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छोटे और मझोले किसानों की पोल्ट्री भी अब एक नई गाइडलाइन के दायरे में होगी

पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण के लिए देश में पांच हजार से ज्यादा और एक लाख से कम बर्ड रखने वाले पोल्ट्री फार्म भी अब एक नई गाइडलाइन के तहत रेग्युलेटेड दायरे में रहेंगे. इस छोटे और मध्यम आकार वाली इंडस्ट्री को हरित श्रेणी से बाहर कर दिया गया है. ऐसे में बड़े किसानों की तरह छोटे और सीमांत किसानों को भी पोल्ट्री से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए कदम उठाने होंगे.

वर्ष 2015 की संक्षिप्त गाइडलाइन के बाद पहली बार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अगस्त, 2021 में विस्तृत और विविध पक्षों को शामिल करते हुए गाइडलाइन जारी की है.

नई गाइडलाइन में कहा गया है कि एक ही जगह पर मध्यम आकार यानी 25 हजार से एक लाख बर्ड तक की संख्या वाली पोल्ट्री स्थापित और संचालित करने के लिए संबंधित पोल्ट्री को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समिति से जल कानून 1974 और वायु कानून, 1981 के तहत कंसेट टू इस्टेबलिशमेंट (सीटीई) या कंसेट टू ऑपरेट (सीटीओ) का प्रमाण-पत्र भी लेना होगा, यदि हरित श्रेणी में कोई पोल्ट्री होगी तो अनुमति 15 वर्षों के लिए मान्य होगी.

देश में पोल्ट्री फॉर्म में पक्षियों की संख्या के हिसाब से पहली बार तीन श्रेणियां बनाई गई हैं. इन तीन श्रेणियों में छोटे और लघु स्तर के पोल्ट्री फॉर्म को सप्ष्ट किया गया है.

- 5 से 25,000: स्मॉल कैटेगरी

- 25,000 से अधिक और 100,000 से कम: मीडियम कैटेगरी

- 100,000 से अधिक: लार्ज कैटेगरी

20वें लाइवस्टॉक सेंसस के मुताबिक देश में 85.18 करोड़ (851.8 मिलियन) पोल्ट्री पॉपुलेशन है. इसमें करीब 30 फीसदी (25 करोड़) बैकयार्ड पोल्ट्री है. पोल्ट्री सेक्टर में संगठित क्षेत्र करीब 80 फीसदी है और असंगठित क्षेत्र करीब 20 फीसदी है. दरअसल असंगठित क्षेत्र को बैकयार्ड पोल्ट्री भी कहकर पुकारा जाता है.

नई गाइडलाइन में कहा गया है कि 5 से 25000 की संख्या वाली पोल्ट्री यानी बैकयार्ड पोल्ट्री को ज्यादातर आर्थिक पिछड़े और असंगठित क्षेत्र के छोटे और सीमांत किसान संभालते हैं. इनमें ज्यादातर वह खुद के उपभोग के लिए बर्ड रखते हैं और उनके पास एक छोटी सी मात्रा व्यावसायिक बिक्री के लिए उपलब्ध होती है.

ग्रामीण और आदिवासी किसानों के जरिए मुक्त दायरे या बैकयार्ड या सेमी इंटेसिव सिस्टम के तहत पोल्ट्री फार्मिंग करने वाले किसानों को रूरल पोल्ट्री फार्मिंग कहकर पुकारा जाता है.

रूरल पोल्ट्री फार्मिंग गरीब से भी गरीब किसानों के लिए भरण-पोषण का अतिरिक्त साधन भर है। पोल्ट्री सेक्टर में ज्यादातर छोटे और मध्यम किसान मुख्य रूप से कांट्रेक्ट फार्मिंग सिस्टम से जुड़े हुए हैं. 19वे लाइवस्टॉक सेंसस के मुताबिक ऐसे किसानों की संख्या करीब तीन करोड़ है.

सीपीसीबी ने पोल्ट्री, हेचरी और पिगरी यानी पक्षियों, अंडे और सूकर पालन को हरित श्रेणी में रखा था. इसके बाद पर्यावरण कार्यकर्ता गौरी मुलेखी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में 2017 में गाइडलाइन पर आपत्ति करते हुए यह मामला उठाया. उनका कहना था कि पॉल्ट्री फार्म पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं इसलिए छोटे पोल्ट्री फार्म (5 हजार से अधिक पक्षी वाले) भी रेग्युलेटेड होने चाहिए.

