Opinion

चीन में तीसरी संतान की अनुमति के मायने

बीते नवंबर में चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-25) के प्रारूप से पूर्ववर्ती योजनाओं में प्रयुक्त ‘परिवार नियोजन’ को हटाने तथा प्रजनन नीति में ‘समावेशीकरण’ के उल्लेख के बाद से ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि परिवार नियोजन की नीति में बदलाव हो सकता है. इससे पहले मई, 2020 में चीन की सर्वोच्च संस्था नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के सम्मेलन में कई प्रतिनिधियों ने तीसरी संतान पैदा करने की अनुमति देने की मांग की थी. इस साल अप्रैल में चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ़ चाइना ने एक रिपोर्ट में परिवार नियोजन नीति को हटाने के सुझाव के साथ यह भी कहा था कि सरकार को लोगों को अधिक संतान पैदा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. इस मांग के उचित कारण थे.

आंकड़ों के अनुसार, 2019 में जन्म दर प्रति हज़ार 10.48 के स्तर (2000 से सबसे कम) पर आ गयी थी और उस साल पैदा हुए शिशुओं में आधे से अधिक दूसरी संतान थे. साल 2017 में लगभग 1.72 करोड़ बच्चे पैदा हुए थे और उस साल भी आधे से अधिक बच्चे अपने माता-पिता की दूसरी संतान थे. यह संख्या 2016 की तुलना में लगभग 6.30 लाख कम थी. साल 2019 में 1.46 करोड़ के आसपास बच्चे पैदा हुए थे. यह संख्या 2018 से 5.80 लाख कम थी.

जन्म दर घटने का एक बड़ा कारण विवाह और बच्चों के बारे में बदलती समझ है. लोगों में देर से शादी करने, पति-पत्नी दोनों के कामकाजी होने तथा बच्चे पैदा न करने जैसी प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं. चीन में समृद्धि बढ़ने के साथ आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसे ज़रूरी मदों का ख़र्च भी बढ़ा है. इस वजह से बहुत से लोग संतान पैदा करने में हिचकते भी हैं. तीसरी संतान के अधिकार के पैरोकार इन पहलुओं के साथ यह भी रेखांकित करते हैं कि हालांकि चीन की श्रम शक्ति में महिलाओं की बड़ी भागीदारी है, किंतु उनके संरक्षण के अधिकार पर्याप्त नहीं हैं.

आबादी के एक हिस्से की बढ़ती उम्र भी चिंता की एक बड़ी वजह थी. साल 2019 में कामकाजी आबादी में 8.90 लाख की कमी आयी थी और गिरावट का यह सिलसिला लगातार आठ सालों से जारी था. बढ़ती उम्र का असर पेंशन में कमी के रूप में भी सामने आ रहा था. साल 2016 में 60 साल से अधिक आयु के लोगों की संख्या में 16.7 प्रतिशत, तो 2017 में 17.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी.

तीसरी संतान की अनुमति के साथ परिवार की सहायता और बेहतरी के उपायों की घोषणा भी हुई है. यह भी उल्लेखनीय है कि चीन में हाल की पंचवर्षीय योजनाओं में सामाजिक क्षेत्र- आवास, शहरीकरण, शहरीकरण की प्रक्रिया को गांवों के विकास के साथ जोड़ने, स्वास्थ्य आदि- पर ख़र्च बढ़ाया गया है. वे योजनाएं नयी पहलों का ठोस आधार बन सकती हैं. लेकिन ख़र्चीले बड़े शहरों में लोग तीसरी संतान पैदा करने की नीति को जल्दी अपनाने में हिचक सकते हैं. उम्मीद की जा सकती है कि जैसे जैसे सामाजिक योजनाओं का विस्तार होता जाएगा, लोगों में संतान पैदा करने का उत्साह भी बढ़ेगा. तीसरी संतान की अनुमति की घोषणा के साथ ही चीन में शिशुओं और बुज़ुर्गों की देखभाल और अन्य सुविधाओं से जुड़ी कंपनियों के शेयरों के भाव में बढ़त एक अच्छा संकेत है. कारोबारी जानकारों का अनुमान है कि आवास, शिक्षा, शिशु देखभाल जैसे क्षेत्रों का कारोबार बढ़ेगा और सरकार भी ऋण व कर नीतियों में बदलाव कर सकती है.

जन्म दर में गिरावट होने और अधिक आयु के लोगों की संख्या बढ़ने से जनसांख्यिक लाभांश कम होने की चिंता सही है, लेकिन निकट भविष्य में चीन की अर्थव्यवस्था पर इसके असर की आशंका नहीं है. कुछ आंकड़ों को देखें. साल 2010 की तुलना में 2020 में चीन की श्रम शक्ति में लगभग 4.50 करोड़ की कमी आयी है. अभी वहां 15 से 59 साल आयु के लोगों की संख्या 89.4 करोड़ है. साठ साल और उससे ऊपर के लोगों की संख्या 26.4 करोड़ है, जो 2010 से 17.7 करोड़ अधिक है. लेकिन यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि चीन की आबादी में 14 साल और उससे कम आयु के लगभग 18 प्रतिशत बच्चे हैं. यह आंकड़ा 2010 से 1.35 प्रतिशत अधिक है.

