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Who Owns Your Media

आपके मीडिया का मालिक कौन है? कई नावों पर सवार टाइम्स ग्रुप

मुंबई के व्यस्त डीएन रोड पर, ऐतिहासिक टाइम्स ऑफ इंडिया की इमारत के अंदर, बरिस्ता कॉफी शॉप बहुत ही शांतिमय स्थान हुआ करती थी. एक परछत्ती से संचालित होने वाले इस कैफ़े का वातावरण भूतल पर स्थित रिटेल म्यूजिक स्टोर प्लेनेटम के शोर-शराबे से बिलकुल विपरीत था. हवा में हमेशा ताज़ी बनी कॉफी की महक घूमती रहती थी, जिसके कारण यह कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों का पसंदीदा अड्डा था. हालांकि कम वेतन वाले पत्रकार मुश्किल से ही इस अभिजात्य ग्राहक वर्ग का हिस्सा बन पाते थे.

इस कॉफी शॉप ने कई साल पहले अपनी दुकान बंद कर दी. प्लेनेटम स्टोर, जिसने अपने तेज़ संगीत और फंकी पोस्टरों से युवा पीढ़ी को अपनी और खींच लिया था, यहां से बाहर कर दिया गया और यह स्थान वीडियोकॉन की रिटेल शाखा को बेच दिया गया. 'सुविधा बैंकिंग' पर आधारित टाइम्स बैंक, जो भूतल पर ही मुख्य प्रवेश द्वार के दूसरी तरफ था, पहले ही एचडीएफसी बैंक को बेच दिया गया था.

बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड, जो टाइम्स ग्रुप के नाम से प्रचलित है, देश के सबसे बड़ा अंग्रेजी अखबार के निर्माता हैं. लेकिन समूह के उपाध्यक्ष समीर जैन के लिए यह दिग्गज मीडिया संस्थान एक प्रयोगशाला की तरह था. जब यह अरबपति मीडिया बैरन तीर्थयात्रा पर नहीं होते तो मुंबई या दिल्ली के कार्यालय में उपस्थित रहते हैं. एक चतुर निवेश बैंकर की तरह बेहद कुशलता से उन्होंने कई कॉरपोरेट सौदे किए. अत्यंत प्रखर लेकिन एकांतप्रिय जैन सादगी में प्रसन्न रहते हैं.

2005 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद, रॉयटर्स के तत्कालीन सीईओ टॉम ग्लॉसर ने जैन से उनके नई दिल्ली स्थित विशाल बंगले पर मुलाकात की. दोपहर 2.30 बजे शुरू होने वाली यह शिष्टाचार बैठक अपने निर्धारित समय से आगे तक चली. बाहर लॉन में इंतजार कर रहे रॉयटर्स के अधिकारी खिन्न हो रहे थे क्योंकि उन्हें शाम 5 बजे तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनके निवास 7, रेसकोर्स रोड (अब लोक कल्याण मार्ग) पर भेंट करनी थी. जैन और ग्लॉसर की मुलाकात देर तक इसलिए चली क्योंकि टाइम्स ग्रुप के उपाध्यक्ष रायटर्स के सीईओ को योग की बुनियादी शिक्षा दे रहे थे. फलस्वरूप रायटर्स की टीम प्रधानमंत्री आवास पर करीब 20 मिनट देर से पहुंची. ग्लॉसर जैन से बहुत प्रभावित थे.

