Godman Series

धंधे की तरकीब: सद्गुरु का ईशा फाउंडेशन टैक्स देने से कैसे बचता है

आयकर विभाग के दस्तावेजों के अनुसार जग्गी वासुदेव की ईशा फाउंडेशन इन कॉरपोरेटेड, जो अमेरिका में पंजीकृत है ने साल 2018 में 56.43 करोड़ रुपए की आमदनी दर्ज की. इनमें से करीब 35.81 करोड़ रुपए दान से आए. फाउंडेशन की आय के भारत में कोई उपलब्ध दस्तावेज नहीं हैं लेकिन यह दावा करती है कि दान या- फाउंडेशन के द्वारा इस प्रकार के लेनदेन को दी गई परिभाषा "सहयोग", उसकी आय का एक बड़ा हिस्सा हैं. लेकिन सबूत मौजूद हैं इनमें से कुछ, घोषित होते हुए भी दान नहीं हैं. ईशा फाउंडेशन अपने द्वारा बेची गई सेवाओं, मसलन योग सत्र, "आध्यात्मिक" यात्राओं और अपने द्वारा बेची गई सामग्री को भी "दान" की श्रेणी में दिखाती है.

लेकिन ईशा ऐसा क्यों कहती है कि उनकी आय प्राथमिक तौर पर दान से आती है? इसका जवाब है कि ईशा एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट या धर्मार्थ संस्था है, जिसकी वजह से कानूनन उसे करों से छूट मिली हुई है. इसीलिए वह साधारण व्यापारिक लेन-देन के लिए भी दान की रसीद काटती है, जैसा कि उसने कोपलों को‌ बेचने में किया.

37 वर्षीय नागप्पन गौथम डिंडीगुल में जैविक खेती करते हैं, उन्होने बताया, "मैंने साल 2017 के आखिर में ईशा के मदुरई केंद्र से तीन बार पौधों की कोंपल ख़रीदीं, एक बार 8000 रूपए की और दो बार 3000 रूपए की. उन्होंने मुझे कोई बिल नहीं दिया और मैंने भी नहीं मांगा क्योंकि मुझे चाहिए नहीं था. फिर चार-पांच महीने बाद मुझे एक ईमेल आया जिसमें लिखा था कि मैंने ईशा को 1242 रूपए का दान दिया है. उन्होंने मुझे उस दान की एक रसीद भी भेजी. लेकिन वह दान था ही नहीं, वह तो साधारण सा व्यापारिक लेन-देन था. और फिर, मैंने उनसे 14000 रुपए का सामान खरीदा और उन्होंने मुझे, ऐसे ही, 1242 रुपए के दान की रसीद भेज दी. रसीद पर लिखा था कि मैंने ईशा आउटरीच को दान किया जिसे भारतीय आयकर अधिनियम के अनुच्छेद 80G के अनुसार कर से छूट मिली हुई थी. यह बेईमानी है. वह अपने सारे पैसे को दान राशि के रूप में दिखाकर, उस पर लगने वाले आयकर से बचना चाहते हैं."

ईशा आउटरीच फाउंडेशन का "सामाजिक विकास" का प्रकोष्ठ है.

2014 में, भारतीय मूल के एक स्वीडिश नागरिक ने ईशा के खिलाफ, कोयंबटूर के अलंदुरई पुलिस थाने में धोखाधड़ी की शिकायत की थी. जया बालू का कहना था कि उन्होंने फाउंडेशन को एक यंत्र अनुष्ठान और योग सत्रों के लिए 4,50,000 रुपए अदा किए, लेकिन उन्हें उसकी रसीद के बजाय एक दान की रसीद पकड़ा दी गई. उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा, "मुझे लगा कि यह योग और यंत्र अनुष्ठान की फीस है. क्योंकि दान तो मन से दिया जाना चाहिए, किसी के द्वारा जुगाड़ बिठाने से नहीं."

जया ने अपने पैसे वापस मांगे लेकिन ईशा की तरफ से साफ इंकार कर दिया गया. उन्हें अपना पैसा 2015 में वापस मिला, जब एक स्थानीय वकील जेडी सोक्रटीज़ और उनके दोस्त आर सदीकुल्लाह जो कोयंबटूर में कपड़े की दुकान चलाते हैं, जया की मदद के लिए आए.

