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बक्सवाहा जंगल: "लॉकडाउन हटेगा तो सारा बुंदेलखंड सड़कों पर विरोध करता नजर आएगा"
मध्यप्रदेश के सबसे पिछड़े इलाके बुंदेलखंड में लाखों पेड़ों की कटाई की तैयारी हो रही है. छतरपुर जिले के बक्सवाहा ब्लॉक से करीब 10 किलोमीटर दूर इमलीघाट है. जहां पर हीरे के भंडार प्राप्त हुये हैं. यह पन्ना हीरों के लिये ही जाना जाता है. लेकिन इमलीघाट पर पन्ना से करीब 15 गुना अधिक मात्रा में हीरा मौजूद है. जिसकी नीलामी कमलनाथ सरकार में की गयी थी. उस समय विड़ला ग्रुप को करीब 55 हजार करोड़ रूपये में 50 साल के लिये जमीन लीज पर दी गई थी. इसमें मध्यप्रदेश सरकार की करीब 42 प्रतिशत हिस्सेदारी भी है. पहले भी यहां पर ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियो टिंटो द्वारा माइनिंग का काम किया जाता था. लेकिन 2017 में नियमों में फेरबदल के साथ ही कंपनी को लीज पर जमीन देने से इनकार कर दिया गया. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार बिड़ला ग्रुप द्वारा इस हीरा परियोजना के लिये करीब 382.141 हेक्टेयर जंगल मांगा है. ताकि खनन और खदानों से निकली मिट्टी और मलवे को डंप करने की जगह मिल सके. इस हीरा परियोजना मे 215875 पेडों को काटा जायेगा. इसमें करीब 40 हजार पेड़ सागौन के मौजूद हैं जो 100 वर्ष से भी अधिक पुराने बताएं जाते हैं.
रिर्पोट बदलने के साथ ही सरकारों और लोगों का नजरिया भी बदला
2017 में हुए एक सर्वे जियोलॉजी एंड माइनिंग मध्य प्रदेश और रियो टिंटो कंपनी की रिर्पोट में बताया गया था, कि यहां पर बहुतायत मात्रा में वन्य जीवों का निवास है. जिसमें मोर, हिरण, नीलगाय, बंदर, खरगोश, रिजवा, जंगली सुअर, लोमड़ी, भालू, चिंकारा, वन बिल्ली आदि पाये जाते है. लेकिन रिपोर्ट बदलने के साथ ही यहां इस नयी रिपोर्ट में ऐसा कोई भी वन्य जीव नहीं पाया जाता है.
लेकिन स्थानीय लोग इस रिपोर्ट को मानने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि इस जंगल में वन्यजीव बहुत मात्रा में हैं वो बताते हैं, "जो रिपोर्ट रियो टिंटो द्धारा पेश की गयी थी उसमें भी बहुत से जानवरों का जिक्र नहीं किया गया है. जबकि इमलीघाट के दायीं तरफ एक छोटा पहाड़ है. जहां पर आपको आज भी भालू व रीछ मिल जाएंगे. अगर कोई भी व्यक्ति आज जंगल में या जंगल के आसपास से निकले तो उसे आसानी से बहुत से वन्यजीव नजर आ जायेंगे."
स्थानीय स्तर पर बढ़ते विरोध का असर
स्थानीय स्तर पर शुरू हुआ विरोध अब बड़े स्तर तक पहुंचता जा रहा है. बीतें दिनों युवाओं द्वारा ट्विटर पर #save_buxwaha_forest और #india_stand_with_buxwaha नंबर वन ट्रेंड करता नजर आया. युवाओं की इस मुहिम को अब बड़े स्तर पर समर्थन मिलने लगा है. साहित्यकार, फिल्मी स्टार, लेखक, एनजीओ और सामाजिक संस्थाएं साथ दे रही हैं.
स्थानीय युवा संकल्प जैन कहते हैं, "जीवन वृक्षों से ही संभव है. हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से ही वृक्षों पर निर्भर हैं, यदि वृक्षों से हरे भरे जंगल न होंगे तो जीवन की संभावना ही समाप्त हो जाएगी. बुंदेलखंड की पथरीली माटी में से एक-एक कंकड़ बीनकर हमारे पूर्वजों ने इसे खेती लायक बनाया था. ऐसे में दो लाख पेड़ों की कटाई ठीक नहीं है. बात सिर्फ दो लाख पेड़ों की नहीं है उन जंगलो में रहने वाले हजारों पशु-पक्षियों की भी है. इसके अतिरिक्त बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के लिए दो लाख पेड़ और केन-बेतवा लिंक परियोजना से 23 लाख पेड़ प्रभावित होंगे. यदि बुंदेलखंड में पर्यावरण का इसी तरह दोहन होता रहा तो हमारी आने वाली नस्लें बर्बाद हो जाएंगी."
