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क्या उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के ब्राह्मण सम्मेलनों का कोई फायदा होगा?
उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में जातिगत समीकरण समझने के लिए 1 अगस्त से शुरू कर के बीते 20 दिनों में अब तक मैं पश्चिम के नौ जिलों की करीब 25 विधानसभाओं में घूम चुका हूं. इनमें सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, बुलंदशहर, हाथरस जिले शामिल हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की संख्या करीब 8–9 प्रतिशत बतायी जाती है जिनमें अधिसंख्य त्यागी समुदाय से हैं, बाकी शर्मा, भारद्वाज और अन्य ब्राह्मण उपजातियां आती हैं. ब्राह्मण वोटर से योगी सरकार के कामकाज से जुड़े सवाल करने पर कई दिलचस्प जवाब सुनने को मिल रहे हैं.
बुलंदशहर विधानसभा का खण्डवाया गांव ब्राह्मण बहुल्य है. इस गांव में 70 फीसद के करीब ब्राह्मण जाति के लोग रहते हैं. बाकी की आबादी जाटव (दलित) लोगों की है. यहां के धर्मवीर शर्मा कहते हैं, "बीजेपी से पहले की सरकारों ने कोई काम नहीं किया है, ये सरकार अयोध्या में मंदिर तो बना रही है जबकि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि अयोध्या में कभी मंदिर बने."
मीडिया में चल रही चर्चाओं से उलट वे मानते हैं कि सबसे ज्यादा ब्राह्मण इसी सरकार में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. वर्तमान सरकार में ब्राह्मणों की अनदेखी के सवाल पर वो कहते हैं, "ये सरकार ब्राह्मणों की ही तो है, योगी जी ने हमेशा हिंदुत्व की ही तो बात की है. हिंदुत्व की बात क्या कभी सपा और बसपा ने की है?"
गाज़ियाबाद के पतला गांव के विनय भरद्वाज सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. वे कहते हैं, "उन्होंने केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में योगी सरकार को बहुत भरोसे से वोट किया था, मगर ये जनता के विश्वास पर खरे नहीं उतरे हैं. वे पूछते हैं, "गरीब आदमी गरीबी से पिस रहा है, मजदूर आदमी मजदूरी से पिस रहा है. 12 घंटे की सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए सात हजार रूपये मिल रहे हैं. इतने पैसों से किसका गुजारा हो सकता है, जबकि महंगाई बढ़ती ही जा रही है?"
वे पेट्रोल की कीमत 100 के पार गिनवाते हैं, 150 पर पहुंचे सरसों के तेल पर चिंता जताते हैं और गैस सिलेंडर के दाम का रोना रोते हैं लेकिन वोट करने के सवाल पर विनय कहते हैं, "वोट तो हम फिर भी बीजेपी को ही देंगे. हम ब्राह्मणों के पास और कोई चारा भी तो नहीं है."
अपनी बात को और मजबूती से रखने के लिए वे कहते हैं, "योगी जी हमारे पिता समान हैं और यदि कोई बाप नालायक निकल जाए तो उसको छोड़ थोड़े न देते हैं. हमने अपना वचन पूरा किया और वोट किया, अब योगी जी अपने वादे से मुकर गए तो इसमें हमारी क्या गलती, लेकिन वोट फिर भी हम मोदी को ही देंगे."
छह महीने बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. सभी छोटी-बड़ी पार्टियां अपना-अपना समीकरण साधने में लगी हैं. जहां बसपा ब्राह्मणों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए सम्मेलन कर रही है, वहीं सपा ने जनेश्वर मिश्र के जन्मदिन से चुनाव प्रचार की शुरुआत कर के पहली चुनावी जनसभा ब्राह्मणों पर ही केंद्रित रखी. बसपा में सतीश चंद्र मिश्रा लगातार जिले-जिले ब्राह्मण सभाएं कर रहे हैं. बसपा ब्राह्मण बहुल उन जिलों को टारगेट कर रही है जिन में ब्राह्मणों की जनसंख्या 15 से 16 प्रतिशत है. ये जिले वाराणसी, गोरखपुर, देवरिया, कानपुर, जौनपुर, संत कबीर नगर, अमेठी, प्रयागराज, बस्ती, बलरामपुर, महराजगंज हैं. इसमें से अधिकतर जिलों में बसपा अपनी जनसभा लगातार कर रही है. ब्राह्मण वोटर पर हालांकि इसका कुछ खास असर पड़ता नहीं दिख रहा.
