Rajasthan coronavirus
राजस्थान: क्या पत्रकार आशीष शर्मा की मौत का ज़िम्मेदार अस्पताल है?
37 वर्षीय आशीष शर्मा की तीन जून को कोरोना वायरस से मौत हो गई. परिवार में उनके माता- पिता और दो छोटी बहने थीं. पेशे से पत्रकार आशीष जयपुर में पत्रिका अखबार में काम करते थे. उनकी सैलरी 30 हज़ार रुपये थी लेकिन पिछले कुछ महीनों से उन्हें सिर्फ 22 हज़ार रुपए ही मिल रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि कोरोना संक्रमण के बीच कई मीडिया संस्थानों ने पत्रकारों की सैलरी घटा दी.
घर में सबसे पहले उनकी छोटी बहन 33 वर्षीय रिचा शर्मा को कोरोना हुआ. उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद परिवार के अन्य लोग भी कोरोना की चपेट में आ गए. पूरे परिवार में उनकी दूसरी बहन आभा कि रिपोर्ट निगेटिव आई. इसका कारण यह भी हो सकता है कि उन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज पहले ही लगवा रखी थीं.
वहीं रिचा घर पर ही इलाज से ठीक हो गईं जबकि आशीष और उनके माता- पिता की तबीयत बिगड़ने लगी. जिसके चलते उन्हें अस्पताल जाना पड़ा. आशीष को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और उनका बुखार भी 103 डिग्री पहुंच गया. इसके बाद उन्हें 17 मई को घर के पास ही गणपति निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया.
अस्पताल ने चिरंजीवी योजना में इलाज करने से किया मना
गणपति अस्पताल में भी उनकी सांसे फूलती गईं और हालत गंभीर होने लगी. इसके बाद डॉक्टर ने कहा कि उन्हें तुरंत किसी अन्य अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत है नहीं तो उनकी मौत भी हो सकती है. 20 मई को आशीष के साथ-साथ उनके माता पिता को भी शहर के निजी अस्पताल जेएनयू में भर्ती कराया. इस दौरान तीनों को भर्ती करने से पहले अस्पताल ने एडवांस पेमेंट के नाम पर तीन लाख रुपऐ मांगे. आशीष ने चिरंजीवी योजना में खुद को पंजीकृत कराया था लेकिन जेएनयू अस्पताल ने चिरंजीवी योजना का लाभ देने से साफ़ मना कर दिया.
बता दें चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत राजस्थान के प्रत्येक परिवार को पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज मिल सकता है. योजना का लाभ राज्य के सभी नागरिकों के लिए है. जेएनयू अस्पताल का नाम चिरंजीवी में शामिल अस्पतालों की सूची में होने के बावजूद उन्होंने योजना के तहत आशीष और उनके परिवार का इलाज करने से मना कर दिया.
आशीष की बहन आभा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “अस्पताल प्रशासन उन्हें धमका रहा था. हमने बार- बार अस्पताल से चिरंजीवी योजना में इलाज करने का अनुरोध किया लेकिन हर बार प्रशासन बहाने बनाकर टालता रहा. यहां तक की अस्पताल कोविड प्रभारी डॉ. प्रेरणा ने रात को कॉल करके कहा कि यहां चिरंजीवी योजना का लाभ नहीं मिल सकता, आशीष को ले जाओ. तब हमने मेडिकल अध्यक्ष से बात की. उन्होंने कहा कि भर्ती करने के समय चिरंजीवी योजना में इलाज के लिए मरीज़ का नाम लिखवाना पड़ता है. जबकि हम पहले दिन से ही प्रशासन से यहीं मांग कर रहे थे. अस्पताल प्रशासन ने हमें लटकाए रखा और आखिर में बात हमारे ऊपर ही घुमा दी."
चिरंजीवी योजना के लिए अस्पताल प्रशासन ने आभा को बहुत तंग किया. आखिर में आभा ने कहा कि उन्हें योजना का लाभ नहीं चाहिए, बस उनके भाई का इलाज शुरू कर उसे बचा लें.
