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इस 25 फीसदी उत्सर्जन से निपटना बहुत मुश्किल- रिपोर्ट
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल यानी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सदी में तापमान तभी 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहेगा जब उत्सर्जन 2050 तक शून्य होगा. दुनिया भर में बिजली, परिवहन और गर्म करने के उपकरण 80 फीसदी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है. यहीं वो चीजें हैं जो शून्य (नेट जीरो) उत्सर्जन हासिल करने के आड़े आने वालों में सबसे आगे हैं. हालांकि नेट जीरो तक पहुंचने का अर्थ है 20 फीसदी तक पहुंचना, रिपोर्ट में कहा गया है कि इस उत्सर्जन से निपटना बहुत मुश्किल है.
कृषि, प्लास्टिक, सीमेंट, और अपशिष्ट से वातावरण में होने वाले उत्सर्जन को कम से कम पांच फीसदी अतिरिक्त कम किया जाना चाहिए. यह तय है कि इनसे हम आसानी से छुटकारा नहीं पा सकते हैं. इन सभी को 'अंतिम 25 फीसदी' के रूप में जाना जाता है. नेट जीरो को तब तक हासिल नहीं किया जा सकता हैं जब तक कि इनसे न निपटा जाए.
यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों की एक श्रृंखला से बना हुआ है, जो प्रदूषण-बेल्चिंग-कार्बन-बर्निंग अथवा पावर स्टेशनों से निकलने वाले उत्सर्जन की तुलना में इनके उत्सर्जन को रोकना कठिन हैं. इस तरह के उत्सर्जन को एक बटन दबाकर या एक नई कार खरीदकर दूर नहीं किया जा सकता है. लेकिन ये सब मिलकर टनों ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन लिए जिम्मेदार हैं.
समस्याओं की जांच करने, नई चीजें अपनाने और नीतियों के सुझाव के लिए, ऑक्सफोर्ड के स्मिथ स्कूल ऑफ एंटरप्राइज एंड द एनवायरनमेंट ने 'अंतिम 25 फीसदी' प्रोजेक्ट से निष्कर्ष प्रकाशित किए है. परियोजना ने अग्रणी उद्योग, निवेशक, अकादमिक, नागरिक समाज और नीतिगत विशेषज्ञता में निवेश के रोडमैप तैयार करने के लिए बुलाया ताकि हमें प्रौद्योगिकी के साथ नेट जीरो हासिल करने का मौका मिल सके.
ऑक्सफोर्ड के स्मिथ स्कूल ऑफ एंटरप्राइज एंड द एनवायरनमेंट के निदेशक, प्रोफेसर कैमरन हेपबर्न कहते हैं, "अगर हमें नेट जीरो हासिल करना है तो हमारी रिपोर्ट में पहचाने गए अंतिम 25 फीसदी उत्सर्जन से निपटना होगा. हालांकि, उन्हें कम करने या समाप्त करने का मतलब कुछ वास्तविक परिवर्तनों से है. यह सुनिश्चित करने के लिए अनुसंधान एवं विकास में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है."
रिपोर्ट में अंतिम 25 फीसदी से निपटने के लिए कई चुनौतीपूर्ण तरीकों पर विचार किया गया है, जिनमें शामिल हैं:
· पौधों को उगाने के लिए या तो उत्पाद, कच्चा माल (फीडस्टॉक) के लिए या ग्रीनहाउस गैस हटाने के लिए अर्ध-शुष्क और लवणीय भूमि का उपयोग करना. यहां बताते चलें कि फीडस्टॉक- मशीन या औद्योगिक प्रक्रिया की आपूर्ति या ईंधन के लिए कच्चा माल है.
· टिकाऊ पॉलिमर बनाने के लिए बायोमास और वायुमंडलीय सीओ2 का उपयोग करना.
पौधों, कीड़ों और शैवाल सहित वैकल्पिक प्रोटीन को अपनाना, जो प्रकृति-आधारित ग्रीन हाउस गैस हटाने जैसी पर्यावरणीय सेवाओं के लिए उपयोग की जाने वाली जमीन को मुक्त कर देगा.
डॉ, कैथरीन कोलेट कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए नवीकरणीय बिजली उत्पादन करना आवश्यक है. नेट जीरो तक पहुंचने के लिए, प्लास्टिक, प्रोटीन और पौधों के बीच की प्रणालियों को समझना महत्वपूर्ण हैं. रिपोर्ट इन प्रणालियों की संभावनाओं का विस्तार से पता लगाती हैं, जो शोध, नीति विकास, विनियमन और वित्तपोषण विकल्पों के लिए आगे का रास्ता बताती हैं."
ऑक्सफोर्ड के इकनॉमिक रिकवरी प्रोजेक्ट के ब्रायन ओ कैलाघन बताते हैं, "कोविड-19 के चलते, हरित नवाचार में सरकारी निवेश जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद कर सकता है और लंबे समय में नए उद्योगों को आर्थिक विकास के पावर हाउस के रूप में खड़ा करने में मदद कर सकता है."