जेडी सोक्रटीज़ याद करते हुए बताते हैं, "जया बालू ईशा फाउंडेशन दिसंबर 2014 में आईं. वह एक यंत्र अनुष्ठान के लिए आए हुए कुछ विदेशियों के समूह का हिस्सा थीं. उन्हें एक ध्यान के कार्यक्रम में भाग लेने के साथ-साथ सद्गुरु से एक पत्थर को भी आशीष दिलवाना था, उनका मानना था कि सद्गुरु के आशीष के बाद उस पत्थर से उन्हें शांति और समृद्धि मिलेगी. जया ने उस अनुष्ठान और उस पत्थर के 4.5 लाख रुपए दिए. अनुष्ठान खत्म होने के बाद, स्टाफ ने आगंतुकों को बताया कि पत्थरों को उनके घर कुरियर से भेजा जाएगा जिसके लिए उन्हें 1.5 लाख रुपए और देने होंगे. जया को उस समय उनका खेल समझ आया और वह केवल अपना झोला उठाकर उनके केंद्र से निकल आईं."

योगिक और आध्यात्मिक सेवाएं बेचने के अलावा ईशा और भी कई व्यापारिक कामों से संलग्न है, इनमें ईशा फूड्स एंड स्पाइसेज, ईशा क्राफ्ट्स, ईशा नेचुरो ऑर्गेनिक साॅल्यूशन्स, उज़ावन एग्रो सॉल्यूशन्स, त्रिशूल फाउंडेशंस, त्रिशूल शेल्टर्स, कृषि लैंड फॉर्म्स, ईशा आरोग्य, ईशा इंस्टिट्यूट ऑफ इनर साइंसेज, ईशा लाइफ रिसर्च फाउंडेशन, ईशा लाइफ फिटनेस सिस्टम, ईशा कैपिटल, ईशा ब्यूटी प्रोडक्ट्स एंड वैलनेस, शामिल हैं.

इन कंपनियों के संचालन करने वाले बोर्डों के सदस्य डिजाइनर सत्य पाॅल के पुत्र पुनीत नंदा, ईशा लीडरशिप अकादमी के निदेशक और एबीएन एमरो बैंक के पूर्व उपाध्यक्ष विनोद हरि, ईशा विद्या के प्रोजेक्ट डायरेक्टर गोपाल कृष्णमूर्ति और ईशा लाइफ की निदेशक व वासुदेव जग्गी की पुत्री, राधे जग्गी हैं.

केंद्रीय कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय के दस्तावेजों के अनुसार ईशा ने 2019-2020 में इन सभी कंपनियों से लगभग 117 करोड़ रुपए कमाए.

फाउंडेशन आध्यात्मिक यात्राओं को बेच कर भी काफी पैसा कमाती है. वासुदेव के साथ 13 दिन की कैलाश मानसरोवर की यात्रा का खर्च 50 लाख रुपए प्रति व्यक्ति है. वे भक्त जो इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं कर सकते, उनके लिए कुछ सस्ते पैकेज भी हैं. कीरोंग के रास्ते 2,75,000 रुपए, ल्हासा के रास्ते 3,45,000 रुपए, ल्हासा और अली के रास्ते 5,50,000 रुपए प्रति व्यक्ति, पवित्र पहाड़ तक जाने का शुल्क है. लेकिन इन सस्ते पैकेजों में यात्री बस एक बार वासुदेव से मिलते हैं, जिसे दर्शन का नाम दिया गया है. 2.75 लाख और 3.45 लाख रुपए वाले पैकेज में श्रद्धालुओं को 60-60 के समूहों में भेजा जाता है, 5.50 लाख रुपए वाले पैकेज में यह समूह 30 लोगों का होता है.

इस साल कोविड की वजह से पानी फिर जाने से पहले, 275000 के 60 लोगों वाले 17 समूह बुक किए जा चुके थे, 4 समूहों ने 3,45,000 रुपए वाले बुक किए थे और दो समूहों ने 5,50,000 रुपए देकर बुकिंग की थी. हिसाब आप खुद लगा सकते हैं.

इसी प्रकार वासुदेव के साथ मोटरसाइकिल पर हिमालय की 12 दिनों की यात्रा का दाम 12 लाख रुपए प्रति व्यक्ति है, वासुदेव की संगत में 5 दिन की वाराणसी यात्रा की कीमत 5 लाख रुपए है वहीं बिना वासुदेव के यह कीमत 50,000 रुपए है. मैसूर के चामुंडी पहाड़ियों की यात्रा 3-4 लाख रुपए और, रामेश्वरम या मदुरई की 5 दिन की यात्रा का शुल्क 45,000 रुपए प्रति व्यक्ति है. एक सरसरी तौर पर किए गए आंकलन से पता चलता है कि ईशा इस तरह की "आध्यात्मिक" यात्राओं को बेचकर करीब 60 करोड़ रुपए सालाना कमाती है.