अस्पताल ने इलाज के लिए वसूला मनचाहा पैसा
आशीष को खुद से ज़्यादा उनकी मां की चिंता खाय जा रही थी. उनके दिमाग में हर समय परिवार को लेकर टेंशन चल रही थी. जिसके कारण भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं आ रहा था. आभा आगे कहती हैं, “अस्पताल ने कहा कि इटोलिज़ुमैब के तीन इंजेक्शन की आवश्यकता है जिसके लिए एक लाख 80 हज़ार रुपये जमा करने पड़ेंगे. हमने पता किया तो इंजेक्शन की कीमत 38 हज़ार रुपए थी. रात भर हाथ-पैर मारकर हमने खुद इंजेक्शन का प्रबंध किया. इस बात से भी अस्पताल नखुश था."
आभा ने अस्पताल पर अत्याचार और मानसिक उत्पीड़न का भी आरोप लगाया है. वो कहती हैं, “आशीष के पास फोन नहीं था. रिचा ने फोन दिया था. उन्होंने आशीष को कैद कर लिया था. किसी की उस से बात नहीं होने देते थे. वो अस्पताल में पांच दिन रहा. इस बीच हमें उसे देखने के लिए दो दिन में सिर्फ पांच-पांच मिनट का समय दिया गया लेकिन बात नहीं करने दी जाती थी. एक दिन आशीष ने किसी से फोन मांगकर हमें कॉल किया तो बताया कि वहां का इंतज़ाम सही नहीं है और डॉक्टर मरीज़ को देखने तक नहीं आते हैं. आशीष के मुंह पर भी टेप लगा दिया था.”
आभा ने इस सबके लिए कोविड प्रभारी डॉ. प्रेरणा पर आरोप लगाया कि वो आशीष के फोन पर मीडियाकर्मियों के कॉल ब्लॉक कर देती थीं ताकि आशीष अस्पताल के बदहाल प्रशासन की पोल न खोल दे.
25 मई की सुबह जब आभा जेएनयू अस्पताल पैसे जमा कराने पहुंचीं तो वहां तीन एंबुलेंस तैयार खड़ी थीं. अस्पताल प्रशासन ने आभा से आशीष और उनके माता- पिता को तुरंत किसी अन्य अस्पताल ले जाने को कहा. आभा घबरा गई कि इतने कम समय में वो आशीष और माता-पिता को कहां ले जाए. इन पांच दिनों में अस्पताल ने छह लाख रुपए का बिल बना दिया था. बावजूद इसके 25 मई को अस्पताल ने आशीष और उसके माता पिता को ले जाने के लिए कह दिया.
इसके बाद आभा ने सरकारी अस्पताल आरयूएचएस का रुख किया. जहां उन्हें तीन बेड की व्यवस्था भी हो गई. अस्पताल में शिफ्ट करने के बाद वो अपनी मां के पास थीं. उनकी मां का ऑक्सीजन लेवल 97 था. लेकिन भर्ती कराने के बाद उन्हें शक हुआ कि मशीन में गड़बड़ है. अचानक उनकी मां का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. वहां आशीष की तबीयत भी खराब थी और पिता आईसीयू में थे. भर्ती होने के एक घंटे के भीतर 25 मई को उनकी 60 वर्षीय मां की मृत्यु हो गई.
"जब मां को अस्पताल लेकर आये तो वह संतुष्ट थीं कि उनका इलाज सरकारी अस्पताल में ठीक से हो जाएगा. लेकिन एक घंटे के भीतर उनका ऑक्सीजन लेवल 97 से कम होने लगा. मरीज़ बहुत ज़्यादा थे इसलिए डॉक्टर भी ध्यान नहीं दे पा रहे थे. हमने डॉक्टर को बुलाया तब पता चला मशीन वाकई खराब थी. मां को दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई." आभा ने बताया.
आशीष को नहीं चल पाया उनकी मां की मौत का सच
आशीष को बिना बताए ही आभा और रिचा ने मां का अंतिम संस्कार कर दिया. आशीष हर दिन बहनों से मां के लिए पूछता था लेकिन आशीष के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उन्होंने आशीष को नहीं बताया कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही. आशीष को हर समय उसकी मां की चिंता सताती थी. वो कई बार पैनिक हो जाता था.