पिछले माह जनगणना के आंकड़े बताते हुए चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने इस तथ्य की ओर भी संकेत किया है कि चीनी आबादी की औसत आयु 38.8 साल है, जो अमेरिकी आबादी के औसत (38.3 साल) के आसपास है. चीनी टिप्पणीकार यह भी याद दिलाते हैं कि चीन (मुख्य भूमि) की आबादी (2020 में 1.41 अरब) आज भी अमेरिका समेत बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की कुल आबादी से अधिक है. इतना बड़ा बाज़ार चीनी अर्थव्यवस्था को बहुत सालों तक सहारा दे सकता है, जो उच्च तकनीक, विलासिता, स्वास्थ्य सेवा, यात्रा आदि क्षेत्रों की ओर तीव्रता से अग्रसर है. विशेषज्ञ रेखांकित करते हैं कि जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर इसी तरह से विकसित राष्ट्र बने हैं तथा चीन भी इसका अनुसरण कर सकता है.

चीनी आबादी की समृद्धि का संज्ञान लेना भी आवश्यक है. साल 2010 के स्तर से आज व्यय करने योग्य प्रति व्यक्ति आय दुगुनी से भी अधिक (4961 डॉलर) हो चुकी है. यह मध्य आय देशों के औसत से अधिक है. ऐसे में जानकार यह संभावना जता रहे हैं कि आगामी दशक में वृद्धि दर कुछ अधिक हो सकती है. लेकिन दीर्घावधि में चुनौतियां भी हैं. विभिन्न क्षेत्रों में ख़र्च बढ़ने के साथ अमेरिका से प्रतिस्पर्धा का आयाम भी महत्वपूर्ण है. अनेक कारणों (मुख्यत: आप्रवासन) से अमेरिका को आगामी दशकों में जनसांख्यिकी लाभांश का बड़ा लाभ हो सकता है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2050 में अमेरिका के पास 2019 की तुलना में पांच करोड़ लोग अधिक होंगे. यह वृद्धि 15 प्रतिशत होगी, जबकि चीन में 3.20 करोड़ यानी 2.2 प्रतिशत लोग कम हो जाएंगे. इन्हीं आधारों पर चीन के केंद्रीय बैंक ने परिवार नियोजन नीति बदलने की सलाह दी थी. उसने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि चीन ने जनसांख्यिकी लाभांश से अमेरिका के अंतर को बहुत कम किया था और अब उसे आगे के तीन दशक के लिए सोचना है.

जनसंख्या और विकास के मामले में अक्सर भारत की तुलना चीन से की जाती है. लेकिन यह विडंबना ही है कि हम जनसंख्या रोकने और जनसांख्यिकीय लाभांश की बात एक ही सांस में कर जाते हैं. हमारे देश में 2018 से 2030 के दशक के मध्य तक जनसांख्यिकी लाभांश की स्थिति रहेगी और 2050 के दशक में यह बदल जायेगी. उसके बाद आश्रित आबादी (बच्चे और वृद्ध) कामकाजी आबादी से अधिक हो जाएगी.

संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार, 2019 में भारत की औसत आयु 28.4 है. यह एक बहुत आदर्श स्थिति हो सकती है, पर इसका फ़ायदा उठाने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल और भागीदारी की भावना का विकास ज़रूरी है. और, दुर्भाग्य से हमारे यहां इन मामलों में भयावह पिछड़ापन है और आगामी दशकों में इसमें सुधार की कोई उम्मीद नहीं है. अच्छी बात यह भी है कि प्रजनन दर (2015-2020) भी 2.24 प्रतिशत है, जो 2.1 प्रतिशत रहनी चाहिए यानी जनसंख्या नियंत्रण के हमारे प्रयास कारगर सिद्ध हो रहे हैं. हालांकि उत्तर और पूर्व में यह अधिक है और दक्षिण में कम, पर उसे ठीक किया जा सकता है. ऐसे में जनसंख्या रोकने के लिए क़ानून बनाने की मूढ़ता का कोई अर्थ नहीं है.

औद्योगिक और तकनीकी रूप से हम चीन से बहुत पीछे हैं. इस दूरी को पाटने के लिए हमें स्वस्थ, शिक्षित और कौशलयुक्त आबादी तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए. सस्ते श्रम की वजह से हम कुछ उद्योगों को आकर्षित कर सकते हैं और अपना उत्पादन बढ़ा सकते हैं, लेकिन अगर श्रम शक्ति की गुणवत्ता नहीं बढ़ी, तो विकास की दौड़ बहुत आगे नहीं जा सकेगी और हमारा घरेलू बाज़ार क्रय शक्ति के कमी से टूट जाएगा. इंफ़्रास्ट्रक्चर के मामले में भी हम बहुत पीछे हैं. ग़रीबी दूर करने और सामाजिक विभेद मिटाने पर भी ध्यान देना होगा. इन मामलों में हम चीन से बहुत कुछ सीख सकते हैं.

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