इन जनसभाओं में सतीश चंद्र मिश्रा एक लाइन जरूर दोहराते हैं, "12 प्रतिशत ब्राह्मण और 22 प्रतिशत दलित अगर मिल जाए, तो उत्तर प्रदेश में बसपा को सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता." इस बयान के आलोक में देखें तो 2007 में जब बसपा 206 सीटें जीतकर सत्ता में आयी थी, तब पार्टी को ब्राह्मणों का 41 फीसद वोट मिला था जबकि वर्तमान समय में समीकरण काफी बदल चुके हैं. जहां पहले कांग्रेस को ब्राह्मणों की पार्टी कहा जाता था आज ब्राह्मण कांग्रेस के साथ भी नहीं खड़े हैं. कांग्रेस को ब्राह्मणों की पार्टी कहे जाने के पीछे का कारण था उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का मुख्यमंत्री बनना. आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश में 1989 तक 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का प्रभुत्व कम होने का एक महत्वपूर्ण कारण मण्डल कमीशन का लागू होना माना जाता है. मण्डल कमीशन के आने के बाद पिछड़ी बहुसंख्यक जातियों का प्रभुत्व बढ़ने लगा और सवर्ण जातियों का प्रभुत्व कम होने लगा. छोटी-छोटी जातियों के आधार पर पार्टियों का उदय हुआ और बड़ी पार्टियों का वर्चस्व खत्म होने लगा. 1990 से 2012 के बीच कई बार सपा और बसपा सत्ता में रहीं, मगर उन्हें ब्राह्मणों का एकमुश्त वोट कभी नहीं मिला. इसके पीछे एक कारण यह था कि ब्राह्मणों का इन पार्टियों में अपने अस्तित्व को न पाना. 2012 में जब सपा की सरकार बनी थी तो पार्टी को महज 21 प्रतिशत ही ब्राह्मण वोट मिला था जबकि पार्टी ने काफी बड़ी संख्या में ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट बांटे थे.
2017 के चुनाव परिणाम देखें तो 56 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे. इसमें से बीजेपी के 46 विधायक, बसपा और सपा से तीन-तीन, कांग्रेस से एक ब्राह्मण विधायक विधानसभा पहुंचे. इसमें यदि ब्राह्मण जातियों का वोट प्रतिशत देखें तो भाजपा को करीब 80 फीसदी ब्राह्मण वोट मिला है. ब्राह्मण जातियों का एक पार्टी को इतनी बड़ी संख्या में वोट देना भाजपा के प्रति उसके भरोसे को दर्शाता है. यही वजह है कि महंगाई, रोजगार, कृषि बिल ब्राह्मणों को कोई समस्या का विषय नहीं लगता है और ये अंतत: वोट बीजेपी को ही करना चाहते हैं.
ब्राह्मण वोटर सामान्यत: मंदिर निर्माण, हिंदुत्व, अनुच्छेद 370 के जम्मू-कश्मीर से हटाए जाने, तीन तलाक, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दों पर काफी उत्साहित नजर आते हैं. कई ऐसे ब्राहमण हैं जो बीजेपी सरकार की बहुत सी नीतियों, महंगाई, बेरोजगारी से काफी नाराज भी हैं, लेकिन वोट के सवाल पर मुद्दा बदल जाता है.
मुरादनगर विधानसभा के अवधेश त्यागी कहते हैं, "अगर चीजें महंगी हुई हैं तो इसमें सरकार की क्या गलती है? विदेश में तेल महंगे हुए हैं इसलिए ही तो सरकार महंगा तेल बेच रही है. सरकार फ्री में राशन और वैक्सीन दे रही है तो इसके पैसे कहीं से तो लिए ही न जाएंगे? इतने हाईवे बन रहे हैं तो सरकार कहीं से तो भरपाई करेगी ही.”
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे ब्राह्मण किसान बहुतायत में है जिनकी खेती का रकबा 50 बीघे से ज्यादा नहीं है. दिल्ली में नौ महीने से चल रहे किसान आंदोलन का गाजीपुर मोर्चा राकेश टिकैत की अगुवाई में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का ही खड़ा किया हुआ है लेकिन इस क्षेत्र के ब्राह्मण किसानों की राय जाट किसानों से अलग है.
किसानों की दोगुनी आय के वादे पर अवधेश त्यागी कहते हैं, “कोई भी सरकार किसानों की आय दोगुनी नहीं कर सकती, इसमें इस सरकार की कोई गलती नहीं है.” गन्ने के बकाया पेमेंट पर हालांकि त्यागी सरकार की कुछ गलती मानते हैं, "हां, सरकार कृषि के मामले में थोड़ी कमजोर साबित हुई है, फिर चाहे तीनों कृषि बिल हों या गन्ने के रेट को बढ़ाने की बात हो, लेकिन हम फिर भी बीजेपी के साथ हैं."
अलग-अलग कारणों से सरकार से नाराजगी के बावजूद ब्राह्मणों के सामने विकल्प का सवाल अहम है. हर जगह एक जैसी ही बात सुनने को मिलती है कि ब्राह्मण जाए भी तो किस पार्टी में? वे कहते हैं, "मायावती सरकार में आती हैं तो जाटवों के लिए काम करने में लग जाती हैं. जब सपा आती है तो मुसलमानों और यादवों के अलावा उसे कोई और दिखायी ही नहीं देता है. हम बीजेपी में न जाएं तो कहां जाएं?"
बसपा के ब्राह्मण सम्मेलनों पर धर्मवीर शर्मा पूछते हैं, "जो बसपा कभी तिलक, तराजू और तलवार की बात करती थी आज उसके वो नारे कहां चले गए हैं? वो ब्राह्मण सम्मेलन क्यों करना चाहते हैं? आज जब चुनाव हैं तो वो ब्राह्मणों की खुशामद कर रहे हैं?"
(साभार- जनपथ)
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