ग्लॉसर रायटर्स का कायापलट करने के लिए जाने जाते हैं. साल 2008 में उनकी रहनुमाई में कंपनी को कनाडाई प्रकाशक थॉमसन कॉर्प ने ख़रीदा. उन्होंने विलय की गई इकाई थॉमसन रायटर्स की मजबूत आधारशिला रखी. जैन से मुलाकात के बाद ग्लॉसर बेहद प्रसन्न थे. समझौते को करीब से देखने वाले एक वरिष्ठ व्यक्ति ने बताया कि ग्लॉसर ने टाइम्स ग्लोबल ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (टीजीबीसीएल) में 25.8 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए इक्विटी में $19.8 मिलियन और डेट में $8 मिलियन डुबो दिए. ग्लॉसर का मानना था कि यह निवेश टीवी समाचार जगत में गठबंधनों के लिए एक मजबूत आधार तैयार करेगा.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दो साल में ही वह अलग हो गए. बीसीसीएल के मर्चेंट बैंकरों द्वारा कंपनी के मूल्यांकन के अजीबोगरीब तरीकों के कारण रॉयटर्स से इस समझौते से अपने हाथ खींच लिए और थॉमसन कॉर्प के साथ विलय की बातचीत को आगे बढ़ाया. वैसे भी इस समझौते की एक शर्त के अनुसार रायटर्स को अतिरिक्त निधि मुहैया करानी पड़ती. टीजीबीसीएल के तत्कालीन अधिमूल्यन की बदौलत 2007 में इस संयुक्त उद्यम से निकलने पर रायटर्स को 55 मिलियन डॉलर का भुगतान हुआ. उन्होंने अपने मुख्य कर्मचारियों को विदा करते समय मोटे बोनस चेक दिए.

बीसीसीएल अपनी हिस्सेदारी को अधिक मूल्यांकन पर किसी निजी इक्विटी फर्म को बेचना चाहता था. लेकिन 2008 में लेहमन ब्रदर्स के पतन और उस से उत्पन्न आर्थिक संकट के कारण यह योजना सफल नहीं हुई. निजी इक्विटी कम्पनियां भाग खड़ी हुईं और रेत पर बने किलों की तरह कंपनी का मूल्य भी ढह गया.

एक दशक के बाद भी टीजीबीसीएल की हिस्सेदारी बिक्री टाइम्स ऑफ़ इंडिया के टेलेविज़न प्रभाग के लिए एक मृग मरीचिका के सामान है.

एक और महत्वपूर्ण गठबंधन टाइम्स ग्रुप ने यूके स्थित बीबीसी वर्ल्डवाइड के साथ बनाया था. दोनों मीडिया दिग्गजों ने 2004 में एक 50:50 की हिस्सेदारी वाले संयुक्त उद्यम वर्ल्डवाइड मीडिया की स्थापना की. बीसीसीएल ने इसे 'विवाह' कहना पसंद किया.

मुंबई में एक खचाखच भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में समीर के छोटे भाई और बीसीसीएल के प्रबंध निदेशक विनीत जैन ने इस बारे में बहुत कुछ कहा, "बीसीसीएल ने दशकों तक अविवाहित रहने के बाद अपनी स्थिति बदल दी है, यह इस बात का संकेत है कि पत्रिका व्यवसाय की क्षमता में उसे कितना विश्वास है." बीबीसी मैगज़ीन के प्रबंध निदेशक पीटर फ़िपेन काफी उत्साहित दिखे. उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह गठबंधन भारत में प्रगति करेगा.

लेकिन अगस्त 2011 में यह 'विवाह' तलाक में समाप्त हो गया. बीसीसीएल ने बीबीसी वर्ल्डवाइड से हिस्सेदारी वापस खरीद ली और इसे पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी में बदल दिया. कंपनी की नवीनतम नियामक प्रविष्टि के अनुसार, वर्ल्डवाइड मीडिया का पूर्ण स्वामित्व अब भी बीसीसीएल के पास है. लेकिन फिर भी जैन के प्रयोग निरंतर जारी रहे.

पिछले तीन दशकों में, समूह ने कई समाचार पत्र और पत्रिकाएं लॉन्च कीं; इनमें से कुछ थोड़े समय के लिए टिके जबकि अन्य का जीवनकाल छोटा ही रहा. दी इलस्ट्रेटेड वीकली, दी इंडिपेंडेंट, मेट्रोपोलिस ऑन सैटरडे, साइंस टुडे, धर्मयुग, टीओआई क्रेस्ट और मुंबई मिरर उनमें से हैं जो लम्बे समय तक नहीं टिक सके.

दूसरी तरफ, अपनी विशाल वित्तीय शक्ति, मार्केटिंग की ताकत और मुंबई तथा कई अन्य बाजारों में एकाधिकार की वजह से समूह ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को परास्त करने के नियमित प्रयास किए.

