Report
लखीमपुर खीरी फसाद: क्या गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र का बेटा वास्तव में घटनास्थल पर नहीं था?
तीन अक्टूबर को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने एएनआई से कहा, "मेरा बेटा घटनास्थल पर मौजूद नहीं था." उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनका बेटा घटनास्थल पर होता तो जिंदा नहीं बच पाता.
गौरतलब है कि कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र के ऊपर आरोप लग रहे हैं कि उसके काफिले की कारों ने लखीमपुर खीरी में प्रदर्शन कर रहे किसानों को रौंद दिया. इसके बाद हुई हिंसा में अब तक कुल आठ लोगों की मौत हो चुकी है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र ‘टेनी’ के बयान की सच्चाई जानने का प्रयत्न किया. हमने घटनास्थल पर मौजूद कई चश्मदीदों से बात की. उनके पास बताने के लिए एकदम अलग कहानी है.
तीन अक्टूबर को किसान लखीमपुर खीरी के तिकुनिया इलाके में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. दोनों मंत्री एक दंगल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आए थे. प्रदर्शन मार्च कर रहे किसानों पर तीन तेज रफ्तार गाड़ियां चढ़ा दी गईं. एक वीडियो से यह बात पूरी तरह साफ हो रही है. लेकिन इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि अजय मिश्र का बेटा आशीष इन गाड़ियों में मौजूद था.
वीडियो में दो एसयूवी और एक जीप गाड़ी को तेज़ गति से किसानों की तरफ बढ़ता देखा जा सकता है. प्रदर्शन कर रहे किसानों में गुरविंदर (22 ), नछत्र सिंह (60), दलजीत सिंह (35 ) और लवप्रीत सिंह (25) शामिल थे जिनकी मौत हो गई. वहीं आशीष मिश्र के काफिले में शामिल हरिओम, श्याम सुंदर, शुभम मिश्रा और अमन कश्यप को भी बाद में हिंसक भीड़ ने मार दिया. सोमवार सुबह 35 वर्षीय स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप की भी मौत हो गई जो इस घटना में बुरी तरह घायल हुए थे.
इस घटना के बाद किसान दिल्ली से लखीमपुर जाने वाले हाइवे पर जगह-जगह धरने पर बैठ गए थे. पुलिस ने भी लखीमपुर जाने के तमाम रास्तों को बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया था. हम आस-पास के गांव के रास्तों से जैसे-तैसे लखीमपुर पहुंचे. सोमवार दोपहर करीब ढाई बजे सरकार ने मृतकों के परिजनों को 45 लाख रुपए, एक परिजन को सरकारी नौकरी के साथ ही घटना की जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से न्यायिक जांच की घोषणा की. इसके बाद किसानों का गुस्सा कुछ कम हुआ.
क्या था पूरे मामले का सच?
किसानों का एक जत्था अजय मिश्र द्वारा हफ्ते भर पहले किसानों को लेकर दिए गए विवादित बयान के खिलाफ काला झंडा दिखाकर प्रदर्शन कर रहा था. अजय मिश्र ने कुछ दिन पहले कहा था कि वो अगर अपनी पर उतर आए तो किसानों को गांव ही नहीं, जिला भी छोड़ना पड़ जाएगा. जिसके बाद किसानों ने काला झंडा दिखाकर विरोध करने का फैसला लिया.
तीन अक्टूबर को इलाके में अजय मिश्र की अगुवाई में एक कुश्ती के मुकाबले का आयोजन किया गया था जिसमें हिस्सा लेने के लिए उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बुलाया गया था.
मौके पर मौजूद दिलबाग सिंह ने बताया, “किसानों ने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए हेलीकॉप्टर को हेलिपैड पर उतरने नहीं दिया जिसके बाद हेलीकॉप्टर को कहीं और लैंड कराना पड़ा. यह सब डीएम की जानकारी में हुआ था. उसके बाद कार्यक्रम चलता रहा. किसान वहीं पर प्रदर्शन करते रहे. दोपहर तीन बजे के आस पास जब किसान प्रदर्शन से लौटने लगे तब तीन गाड़िया तेज रफ्तार से किसानों को रौंदते हुए चली गईं. उनकी रफ्तार इतनी तेज थी कि दो गाड़ियां पलट गईं.”
उनके मुताबिक इन गाड़ियों के नीचे दबने से दो लोगों की मौत वहीं पर हो गई. प्रदर्शनकारी किसानों के मुताबिक उन्होंने आशीष मिश्र को मौके पर देखा जो बंदूक दिखा रहा था.
क्या घटनास्थल पर मौजूद थे आशीष उर्फ 'मोनू भैया'?
न्यूज़लॉन्ड्री ने घटनास्थल तिकुनिया के आस पास मौजूद कई और स्थानीय निवासियों से बात की. 30 वर्षीय असद रोजाना की तरह मजदूरी करने गए थे. उनकी पत्नी, मां और दो बच्चे घर पर मौजूद थे. असद की पत्नी ने अपना नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया, "हम घर पर ही थे. दरवाजा बंद था. किसान सुबह 10 बजे से प्रदर्शन कर रहे थे. तीन बजे के आस पास एक दम से चिल्लाने की आवाजें आने लगीं. अफरा- तफरी का माहौल बन गया. लोग चारों तरफ भाग रहे थे. हम औरतें अपने बच्चों को लेकर घरों के पीछे खेतों में जाकर छुप गईं. हमने कुछ नहीं देखा लेकिन लोग 'मोनू भैया, मोनू भैया' चिल्ला रहे थे."
गौरतलब है कि आशीष मिश्र को मोनू नाम से भी जाना जाता है.