इसके अलावा, ईशा के कैंपस में होने वाला वार्षिक महाशिवरात्रि उत्सव भी एक बड़ी आय का जरिया है. इसके टिकट 250 रुपए से शुरू होकर 50000 रुपए तक जाते हैं. अनुमानित है कि 2020 में करीब 1000000 लोगों ने इस उत्सव में हिस्सा लिया. उत्सव के दौरान 4 दिन वहां रहने का शुल्क, ली गई सुविधाओं के हिसाब से 50,000 रुपए, 1,50,000 रुपए या 2,50,000 रुपए हो सकता है.

2021 में महाशिवरात्रि उत्सव का हिस्सा लेने वाले वासुदेव के एक अनुयायी ने बताया, "मैंने 150000 रुपए वाला कार्यक्रम खरीदा था और उसी पैकेज में हम करीब 300 लोग थे. केवल एक पैकेज से 4 दिनों में यह 4.5 करोड़ रुपए की आमदनी है."

2018 में, तमिलनाडु के पूर्व विजिलेंस अधिकारी और एक विसलब्लोअर अछीमुथू शंकर ने राज्य के आयकर कमिश्नर के पास शिकायत दर्ज कराई कि ईशा फाउंडेशन 80G अनुच्छेद, जो केवल स्वेच्छा से दिए गए दानों के लिए है, का दुरुपयोग कर देने से बचने में कर रही है. उन्होंने इस तरफ ध्यान दिलाया कि फाउंडेशन बहुत से उत्पाद और "आध्यात्मिक कार्यक्रम" बेच रही है और इनसे हुई आमदनी को अपने खातों में दान की तरह दिखा रही है. उन्होंने पूछा कि किसी उत्पाद या "आध्यात्मिक सेवा" को बेचा जाना, दान कैसे हो सकता है? दान, परिभाषा के अनुसार स्वेच्छा से ही दिया जाना चाहिए.

शंकर ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "ईशा के द्वारा बड़े स्तर पर प्रचारित उनके योग कार्यक्रम, मुफ्त नहीं हैं. मैंने 2014 में, हफ्ते भर चलने वाले एक कोर्स में नाम लिखवाया लेकिन मुझे साफ कह दिया गया कि जब तक मैं 750 रुपए अदा नहीं करूंगा, उसमें हिस्सा नहीं ले सकता. मैंने वह पैसे दिए और मुझे एक रसीद मिली जिसमें लिखा था कि मेरे द्वारा योग कोर्स के लिए अदा की गई वह फीस, अनुच्छेद 80G के अंतर्गत कर मुक्त "दान" है. कार्यक्रम के आखिरी दिन वे अपना बहुत सा सामान बेचने के लिए लाते हैं, जैसे कि जग्गी के फोटो, किताबें, सीडी और आध्यात्मिक चिन्ह, चित्र व मूर्तियां. आप कोई भी चीज खरीदें तो वह आपको दान की रसीद देंगे. ऐसा करके वह केवल जीएसटी ही नहीं आयकर देने से भी बच रहे हैं."

शंकर एक बात और जोड़ते हैं, "80G के अंतर्गत कर से छूट पाने की एक शर्त यह भी है कि संस्था का सांप्रदायिक और व्यापारिक गतिविधियों से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. ईशा दोनों प्रकार की गतिविधियों में लिप्त है, यह उनका महाशिवरात्रि उत्सव देखकर ही पता चल सकता है.

इन "बड़ी विसंगतियों" को आयकर विभाग के अधिकारियों के सामने लाने के लिए ही शंकर ने 2018 में "एक विस्तृत शिकायत" दर्ज कराई थी. उसका क्या हुआ?

शंकर उत्तर देते हैं, "मुझे आयकर विभाग के कमिश्नर का फोन आया और उन्होंने पूछा कि क्या मैं वही व्यक्ति हूं जिसने उन्हें शिकायत भेजी? मैंने हां में जवाब दिया, और मेरे पास जो रसीदें और बाकी सबूत हैं उन्हें जमा कराने की पेशकश की. लेकिन 3 साल पहले फोन के बाद मेरी उनसे कोई बात नहीं हुई."

क्या शंकर की शिकायत को जांच कर सुलझा दिया गया, इसके जवाब में आयकर विभाग में छूट के कमिश्नर, के रवि रामचंद्रन ने कहा, "शिकायतकर्ता को हमसे वापस संपर्क करना चाहिए. मैं इस मामले को देखूंगा. अगर कुछ गड़बड़ियां हैं तो हम सही कदम उठाएंगे. लेकिन पहले शिकायत को देखना ज़रूरी है."