समय बीतने के साथ 'ओल्ड लेडी ऑफ़ बोरीबन्दर' के नाम से मशहूर इस मुगल-गॉथिक इमारत की भव्यता कम होती रही. और मार्केटिंग टैगलाइन- 'द लीडर गार्ड्स थे रीडर (लीडर पाठक की रक्षा करता है)' अपनी अपील लगभग खो चुका.

समूह के पिछले कुछ वर्षों के वित्तीय विवरणों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इसने अपने पंख दूर-दूर तक ऐसे क्षेत्रों में फैलाए हैं जिनका संबंध पारंपरिक मीडिया व्यवसाय से कम ही है. यह विविध रूप से मीडिया परिदृश्य से पूरी तरह से अलग क्षेत्रों में फैल गया. फिल्म निर्माण और डिजिटल/प्रौद्योगिकी, संगीत, रियल एस्टेट, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, जनशक्ति परामर्श, विज्ञापन, ई-कॉमर्स, दूरसंचार और वित्त, आदि उनमें से कुछ हैं.

2019-20 की नियामक प्रविष्टि के अनुसार, बीमा और डिजिटल मीडिया में संयुक्त उद्यम के अलावा कंपनी की 96 सहायक और स्टेप-डाउन सहायक कंपनियां और 20 सहयोगी कंपनियां हैं. लेकिन भारत में पारिवारिक स्वामित्व वाली अधिकतर कंपनियों की तरह ही इन कंपनियों के स्वामित्व के विवरण को क्रॉस-होल्डिंग के साथ प्रमोटर-स्वामित्व वाली कंपनियों के एक जाल में दफना दिया गया है.

जैन परिवार की बीसीसीएल में 47 प्रतिशत हिस्सेदारी तीन कंपनियों के माध्यम से है. भारत निधि लिमिटेड (24.41 प्रतिशत), कैमक कमर्शियल (13.3 प्रतिशत), और पीएनबी फाइनेंस एंड इंडस्ट्रीज (9.29 प्रतिशत). वह सीधे तौर पर 1.09 प्रतिशत हिस्सेदारी भी रखते हैं.

कंपनी में शेष हिस्सेदारी अन्य समूह कंपनियों की है, जो अप्रत्यक्ष रूप से परिवार के ही पास है.

कैमक कमर्शियल और पीएनबी फाइनेंस दोनों कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हैं.

पीएनबी फाइनेंस जैन परिवार के स्वामित्व वाली एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है. इसके प्रमुख निवेशकों में बीसीसीएल, जकरण्डा कारपोरेशन, कैमक कमर्शियल और अशोका विनियोग हैं, जो बदले में बीसीसीएल में शेयरधारक हैं. बीसीसीएल की दो सहायक कंपनियों- बेनेट प्रॉपर्टीज होल्डिंग और टाइम्स इंटरनेट की भी पीएनबी फाइनेंस में हिस्सेदारी है.

'इक्विटी पर विज्ञापन' सौदे

'इक्विटी पर विज्ञापन' सौदे असंबंधित क्षेत्रों में समूह के प्रयासों का हिस्सा थे. सादी भाषा में उन्हें 'निजी संधियां' कहते थे और उन्हें ब्रांड कैपिटल नामक शाखा के माध्यम से अंजाम दिया जाता था. समूह ने देश में कंपनियों को बड़े ब्रांड बनने में मदद करने के लिए 'अपने अखबार नेटवर्क की ताकत' का इस्तेमाल किया. इस लंबी सूची में थायरोकेयर, लोढ़ा और बिगबास्केट जैसे दिग्गज नाम शामिल हैं.

पिछले एक दशक में बीसीसीएल ने शेयर बाजार मूल्यांकनों से गाढ़ी कमाई की. लेकिन यह सारी कमाई घाटे में जाती रही.

किशोर बियानी की फ्यूचर रिटेल लिमिटेड इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है. यह कंपनी हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) को संभावित फायर-सेल (बाजार भाव से बेहद कम कीमत पर संपत्ति की बिक्री) के लिए चर्चा में थी. भारत में रिटेल के बादशाह बियानी 'निजी संधि' करने वाले शुरुआती बड़े विज्ञापनदाताओं में से थे.

