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पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा पर पेगासस से जासूसी की कोशिश

पेगासस प्रोजेक्ट की श्रंखला में सोमवार को 'द वायर' ने दूसरी रिपोर्ट प्रकाशित की. इस रिपोर्ट में कई बड़े राजनीतिक चेहरे सामने आए , जिनके फोन की जासूसी की गई या करने की कोशिश हुई. पेगासस से निगरानी के लिए जारी सूची में पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का नंबर भी शामिल है.

अशोक लवासा ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता उल्लंघन के आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को दी गई क्लीनचिट का विरोध किया था.

द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 के दौरान लवासा जिस फोन नंबर का इस्तेमाल करते थे, वो इस सूची में शामिल है. उनके फोन में पेगासस स्पायवेयर डाला गया था या नहीं इसकी पहचान नहीं हो पाई है और फॉरेंसिक जांच के बिना यह बता पाना संभव नहीं होगा.

इस मामले में अशोक लवासा की कोई प्रतिक्रिया अब तक सामने नहीं आई है. वायर की रिपोर्ट के मुताबिक लवासा ने इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया देने या इस रिपोर्ट में किसी तरह का सहयोग करने से इनकार कर दिया है.

रविवार 18 जुलाई को द वायर समेत 15 अन्य बड़े मीडिया संस्थानों ने अलग-अलग क्षेत्रों में तमाम बड़े नामों का खुलासा किया था जिन पर संभवतः पेगासस के ज़रिये निगरानी रखी जा रही थी. लीक डेटाबेस को पेरिस स्थित गैर-लाभकारी मीडिया फॉरबिडन स्टोरीज़ और एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा एक्सेस किया गया था. इन दो समूहों के पास 50,000 से अधिक फोन नंबरों की सूची थी. 16 मीडिया संस्थानों का एक समूह बनाया गया जिन्होंने सूची में शामिल नंबरों की जांच की.

द वायर की रिपोर्ट की मानें तो लीक डेटाबेस के अनुसार एनएसओ द्वारा करीब 300 भारतीय वेरिफ़िएड नम्बरों की निगरानी की गई हो सकती है. जिनमे मंत्रियों, विपक्षी दल के नेता, पत्रकारों और उद्योपतियों आदि के नाम शामिल हैं.

रविवार को जारी रिपोर्ट में द वायर ने उन पत्रकारों के नामों का खुलासा किया जिन पर पेगासस द्वारा हमला किया गया होगा. इसमें रोहिणी सिंह, प्रशांत झा, ऋतिका चोपड़ा,मनोज गुप्ता, प्रेमशंकर झा, द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु आदि नाम शामिल हैं.

सोमवार को मानसून सत्र के दौरान सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये भारतीयों की जासूसी करने संबंधी खबरों को सिरे से खारिज कर दिया.

उन्होंने संसद में कहा, "संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले लगाये गए ये आरोप भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास हैं. लोकसभा में स्वत: संज्ञान के आधार पर दिये गए अपने बयान में वैष्णव ने कहा कि जब देश में नियंत्रण एवं निगरानी की व्यवस्था पहले से है तब अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अवैध तरीके से निगरानी संभव नहीं है."

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