Report
"तीसरे लिंग को मान्यता तो मिल गई लेकिन सड़क पर उसे टॉयलेट नहीं मिल रहा"
"दिल्ली के कोने-कोने में सार्वजनिक शौचालय बने हुए हैं. लेकिन आपने गौर किया होगा इन शौचालय के बाहर 'पुरुष' और 'स्त्री' लिखा रहता है. जब कानून ने हमको तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी है तो सरकार यह भेदभाव क्यों कर रही है." यह शब्द माहिरा कुरैशी के हैं.
25 वर्षीय माहिरा रिसेप्शनिस्ट की नौकरी करती हैं. उनका कहना है कि दिल्ली में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए सार्वजनिक शौचालय न होने के कारण प्रतिदिन उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
"अधिकतर किन्नर, महिलाओं के लिए बनाए गए शौचालय का उपयोग करते हैं. लेकिन जब हम उनके टॉयलेट में जाते हैं तो वो हमें घूरकर देखने लगती हैं. उन्हें असहज लगने लगता है कि ट्रांसजेंडर लेडीज़ शौचालय में क्यों आ गए. बहुत बार कार के पीछे जगह ढूंढ़नी पड़ती है. ऐसे में बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है." माहिरा आगे कहती हैं.
23 वर्षीय गौरी अमेज़ॉन में काम करती हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "शौच के लिए सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करने से पहले कई बार सोचना पड़ता है. पुरुष हमें सही नज़रों से नहीं देखते. महिलाएं कई बार उल्टा- सीधा भी बोल देती हैं. कई औरतें मुझसे पूछ लेती हैं कि आप लड़के हो या लड़की. समाज के इस बर्ताव से बचने के लिए हमें शौच रोककर चलना पड़ता है. रस्ते में कोना ढूंढ़कर शौच करने में शर्म आती है. रूककर देखना पड़ता है कहीं शौचालय में कोई महिला तो नहीं. महिलाओं वाला शौचालय जब खाली होता है तभी उसका इस्तेमाल करती हूं."
वहीं 25 वर्षीय महक कहती हैं, "शौचालय न होने के कारण हमें खुले में जाना पड़ता है. कभी पेड़ के पीछे जगह ढूंढते हैं, कभी किसी कार के पीछे छुपकर शौच कर लेते हैं. ऐसे में मर्दों की नज़रें हम पर रहती हैं. उनकी नज़रें गलत जगह पर जाती हैं."
माहिरा, गौरी और महक जैसी कई ट्रांसजेंडर हैं जो सार्वजनिक शौचालय के अभाव में रोज़ाना भेदभाव और उत्पीड़न से गुज़रती हैं.
बता दें कि 26 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडरों के लिए अलग सार्वजनिक शौचालय बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की. कोर्ट ने केंद्र, दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय राजधानी के सभी नगर निकायों को नोटिस जारी किया. मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने अधिकारियों को याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. अगली सुनवाई 13 सितम्बर को है.
इस मामले में हमने याचिकाकर्ता जैसमीन कौर छाबरा से बात की. वो कहती हैं, "हम जब भी सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं, हमेशा बाहर 'पुरुष', 'स्त्री' और 'दिव्यांग' लिखा रहता है. ट्रांसजेंडरों के लिए कोई अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है. तीसरे लिंग द्वारा मजबूरी में पुरुष या स्त्री का शौचालय इस्तेमाल करना, उनकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है. जब वो पुरुष शौचालय का उपयोग करते हैं, वो यौन उत्पीड़न का शिकार होते हैं. वहीं महिलाएं उनको घूरती हैं जो ट्रांसजेंडरों को असामाजिक जैसे महसूस कराता है. यही सोचकर हमने कोर्ट में पीआईएल फाइल की थी."
ट्रांसजेंडर के लिए अलग टॉयलेट पर क्या कहता है कानून?
बता दें कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान के साथ अपना जीवन जीने का अधिकार देता है. इस अनुच्छेद में निजता को मौलिक अधिकार माना गया है. चूंकि ट्रांसजेंडर के लिए कोई सार्वजनिक शौचालय नहीं है, इसलिए उन्हें मजबूरन पुरुष शौचालयों का उपयोग करना पड़ता है. अक्सर इस हालात में उन्हें यौन उत्पीड़न का शिकार भी होना पड़ता है.
अगर महिलाओं के शौचालय में कोई ट्रांसजेंडर प्रवेश करती है तो महिलाएं उसे तीखी नज़रों से घूरती हैं. लेकिन पिछले तीन सालों में दिल्ली में केवल एक पब्लिक ट्रांसजेंडर शौचालय का निर्माण हुआ है जो केंद्रीय दिल्ली में निर्माण भवन के पास बना है.
