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ज़ी न्यूज़ ने मुसलमानों की तस्वीरों का इस्तेमाल जनसंख्या वृद्धि की अफवाह उड़ाने के लिए कैसे किया?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव करीब हैं. इस बीच हमारे न्यूज़ चैनल दर्शकों का सारा ध्यान खींचकर अपने विज्ञापनदाताओं को देने के लिए कमर कस रहे हैं. इसमें कोई हैरानी नहीं है कि दर्शक हिंदुओं को "हम खतरे में हैं" चीखते हुए, और उसका इल्जाम मुसलमानों पर लगते हुए देखना चाहते हैं.

ऐसी ही एक कोशिश ज़ी न्यूज़ ने इस हफ्ते, अपने शाम 5 बजे के "डिबेट" प्रोग्राम ताल ठोक के में की.

आमतौर पर होने वाली चीख-पुकार और निरर्थक बातों के अलावा, इस कार्यक्रम में ढके-छुपे, इशारों इशारों में यह संकेत भी था कि मुसलमान ही बहुत ज्यादा जनसंख्या बढ़ाकर भारत को पिछड़ा बनाए हुए हैं.

आइए कार्यक्रम के चित्रण से शुरुआत करते हैं.

कार्यक्रम के शीर्षक की दो स्क्रीन हैं. पहली पूछती है, "कुदरत बहाना है, मुस्लिम आबादी बढ़ाना है?"

दूसरी सवाल करती है, "निज़ाम-ए-कुदरत या हिंदुस्तान पर आफत?"

गौर कीजिए, कैसे एक तरफ धीर गंभीर मुद्रा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, और दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के सांसद शफीक उर रहमान वर्क मुसलमानों की भीड़ से घिरे हुए हैं. संदेश भले ही ढका छुपा हो लेकिन उसके शीर्षक जरा भी ढकी-छुपी बात नहीं करते.

लेकिन यह शीर्षक स्क्रीन तो ज़ी न्यूज़ की "डिबेट" की केवल शुरुआत हैं. लेकिन आगे बढ़ने से पहले, मैं इस कार्यक्रम के आधार को आपके सामने रख देता हूं.

उत्तर प्रदेश सरकार ने दो बच्चों वाले परिवारों के लिए एक सूचना अभियान शुरू किया है जिसका नाम "दो बच्चे ही अच्छे" है. शफीक उर रहमान की इस अभियान पर प्रतिक्रिया थी, "बच्चे कुदरत की देन हैं, इसपर रोक लगाने का किसी को हक नहीं है". रहमान का इस तरह की बातें कहने का इतिहास रहा है. उन्होंने दावा किया था कि कोविड अल्लाह की सजा है, और "वंदे मातरम्" कहना उनके मजहब के खिलाफ जाता है.

अभियान पर एक और वक्तव्य समाजवादी पार्टी के विधायक इकबाल महमूद ने दिया. उन्होंने कहा, "जनसंख्या दलित और आदिवासी बढ़ाते हैं क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं है".

यह दोनों वक्तव्य ज़ी न्यूज़ जैसे चैनलों के लिए रेडीमेड मसाला हैं, जिन्होंने इनका इस्तेमाल कर वही पुरानी हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक बकवास को 40 मिनट के लिए फिर से टीवी पर उड़ेल दिया.

कार्यक्रम की शुरुआत रहमान और महमूद के वक्तव्यों को समझाने से हुई जिसके बाद स्क्रीन पर भीड़ से भरे इलाकों की तस्वीरें दिखाई गईं जहां अधिकतर मुसलमान थे.

यह जाहिर सी बात है कि जी न्यूज ने इस पर टिप्पणी करने के लिए एक "हिंदू" दिखने वाले शख्स को बुला लिया, अंतर्राष्ट्रीय जूना अखाड़े के महंत नारायण गिरी. उन्होंने अवसर को नहीं गंवाया और कहा, "जब ऐसे बेवकूफ लोग संसद पहुंचते हैं, यह संविधान का अपमान है. आज भारत की जनसंख्या सबसे विस्फोटक रूप में है."

फिर, मुस्लिम भीड़ से भरे और भी कई दृश्य चलाए गए.

कार्यक्रम की एंकर अदिति त्यागी ने दर्शकों से पूछा, क्या "हम दो हमारे दो" का प्रचार करना गलत है और एक ही मजहब इसके विरोध में क्यों है. यह सभी महानुभाव पैनल का हिस्सा है.

जैसा कि आमतौर पर होता है, अधिकतर डिबेट केवल चीखना चिल्लाना ही थी. लेकिन उसमें भी कुछ ऐसे पल थे जो अलग दिखाई पड़ते हैं.

