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जौनपुर: दलित पत्रकार को भाजपा नेता द्वारा पीटने और धरने पर बैठने का पूरा मामला

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक दलित पत्रकार को पीटने का मामला सामने आया है. यहां के महाराजगंज थाने के सवंसा गांव के रहने वाले 33 वर्षीय पत्रकार संतोष कुमार का आरोप है कि उन्होंने 25 जून को दलितों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता द्वारा किए जा रहे अत्याचार को लेकर एक खबर की थी, जिसके बाद उन्हें इलाके के ही भाजपा नेता यादवेंद्र प्रताप सिंह और उनके लोगों ने इतना मारा की पैर टूट गया.

पत्रकार संतोष कुमार न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, "मैं जौनपुर में बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र के लिए काम करता हूं. 25 जून को मैंने दलितों से जुड़ी एक खबर की थी. इसके बाद अगले दिन यानी 26 जून को मुझपर जानलेवा हमला किया गया. मुझे मारने वालों में भाजपा नेता यादवेंद्र प्रताप सिंह सहित 14 अन्य लोग शामिल थे."

उन्होंने कहा, "मैं बाइक से आ रहा था तभी रास्ते में बाइक रोककर हमला किया गया. जिसके बाद मुझे मेरे परिवार के लोग जिला चिकित्सालय ले गए वहां इलाज कराने के बाद थाने में एफआईआर दर्ज कराने गया. उस रोज पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की. थाने के कई चक्कर काटने के बाद, घटना के 21 दिन बीतने पर एफआईआर दर्ज की गई. मेरे एफआईआर दर्ज होने के एक घंटे बाद ही थाना अध्यक्ष और भाजपा नेता की मिलीभगत से मेरे खिलाफ भी मामला दर्ज हो गया.''

संतोष के खिलाफ एफआईआर भाजपा नेता के नौकर ने दर्ज कराई गई है. संतोष कहते हैं, '' नौकर ने एफआईआर में आरोप लगाया है कि हमने उनके घर में घूसकर मारपीट की.''

17 जुलाई को एफआईआर दर्ज हुई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसके बाद 20 अगस्त को एकबार फिर संतोष कुमार पर हमला हुआ. 20 अगस्त को हुई मारपिटाई की अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है. इसलिए कुमार अपनी पत्नी के साथ जौनपुर एसपी दफ्तर के सामने अनशन पर बैठे हुए हैं. थाना अध्यक्ष पर बीजेपी नेता से मिलीभगत होने का आरोप लगाते हुए कुमार कहते हैं, ''20 अगस्त को फिर से मेरे घर आकर पूरे परिवार पर हमला किया गया. इतना मारा की मेरा पैर टूट गया. मैं दलित समुदाय से हूं तो जातिसूचक गलियां दी गई.''

सिर्फ खबर ही मार पिटाई का कारण नहीं?

ऐसा नहीं है कि संतोष कुमार पर जो हमला हुआ वो सिर्फ उनके द्वारा की गई खबर के कारण हुआ. इसके पीछे पुरानी रंजिश भी नजर आती है. दरअसल बीते दिनों हुए पंचायत चुनाव में संतोष कुमार और यादवेंद्र सिंह, दोनों की पत्नी ग्राम प्रधान पद के लिए चुनाव लड़ी थीं. जिसमें यादवेंद्र सिंह की 25 वर्षीय पत्नी अनामिका सिंह जीत गई थीं. जबकि संतोष कुमार की 35 वर्षीय पत्मी रेश्मा चुनाव हार गई थीं. इसके बाद से ही दोनों में अनबन शुरू हो गई.

संतोष कुमार बताते हैं, ''चुनाव के दौरान ही यादवेंद्र सिंह उन्हें धमकी दे रहे थे कि या तो आप चुनाव में बैठ जाओ वरना जान से मरवा दूंगा. जिस दिन गांव में वोटिंग हो रही थी उसी दिन मेरे पिताजी की मृत्यु भी हो गई थी. पिताजी के निधन के चलते चुनाव पर ध्यान नहीं दे पाया जिसका फायदा उठाकर यादवेंद्र सिंह ने चुनाव में धांधली की.''

