NL Tippani
इस फिल्म में अंजना ओम कश्यप है, सुशांत सिन्हा है और डंकापति तो हैं ही
इस हफ्ते धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी. आज तक की एक अदाकारा एंकरा हैं अंजना ओम कश्यप. उनके साथ अमेरिका में जो कुछ हुआ वह एक दु:स्वप्न सरीखा है. हमने उस पूरे वाकए को जोड़कर एक फिल्म बना दी है. इस फिल्म में अपमान है, तिरस्कार है, ट्रैजेडी है, तमाशा है और बेशर्मी तो है ही.
अंजना ओम कश्यप की जो जगहंसाई हुई वह एक साथ कई समस्याओं का लक्षण है. वो लक्षण जो भारत की टेलीविजन पत्रकारिता का नासूर बन चुका है. समस्या नंबर एक, ये खुद को पत्रकार नहीं समझते, ना ही पत्रकारिता करते हैं, ये अपने को सेलिब्रेटी समझते हैं. पत्रकार सेलिब्रेटी नहीं होता.
समस्या नंबर दो, अंजना या उनके जैसे तमाम एंकर एंकराएं जब किसी को अप्रोच करते हैं तो बहुत लोडेड नोशन के साथ यानी पहले से तय मानसिकता के साथ अप्रोच करते हैं, खुले दिमाग से नहीं करते. मसलन अगर इनके सामने कोई पाकिस्तानी होगा तो उसके साथ इनका रवैया यही होगा कि उसे किसी भी कीमत पर नीचा दिखाना है. इतने लोडेड मानसिकता से पत्रकारिता नहीं हो सकती.
समस्या नंबर तीन, सरकार का दुमछल्ला बन जाना या खुद को राष्ट्रवाद का स्वयंभू सरगना मान लेना. मसलन जब अंजना अमेरिकी अखबारों की समीक्षा कर रही थी तब उसने पाया कि मोदी यात्रा की कोई भी खबर अखबार में नहीं छपी है. ऐसे में ईमानदार पत्रकारिता का तकाजा था कि वो अपने दर्शकों को साफ-साफ बताती कि इस अखबार में मोदी की अमेरिका यात्रा से जुड़ी कोई खबर नहीं है. बतौर पत्रकार यही सही सूचना भी थी. ऐसा करके अंजना एक जलालत से भी बच जाती. लेकिन दुमछल्ला बनने और राष्ट्रवाद का कटहा कौवा बन जाने की वजह से ये सारा विष पीना पड़ता है.
समस्या नंबर चार, आप भारत की कार्य संस्कृति के हिसाब किसी दूसरे देश में बर्ताव नहीं कर सकते. संभव है कि भारत में आपको कानून तोड़ने की आदत पड़ गई हो. यहां न तो संस्थान काम करते हैं न आपको कोई टोकने वाला है. लेकिन अमेरिका में भी ऐसा ही होगा यह मान लेने का नतीजा है कि बेमुरौव्वत बाहर का दरवाजा देखना.
अंजना के अलावा भी कुछ कलाकारों की कलाकारी इस टिप्पणी में दिखेगी.
Also Read
-
A massive ‘sex abuse’ case hits a general election, but primetime doesn’t see it as news
-
‘Vote after marriage’: Around 70 lakh eligible women voters missing from UP’s electoral rolls
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
The Cooking of Books: Ram Guha’s love letter to the peculiarity of editors
-
‘Need to reclaim Constitution’: The Karnataka civil society groups safeguarding democracy