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क्या राणा अय्यूब ने चंदा लेकर एफसीआरए का उल्लंघन किया?
सात सितम्बर को उत्तर प्रदेश पुलिस ने पत्रकार राणा अय्यूब के खिलाफ इंदिरापुरम थाने में एक प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की. यह एफआईआर 'हिन्दू आईटी सेल' नामक एक हिंदू प्रभुत्ववादी समूह के सहसंस्थापक विकास सांकृत्यायन की शिकायत पर दर्ज हुई. इस समूह को नियोजित रूप से लोगों का उत्पीड़न करने में महारत हासिल है.
सांकृत्यायन ने अय्यूब पर आरोप लगाया कि उन्होंने जन-सहयोग वेबसाइट 'केटो' पर आम लोगों से चंदे के नाम पर गैरकानूनी रूप से पैसे लिए. सांकृत्यायन के अनुसार, "अय्यूब ने विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम 2010 (एफसीआरए) का उल्लंघन किया है क्योंकि वह पेशे से पत्रकार हैं और उन्होंने बिना किसी सरकारी अनुमति या पंजीकरण के विदेशी अभिदाय प्राप्त किया".
अय्यूब पर बेईमानी से सम्पत्ति का गबन, विश्वास का आपराधिक हनन और धोखाधड़ी से संबंधित भारतीय दंड संहिता की चार धाराओं के अंतर्गत मामले दर्ज किए गए हैं. उनपर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66D प्रतिरूपण द्वारा छल करने लिए और धन-शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत भी मामले दर्ज किए गए हैं.
अय्यूब ने 2020 की शुरुआत से ही 'केटो' पर तीन राहत अभियानों के लिए चंदा एकत्रित किया था, जिनका उद्देश्य कोविड और बाढ़ से प्रभावित लोगों और लॉकडाउन के बाद उत्पन्न हुई समस्याओं से जूझते हुए प्रवासी कामगारों की सहायता करना था. केटो ने 27 अगस्त, 2021 को अय्यूब के अभियानों में योगदान करने वाले दानदाताओं को एक ई-मेल भेजकर बताया कि उन्होंने 2.69 करोड़ रुपए इकठ्ठा किए, जिसमें से उन्होंने 1.25 करोड़ रुपए खर्च किए और 90 लाख रुपए का टैक्स भरा.
केटो ने कहा, "इन खर्चों के बाद बची हुई राशि अब भी कैंपेनर (अय्यूब) के ही पास हैं." ई-मेल में यह भी कहा गया कि सरकारी संस्थाएं इस जमा राशि की जांच कर रही हैं क्योंकि उन्हें संदेह है कि जिस काम के लिए चंदा जमा किया गया था उसमें उपयोग नहीं हुआ.
केटो ने यह खुलासा नहीं किया कि क्या जांच एजेंसियों ने इन आरोपों के समर्थन में कोई साक्ष्य उपलब्ध करवाए हैं. केटो के संस्थापक और सीईओ वरुण शेठ को भेजे गए प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिला.
इस साल अय्यूब के खिलाफ दर्ज की गई यह पहली एफआईआर नहीं है. जून के महीने में गाजियाबाद पुलिस ने एक ट्वीट के लिए उनपर मामला दर्ज किया था, जिसमें उन्होंने एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा हिंदू भीड़ पर लगाए मारपीट के आरोपों का उल्लेख किया था. इस मामले में उन्हें बम्बई उच्च न्यायलय ने चार हफ्तों के लिए गिरफ्तारी से राहत दे दी थी.
रविवार को ट्विटर पर जारी एक बयान में अय्यूब ने ताजा प्राथमिकी को 'आधारहीन' और 'दुर्भावनापूर्ण' बताया और कहा, "उनके पास केटो के माध्यम से जमा किए गए सारे चंदे का हिसाब है और एक भी पैसे का दुरुपयोग नहीं किया गया है."
उनका संकेत था कि फंडरेजर का सारा पैसा उनके निजी खाते में जमा है. उन्होंने कहा, "दान-प्राप्ति की प्रक्रिया में किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है. आयकर विभाग ने मेरे खाते और डोनेशन की जांच की है, और एक निष्पक्ष जांच होने पर सत्य सभी के सामने आ जाएगा."
वैध स्थिति?