उत्पादों में कार्बन की औद्योगिक आवश्यकता
अब दुनिया भर के लोगों में पर्यावरण में प्लास्टिक की समस्या के बारे में काफी जागरूकता है. रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पॉलिमर (प्लास्टिक), डामर, कार्बन फाइबर, फार्मास्यूटिकल्स, स्नेहक, सॉल्वैंट्स और उर्वरक सहित पेट्रोकेमिकल-आधारित सामग्री की आवश्यकता जल्दी समाप्त होने वाली नहीं है. इनका उपयोग आधुनिक आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों में आवश्यक हैं. नेट जीरो तक पहुंचने के लिए नए तरीकों की जरूरत है.
विशेष रूप से, स्थायी प्लास्टिक के निर्माण के लिए समाधान की तत्काल आवश्यकता है, जो कि कच्चे माल (फीडस्टॉक) के रूप में तेल के साथ अत्यधिक उत्पादित किए जाते हैं.
रिपोर्ट बताती है कि टिकाऊ कच्चा माल के विकल्पों में अनुसंधान को तेज करने की आवश्यकता है, साथ ही यह भी विचार करना कि उत्पाद के जीवन के अंत में क्या होगा, क्या इसे रीसाइक्लिंग या इसे नष्ट किया जा सकता है?
· प्लास्टिक बनाने के लिए वैकल्पिक टिकाऊ कच्चा माल, जैसे बायोमास प्लांट और वातावरण से सीओ2 का उपयोग करना.
· रीसाइक्लिंग के लिए उत्पादों को डिजाइन करके और वैकल्पिक रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों की जांच करके, रीसाइक्लिंग दरों में वृद्धि करना, जो ऐतिहासिक रूप से 10 फीसदी से कम रहा है.
· समय के साथ टिकाऊ पॉलिमर उत्पादन की आवश्यकता के लिए नीति को लागू करना, उद्योगों को समय के अनुसार नए उत्पादों के विकास और उनके वितरण के लिए अनुमति देना.
वैकल्पिक प्रोटीन का जलवायु प्रभाव
पशु उत्पादों का कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 16 फीसदी हिस्सा है और इसके 2050 तक 35 फीसदी तक बढ़ने के आसार हैं, पशु उत्पादों की मांग में वृद्धि के साथ, भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इसके बढ़ने का अनुमान है.
रिपोर्ट में पारंपरिक पौधों पर आधारित प्रोटीन (जैसे टोफू, नट्स, मटर, बीन्स), कीड़े, माइकोप्रोटीन (जैसे क्वार्न द्वारा उत्पादित उत्पाद), शैवाल (जैसे स्पिरुलिना), बैक्टीरिया से प्राप्त प्रोटीन सहित प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोतों के उपयोग की सिफारिश की गई है. साथ ही लगभग शून्य उत्सर्जन हासिल करने के इन विकल्पों के उपयोग का मतलब है कि चराई भूमि को पारिस्थितिक रूप से बहाल किया जा सकता है और प्राकृतिक ग्रीन हाउस गैस को हटाने की सुविधा प्रदान की जा सकती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इस तरह के उत्सर्जन को कम करना है, तो इस पर तत्काल शोध की आवश्यकता है:
· जीवाणु और कल्चर्ड मांस का उपयोग.
· माइकोप्रोटीन और कीड़ों के लिए नए पौधों के रूप में कच्चा माल (फीडस्टॉक्स).
· हरे अथवा पर्यावरण के अनुकूल उर्वरक और कृषि भूमि को प्रकृति आधारित ग्रीन हाउस गैस हटाने में परिवर्तित करने की क्षमता का मानचित्रण करना.
· सीओ2 के लिए प्रकृति आधारित 'सिंक' और कार्बन फीडस्टॉक के स्रोत बढ़ाना.
प्रकृति का उपयोग कार्बन अवशोषण (सिंक) के रूप में किया जा सकता है, जो वातावरण से उत्सर्जन को हटाता है, जिसे अक्सर ग्रीनहाउस गैस निष्कासन कहा जाता है. पौधों के रूप में कार्बन-भारी फीडस्टॉक के स्रोत के रूप में उपयोग होता है. प्रकृति इन दो भूमिकाओं को कैसे पूरा कर सकती है, इसे समझने के लिए तीन मुख्य विकल्पों का पता लगाया जाता है.
चराई भूमि के साथ-साथ हाल ही में वनों की कटाई वाले अन्य क्षेत्रों को वनों के फिर से उगने के लिए छोड़ा जा सकता है. जो एक और सीओ2 अवशोषण (सिंक) प्रदान करता है. इसके अलावा, मृदा कार्बन को बढ़ाया जा सकता है. एक और कार्बन सिंक प्रदान करने और संभावित रूप से फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए ऐसा किया जा सकता है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
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