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हरियाणा सरकार ने मांगी 'निगेटिव और पॉजिटिव' कवरेज कर रहे मीडिया संस्थानों की सूची
एक जुलाई को हरियाणा सरकार के सूचना, जनसंपर्क एवं भाषा विभाग की उपनिदेशक (विज्ञापन) उर्वशी रंगारा ने प्रदेश के जिला सूचना एवं जन सम्पर्क अधिकारियों को पत्र लिखा, जिसका विषय ‘जिलेवार स्थानीय समाचार पत्रों की जानकारी के बारे’ है.
उर्वशी रंगारा ने पत्र के शुरुआत में लिखा है, ‘‘महानिदेशक महोदय के निर्देशानुसार सभी जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारियों को निर्देश दिए जाते हैं कि वह पुनः अपने-अपने जिले से स्थानीय समाचार पत्रों/पत्रिकाओं के प्रकाशन एवं प्रसार के बारे में सही और विस्तृत जानकारी, जिसमें प्रकाशन का प्रारूप (दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, पाक्षिक), प्रतियो की संख्या, जिले से प्रकाशित हो रहा है या नहीं, के बारे में विज्ञापन शाखा को उपलब्ध कराने का कष्ट करें.’’
‘‘साथ ही आपके जिले से प्रकाशित/वितरित हो रहे सभी प्रकार के समाचार पत्रों/पत्रिकाओं व न्यूज़ चैनल जोकि सरकार की निगेटिव या पॉजिटिव कवरेज कर रहे हैं, के बारे में छह माह की सूचना दो दिन के भीतर उपलब्ध कराये.’’ पत्र में आगे लिखा गया है कि आपके द्वारा पूर्व में भेजी गई सूचनाएं स्पष्ट नहीं हैं. स्थानीय एजेंसियों से सूचना प्राप्त कर तुरंत मुख्यालय को सूचित करें, ताकि यथोचित कार्यवाही की जा सके.’’
इस पत्र में जिला अधिकारियों से पुनः अपने जिले से विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है. इसका मतलब है कि इससे पहले भी इस तरह की जानकारी मांगी गई थी. इससे पहले के पत्र को लेकर हमने सूचना विभाग की एक अधिकारी से बात की. नाम नहीं बताने की शर्त पर अधिकारी बताती हैं, ''हां, पहले भी इस तरह की जानकारी मांगी गई थी, लेकिन उसमें न्यूज़ एजेंसी का जिक्र नहीं था, उसमें सिर्फ प्रकाशन से जुड़ी जानकारी मांगी गई थीं. पहले में निगेटिव या पॉजिटिव खबरें करने वाले संस्थानों का जिक्र नहीं था.''
सरकार की निगेटिव या पॉजिटिव कवरेज
पत्र में साफ़ निर्देश है कि सरकार की ‘निगेटिव और पॉजिटिव’ कवरेज कर रहे मीडिया संस्थानों की जानकारी विज्ञापन विभाग को देनी है. ऐसे में इसे मीडिया संस्थानों को विज्ञापन देने, नहीं देने से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस पत्र को जारी करने वाली उर्वशी रंगारा से फोन पर संपर्क किया लेकिन उन्होंने इस निर्देश को लेकर कुछ बोलने से इंकार करते हुए फोन काट दिया.
वहीं हरियाणा विज्ञापन विभाग में असिस्टेंट राजेश कुमार इस बात की तस्दीक करते हैं कि यह निर्देश जिला सूचना अधिकारियों को भेजा गया है. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘यह पत्र हमने भेज रखा है. हमने यह जानकारी मांग रखी है. जो सूचना अधिकारी हमें भेज रहे हैं.’’
निगेटिव या पॉजिटिव खबरों की जानकारी मांगने का मकसद क्या है? इस सवाल के जवाब में कुमार कहते हैं, ‘‘इसपर मैं क्या बोलूं. इसके बारे में आप हमारे डीपीआरओ से ही बात करो.’’ इसके बाद कुमार ने भी फोन काट दिया.