कुमार आरोप लगाते हैं, “जिन लोगों ने चुनाव में मेरी मदद की थी और मेरे साथ रहे उन्हें यादवेंद्र सिंह ने जीतने के बाद मारना पीटना शुरू कर दिया. वह आय दिन उनको मारते पीटते थे, और उनके दवाब में पुलिस उल्टा उन्हें ही उठा कर ले जाती थी. इसके बाद गांव के लोगों ने इक्ट्ठा होकर यादवेंद्र सिंह के खिलाफ पुलिस कप्तान को ज्ञापन दिया था. इसी की खबर को मैंने अपने संस्थान के लिए कवर किया. जिस पर खबर के अगले दिन ही मुझ पर हमला कर दिया गया.”

कुमार बार-बार पुलिस और बीजेपी नेता की मिलीभगत का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, इस (25 जून) घटना के तीन महीने पहले ही बीजेपी नेता से जान माल का खतरा बताते हुए पुलिस में शिकायात की थी. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.''

चुनावी रंजिश को और विस्तार में जानने के लिए हमने सवंसा गांव के रहने वाले राजबहादुर से भी बात की. उन्होंने बताया, "चुनाव के बाद से ही यादवेंद्र संतोष को परेशान कर रहा है.यादवेंद्र दबंग किस्म का आदमी है और गांव के दलितों को परेशान करता है. दलितों को सिंह के लोग मारते हैं और दलितों पर ही झूठे मुकदमे कराता है.''

वह आगे कहते हैं, "जिन लोगों ने चुनाव में संतोष का साथ दिया था उन्हें यादवेंद्र परेशान कर रहा था और उनपर झूठे मुकदमे दर्ज करा रहा था. जिसके चलते गांव के लोगों ने इसकी शिकायत पुलिस से की थी. इसके बाद यादवेंद्र सिंह ने उन लोगों को पीटा."

वहीं पुरानी रंजिश के सवाल पर संतोष कहते हैं, "यह बात सही है कि हम चुनव लड़े थे, लेकिन यह झगड़ा चुनाव का नहीं है. यादवेंद्र गांव के दलितों को परेशान करता है. उनको मारता पीटता है. उनके खिलाफ झूठे मुकदमें दर्ज कराता है. मैं इसपर रिपोर्ट कर रहा था इसीलिए उसने मुझे मारा."

इस पूरे विवाद पर न्यूज़लॉन्ड्री ने यादवेंद्र प्रताप सिंह से बात की. वह कहते हैं, "संतोष पहले से ही इस तरह की हरकतें करता आ रहा है. अब तक गांव में जितने भी प्रधान हुए हैं उनसे पैसे वसूलने का काम करता था."

वह आगे कहते हैं, "वह करीब सात आठ महीने से ही पत्रकार हैं. चुनाव से चार महीने पहले भी इन्होंने मेरे खिलाफ खबर छापी थी कि मैंने उनके घर में घुसकर उनके साथ मारपीट की. जबकि उस दिन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह का एक कार्यक्रम था और मैं उसमें शामिल होने जौनपुर गया हुआ था. हम सज्जन किस्म के लोग हैं, इसलिए हम उनसे पूछने भी नहीं गए कि तुम ये क्या कर रहे हो. इनका यह न्यूज पोर्टल सिर्फ मेरे ही ग्राम सभा की खबरें छापता है."

वह कहते हैं, "संतोष आदित्य सहायाता समूह भी चलाते हैं. जिसमें लोगों को पोषाहार दिया जाता है. जैसे तेल, घी आटा चावल आदि. चुनाव का समय था तो मैंने इसकी शिकायत आंगनवाड़ी से की कि जो यह सामान अपने घर पर बांटते हैं इसको पंचायत भवन या प्राइमरी स्कूल में बांटा जाए. क्योंकि सरकार की योजना का यह चुनाव में फायदा लेना चाहते हैं. इसलिए इसे घर पर नहीं बाटा जाए. इसके बाद संतोष ने इसकी भी खबर चलाई कि यादवेंद्र सिंह भाजपा ब्लॉक मंडल अध्यक्ष जो कि दबंग किस्म के व्यक्ति हैं. तब भी इन्होंने मेरे बारे में काफी उल्टा लिखा था."