गाजियाबाद पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में सांकृत्यायन ने पीड़ित पक्ष होने का दावा नहीं किया, यानी उन्होंने यह नहीं कहा कि उन्होंने अय्यूब के फंडरेजर्स में पैसे दान किए थे और इस कारण एफसीआरए के कथित उल्लंघन से उन्हें समस्या थी.
हमने स्पष्टीकरण के लिए सांकृत्यायन से संपर्क किया. लेकिन उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को 'पक्षपाती, हिंदू विरोधी समाचार पोर्टल' करार देते हुए कहा कि वह हमसे बात नहीं करेंगे.
हालांकि उन्होंने द प्रिंट को बताया कि उन्होंने पुलिस में शिकायत सबूत जुटाने के बाद की है.
यही सवाल हमने इंदिरापुरम थाने के सर्कल ऑफिसर अभय कुमार मिश्रा से भी किए. "आप शिकायतकर्ता से पूछिए." उन्होंने जवाब दिया. “मैं यह नहीं कह सकता कि वह पीड़ित पक्ष हैं या नहीं. हम मामले की जांच कर रहे हैं."
'कानून का दो प्रकार से उल्लंघन'
वकील विकास पाहवा के अनुसार अय्यूब के फंडरेजर ने दो मामलों में एफसीआरए का उल्लंघन किया. पाहवा ने कहा, "एक तो उनके पास सरकार का पंजीकरण प्रमाणपत्र नहीं था. दूसरे, ऐसा लगता है कि उन्होंने यह धनराशि अपने व्यक्तिगत खाते में प्राप्त की."
एफसीआरए की धारा 11 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति तब तक विदेशी अभिदाय स्वीकार नहीं कर सकता जब तक कि वह केंद्र सरकार द्वारा पंजीकरण प्रमाणपत्र या पूर्व अनुमति प्राप्त नहीं कर लेता.
दिल्ली स्थित फर्म 'पूजा जगदीश एंड एसोसिएट्स' में चार्टर्ड अकाउंटेंट पूजा मदान ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "एफसीआरए एक व्यक्ति पर भी लागू होता है. एफसीआरए की धारा 2(1)(ड) के अनुसार 'व्यक्ति' की परिभाषा में 'कोई व्यष्टि' भी निहित है. इस कारण से एफसीआरए के प्रावधान एक व्यक्ति पर भी लागू होते हैं," साथ ही यह भी कहा, "यदि अय्यूब एफसीआरए के अंतर्गत पंजीकृत नहीं थीं तो उन्हें विदेशी चंदा लेने का अधिकार नहीं था."
अपने बयान में अय्यूब ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या उन्हें विदेशी दानदाताओं से धन स्वीकार करने की पूर्व अनुमति थी अथवा क्या वह कानून के तहत पंजीकृत थीं या नहीं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने टिप्पणी के लिए अय्यूब और उनकी वकील वृंदा ग्रोवर से संपर्क किया. लेकिन अय्यूब ने कोई जवाब नहीं दिया और ग्रोवर ने कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया.
पाहवा ने कहा कि एफसीआरए सरकार को विदेशी अभिदाय पर नियंत्रण देने के लिए बनाया गया था.
उन्होंने समझाया, "यह दो बातें स्पष्ट करता है. यदि आपको विदेशी अभिदाय मिलता है तो आपको इसे एक विशेष खाते में रखना होगा जिसकी निगरानी सरकार कर सके. आप उसे निजी खाते में नहीं रख सकते. ना ही आप उस योगदान को किसी और को हस्तांतरित कर सकते हैं."
विवाद का दूसरा बिंदु है कि अय्यूब ने जिस काम के लिए चंदा लिया था उसपर खर्च नहीं किया और वह धन उनके खाते में ही पड़ा है. पाहवा ने कहा कि इस बाबत एफसीआरए कुछ नहीं कहता.
"यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष उद्देश्य के लिए विदेशी अभिदाय स्वीकार करता है और उसका केवल एक भाग ही पूरा कर पाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह शेष धन को लौटाने के लिए बाध्य है," पाहवा ने कहा. "वह उसी तर्ज पर काम जारी रख सकता है, खासकर यदि उसका उद्देश्य जनसेवा है."
उल्लंघन के लिए संभावित दंड के रूप में एफसीआरए की धारा 35 में 'पांच साल तक कारावास, जुर्माना, या दोनों' का प्रावधान है. “यहां पर 'या' शब्द का महत्व है," पाहवा ने समझाया, "यह 'और' नहीं है. जरूरी नहीं कि अदालत दोषी को जेल भेजे. उसके पास यह विकल्प है कि दोषी को केवल जुर्माना लगा कर छोड़ दिया जाए."