कोयंबटूर के एक वकील, कलाईरसू आर बताते हैं कि ईशा के खिलाफ दर्ज कराई गई शंकर की शिकायत कानूनी तौर पर सही थी. वे कहते हैं, "80G छूट गैर सांप्रदायिक संस्थाओं पर लागू होती है. लेकिन ईशा सभी प्रकार की सांप्रदायिक गतिविधियों में हिस्सा लेती है. आजकल वे तमिलनाडु में "फ्री टेंपल्स" अर्थात मंदिर मुक्ति नाम की मुहिम चला रहे हैं, जो कि एक सांप्रदायिक गतिविधि है और स्पष्ट रूप से 80G का उल्लंघन है."

ईशा ने अपने वित्तीय साधनों और अपने ऊपर लगे टैक्स चोरी के आरोपों के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया.

ईशा फाउंडेशन के द्वारा बड़े तौर पर प्रचारित पर्यावरण अभियान, कावेरी कॉलिंग भी उनके व्यापारिक लेन-देन को "दान" के रूप में दिखाने के हथकंडे से बचा नहीं है. सितंबर 2019 में शुरू हुआ यह अभियान, नदी के घाट पर उसके उद्गम कर्नाटक में तला कावेरी से लेकर तमिलनाडु में थिरुवरूर तक 639 किलोमीटर में 242 करोड़ पेड़ लगाने का है. वासुदेव ने इस योजना के प्रचार में कई बड़े नेताओं, फिल्मी सितारों और खिलाड़ियों का उपयोग किया और उनकी फाउंडेशन ने 42 रुपए प्रति वृक्ष "दान" की चेष्टा रखी.

यह योजना जल्द ही विवादों के घेरे में आ गई. बेंगलुरु के एक वकील एवी अमरनाथ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में ईशा के धन को इकट्ठा करने के अभियान पर तुरंत रोक लगाने की याचिका दायर की.

नवंबर 2019 में दायर की गई अपनी याचिका में अमरनाथ ने पूछा कि, एक निजी संस्था को सरकारी ज़मीन पर एक योजना के क्रियान्वयन के लिए जनता से इतना सारा पैसा इकट्ठा करने की इजाजत कैसे है?

अमरनाथ ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "उद्घाटन कार्यक्रम में, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने घोषणा की थी कि उनकी सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए ईशा को दो करोड़ पौधों की कोंपलें प्रदान करेगी. वासुदेव ने भी कहा था कि योजना को सरकार ने स्वीकृति दे दी है, हालांकि नीति आयोग के नियम कहते हैं कि नदियों को पुनर्जीवित करने वाली योजनाओं को केवल राज्य या केंद्र सरकारें ही चला सकती हैं.‌ निजी संस्थाएं या एनजीओ केवल उनकी मदद कर सकते हैं. कोई भी निजी संस्था राज्य सरकार की अनुमति के बिना किसी नदी के पुनर्जीवन के लिए पैसा इकट्ठा नहीं कर सकती. और इस तरफ ईशा एक ऐसी योजना के लिए बड़ी मात्रा में पैसा इकट्ठा कर रही थी जिसका पंजीकरण तक नहीं हुआ था. मैंने इसीलिए अदालत का दरवाजा खटखटाया."

अमरनाथ के द्वारा उठाई गई आपत्ति को मानते हुए जनवरी 2020 में उच्च न्यायालय ने माना कि कावेरी कॉलिंग एक पंजीकृत संस्था नहीं है और ईशा के पास इस योजना के लिए धन की उगाही करने के लिए आवश्यक सरकारी मंजूरी नहीं है. अदालत ने कर्नाटक सरकार को ईशा के द्वारा पैसा इकट्ठा किए जाने के दौरान हरकत में ना आने के लिए लताड़ा और फाउंडेशन को जितना पैसा इकट्ठा हुआ है उसका लेखा-जोखा देने के निर्देश दिए.

उसी साल मार्च में, अदालत में जवाब देते हुए ईशा फाउंडेशन ने दावा किया कि वह कावेरी कॉलिंग में शामिल नहीं थे. उन्होंने कहा कि योजना को ईशा आउटरीच चला रही थी, जिसने पिछले महीने तक 82.50 करोड़ "दान राशि" इकट्ठा कर ली थी और उसका इस्तेमाल पूरी तरह से पेड़ लगाने के लिए किया गया. इस समय ईशा की वेबसाइट दिखाती है कि इस योजना के लिए 5.6 करोड पेड़ दिए जा चुके हैं, 42 रुपए प्रति पेड़ के हिसाब से यह राशि 235 करोड़ रुपए बनती है.