"इनका आय दिन गांव में झगड़ा होता रहा है. एक दिन इन्होंने गांव के ही युवक प्रीतम रजत को मारा पीटा. जिसके बाद इन्हें पुलिस उठाकर ले गई. उसी दिन इनका किसी से गांव में दारू पीकर भी झगड़ा हुआ था. जब वह वहां से छुटकर घर वापस आए तो उसका आरोप भी इन्होंने मुझपर ही लगाया कि उन्हें मेरे कहने पर थाने में बंद कर दिया गया." उन्होंने कहा.

"यह मेरे खिलाफ थाने भी गए कि हम कट्टा लहराते हैं. इनका किसी से भी झगड़ा होता है तो यह मेरा ही नाम लेते हैं. इनके जो भी आरोप हैं वह सभी गलत हैं. जिस 20 तारीख की घटना की संतोष बात कर रहे हैं उस दिन मेरे घर पर मेरे भाई की शादी की हल्दी की रस्म थी. जबकि इन्होंने उन लड़कों के भी नाम लिखा दिए जिन्होंने मुझे चुनाव लड़वाया था. वह सभी ठाकुर समाज के लड़के हैं. यह हमारे खिलाफ थाने और एसपी के यहां भी गए इसके बाद इन्होंने हम पर मुकदमा भी दर्ज करा दिया." यादवेंद्र ने कहा.

वह कहते हैं, "20 अगस्त को गांव की ही दलित महिलाओं से इनका झगड़ा हुआ था. इसके बाद इन्होंने 112 नंबर पर पुलिस को भी बुलाया था. इसकी शिकायत में भी इन्होंने मेरा नाम लिखवा दिया था. और बाद में फिर धरने पर भी बैठ गए. यह कुछ नहीं है यह सिर्फ एक चुनावी रंजिश है. गांव में कभी इससे मेरी बहस तक नहीं हुई है. इससे तो छोड़िए मेरी 32 साल की उम्र में आज तक किसी से झगड़ा नहीं हुआ है."

हमने पूछा कि संतोष कुमार की टांग कैसे टूट गई? इस सवाल पर वह कहते हैं, "इनकी एक टांग टूटी है और दोनों टांगों पर प्लास्टर है. जबकि 20 अगस्त को इनका महिलाओं से झगड़ा हुआ था. मैं उसमें कहीं हूं ही नहीं. यह सिर्फ मुझे फंसाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि मैं जेल में चला जाऊं या मेरी छवि ख़राब कर दी जाए."

वह आगे कहते हैं, "यह सब एक लाख रुपए लेने के लिए झूठे मुकदमे गढ़ते हैं. यह सभी लोग जो एससीएसटी में एक लाख रुपए पाते हैं उसी के लिए यह सब ऐसे करते हैं."

तो क्या दलितों से जुड़े मुद्दे पर जो रिपोर्ट की थी उसके बाद यह झगड़ा नहीं हुआ है? इस सवाल पर वह कहते हैं, "हां हुआ तभी से है, लेकिन मेरा इससे कोई झगड़ा नहीं हुआ है."

आपने इन पर कोई मामला दर्ज कराया है? इस पर वह कहते हैं, "मैंने इन पर कोई मामला दर्ज नहीं कराया है. इनका जिन लोगों से झगड़ा हुआ है उन्हीं ने इन पर मुकदमा दर्ज किया है."

संतोष का कहना है कि आपने अपने नौकर से मुकदमा दर्ज कराया है? इस पर वह कहते हैं, "उन पर प्रीतम ने मुकदमा दर्ज कराया है उसको मेरा नौकर बताया जा रहा है. जबकि इस मामले में मेरा कुछ लेना देना ही नहीं है."

वह आखिर में कहते हैं कि मैं गलत नहीं हूं इसलिए मुझे किसी तरह का डर भय नही हैं. वह यह भी जोड़ते हैं कि अगर ये ठीक हैं तो फिर जब से धरने पर बैठे हैं तो कोई मीडिया इन्हें कवर क्यों नहीं कर रहा है. डीएम कार्यलय पर धरना चल रहा है. इनकी खबर सिर्फ इनका ही न्यूज पोर्टल चला रहा है. या बस इनके समुदाय के लोग ही इनकी खबरें चला रहे हैं.