आशीष की तबीयत भी लगातार बिगड़ती जा रही थी. 28 मई को आशीष को वेंटीलेटर पर रखा गया. बहुत संघर्ष के बाद तीन जून को आशीष की भी मौत हो गई. जबकि आशीष के पिता अभी भी आईसीयू में ही मौत से जंग लड़ रहे हैं.
इतना सब होने के बाद भी पत्रिका अखबार और सरकार की तरफ से परिवार को अभी तक कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है. जबकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आशीष के लिए ट्वीट कर लिखा, “राजस्थान पत्रिका में कार्यरत प्रदेश के युवा पत्रकार श्री आशीष शर्मा के असामयिक निधन पर मेरी गहरी संवेदनाएं. ईश्वर से प्रार्थना है कि शोकाकुल परिजनों को इस बेहद कठिन समय में सम्बल दें एवं दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें.”
आभा दुखी मन से कहती हैं, “अभी तक हमें आशीष का मृत्यु सर्टिफिकेट भी नहीं मिला है. ताकि वह दिवंगत पत्रकारों को मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए अप्लाई कर सकें.”
बता दें कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल ही में राज्य में पत्रकारों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के तहत दिए जाने वाले लाभों को बढ़ाने का फैसला किया है. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने गंभीर बीमारी की स्थिति में पत्रकारों को दी जाने वाली सहायता राशि को एक लाख रुपये से बढ़ाकर दो लाख रुपये करने को मंजूरी दी है. वहीं राजस्थान सरकार ने राज्य में कोविड-19 के कारण मरने वाले राशन डीलरों और मान्यता प्राप्त पत्रकारों के परिजनों को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने का भी एलान किया था. इसके लिए मृत्यु सर्टिफिकेट, प्रेस आईडी जैसे दस्तावेज़ों की ज़रूरत पड़ती है.
'नो पे' पर काम कर रहे ताहिर अहमद की ब्लैक फंगस से मौत
मृत्यु सर्टिफिकेट न मिल पाने का मामला केवल अकेले आशीष का ही नहीं है. बल्कि ऐसे अन्य परिवार भी मृत्यु सर्टिफिकेट न मिलने से परेशान हैं. पत्रकार तनवीर अहमद की दो जून को ब्लैक फंगस से मौत हो गई थी. वह दैनिक भास्कर में कार्यरत थे. जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल, सीतापुरा में उनका इलाज चल रहा था. ताहिर 'नो पे' पर काम कर रहे थे. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले साल उनके खराब स्वास्थय और किडनी ट्रांसप्लांट के लिए उन्होंने कई छुट्टियां ली थीं. बावजूद इसके कंपनी ने उनको पूरा पैसा दिया था. इसलिए अभी वह सिर्फ बिना पैसे के ही काम कर रहे थे.
ताहिर अहमद के परिवार में पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं. ताहिर के जाने के बाद परिवार के सामने बड़ा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. उन्हें भी सरकार से आर्थिक मदद की आवश्यकता है. लेकिन डॉक्टर ने कोई रिपोर्ट नहीं दी है. सभी डॉक्यूमेंट अपने पास रखे हैं. उन्हें एक पर्ची देकर कहा गया कि उन्हें डेथ सर्टिफिकेट नगर निगम से मिलेगा. नगर निगम पहुंचकर परिवार को पता चला कि अभी तक अस्पताल से रिकॉर्ड नहीं आया है. अस्पताल हर 15 दिन का रिकॉर्ड भेजते हैं. ताहिर के परिवार को बिना डेथ सर्टिफिकेट और डाक्यूमेंट्स के सरकार की तरफ से पत्रकारों को मिलने वाली सहायक राशि नहीं मिल पाएगी.
ताहिर के भाई सैयद अहमद ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "हम एक हफ्ते से नगर निगम और अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं लेकिन डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिल पा रहा. उसके बिना हमें सरकारी आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी."
Also Read
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
In Baramati, Ajit and Sunetra’s ‘double engine growth’ vs sympathy for saheb and Supriya
-
A massive ‘sex abuse’ case hits a general election, but primetime doesn’t see it as news
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
Know Your Turncoats, Part 9: A total of 12 turncoats in Phase 3, hot seat in MP’s Guna