नवीनतम बीएसई फाइलिंग के अनुसार, 31 मार्च, 2021 तक, ब्रांड कैपिटल की इकाई 'ब्रांड इक्विटी ट्रीटीज लिमिटेड' की बियानी कंपनी में हिस्सेदारी 2.02 प्रतिशत थी. वहीं बीसीसीएल की हिस्सेदारी 5.63 प्रतिशत थी. बीसीसीएल ने सितंबर 2019 में खुले बाजार से 406 रुपये प्रति शेयर के औसत मूल्य पर 241 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे थी, जिससे उसकी हिस्सेदारी में 1.2 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी.

इन शेयरों का भाव (1 जुलाई, 2021 तक) 65 रुपये प्रति शेयर तक गिर गया है जिसके फलस्वरूप बीसीसीएल को बड़ा नुकसान हो सकता है. महामारी के दौर में बियानी कर्ज और नकारात्मक रेटिंग के चक्र से निकलने में विफल रहे. उनके हिस्से के ज्यादातर शेयरों पर उन्होंने कर्ज़ लिया हुआ था.

हालांकि शेयर बाजार 2020 की भयंकर गिरावट के बाद अब एक नए शिखर पर पहुंच गया है, अंदरूनी सूत्रों के अनुसार बीसीसीएल के अधिकांश सितारों ने अपनी चमक खो दी है.

अपनी 'इक्विटी पर विज्ञापन' योजनाओं के तहत बीसीसीएल ने फ्लिपकार्ट, यात्रा, उबर और क्विकर जैसी अग्रणी डिजिटल कंपनियों के अलावा कई अन्य साधारण कंपनियों में भी छोटी-छोटी हिस्सेदारियां ले रखी हैं. इसी कारण से एक बार समीर जैन ने एक निजी बातचीत के दौरान यह कहा था कि बीसीसीएल वास्तव में एक मीडिया कंपनी नहीं है, बल्कि मीडिया में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली एक निजी इक्विटी कंपनी है.

बीसीसीएल की मानें तो नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल, मुंबई, ने 12 अगस्त, 2020 के अपने आदेश में ब्रांड इक्विटी ट्रीटीज लिमिटेड के कंपनी में विलय को मंजूरी दे दी थी.

लेकिन 2021 में बीसीसीएल जो अख़बार के व्यसाय में नहीं बल्कि विज्ञापन के व्यवसाय में होने का दावा करती है. एक बड़े नुकसान की ओर देख रही है क्योंकि महामारी के कारण विज्ञापन और सर्कुलेशन दोनों से ही आय कम हो गई है.

पिछले दो वित्तीय वर्षों 2019-20 और 2020-21 में समूह ने चंद अप्रत्याशित बुरी घटनाओं का सामना किया है. देश में आर्थिक मंदी, जो महामारी के बाद और विकट हो गई; 2020 में एक लंबा राष्ट्रीय लॉकडाउन; बेहद खतरनाक दूसरी लहर जिसने विज्ञापन बाजार को लगभग समाप्त कर दिया, इन सभी ने बीसीसीएल के लिए अकल्पनीय समस्याएं पैदा कर दी हैं. जिस समूह ने 2018-19 में कर्मचारियों पर होने वाला व्यय 214 करोड़ रुपए बताया था, उसके लिए कर्मचारी लागत में कटौती आय और मुनाफे में आई अचानक गिरावट का सामना करने के लिए एक त्वरित समाधान था. लिहाजा, पिछले एक साल में छंटनी, वेतन कटौती और संस्करणों के बंद होने का सिलसिला चलता रहा.

बिजनेस इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म टॉफलर के आंकड़ों के अनुसार, बीसीसीएल ने 31 मार्च, 2020 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 451.63 करोड़ रुपए का समेकित शुद्ध घाटा दर्ज किया था. जबकि पिछले वित्त वर्ष में उसने 484.27 करोड़ रुपए का लाभ दर्ज किया था. स्टैंडअलोन (केवल मूल कंपनी के वित्तीय विश्लेषण के) आधार पर इसने 76.8 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया, जो एक साल पहले पोस्ट किए गए 152.8 करोड़ रुपए से काफी कम था. जबकि समेकित आधार पर इसकी कुल संपत्ति 31 मार्च, 2020 तक 13,034 करोड़ रुपए से गिरकर 10,067 करोड़ रुपए हो गई. कंपनी ने अभी तक 2020-21 के वित्तीय आंकड़े दर्ज नहीं किए हैं.

