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आरक्षण की ग़दर में चित्रा त्रिपाठी की तलवारबाजी और संसद में हंगामा
बीते हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बढ़िया काम किया. लेकिन यह उनके ऊपर भारी पड़ गया. लंबे अरसे से मेडिकल सीटों के ऑल इंडिया कोटे में रुके हुए ओबीसी और आर्थिक पिछड़ों के आरक्षण को उन्होंने जारी करने का एलान किया. इस मौके पर उनका अपना ही अतीत सामने आ गया. आईटी सेल और भाड़े पर खड़ा किए गए सोशल मीडिया के हमलावर मोदीजी पर ही टूट पड़े. भस्मासुरों की फौज अपने ही देवता के सिर पर हाथ रखने को मचल उठी. 29 जुलाई को उसने परधानजी के सिर पर ही अपना आगलगाऊ हाथ रख दिया.
इस दिन #सवर्ण विरोधी भाजपा, #ओबीसी आरक्षण वापस लो, #इंडिया अगेंस्ट रिजर्वेशन, #रिजर्वेशन फ्री इंडिया के साथ साथ एक और हैशटैग ट्रेंड कर रहा था सवर्ण सांसद हिजड़े हैं.
27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ ही मोदीजी ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक पिछड़े कोटे में भी 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी लेकिन उनके इस पुण्य पर उनका 27 प्रतिशत वाला पाप भारी पड़ गया. प्रधानजी की घोषणा पर निंदा रस की बौछार हो गई.
मेडिकल की सीटों में जो ऑल इंडिया कोटा है उसे आप समझ लीजिए, वरना रिजर्वेशन, आरक्षण, ऐतिहासिक अन्याय और प्रिविलेज यानी साधनसंपन्न होने की सतही समझ लोगों को मेरिट के कीचड़ में कुदा देती है. इस गड़बड़ी की शुरुआत 1984 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से होती है. प्रदीप जैन बनाम भारत सरकार के केस में निर्णय देते हुए सु्पीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में एक ऑल इंडिया कोटे का प्रवधान किया. इसके तहत सभी राज्यों में स्थित मेडिकल कॉलेजों की 15 प्रतिशत ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट सीटें रिजर्व करके केंद्र सरकार को सुपुर्द कर दी गईं. लेकिन इसमें आरक्षण लागू नहीं किया. इससे क्या-क्या गड़बड़िया पैदा हुई, उसे समझने के लिए यह पूरा एपिसोड देखिए.
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