."

शाम चार बजे लवप्रीत के पिता सतनाम सिंह के पास कॉल आया. तब उन्हें पता चला कि लवप्रीत लखीमपुर हिंसा का शिकार हो गए हैं. उन्हें बताया गया कि इस समय लवप्रीत निघासन में हैं. सतनाम सिंह ने तुरंत अपनी बाइक निकाली और निघासन के लिए निकल गए. जैसे ही वह आधे रास्ते पहुंचे, उन्हें बताया गया कि लवप्रीत को इलाज के लिए लखीमपुर जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया है. और उन्हें एंबुलेंस द्वारा ले जाया जा रहा है.

लवप्रीत के पिता सतनाम सिंह और उनकी बहन अमनदीप कौर.

सतनाम सिंह ने हमें बताया, "लवप्रीत को तिकुनिया से एंबुलेंस में लखीमपुर खीरी ले जाया जा रहा था. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले शारदा नगर पर उसने दम तोड़ दिया."

उस समय लवप्रीत की मां और दोनों छोटी बहने, 19 वर्षीय गगनदीप और 18 वर्षीय अमनदीप घर पर ही थीं.

इसके बाद लवप्रीत का शव तिकुनिया लाया गया जहां पर हिंसा हुई थी. किसान नेता और यूपी सरकार द्वारा बातचीत के बाद मरने वालों को मुआवजे का वादा किया गया. जिसके बाद 4 अक्टूबर को शाम में पिता अपने बेटे का शव घर ले गए. पांच अक्टूबर को मिली पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार लवप्रीत की मौत ब्रेन हैमरेज और शरीर में बहुत अधिक फ्रैक्चर के कारण हुई है.

लवप्रीत का परिवार अपनी तीन एकड़ जमीन पर गन्ने की खेती करता है. मंगलवार पांच अक्टूबर को दोपहर तीन बजे परिवार ने अपने खेत में लवप्रीत का देह संस्कार कर दिया. इस पूरी घटना में लवप्रीत के दोस्त प्रभप्रीत को भी चोटें आई हैं. वो किसी से भी बात करने की हालत में नहीं है. उनका इलाज जारी है.

बता दें कि तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी के तिकुनिया इलाके में किसान शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. इस दौरान दोपहर करीब तीन बजे तीन तेज रफ्तार में गाड़ियां किसानों को रौंदते हुए आगे बढ़ गईं. ये गाड़ियां केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की हैं. इस पूरे घटनाक्रम में आठ लोगों की जान चली गई. मरने वालों में चार किसान, दो बीजेपी कार्यकर्ता, आशीष मिश्र का ड्राइवर और एक पत्रकार शामिल है.

वायरल हो रहे वीडियो को देखकर उस दिन हुई बेरहमी और हिंसा का अंदाजा लगाया जा सकता है.

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