'जिस तरह से पैसे जुटाए कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त'
वाणिज्यिक वादी अंशु भनोट ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "अय्यूब ने जिस तरह से पैसे जुटाए उससे उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू की जा सकती है. जब विदेशी दानदाताओं का पैसा व्यक्तिगत खाते में आता है तो उस पर केवल खाताधारक का ही नियंत्रण होता है. अय्यूब को यह बताना होगा कि उन्होंने पैसे का क्या किया. एफसीआरए उल्लंघन साबित करने में जांच एजेंसियां सफल होती हैं या नहीं यह अदालत में प्रस्तुत की गई सामग्री पर निर्भर करेगा."
हालांकि यह साबित करने की जिम्मेदारी अय्यूब पर होगी कि पैसे का दुरुपयोग नहीं किया गया था. "यह न्यायिक प्रणाली का दुखद पहलू है,” उन्होंने कहा. "आपराधिक मामले साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की होती है. लेकिन जैसे ही कार्यवाही शुरू होती है यह केवल सिद्धांत बन कर रह जाता है. यहां तक कि अगर मामला अंततः खारिज हो जाए तो भी प्रवर्तन निदेशालय, अपराध शाखा जैसे निकायों पर कोई प्रभाव पड़े इस प्रकार के उदाहरण कम ही हैं."
कराधान कानून और एफसीआरए के विशेषज्ञ वकील सरवर रजा ने कहा, "यदि अय्यूब के डोनर्स विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिक थे तो उनपर कानून का उल्लंघन करने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. इसे उल्लंघन तभी माना जाएगा जब वे विदेशी नागरिक हों."
“अगर उन्होंने व्यक्तिगत रूप से धनराशि स्वीकार की है और वह एफसीआरए लाइसेंस वाली किसी एनजीओ से नहीं जुड़ी थीं या उनके पास सरकार की पूर्व अनुमति नहीं थी, तो यह शायद एक तरह का उल्लंघन है," रजा ने कहा. "उन्हें एक प्रकार से मदद मिल सकती है अगर वह अब उस धनराशि से एक रुपया भी उपयोग न करें."
'एफसीआरए का उल्लंघन संयोजनीय अपराध है'
इस साल मई में अय्यूब ने केटो पर घोषणा की कि उन्होंने ऐसी किसी भारतीय एनजीओ के साथ गठजोड़ करने का प्रयास किया था जिसके पास एफसीआरए की अनुमति हो. "लेकिन महामारी और लॉकडाउन के दौरान आवाजाही पर प्रतिबंध के कारण हम इस उदारता को लोगों तक पहुंचाने के लिए उपयुक्त डोनर नहीं ढूंढ पाए." उन्होंने लिखा.
उसने यह भी घोषणा की कि उनकी टीम विदेशी दाताओं के पैसे वापस कर देगी क्योंकि कुछ 'प्रोपेगेंडा वेबसाइटों' पर उनके राहत कार्यों को सुनियोजित रूप से निशाना बनाया जा रहा है. "मैंने सभी विदेशी दाताओं के योगदान वापस करने का निर्णय लिया है ताकि हम उनके और खुद के लिए असुविधा का कारण न बनें." उन्होंने कहा.
रजा ने कहा कि अय्यूब का विदेशी दानदाताओं को पैसा लौटाने का निर्णय समझदारी भरा था. एफसीआरए का उल्लंघन संयोजनीय है.
उन्होंने बताया, "अगर उन्होंने किसी प्रावधान का उल्लंघन किया है, तो पैसे वापस करने का दावा इस अपराध को संयोजनीय बनाता है. यदि आपके कार्य से किसी कानून का उल्लंघन हुआ है, और आप उसे वापस ले लेते हैं, तो जुर्माना भरने पर इसे माफ किया जा सकता है. लेकिन इसका अधिकार सरकार के पास होगा."
लेकिन भनोट की मानें तो पैसे लौटा देने से अय्यूब को कथित अपराध से मुक्ति नहीं मिलेगी. यह मुश्किल भरा कदम हो सकता है क्योंकि अदालतें इसे अपराध की स्वीकृति या बच निकलने की हताशा के रूप में देख सकती हैं.