जोत सिंह भी उस समय घटनास्थल पर मौजूद थे जब आशीष मिश्र के काफिले ने कथित तौर पर किसानों पर गाड़ी चढ़ा दी थी. वो बताते हैं, "आशीष और उसके साथी हथियारों से लैस थे. वो ओवरस्पीड करते हुए गाड़ी किसानों की तरफ लाए. फिर किसानों को रौंदते हुए ले गए. उनकी दो गाड़ियां पलट गईं. तब वो लोग बंदूक से फायरिंग करने लगे."
घटना के वक्त वहीं पर मौजूद तलविंदर सिंह बताते हैं, "हम लोग रोड के दोनों तरफ काले झंडे लेकर खड़े थे. हमारा प्रदर्शन एकदम शांतिपूर्ण था. प्रशासन हमारा और हम प्रशासन का साथ दे रहे थे. इतने में स्कॉर्पिओ, फॉर्च्यूनर और थार, तीन गाड़ियां 80-90 की रफ्तार से आईं. इस दौरान करीब 25 किसान और दो पत्रकार घायल हो गए. इसमें हमारे किसान नेता तजिंदर सिंह वर्क को भी चोट आई. हम उन्हें बचाने के लिए भागे. पुलिस को देखकर आशीष और उनके साथी गन्ने के खेतों की तरफ भागने लगे."
तलविंदर आगे कहते हैं, “किसानों के शवों को उठाने में पुलिस ने कोई मदद नहीं की. अगर पुलिस चाहती तो आशीष और उसके साथियों को आसानी से पकड़ सकती थी. लोगों के सिर और शरीर से खून बह रहा था. शव पड़े थे. हम जैसे-तैसे अपने लोगों को बाइक, कार और किसी-किसी को कंधे पर लादकर ले गए."
न्यूज़लॉन्ड्री को मिले एक अन्य वीडियो में यह दिखाई पड़ता है कि आशीष मिश्र दोपहर तीन बजे यानी घटना से कुछ ही देर पहले उसी इलाके में मौजूद थे जहां यह घटना घटी. यह वीडियो हमें एक चश्मदीद ने दिखाया. इस फेसबुक लाइव वीडियो में आशीष मिश्र बताए जा रहे शख्स के हाथ में बंदूक दिखाई देती है जिसे वो लोड करते नज़र आ रहे हैं. हमने इस वीडियो को कई स्थानीय लोगों को दिखाया. सबने वीडियो में दिख रहे शख्स की पहचान आशीष मिश्र के तौर पर की. लेकिन यह वीडियो धुंधला है और न्यूज़लॉन्ड्री स्वतंत्र तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि वीडियो में दिख रहा शख्स आशीष मिश्र ही है.
इसी तरह की एक और वीडियो में तीन तेज रफ्तार गाड़ियों का काफिला किसानों के ऊपर चढ़ता दिख रहा है.
इस पूरे मामले में प्रतिक्रिया देते हुए अजय मिश्र ने कहा कि घटना के वक्त उनका बेटा मौके पर नहीं था. उन्होंने कहा, "किसानों ने काफिले पर पत्थरों से हमला किया था और उनकी एक कार पलट गई, जिससे दो किसान कुचल गए. गुस्साए किसानों ने ड्राइवर और काफिले में यात्रा कर रहे तीन भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमला किया और उनकी हत्या कर दी."
एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "इस मामले से जुड़ी जानकारी नहीं दे सकते. आशीष को अभी गिरफ्तार नहीं किया गया है. धैर्य रखे."
सरकार और किसानों के बीच क्या हुआ फैसला?
विपक्ष ने इस घटना की व्यापक रूप से निंदा की है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को रविवार रात करीब चार बजे पीड़ित परिवारों से मिलने जाते समय कथित तौर पर हिरासत में ले लिया गया. सीतापुर में उन्हें रोकने वाले पुलिसकर्मियों से बात करते हुए प्रियंका का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है, “मैं उन लोगों से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हूं जिन्हें आपने मारा है. आप मुझे एक कानूनी वारंट, एक कानूनी आधार दें, नहीं तो मैं यहां से नहीं हटूंगी और आप मुझे नहीं छुएंगे. वारंट निकालो, ऑर्डर निकालो नहीं तो मैं यहां से नहीं हिल रही हूं."
वहीं अखिलेश यादव को भी घटना स्थल पर जाने से रोक लिया गया. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को लखनऊ पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. जिसके बाद समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं सहित अखिलेश यादव वहीं धरने पर बैठ गए थे. सुबह किसानों की लाश को घटनास्थल पर रखा गया इस शर्त के साथ कि शरीर पोस्टमॉर्टम के लिए तभी भेजा जाएगा जब आशीष मिश्र की गिरफ्तारी होगी. लेकिन सोमवार दोपहर दो-ढाई बजे के करीब किसान नेता राकेश टिकैत घटनास्थल पहुंचे. यहां उनके साथ अन्य सरकारी अधिकारी भी मौजूद थे.
राकेश टिकैत ने बताया, “उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए चार किसानों के परिजनों को 45 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और सरकारी नौकरी देने का फैसला किया है. घायल किसानों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा. उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश हिंसा की जांच करेंगे.”
इसके बाद लाशों को पोस्टमॉर्टम के लिए जिला अस्पताल ले जाया गया.
फिलहाल केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया गया है. वहीं इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सुमित जायसवाल नामक व्यक्ति द्वारा अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दंगा करने, लापरवाही से मौत का कारण बनने और हत्या के आरोप में एक अलग एफआईआर दर्ज की गई है.
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways Indian media missed the Nepal story
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
Hafta letters: Bigg Boss, ‘vote chori’, caste issues, E20 fuel