मामले में एनजीटी ने 16 सितंबर, 2020 को अपने आदेश में कहा, "सीपीसीबी को पोल्ट्री फॉर्म को हरित श्रेणी में रखने और वायु, जल और पर्यावरण संरक्षण कानून से मुक्त रखने वाली गाइडलाइन को रीविजिट करना चाहिए. यदि गाइडलाइन तीन महीने में जारी नहीं होती है तो एक जनवरी, 2021 से सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और समिति संचालन अनुमति प्रक्रिया (कंसेट मैकेनिज्म) का पालन करेगी. ऐसे सभी पोल्ट्री फॉर्म जो 5000 बर्ड से ज्यादा रखती हैं उनके लिए संचालन की अनुमति की प्रक्रिया वहीं होनी चाहिए जो कि एक लाख से अधिक पक्षियों के रखने पर है."

पोल्ट्री फार्म में मीट और अंडों के लिए चिकन, टर्की, बत्तख, गूज आदि का पालन किया जाता है. ब्रीडिंग के अलावा जो चिकन अंडे के लिए तैयार किए जाते हैं उन्हें लेयिंग हेन्स या लेयर्स करते हैं और जो चिकन मीट के लिए तैयार होते हैं उन्हें ब्रॉयलर्स कहते हैं. पोल्ट्री फार्म में सबसे ज्यादा चिकन की संख्या होती है.

वर्ष 2020 लाइवस्टॉक सेंसस के मुताबिक कुल 85 करोड़ पोल्ट्री में सर्वाधिक पोल्ट्री तमिलनाडु (12.07 करोड़), आंध्र प्रदेश (10.78 करोड़), तेलंगाना (7.99 करोड़), पश्चिम बंगाल (7.73 करोड़), महाराष्ट्र ( 7.42 करोड़), कर्नाटक ( 5.94 करोड़), असम (4.67 करोड़), केरल (2.97 करोड़) में है.

किसानों की आय को 2022 तक बढ़ाने के लिए नेशनल एक्शन प्लान फॉर एग एंड पोल्ट्री-2022 रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 में कुल पोल्ट्री की संख्या 72 करोड़ थी. इनमें 23 करोड़ बैकयार्ड पोल्ट्री थी.

पोल्ट्री फार्मिंग बढ़ रही है और इसका पर्यावरणीय खतरा भी बढ़ रहा है.

नई गाइडलाइन में प्रमुख प्रावधान

- गैसीय उत्सर्जन और मल-मूत्र व कचरा पोल्ट्री की एक बड़ी समस्या है. पोल्ट्री पक्षियों के मल से अमोनिया (एनएच3) और हाइड्रोजन सल्फाइड (एच2एस) का गैसीय उत्सर्जन होता है जो कि गंध पैदा करता है. एक ही जगह पर लंबे समय के लिए मल को एकत्रित करने से मीथेन गैस गंध के साथ पैदा होती है. ऐसे में छोटे और मध्यम पोल्ट्री को इन सब बातों का अब ध्यान रखना होगा.

- गाइडलाइन में कहा गया है कि पोल्ट्री से होने वाली गैसीय प्रदूषण को कम करने के लिए हवादार कमरा होना चाहिए. साथ ही पोल्ट्री की खाद (मैन्योर) बहते हुए पानी या किसी अन्य कीटनाशक से न मिलने पाए, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए. वहीं, पोल्ट्री में मर जाने वाले पक्षियों को रोजाना हटाना और बिना पर्यावरण नुकसान पहुंचाए दफनाने के लिए भी जोर दिया गया है. मसलन भू-जल स्तर से तीन मीटर ऊपर दफन करना चाहिए.

- फार्म में बर्ड्स के बीच उचित दूरी बनाने और चूहे और मक्खियों से बचाव के लिए भी उचित प्रबंध करने को कहा गया है.

- इसके अलावा चारे की मिक्सिंग और उन्हें तैयार करते समय उड़ने वाली धूल भी लोगों को परेशान करती है. इसके लिए एक कक्ष ऐसा गेट पर ही बनाना होगा जहां मिक्सिंग के दौरान धूल न उड़े.

- छोटे और मध्य्म आकार वाले पोल्ट्री फार्म के किसानों को खाद की व्यवस्था करनी होगी. मसलन छोटे पोल्ट्री में कंपोस्टिंग और मध्ययम आकार वाले कंपोस्टिंग के साथ बायोगैस की व्यवस्था भी करनी होगी.

- पोल्ट्री में पानी का इस्तेमाल करने के बाद उसे टैंक में एकत्र करना होगा. इस पानी का इस्तेमाल बागबानी में करने का सुझाव दिया गया है.

- राज्य और जिला स्तर पर गाइडलाइन पालन कराने की जिम्मेदारी एनिमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट की होगी.

पोल्ट्री स्थापित करने का दायरा

- आवासीय इलाके से 500 दूर

- नदी, झील, नहर और पेयजल स्रोतों से 100 मीटर की दूरी

- राष्ट्रीय राजमार्ग से 100 मीटर और गांव की पगडंडी व ग्रामीण सड़क से 10-15 की दूरी

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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