कावेरी कॉलिंग की निगरानी के लिए ईशा आउटरीच के बोर्ड के सदस्य उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अरिजीत पसायत, व्यापारी किरण मजूमदार शाॅ, पूर्व केंद्रीय जल संसाधन सचिव शशि शेखर, पूर्व कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज के प्रमुख चंद्रजीत बनर्जी, टाटा स्टील के पूर्व चेयरमैन बी मुथुरामन और इसरो के पूर्व चेयरमैन एस किरण कुमार हैं.

अपने बचाव में कर्नाटक सरकार ने यह उजागर किया कि उसने कावेरी कॉलिंग योजना को स्वीकृति नहीं दी. उसने केवल कृषि और अन्य प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत ईशा को दो करोड़ कोपल प्रदान की, यह योजना किसानों को सस्ते दामों पर कोंपल उपलब्ध कराने और अगर पौधा बढ़ता है तो सालाना प्रोत्साहन राशि देने के लिए है. इसके बदले में, ईशा को किसानों को इस योजना से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करना था, न कि खुद पेड़ लगाने थे. अंततोगत्वा सरकार ने यह भी कहा कि उसने ईशा को केवल 73.44 लाख पौधे दिए क्योंकि वन विभाग ने सरकार का ध्यान इस तरफ दिलाया कि अलग-अलग प्रजातियों की दो करोड़ कोंपलों को उगाना व्यावहारिक तौर पर उचित नहीं था.

तत्पश्चात वन विभाग ने एक सार्वजनिक सूचना से स्पष्ट किया कि उन्होंने कावेरी कॉलिंग के लिए न तो भूमि उपलब्ध कराई थी और न ही धन. फरवरी 2021 में ईशा आउटरीच ने भी यह बात स्वीकार कर ली.

इस साल 8 मार्च की सुनवाई पर, उच्च न्यायालय ने परामर्श दिया कि राज्य को इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या ईशा फाउंडेशन ने कावेरी कॉलिंग योजना को सरकारी योजना बताकर पैसा इकट्ठा किया. ईशा आउटरीच ऐसी किसी भी जांच को रोकने के लिए तुरंत सुप्रीम कोर्ट पहुंची, जहां पर अभी मामला बिना सुनवाई के लंबित है.

***

तीन पार्ट में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट का यह आखिरी हिस्सा है. पहला और दूसरा पार्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

यह रिपोर्ट हमारी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसमें 155 पाठकों ने योगदान दिया.

इसे सरस उपाध्याय, विशाल रघुवंशी, विपिन शर्मा, किमाया कर्मलकर, शाफिया काज़मी, सौम्या के, तपिश मलिक, सूमो शा, कृष्णन सीएमसी, वैभव जाधव, रचित आचार्य, वरुण कुझिकट्टिल, अनिमेष प्रियदर्शी, विनील सुखरमानी, मधु मुरली, वेदांत पवार, शशांक राजपूत, ओलिवर डेविड, सुमित अरोड़ा, जान्हवी जी, राहुल कोहली, गौरव जैन, शिवम अग्रवाल, नितीश के गनानी , वेंकट के, निखिल मेराला, मोहित चेलानी, उदय, हरमन संधू, आयशा, टीपू, अभिमन्यु चितोशिया, आनंद, हसन कुमार , अभिषेक के गैरोला, अधिराज कोहली, जितेश शिवदासन सीएम, रुद्रभानु पांडे, राजेश समाला, अभिलाष पी, नॉर्मन डीसिल्वा, प्रणीत गुप्ता, अभिजीत साठे, करुणवीर सिंह, अनिमेष चौधरी, अनिरुद्ध श्रीवत्सन, प्रीतम सरमा, विशाल सिंह, मंतोश सिंह, सुशांत चौधरी , रोहित शर्मा, मोहम्मद वसीम, कार्तिक, साई कृष्णा, श्रेया सेथुरमन, दीपा और हमारे अन्य एनएल सेना सदस्यों के योगदान से संभव बनाया गया है.

Also Read: कानून की जमीन पर खोखली नजर आती ईशा फाउंडेशन के साम्राज्य की नींव

Also Read: पत्रकारों और राजनेताओं के कंधों पर पैर रख-रखकर कैसे एक शख़्स जग्गी वासुदेव से सद्गुरु बन गया