उदाहरण के तौर पर, समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता अनुराग भदौरिया बोलते रहे कि कैसे इस मुद्दे का इस्तेमाल बेरोजगारी और कोविड-19 से होने वाली मौतों से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने बीजेपी से जनसंख्या नियंत्रण कानून को समझाने के लिए भी कहा और पूछा कि उसके अंदर क्या-क्या आएगा? लेकिन अदिति त्यागी भदौरिया से यही पूछती रहीं कि क्या वह रहमान और महमूद के वक्तव्य से इत्तेफाक रखते हैं; जब वह किसी और बारे में बात करने की कोशिश करते, तो एंकर उनकी बात काट देतीं और उपरोक्त वक्तव्यों को लूप पर चला देतीं.

इसके अलावा भाजपा प्रवक्ता संजू वर्मा भी थीं, अपनी बात की शुरुआत यह कहकर की, "इस कानून को सांप्रदायिक नजरिए से क्यों लिखा जा रहा है?" लेकिन ऐसा कहने के बाद उन्होंने भी वही किया.

उन्होंने कहा, "मैं पापुलेशन फंड ऑफ इंडिया के आलोक बाजपेई को 'कोट' करना चाहती हूं. उन्होंने इस बात की तरफ इशारा किया कि ऐसे 3 राज्य हैं जहां मुस्लिम जनसंख्या अधिक है. पश्चिम बंगाल, बिहार और यूपी. 86 जिले ऐसे हैं जहां बेरोज़गारी, कुपोषण और अपराध सबसे ज्यादा है. इन जिलों में मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से अधिक है."

आदिति त्यागी असमंजस में दिखाई दीं और उन्होंने पूछा, "आप क्या पॉइंट रखना चाह रही हैं? आप एक मजहब को बीच में क्यों ला रही हैं?" वर्मा ने फिर वही अपनी बातें दोहराईं... जिनमें इस विषय को सांप्रदायिक न बनाने की बात भी थी.

86 जिले जिनका उन्होंने जिक्र किया, हमें नहीं पता कि संजू वर्मा को अपने "तथ्य" कहां से मिले, लेकिन 86 जिलों का इकलौता जिक्र हमें यहां मिला. मानव संसाधन मंत्रालय ने कहा था कि 675 जिलों में से 86 जिलों में मुस्लिम आबादी 20 प्रतिशत या उससे अधिक है. इनमें से 12 जिले देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक हैं, और बाकी जिले देश के शहरी केंद्रों में हैं. हमने इस बात पर पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया का वक्तव्य ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन नहीं मिला. अगर आपको मिलता है तो कृपया हमें ज़रूर बताएं.

हमें इस प्रकार के लेख अवश्य मिले, जो ज़ी न्यूज़ के अनुसार मुस्लिम जनसंख्या "विस्फोट" के इस मिथक की हवा निकाल लेते हैं. पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने इस विषय पर एक किताब लिखी है, जिसमें वह कहते हैं कि बढ़ी हुई जन्म दरों की वजह साफ तौर पर गैर संप्रदायिक कारण हैं, जैसे शिक्षा और आमदनी की कमी, तथा स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता न होना. और इन सभी पैमानों पर, भारत में मुस्लिम समुदाय सबसे पीछे रहता है.

दक्षिणपंथी लोग आमतौर पर मुस्लिम महिलाओं की हिंदू महिलाओं के मुकाबले अधिक प्रजनन दर की तरफ इशारा करते हैं, 2.61 जन्म प्रति महिला और इसकी तुलना में हिंदुओं में यह 2.13 है. लेकिन कुरैशी कहते हैं कि इतने मामूली से अंतर का कोई अर्थ नहीं क्योंकि दोनों समुदायों की जनसंख्या में जमीन आसमान का फर्क है. 1951 में हिंदू मुसलमानों से 30 करोड़ ज्यादा थे, यह अंतर 2011 तक बढ़कर 80 करोड़ हो गया था.

इसीलिए जब संजू वर्मा प्राइम टाइम टीवी पर इस प्रकार के आंकड़े देती हैं, तो वह केवल एक मिथक चला रही हैं जो हिंदुत्व के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए सालों से इस्तेमाल किया जा रहा है.

यहां इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि राज्य की तरफ से बाध्य, केवल दो बच्चों की नीति का देश की जनसंख्या पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है. यह हम नहीं कह रहे हैं, ऐसा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दिए अपने एक ज्ञापन में कहा है. हमारे सामने चीन का जीता जागता उदाहरण भी है, जिसने केवल एक बच्चे की नीति को अपनाया लेकिन 2015 में उसे हटा दिया.