साल 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर लोगों को "तीसरे लिंग" का दर्जा देते हुए एक व्यक्ति को उनके लिंग का निर्धारण करने का अधिकार दिया. फैसले में अस्पतालों सहित सार्वजनिक स्थानों पर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग शौचालय का निर्देश शामिल था. जनवरी 2021 को, नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) ने अपने वार्षिक बजट में ट्रांस व्यक्तियों के लिए अलग शौचालय बनाने की योजना की घोषणा की थी.
एनडीएमसी ने 28 जून को ट्रांसजेंडर लोगों के उपयोग के लिए पहले सार्वजनिक शौचालय का उद्घाटन किया. शास्त्री भवन के पास प्रेस क्लब ऑफ इंडिया पार्किंग में शौचालय सुविधा का उद्घाटन एनडीएमसी के अध्यक्ष और सचिव ने किया था.
इस पर माहिरा कहती हैं, "सरकार ने पूरी दिल्ली में ट्रांसजेंडरों के लिए एक या दो सार्वजनिक शौचालय बनाए हैं. मैं जहांगीरपुरी रहती हूं. मेरा अधिकतर काम भी आदर्श नगर या नार्थ कैंपस रहता है. मैं यहां से शास्त्री भवन नहीं जाउंगी. अगर सरकार ने हमें तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी है तो पूरी तरह से मान्यता दे. हमारी ज़रूरतें हैं जिनके लिए सरकार को सोचना चाहिए."
न्यूज़लॉन्ड्री ने कई ट्रांसजेंडरों से बात की. किसी को भी यह जानकारी नहीं थी की शास्त्री भवन के पास ट्रांसजेंडर को समर्पित कोई सार्वजनिक शौचालय बनाया गया है.
वहीं साल 2017 में स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत इस विषय में नई गाइडलाइन्स जारी हुई थीं. इसके मुताबिक ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए अलग टॉयलेट सीट की व्यवस्था करने को कहा गया था. केंद्र सरकार ट्रांसजेंडर के कम्युनिटी टॉयलेट बनवाने के लिए 65000 रुपये प्रति सीट और सार्वजनिक शौचालय के लिए 75000 रुपये प्रति सीट देती है.
ट्रांसजेंडर के लिए सार्वजनिक शौचालय तैयार होने में लगेंगे दो साल, दिव्यांगजन के लिए शौचालय का कर सकते हैं उपयोग
दिल्ली सरकार द्वारा फरवरी 2021 में जारी एक नोटिस के अनुसार ट्रांसजेंडर पर्सन्स प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स एक्ट के सेक्शन 22 के तहत ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था करना अनिवार्य है. इन सार्वजनिक शौचालय को बनने के लिए दो साल का समय लग सकता है. तब तक के लिए ट्रांसजेंडर दिव्यांग के लिए बने शौचालय का प्रयोग कर सकते हैं. लेकिन अगर वे चाहें तो पुरुष या महिलाओं के लिए आरक्षित शौचालय का प्रयोग भी कर सकते हैं.
ट्रांसजेंडर रेहाना न्यूज़लॉन्ड्री से कहती हैं, “ट्रांसजेंडर बिलकुल आम इंसान की तरह ही होते हैं. वो दिव्यांग के लिए बनाए शौचालय का प्रयोग क्यों करेंगे? हम में कोई शारीरिक दोष नहीं है. ट्रांसजेंडरों को दिव्यांगजन के लिए बनाए शौचालय भेजना हमारे समुदाय के लिए अपमान के समान है."
दिल्ली सरकार को अब तक केंद्र सरकार से ट्रांसजेंडर शौचालय बनवाने के लिए कितना बजट दिया गया है और उसका किस तरह से प्रयोग किया है इसके लिए जैसमिन द्वारा आरटीआई भी डाली जा चुकी है. हालांकि अब तक जवाब नहीं आया है.
***
न्यूज़लॉन्ड्री के स्वतंत्रता दिवस ऑफ़र्स के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
When caste takes centre stage: How Dhadak 2 breaks Bollywood’s pattern
-
What’s missing from your child’s textbook? A deep dive into NCERT’s revisions in Modi years
-
Built a library, got an FIR: Welcome to India’s war on rural changemakers
-
Exclusive: India’s e-waste mirage, ‘crores in corporate fraud’ amid govt lapses, public suffering
-
Modi govt spent Rs 70 cr on print ads in Kashmir: Tracking the front pages of top recipients