प्रकाशन प्रभाग से बीसीसीएल की आय लगातार घट रही है. प्रिंट और प्रकाशन क्षेत्र अभी भी कंपनी के कुल व्यापार में सबसे अधिक योगदान देने वाला उत्पाद/सेवा है, लेकिन 2019-20 में इससे आय पिछले वर्ष की तुलना में 6,259.89 करोड़ रुपए से घटकर 5,815 करोड़ रुपए हो गई.

पिछले वर्षों में बीसीसीएल का नियोजित पूंजी पर रिटर्न लगातार गिरा है जो 2015-16 में 46.3 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 14.3 प्रतिशत हो गया. वहीं इक्विटी पर रिटर्न इस पांच साल की अवधि के दौरान 12.23 प्रतिशत से घटकर मात्र 0.76 प्रतिशत रह गया है.

समूह की बैलेंस शीट में संभवतः अनुत्पादक या अलाभकारी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर खर्च दिखाया जाना चिंताजनक है. 2019-20 में, बीसीसीएल का कुल खर्च 9,552 करोड़ रुपये से बढ़कर 9,911 करोड़ रुपये हो गया. इसमें कर्मचारी लाभ पर खर्च पिछले साल की तुलना में 2,562.93 करोड़ रुपए से बढ़कर 2,767.55 करोड़ रुपए हो गया.

2020 में कोविड के कारण लॉकडाउन बीसीसीएल के लिए एक दुर्लभ आशा की किरण की तरह आया. सरकारी निर्देशों के विपरीत कर्मचारियों की छंटनी करने वाली मीडिया कंपनियों में यह समूह अग्रणी था.

मई 2020 में इसने अपने केरल संस्करणों के पहले पन्नों पर 'भारी मन से' दो संस्करणों को बंद करने की घोषणा की. जबकि दो अन्य संस्करण प्रकाशित होते रहे. इस प्रक्रिया में कई पत्रकारों और दूसरे कर्मचारियों की छंटनी की गई.

यह सिर्फ शुरुआत थी. समूह ने इसके बाद मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी की, जिससे कई पत्रकार और अन्य कर्मचारी रातों-रात बेरोजगार हो गए.

23 अप्रैल, 2020 को एक आंतरिक मेल में टाइम्स ग्रुप की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष एस शिवकुमार ने कहा, "इस अभूतपूर्व परिस्थिति में कठिन निर्णय लेने पड़ रहे हैं जिससे कंपनी का दीर्घकालिक भविष्य सुरक्षित हो सके."

उन्होंने आगे बताया, "क्यों समूह को 1 अप्रैल से वेतनों में 5-10 प्रतिशत तक की कटौती करनी पड़ी और सालाना 6.5 लाख रुपए से अधिक कमाने वाले कर्मचारियों की आय का 10 प्रतिशत एक विशेष परफॉरमेंस इंसेंटिव पूल में स्थानांतरित करना पड़ा."

कभी देश के सबसे अधिक लाभकारी मीडिया हाउस रहे टाइम्स ग्रुप में विद्रोह की सुगबुगाहट अनिश्चितता के सागर में डूब गई.

सत्ता का स्थानांतरण

करीबियों की मानें तो समूह के भीतर सतही तौर पर शक्तियों का स्थानांतरण स्पष्ट है. इस साल 13 मई को बीसीसीएल की अध्यक्ष इंदु जैन के निधन के बाद से समूह में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है. हालांकि वह इन बातों को उजागर न करने की भरपूर चेष्टा करते हैं. ज़ाहिर तौर पर अब सारी शक्तियां इंदु जैन के दो बेटों के हाथों में सिमट कर रह गई हैं.

समीर जैन, जिन्हें प्यार से 'वीसी' (उनके पद वाइस-चेयरमैन का संक्षिप्त स्वरूप) कहा जाता है, अपना समय अमेरिका, दिल्ली और अपनी नियमित मंदिर यात्राओं के बीच बांटते हैं. वह दिन-प्रतिदिन के मामलों पर नज़र रखते हैं. कुछ साल पहले समीर जानबूझकर मुंबई के कॉरपोरेट हब से बाहर निकल गए. उसके बाद से विनीत ने समूह की गतिविधियों के केंद्र मुंबई में अधिक समय बिताना शुरू कर दिया.