इस मामले में न्यूजलॉन्ड्री ने महाराजगंज के एसएचओ संतोष कुमार राय से भी बात की. वह कहते हैं, "यह कोई बड़ा मामला नहीं है. इन दोनों (संतोष और यादवेंद्र) की पत्नियां पंचायत चुनाव में उम्मीदवार रही हैं. एक जीत गईं एक हार गईं. इसके बाद से ही इनमें रंजिश चली आ रही है. हमारी स्थानीय जांच में जो सामने आया है उसमें यादवेंद्र प्रताप सिंह का कोई लेना देना नहीं है. संतोष की पत्नी का विवाद पड़ोस में रहने वाली एक महिला से हुआ था. उसका वीडियो भी हमें उपलब्ध कराया गया है."

20 अगस्त को संतोष पर कोई हमला हुआ था? इस सवाल पर वह कहते हैं, "इनपर कोई हमला नहीं हुआ है. इनकी पत्नी और पड़ोस की रहने वाली महिला से झगड़ा हुआ था."

संतोष की टांग कैसे टूटी? इस सवाल पर वह कहते हैं, "टूटी है एक टांग और दोनों टांगों पर प्लास्टर किया हुआ है. वो पुराना मामला है, और उस मामले में मुकदमा लिखा जा चुका है. इनकी मेडिकल रिपोर्ट में भी एक ही टांग टूटी है जबकि प्लास्टर दोनों टांगों पर किया हुआ है. अभी वाले मामले में किसी पुरुष का कोई रोल नहीं है. यह सिर्फ महिलाओं का झगड़ा था. इसमें ना संतोष का कोई लेना है ना ही यादवेंद्र का."

संतोष का आरोप है कि उन्होंने दलितों से जुड़ी कोई खबर की थी उसके बाद उनकी पिटाई की गई है? इस पर वह कहते हैं, "आप उस पर मत जाइए, देखिए ये एक चैनल के ब्यूरो चीफ हैं जिसका बहुजन प्रेरणा कुछ करके नाम है, अब ये उसपर कुछ भी लिख सकते हैं जब ब्यूरो चीफ हैं तो. मूल भावना चुनाव की है. दूसरी बात यहां जो भी काम होता है तो उसमें संतोष टांग अड़ाते हैं. इसलिए इनकी लोगों से नाराजगी हो जाती है. जैसे किसी को पीएम आवास योजना के तहत मकान अलॉट हुआ और वह आवास का पात्र नहीं है तो वह उनकी शिकायत कर देते हैं और आवास कटवा देते हैं. यह एक्टिविस्ट टाइप का काम भी करते हैं. जिनको गलत आवास मिलता है उनके आवास भी कटवा देते हैं ये. इसलिए भी इनका झगड़ा चलता रहता है."

वह आगे कहते हैं, "20 अगस्त को महिलाओं में झगड़ा हुआ था. और यह पुरानी रंजिश के चलते यादवेंद्र पर अभियोग पंजीकृत कराना चाहते हैं. जबकि डायल 112 तीन बार गई थी. उसकी रिपोर्ट में भी जो यह बता रहे हैं वैसी कोई बात नहीं है. देखिए आप ही बताइए ये कई दिन से धरने पर बैठे हैं तो हम मजबूर होकर क्या करेंगे आप ही बताइए? जब यह धरना शुरू किए तो मैं व्यक्तिगत रूप से तीन बार इनके पास गया और 5-5 घंटे तक इनके साथ रहा."

हालांकि यहां एसएचओ संतोष कुमार राय और यादवेंद्र की बातों में फर्क नजर आता है. यादवेंद्र कहते हैं कि यह धरना मेरे खिलाफ चल रहा है जबकि एसएचओ कहते हैं कि यह धरना यादवेंद्र के खिलाफ नहीं चल रहा है. क्योंकि यादवेंद्र उस समय वहां पर थे ही नहीं जब यह घटना हुई.