वहीं आकाश ऐके तिवारी कहते हैं, "आज वृक्षों को बचाने वालों को नक्सली वामपंथी प्रोपेगेंडा जीवी कहा जा रहा है. उनको मैं बता दूं मेरी शिक्षा स्वयंसेवक संघ के उन्हीं स्कूल में हुई है. जहां आज भी प्रार्थना में वृक्षों और पर्यावरण को साथ लेकर चलने की बात होती है. जिनका परिवार जंगलों पर पूर्ण रूप से आश्रित है क्या सरकार उनको कोई मुआवजा देने की सोच रही है. सवाल केवल जंगल का नहीं संपूर्ण जैव विविधता का है जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हम सभी पर प्रभाव पड़ेगा. जो सोच रहे हैं कि हीरा निकालने से उनका या क्षेत्र का विकास होगा, तो अगर हीरों से ही विकास होता तो पन्ना देश का सबसे विकसित जिला होता.
दृगपाल सिंह ठाकुर कहते हैं, "आज भारत के साथ सारे विश्व के सामने सबसे गंभीर चुनौती अग़र कुछ है तो वो जलवायु परिवर्तन है. जिसका सबसे बड़ा कारण बढ़ता प्रदूषण और कटते पेड़ हैं. जहां आज सरकारों को पेड़-पौधे लगाने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य करने की जरूरत है, वहां हमारी सरकारें ज़रा सी गंभीर नज़र नहीं आतीं और उल्टा बक्सवाहा जैसे जंगलों को कटाने की खबरें आती हैं. बक्सवाहा में काटने वाले पेड़ों की संख्या ही अपने आप में डरावनी है इतने पेड़ों की कटाई न सिर्फ बुंदेलखंड की जलवायु को प्रभावित करेगी, बल्कि जैव विविधता को वहां से हमेशा के लिए खत्म कर देगी. इससे उन लोगों का रोजगार चला जाएगा जिनका पेट इस जंगल से पलता है. वर्तमान में हमें पैसों की नहीं पेड़-पौधों की जरूरत है, यह बात सरकार को समझनी होगी. जैसे ही ये लॉकडाउन हटेगा सारा बुंदेलखंड सड़कों पर इसका विरोध करता नजर आने वाला है."
स्थानीय पत्रकारों द्वारा जब विधायक प्रदुम्न सिंह से जंगल और हीरा कंपनी के बारे में पूछा गया, तो इस पर उन्होंने कहा, "इसका विरोध कुछ कुंठित मानसिकता के लोग कर रहे हैं. लीज 50 साल के लिये है पूरे पेड़ एक दिन में नहीं कट जायेंगे. कितने पेंड कटेगें यह पहले से कैसे कह सकते हो? इसके पहले भू-गर्भ अधिकारी व पर्यावरण विभाग के अधिकारी मौके पर जाकर देखेंगे. और फिर काम शूरू होने से पहले सरकार और कंपनी जिम्मेदारी के साथ पेड़ लगाना शुरू करेंगी. एक पेंड़ के बदले 15 पेड़ लगाएं जाएंगे. विरोध वो कर रहे हैं जिन्होंने विकास कभी देखा ही नहीं. ये मानसिक रूप से ग्रस्त लोग हैं जिनका काम ही विरोध करना है.
इस जंगल के सबसे नजदीक सगोंरिया, हिंरदेपुर, हरदुआ, तिलई, कसेरा, तिलई, बीरमपुरा और जगारा गांव हैं.
सगोंरिया जंगल से लगा हुआ गांव है. यह एक आदिवासी बाहुल्य गांव है. यहां के लोगों का जीवन यापन जंगलो पर निर्भर है. स्थानीय लोग पशुपालन व खेती पर निर्भर हैं. स्थानीय लोगों का कहना हैं अगर जंगल पूरी तरह खत्म हुए तो हमें जानवरों को करीब 12 किलोमीटर दूर से लाना पड़ेगा. यहां अच्छे रास्ते नहीं हैं इससे हमें और ज्यादा परेशानी होगी. अभी जंगल नजदीक में है तो हमें परेशानी नहीं होती है.
हिंरदेपुर आदिवासी बाहुल्य इलाके की जनसंख्या करीब 200 है. जिसमें उनके जीवन यापन का मूल सहारा जंगल ही हैं. स्थानीय लोग कहते हैं, कि अभी हम केवल जंगल पर ही पूरी तरह आश्रित है. कंपनी के आने से हमें जीवन यापन में सहायता होगी, लेकिन पूरे वन को खत्म करने से हमारा भी जीवन खत्म हो जाएगा.
हरदुआ पूरी तरह जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र है. यहां पर केवल आदिवासी लोग ही मौजूद हैं. स्थानीय निवासी तरजू बारेला कहते हैं, "मेरे 100 महुआ के पेड़ हैं. जो काट दिए जाएंगे. हम पूरी तरह से इन्हीं पेड़ों पर आधारित हैं. अगर ये पेंड़ काट दिए जायेंगे तो हम खाएंगे क्या. सरकार जो आंकड़ें बता रही है वो पूरी तरह झूठे हैं. इतने पेड़ तो केवल एक साइड मौजूद हैं और ये जंगल चारों तरफ से घिरा हुआ है."
बता दें कि स्थानीय लोगों द्वारा जंगल बचाने की जद्दोजहद जारी है. साथ ही आसपास के इलाकों में युवाओं द्वारा चिपको आंदोलन शुरू किया गया है. इसमें लोग पेड़ों से चिपककर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं.
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