लेकिन समूह के एक पूर्व संपादक ने कहा, "विनीत ने कई साल पहले से ही समूह के कार्यों में गहरी दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया था. “एक दशक पहले से ही वही हमारी वेतन वृद्धि को अंतिम रूप देते थे,”

यह बात बेहद स्पष्ट है कि समूह का ध्यान गैर-प्रमुख क्षेत्रों की ओर अधिक है, जिसके फलस्वरूप उनके बड़े मीडिया ब्रांडों का संचालन संपादकों के हाथों में है.

शिवकुमार ने हाल ही में संपादकीय निदेशक जयदीप 'जोजो' बोस की अध्यक्षता में 'टीओआई संपादकीय बोर्ड' की स्थापना की घोषणा की, जो प्रिंट और डिजिटल सेवाओं के बीच बेहतर एकीकरण को प्रोत्साहित करेगा.

सभी जानते हैं कि एक समय में बेहद लाभकारी अख़बार के व्यवसाय में अब मुनाफा लगातार घटता जा रहा है. और मौजूदा परिस्थितियों में उसमे पुनः वृद्धि होने की कोई उम्मीद नहीं है. नए व्यवसायों और गठबंधनों के प्रयोग अभी भी जारी हैं, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों और संपादकों को मुनाफा कमाने का मंत्र बार-बार याद दिलाया जाता है. उनके काम करने का बुनियादी सिद्धांत बेहद सरल है. यदि कोई व्यावसायिक इकाई अपेक्षा से एक दिन भी अधिक संघर्ष करती है तो समस्या उत्पन्न करने वालों को बाहर करें और आगे बढ़ें.

जैसा कि एक अग्रणी विज्ञापन एजेंसी के प्रमुख ने कहा, "दुनिया में सर्वाधिक बिकने वाले अंग्रेजी अख़बार के प्रकाशक आश्चर्यजनक रूप से शक्ति के नहीं बल्कि मुनाफे के नशे में रहते थे."

टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड

डॉटकॉम बस्ट के बाद बीसीसीएल को टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड के संचालन को सीमित करना पड़ा था और सैकड़ों कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी थी. अब दो दशक के बाद वह फिर से अपना प्रभुत्व स्थापित करने की प्रक्रिया में है. इस नए अवतार में टीआईएल काफी विस्तृत हो गया है लेकिन अब भी उड़ान भरने के लिए संघर्ष कर रहा है.

टाइम्स समूह की टीआईएल में हिस्सेदारी 88.8 प्रतिशत है. टीआईएल समूह की सभी इंटरनेट-संबंधी कंपनियों का केंद्र है. बीसीसीएल की दो अन्य सहायक कंपनियां भी हैं- टाइम्स इंटरनेट आईएनसी, यूएसए और टाइम्स इंटरनेट (यूके) लिमिटेड. इनमें भी समूह की हिस्सेदारी सामान है.

समूह को करीब से देखने वालों का एकमत से मानना है कि समीर जैन के दामाद सत्यन गजवानी (समीर की इकलौती बेटी त्रिशला के पति) के नेतृत्व में टीआईएल को अभी लंबा रास्ता तय करना है.

टीआईएल में पैसे की काफी खपत हो चुकी है. इंटरनेट व्यवसाय से प्री-टैक्स घाटा एक साल के भीतर 550.66 करोड़ रुपए से बढ़कर 2019-20 में 837.72 करोड़ रुपए हो गया.

जब बीसीसीएल इंटरनेट अर्थव्यवस्था पर भारी दांव लगा रहा है, तो इस बात पर भी कानाफूसी हो रही है कि कहीं इसकी कीमत समूह के मुख्य व्यवसाय को न चुकानी पड़े. "समाचार-पत्रों की ताकत का उपयोग करके कुछ आश्चर्यजनक करने की योजना थी," मुंबई के एक संपादक ने बताया, और कहा कि ऐसा करने के लिए बीसीसीएल के पास समय कम है.