सूचना विभाग की एक कर्मचारी इसी सवाल के जवाब में बताती हैं, ''इस बारे में हमें तो नहीं मालूम. जिस तरह के डायरेक्शन आते हैं. हम उस पर काम करते हैं.''
हालांकि विवाद बढ़ने और पत्रकारों द्वारा नाराजगी जाहिर करने पर एक दूसरा पत्र जारी किया गया है. इसको लेकर वह कहती हैं, ''सात जुलाई को एक दूसरा पत्र जारी किया गया है. इसमें से निगेटिव और पॉजिटिव वाली लाइन हटा दी गई है."
हरियाणा जर्नलिस्ट यूनियन ने जताई नाराजगी
इस निर्देश का मुखालफत हरियाणा जर्नलिस्ट यूनियन ने किया है. यूनियन के प्रमुख और बीते 30 साल से हरियाणा में पत्रकारिता कर रहे संजय राठी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘सरकार की निगेटिव और पॉजिटिव खबर छापने वाले मीडिया संस्थानों की सूची मांगने का मतलब यह है कि सरकार अपने तरीके से अख़बारों पर शिकंजा कसना चाहती है. सिर्फ उन्हीं अख़बारों और संस्थानों को विज्ञापन में तरजीह दी जाएगी जो सरकार का पक्ष अच्छे से छापते हैं. यह बिना बनाया हुआ कानून है कि जो संस्थान सरकार के पक्ष में छापता है उसे पुरस्कृत किया जाता है और जो उनके खिलाफ छापते है उन्हें प्रताड़ित किया जाता है. इन्होंने पहली बार सार्वजनिक कर दिया है.’’
राठी आगे कहते हैं, ‘‘हरियाणा में जो लघु और मझौले अख़बार हैं वो लगभग बंद हो चुके हैं. क्योंकि इन्हें सरकार विज्ञापन नहीं देती है. वहीं बड़े अख़बार जो सरकार से करोड़ों का विज्ञापन लेते हैं. वो सरकार से अलग नहीं हैं. सरकार जो चाहती है वही वे छापते हैं.’’
दैनिक भास्कर के नेशनल एडिटर रहे और वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रहे हेमंत अत्री इस बारे में न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. असंवेदनशील है. विभाग कहेगा कि यह चूक से हो गया. यह चूक से नहीं हुआ, यह जनसम्पर्क विभाग की मानसिकता दिखाता है. यह निर्देश बताता है कि उनका प्रेस के प्रति नजरिया क्या है. सूचना विभाग सरकार की आंख, नाक और कान हैं. अच्छी खबर छप रही तो अच्छी दिखाएं और खराब छप रही है तो खराब. लेकिन इसके आधार पर मीडिया का वर्गीकरण कर देना. ये जायज नहीं है.’’
इससे पहले ऐसा कोई पत्र इसी तरह का हरियाणा सरकार की तरफ से आया है. इस सवाल के जवाब में अत्री कहते हैं, ‘‘बिलकुल इस तरह का निर्देश तो नहीं आया है, लेकिन इनकी जितनी भी नीति है वो एक जैसी ही है. लालफीताशाही वाली नीति. जो एक मानसिकता को दिखाती है. जो मीडिया को गंभीरता से नहीं लेते हैं. जन सम्पर्क विभाग पूरी तरह एंटी मीडिया है, जबकि इनका काम प्रेस को सुविधा देना है. लेकिन ये हर चीज में अड़ंगा डालते रहते हैं.’’
हरियाणा में पत्रकारों पर बढ़े हमले
भारत में मीडिया की आज़ादी को लेकर सवाल खड़े होते रहते हैं. इसी महीने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने मीडिया की आज़ादी पर हमला कर रहे 37 राष्ट्र प्रमुखों की सूची जारी की है. इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक हैं. इस सूची में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी मौजूद हैं.
वहीं रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा जारी प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है. साल 2020 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत 180 देशों में 142वें नंबर पर है. वहीं 2017 में भारत 136वें, साल 2018 में 138वें और साल 2019 में 140वें स्थान पर था.