ऑनलाइन क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म 'अवर डेमोक्रेसी' के पूर्व निदेशक आनंद मंगनले ने कहा, "अगर अय्यूब ने चंदे को अपने निजी खाते में जमा किया है तो उन्हें टैक्स का भुगतान करना होगा. पत्रकार होने पर भी अगर आप अपने द्वारा जुटाए गए धन पर कर का भुगतान करते हैं और बताते हैं कि आपने उसे कैसे खर्च किया, तो यह एफसीआरए का उल्लंघन नहीं है. लेकिन केटो ने अपने डोनर्स को जो ईमेल भेजा था उसमें दावा किया गया था कि अय्यूब के खाते में पैसे बचे हैं जो खर्च नहीं हुए, इसपर प्रतिक्रिया हो सकती है."
अपने बयान में अय्यूब ने कहा, "उन्होंने केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के निर्देश पर भारी कर का भुगतान किया था."
हालांकि मदान ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "पैसे पर टैक्स देने भर से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. चूंकि एफसीआरए और आयकर अधिनियम अलग-अलग कानून हैं, इसलिए विदेशी अभिदाय पर आयकर का भुगतान कर देने से स्वतः ही एफसीआरए के प्रावधानों का अनुपालन नहीं हो जाएगा."
'कानून की अनभिज्ञता'
रजा के अनुसार, "एफसीआरए का उल्लंघन आम बात है और अक्सर इसपर किसी का ध्यान भी नहीं जाता. लेकिन बड़ी रकम या राणा अय्यूब जैसे बड़े नामों के मामलों में ऐसा नहीं होगा."
एफसीआरए की धारा 3 विशेष रूप से पंजीकृत समाचार पत्रों के 'संवाददाताओं', 'स्तंभकारों', 'संपादकों' को किसी भी विदेशी अभिदाय को स्वीकार करने से रोकती है. यह उन कंपनियों के 'संवाददाताओं', 'स्तंभकारों' और 'संपादकों' पर भी लागू होता है जो किसी इलेक्ट्रॉनिक पद्धति या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में यथापरिभाषित किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप या किसी अन्य जनसंचार पद्धति के माध्यम से श्रव्य-समाचारों या श्रव्य-दृश्य समाचारों या सामियक कार्यकलाप के कार्यक्रमों के निर्माण या प्रसारण में लगी हुई हैं.
रजा ने कहा, "हालांकि यह अय्यूब पर लागू होता हुआ प्रतीत होता है, वह अभी भी यह तर्क देकर अपना बचाव कर सकती है कि उन्होंने किसी पत्रकारिता संबंधी गतिविधि के लिए पैसे नहीं जुटाए."
रज़ा ने बताया, "शिकायतकर्ता विकास सांकृत्यायन ने अय्यूब के अभियानों में चंदा नहीं दिया इसलिए उनकी कोई वैध स्थिति (Locus Standi) नहीं है. आदर्श रूप से इस मामले में गृह मंत्रालय को कार्यवाही शुरू करनी चाहिए थी, न कि किसी ऐसे व्यक्ति को जिसका इससे कोई संबंध नहीं है." उन्होंने कहा, "कोर्ट में यह दलील भी दी जा सकती है."
लेकिन भनोट इससे सहमत नहीं हैं.
उन्होंने कहा, "कोई भी शिकायत दर्ज करवा सकता है और एक कथित गलत काम को उजागर कर सकता है. ऐसे मामलों में शिकायतकर्ता कथित अपराध का मुखबिर होगा, न कि शिकायतकर्ता जिसे मुकदमे में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी जाएगी. इस तरह की प्राथमिकी में राज्य शिकायतकर्ता के आरोप को आगे बढ़ाता है और अभियोजन का कार्यभार संभालता है.”
दूसरी ओर पाहवा ने तर्क दिया, "अय्यूब दो तरह से अपना बचाव कर सकती हैं. एक है कानून की अनभिज्ञता जो दलील अक्सर ऐसे मामलों में लोग देते हैं. लेकिन राणा अय्यूब एक प्रसिद्ध पत्रकार हैं, इसलिए मुझे नहीं पता कि यह दलील उनके काम आएगी या नहीं. लेकिन वह यह भी दावा कर सकती हैं कि उन्होंने कोविड के दौरान पैसे जुटाए, जब कई पीड़ित थे और उन्हें मदद की जरूरत थी. उन परिस्थितियों में वह कानून के अनुपालन के बारे में सोचने के बजाय सहायता प्रदान करने के लिए अधिक तत्पर थीं.”
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