टीआईएल के वाइस चेयरमैन गजवानी आशावादी हैं. उन्होंने पहले कहा था, "2023 तक अपने सभी उत्पादों को एक अरब मासिक उपयोगकर्ताओं तक पहुंचाना उनका ध्येय है." लेकिन इस विकास के लिए शक्तिशाली प्रयासों की जरूरत है.

समूह द्वारा जारी टाइम्स इंटरनेट 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, दैनिक उपयोगकर्ताओं की संख्या पांच प्रतिशत बढ़कर 106 मिलियन तक हो गई है. गजवानी ने कंपनी प्रेजेंटेशन में कहा कि वित्त वर्ष 2020 में टीआईएल की आमदनी 24 प्रतिशत बढ़कर 1,625 करोड़ रुपये हो गई.

"कोविड-19 के कारण साल का अंत कमज़ोर रहने के बावजूद हमारी तीनों रेवेन्यू लाइनें अच्छी तरह प्रगति कर रही हैं." प्रेजेंटेशन में कहा गया. “संगीत और वीडियो में तीव्र वृद्धि के साथ विज्ञापन से आय में 22 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. टाइम्स प्राइम या हमारे व्यक्तिगत उत्पादों के कुल ग्राहकों में 62 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और हमने पिछले साल दो मिलियन ग्राहकों की संख्या को पार किया. लेन-देन के व्यवसायों में हमारा वार्षिक जीएमवी 68 प्रतिशत बढ़ा, शुद्ध राजस्व में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई. हमारे उभरते हुए लेनदेन के व्यवसायों से आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है- क्यूरेका 8 गुना, ग्रेडअप 4 गुना और डाइनआउट 2.4 गुना बढ़ गया है."

टीआईएल भारत में सबसे बड़ा डिजिटल उपभोक्ता मंच होने का दावा करता है. इसकी मीडिया संपत्ति के अंतर्गत समाचार, खेल (क्रिकबज), लाइफस्टाइल (इंडियाटाइम्स, मेन्सएक्सपी, आईडिवा), संगीत (गाना), और वीडियो (एमएक्स प्लेयर) आते हैं. इसके समर्थकारी प्लेटफॉर्म व्यक्तिगत वित्त (ईटीमनी), रियल एस्टेट (मैजिकब्रिक्स), शिक्षा (ग्रेडअप), भोजन (डाइनआउट) और अन्य क्षेत्रों में उपभोक्ताओं की सेवा करते हैं.

बड़ा सवाल यह है कि टाइम्स समूह ऑनलाइन क्षेत्र में अपने निवेश को कब भुनाएगा?

ऐसा लगता है कि महामारी ने बीसीसीएल के विकास कैलेंडर से दो वित्तीय वर्षों (FY20 और FY21) को हाईजैक कर लिया है. साल 2020-21 के लिए कई अर्थशास्त्रियों द्वारा पूर्वानुमानित वी-आकार की वृद्धि किसी बड़े फायदे के बिना समाप्त हो गई है और मौजूदा वित्त वर्ष में संभावित तीसरी लहर और टीकाकरण की धीमी गति के कारण बढ़ती अनिश्चितताओं के बीच इस तरह के अनुमान दूर की कौड़ी लगते हैं.

क्या यह विशाल समूह अपने असामान्य रूप से भारी खर्चों को कम करेगा? क्या यह एक बार फिर छंटनी और वेतन कटौती का आसान रास्ता अपनाएगा? बीसीसीएल की स्थूलता को देखते हुए इसके लिए विनिवेश ही एकमात्र रास्ता हो सकता है. एक दशक से भी अधिक समय के बाद एक बार फिर विवाह की शहनाईयों का समय है.

ग्राफिक्स- गोबिंद वीबी

यह रिपोर्ट हमारी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 75 से अधिक पाठकों ने योगदान दिया है. गौरव केतकर, प्रदीप दंतुलुरी, शिप्रा मेहंदरू, यश सिन्हा, सोनाली सिंह, प्रयाश महापात्र, नवीन कुमार प्रभाकर, अभिषेक सिंह, संदीप केलवाड़ी, ऐश्वर्या महेश, तुषार मैथ्यू, सतीश पगारे और एनएल सेना के अन्य सदस्यों की बदौलत यह संभव हुआ है.

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