भारत में मीडिया की आज़ादी पर बढ़ते खतरे का असर हरियाणा में भी देखने को मिलता है. किसान आंदोलन के दौरान यहां आए दिन पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज होने और पुलिस द्वारा उन्हें परेशान करने की खबर आ रही है.
अप्रैल महीने में 'द इंक' वेबसाइट के पत्रकार रुद्र राजेश कुंडू के खिलाफ हिसार पुलिस ने एफआईआर दर्ज की थी. यह एफआईआर हिसार पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी विकास लोहचब ने धारा 66F, 153-A और 153-B के तहत दर्ज कराया था. कुंडू पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर "भड़काऊ" संदेश पोस्ट करने का आरोप लगा था.
करीब तीन महीने गुजर जाने के बाद भी इस मामले में कुछ भी नहीं हुआ. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कुंडू कहते हैं, ‘‘हरियाणा क्या देश के किसी भी हिस्से में पत्रकारिता करना आसान नहीं रह गया है.सरकारें चाहती हैं कि पत्रकार उनके पीआर बनकर काम करें.’’
कैथल जिले के रहने वाले पंजाब केसरी के पत्रकार ज्ञान गोयल और दैनिक भास्कर के अजीत सैनी पर स्थानीय ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी (बीडीओ) ने एक मई को सरकारी काम में बांधा पहुंचाने को लेकर मामला दर्ज कराया था. हालांकि दो दिन बाद 3 मई को इनका नाम एफआईआर से हटा दिया गया.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए गोयल कहते हैं, ‘‘मनरेगा मज़दूरों ने ब्लॉक ऑफिस पर प्रदर्शन किया था. मज़दूरों ने हमें प्रेस रिलीज भेज दी थी और हमारे कैमरामैन फोटो क्लिक करने गए थे. हम वहां गए भी नहीं थे लेकिन बीडीओ ने सरकारी काम में बांधा पहुंचाने का आरोप लगाकर हम दोनों का नाम एफआईआर में दर्ज करा दिया. हम ब्लॉक ऑफिस गए ही नहीं थे तो सरकारी काम में बांधा कैसे पहुंचा सकते थे. ऐसे में हमने जब हाईकोर्ट जाने की बात की तो हमारा नाम हटा दिया गया.’’
30 जून को कैथल जिले के ही पत्रकार मनोज मलिक पर भी एफआईआर दर्ज की गई. आईपीसी की धारा 147, 149, 332 और 353 के तहत एफआईआर डीसी ऑफिस में तैनात गार्ड इंचार्ज ईश्वर सिंह ने दर्ज कराई. इस एफआईआर में पांच लोगों को नामज़द किया गया जिसमें से एक 32 वर्षीय पत्रकार मनोज मलिक का भी नाम है. मलिक कैथल में न्यूज़ इंडिया, ईटीवी भारत और इंडिया टीवी के लिए काम करते हैं. इनपर ईश्वर सिंह ने सरकारी काम में बांधा पहुंचाने और मारपीट करने का आरोप लगाया है.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए मलिक कहते हैं, ‘‘लोग डीसी ऑफिस के बाहर बिजली-पानी नहीं आने के कारण प्रदर्शन कर रहे थे तो बतौर पत्रकार मैं उसे कवर करने गया था. वहां जो एसएचओ थे वे प्रदर्शन करने वालों में एक का गर्दन पकड़े हुए थे. जिसका मैं वीडियो बना रहा था. एसएचओ ने सोचा कि वीडियो बनाकर सुबह चैनल पर चलाएगा. ऐसे में दबाव डालने के लिए मेरे पर मामला दर्ज करा दिया. करीब दस दिन हो गए, लेकिन मेरे मामले में कुछ भी नहीं हुआ है.’’
मलिक हरियाणा में पत्रकारिता करने में आ रही परेशानियों का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘सरकार पत्रकारों पर दबाव बना रही है. अधिकारियों को इन्होंने काफी छूट दे रखी है. पहले इतनी छूट नहीं थी. अगर हम आंकड़ें निकालकर सरकार के खिलाफ खबर करते हैं तो ऐसे ही फंसा देते हैं.’’
मालूम हो कि हरियाणा में सूचना मंत्रालय मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के पास ही है.
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