वह एक सवाल पर कहते हैं, “देखिए जैसे आप दिल्ली में हैं और आपके खिलाफ कोई यहां एफआईआर दर्ज कराने आ जाए तो हमारा फर्ज जांच करने का बनता है. मोबाइल डिटेल्स निकालनी पड़ेगी आपकी लोकेशन कहां की है. ऐसे ही यह मामला है. मान लीजिए मैं आपके खिलाफ यहां धरने पर बैठ जाऊं और मेरे खिलाफ यहां अभियोग पंजीकृत हो जाए. या कोई और बैठ जाए मेरे खिलाफ तो इससे तो जातीय असंतुलन पैदा हो जाएगा. इसमें दलित वाला कोई एंगल नहीं है. आप बताइए कि कोई साधारण पत्रकार से लड़ सकता है क्या? जबकि ये तो यहां पर ब्यूरो चीफ हैं.”

जून में जो दोनों तरफ से एफआईआर दर्ज की गई है उसकी जांच कहां तक पहुची? इस पर वह कहते हैं, "देखिए जब इनका धरना लंब चलेगा तो हमें कुछ न कुछ कार्रवाई तो करनी ही होगी. दूसरी बात इस मामले की विवेचना सीओ साहब कर रहे हैं. जो धाराएं लगाई गई हैं वह सब सात साल के मामले की हैं और सात साल के मामले में अब गिरफ्तारी नहीं कर सकते हैं."

इसके बाद हमने इस मामले में बहुजन प्रेरणा संस्थान के मालिक और संपादक मुकेश भारती से भी बात की, वह कहते हैं, संतोष एक न्यूज कवरेज के लिए एसपी कार्यलय गए थे. जब उस न्यूज को लगाया गया और जिनका उस खबर से संबंध था उन्होंने चिड़न के बाद संतोष को पीटा."

वह क्या खबर थी? इस पर वह कहते है, "किसी दलित के साथ पुलिस ने मारपीट की थी. पुलिस ने गलत सूचना पर दलित को पीटा था. उसमें बीजेपी के कुछ नेता शामिल थे जबकि वह फर्जी मामला था. इसके बाद पीड़ित ने पुलिस के खिलाफ एसपी के यहं शिकायत की. उनका कहना था कि जब हमने कोई अपराध नहीं किया तो फिर पुलिस ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया. संतोष कुमार हमारे यहां करीब 15-16 महीनों से काम कर रहे हैं. और इसी की कवरेज के लिए वह वहां गए थे”

यादवेंद्र सिंह के सवाल पर वह कहते हैं, "जो मारने वाले हैं वह इनके ही गांव के हैं. यह बात सौ प्रतिशत सही है कि खबर के बाद ही संतोष को पीटा गया है. क्योंकि उस खबर का हमने वीडियो भी लगाया था. मैंने डीएम एसपी, पीएम और सीएम, आईजी डीआईजी तक तो इसकी शिकायत की है. उस समय मेरे दवाब में इनके खिलाफ एफआईआर तो दर्ज हो गई लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई. और बल्कि मामले को कमजोर करने के लिए काउंटर एफआईआर उल्टा संतोष पर ही दर्ज करा दी."

"वहीं कुछ दिन बाद फिर से 20 अगस्त को इनके साथ मारपीट की गई. संतोष हमारा पत्रकार है हम उसके साथ खड़े हैं. क्योंकि वो हमारे लिए काम कर रहा था इसलिए वह चोट हमे भी लगी है. क्योंकि वह अपने लिए नहीं बल्कि हमारे संस्थान के लिए काम कर रहा था. मान लीजिए अगर किसी पत्रकार पर कोई आरोप लगता है तो वह उस संस्थान पर भी आरोप लगता है." उन्होंने कहा.

चुनावी रंजिश के सवाल पर वह कहते हैं, "अगर यह चुनाव का कोई मामला होता तो वह तो पिछली बार भी चुनाव लड़े थे. तभी भी कुछ हो सकता था. क्योंकि पिछली बार भी दोनों पार्टियां चुनाव लड़ी थीं. चुनाव होने के दो महीने बाद आप उन्हें मार रहे हैं तो फिर यह चुनाव का मामला कैसे हो गया. आगर चुनावी रंजिश होती तो काउंटिग के दिन होती अब चार महीने बाद नहीं."

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