क्यों, क्योंकि असल में ऐसी नीति पूर्णतः सत्यानाशी हैं.

लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि यह पूरी परिस्थिति कितनी अजीब है. एक व्यक्ति कहता है कि "मुद्दे में मजहब को न लाएं" और फिर मुद्दे को सांप्रदायिक बना देता है, एक ऐसे कार्यक्रम में जहां एंकर उनके द्वारा मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने पर सवाल उठाती हैं, जब उसी कार्यक्रम में वह चैनल उस मुद्दे को सांप्रदायिक बना रहा है.

ज़ी न्यूज़ ने खुलकर इस प्रकार के संकेत दिए कि मुसलमानों के द्वारा बहुत अधिक प्रजनन देश को पिछड़ा रखने की कोशिश है. उसके बाद उन्होंने संजू वर्मा जैसे लोगों को मंच दिया जिन्होंने खुलेआम झूठे वक्तव्य दिए और ऐसा करने पर उन्हें रोका भी नहीं गया.

और यह सब किस आधार पर किया गया? केवल दो आदमियों के वक्तव्यों पर.

प्रिय पाठकों, इसी को बिना किसी बात के सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ डिबेट बनाने की कला कहते हैं. इस बात पर कोई चर्चा नहीं हुई कि क्या जनसंख्या को रोकने के लिए सही में कोई कानून लाया जा रहा है. किसी भी भाजपा के प्रतिनिधि या सत्ता पक्ष की तरफ से किसी भी व्यक्ति को यह जवाब नहीं देना पड़ा कि ऐसे कानून में क्या-क्या प्रावधान होंगे.

इतना ही नहीं अपने कार्यक्रम की शुरुआत में जब सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ ग्राफिक्स चल रहे थे, उन्होंने एक केंद्रीय मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह का एक वक्तव्य भी उसमें शामिल किया. उन्होंने कहा, "जनसंख्या पर नियंत्रण होना चाहिए. अब क्या सरकार इस पर कोई कानून बनाएगी, और कब बनाएगी, मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है". इस प्रकार की डिबेट रखने के विचार को इसी बात पर खत्म हो जाना चाहिए था. लेकिन ज़ी न्यूज़ के लिए नहीं, जो लोगों को अपनी टीआरपी की चाहत में गुस्सा बनाना चाहता है.

टीआरपी की बात आई है तो आइए उन प्रायोजकों की सूची देखें जो इस शाम 5:00 बजे के "न्यूज़ शो" में हमें दिखाई दिए. EaseMyTrip.com, डाबर शिलाजीत गोल्ड, रियल फ्रूट जूस और पतंजलि.

इनके अलावा, शाम 5:00 बजे के स्लॉट में हमने इन चीजों का विज्ञापन भी देखा- गूगल, विक्स, फासोस, दुरागार्ड सीमेंट, निरमा, टीवीएस रेडिआॉन, कंक्रीटो, ज़ी लर्न, ज़ी5, धारा, डेल टेक्नोलॉजीज़, इंटेल, पतंजलि फेस वॉश, बहरोज़, केएन (सेल्टोस), जीवनसाथी, स्वीटट्रुथ, एको इंश्योरेंस, पतंजलि तेल, अंबा सीमेंट, हेमपुष्पा, पतंजलि गाय का घी, अगरवाल पैकर्स, हिक्स डिजिटल थर्मामीटर, कासमधु, पतंजलि पीड़ानिल गोल्ड व ऑर्थोघृत, पतंजलि दिव्य लिवोघृत, पतंजलि श्वासारि, दिव्य बीपी घृत व मुक्त वटी और पतंजलि मधुघृत.

पतंजलि की बात करें तो, हमने पहले देखा और रिपोर्ट किया है कि वह किस प्रकार टीवी मीडिया पर बेइंतेहा पैसा अपने प्रोडक्ट बढ़ाने के लिए बहा रहे हैं, जिसमें विवादित कोरोनिल किट शामिल है. न्यूजलॉन्ड्री ने कोरोनिल को मिली मंजूरी के दावे की छानबीन भी की थी, जो पतंजलि ने अपने संदिग्ध ट्रायल्स के बाद मिलने का दावा किया था. लेकिन यह खेदजनक है कि पतंजलि टीवी पर अभी भी कोरोनिल के विज्ञापन चलवा रहा है, जैसा कि इस डिबेट में हुआ.

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