Opinion

कोरोना से उबरे लोगों में अगले छह महीनों के दौरान मृत्यु का जोखिम सबसे ज्यादा

भारत में (25 अप्रैल तक) 1.43 करोड़ से ज्यादा मरीज कोरोना संक्रमण से रिकवर हो चुके हैं और स्वस्थ महसूस कर रहे हैं. हालांकि, इनकी देखभाल करने के लिए अभी एक मजबूत निगरानी तंत्र बनाना बाकी है. यहां तक कि यह भी बहुत स्पष्ट है कि संक्रमण का दुष्प्रभाव जैसा कि पहले माना जाता था उसके मुकाबले बहुत लंबे समय तक टिका रहे.

संक्रामक बीमारी से उबरने वाले सबसे बड़ी आबादी समूहों में से एक है जो कि नोवल कोरोनवायरस से ठीक होने वाला समूह भी है.

जुलाई के आखिरी सप्ताह में डाउन टू अर्थ की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपने संयुक्त निगरानी समूह को कोविड-19 से उत्पन्न दीर्घकालिक जटिलताओं के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश बनाने के लिए कहा था. यह समूह मंत्रालय को विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बारे में सलाह देता है.

कब और किस स्थिति में किसी कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति को अस्पताल से डिस्चार्ज करना है और कब घर पर या अस्पताल में इलाज कराने की सलाह देनी है. इस बारे में सरकार एक प्रोटोकॉल का पालन करती है. भारत इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के प्रोटोकॉल को मानता है. लेकिन जो लोग कोरोना संक्रमण से स्वस्थ हो चुके हैं, उनकी सेहत की निगरानी के लिए अभी कोई प्रोटोकॉल नहीं है.

सितंबर 2020 में भारत सरकार ने स्वस्थ हो चुके मरीजों के लिए कार्यकलाप के बारे में एक प्रोटोकॉल बनाया. लेकिन यह रोगियों के लिए सिर्फ सलाह से जुड़ी है और जिसमें प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए उचित आहार और व्यायाम के तरीके शामिल हैं.

अगस्त 2020 में डाउन टू अर्थ ने बड़ी संख्या में कोविड-19 संक्रमण से स्वस्थ होने वाले मरीजों से बात की थी. उनके स्वस्थ होने की अवधि चार से छह महीने की थी. उनमें से ज्यादातर लोग स्वस्थ होने के बाद फेफड़े की समस्या और घबराहट जैसी दिक्कतों का सामना कर रहे थे.

हाल ही में जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित एक अध्ययन में दावा किया गया है कि न केवल महीनों तक कोविड-19 के लक्षण बने रह सकते हैं, बल्कि स्वस्थ हो चुके मरीजों में संक्रमण के छह महीने बाद तक मृत्यु का 59 प्रतिशत खतरा ज्यादा होता है.

क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी सेंटर, रिसर्च एंड डवलपमेंट सर्विस, वीए सेंट लुईस हेल्थ केयर सिस्टम, सेंट लुइस, एमओ, यूएसए के ज़ियाद अल-एली, यान शी और बेंजामिन बोवे की ओर से किए गए अध्ययन में संयुक्त राज्य अमेरिका में 87 हजार से अधिक कोविड-19 रोगियों की जांच की गई.

कोविड-19 के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण होने वाली मौतों के लिए सीधे तौर पर इस संक्रमण को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है. लेकिन इस नए शोध से पता चलता है कि छह महीनों में प्रति 1,000 मरीजों पर आठ अतिरिक्त मौतें हुईं, “अस्पताल में भर्ती होने और 30 से ज्यादा दिनों में दिवंगत होने वाले मरीजों में, बीते छह महीने में प्रति 1,000 रोगियों पर 29 मौतें अतिरिक्त रहीं.”

एक प्रेस विज्ञप्ति में इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक, एमडी ज़ियाद अल-ऐली ने कहा, “जहां तक महामारी से होने वाली कुल मौतों का सवाल है, तो यह संख्या बताती है कि तत्काल वायरल संक्रमण के कारण जिन मौतों की हम गणना कर रहे हैं, वह तो केवल हिमखंड का ऊपर दिखने वाला सिरा भर हैं.” अल-ऐली ने इसे “अमेरिका का अगला बड़ा स्वास्थ्य संकट” करार दिया है.

उन्होंने कहा, “देखते हुए कि 30 मिलियन (तीन करोड़) से अधिक अमेरिकी इस वायरस से संक्रमित हुए, और दीर्घकालिक कोविड-19 का बोझ बहुत ज्यादा है, इस बीमारी का प्रभाव कई वर्षों तक और यहां तक कि दशकों तक बना रहेगा.”

26 अप्रैल की शाम तक, भारत में 17.3 मिलियन (173 लाख) कोविड-19 संक्रमण के मामले थे. जैसा कि पहले ही विस्तार से बताया गया है, हजारों ठीक हो चुके मरीज थकावट, घबराहट के दौरे पड़ने, फेफड़ों के संक्रमण और अन्य बीमारियों से परेशान हैं. जब भारत स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव के साथ कोरोना मामलों के दूसरे उछाल से जूझ रहा है, कोविड से ठीक होने वाले इसके लिए “अगला बड़ा स्वास्थ्य संकट” हो सकते हैं, जैसा कि अल-एली ने यूएसए के लिए कहा है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

Also Read: “हम श्मशान के बच्चे हैं”: वाराणसी के घाटों पर कोविड लाशों का क्रिया कर्म कर रहे मासूम

Also Read: कोरोना और बेरोज़गारी की दोहरी मार झेल रहे हैं गांवों के लोग