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बलिया से बक्सर तक क्यों गंगा में मिल रहे हैं शव
उत्तर प्रदेश से सटे बक्सर के गंगा तटों पर मिल रहे शवों को लेकर संशय बरकरार है. बक्सर प्रशासन द्वारा यूपी की ओर से आए शव बताकर 10 मई की देर रात 71 शवों का अंतिम संस्कार कर दिया. वहीं बक्सर से सटे बलिया प्रशासन ने भी 10 मई को मिले शवों का अंतिम संस्कार कराने के बाद शवों के स्रोत की जांच करने की बात प्रेस विज्ञप्ति में कही है. अखबारों के स्थानीय संस्करण में खबर है कि बलिया में 62 शवों का अंति संस्कार कराया गया. बलिया से ही सटे उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर में 11 मई को स्थानीय प्रशसान ने 'द हिंदू' से बातचीत में कहा है कि वहां 11 से अधिक शव गंगा नदी में मिले हैं. यह सबकुछ तब हो रहा है जब 12 मई को प्रदेश के सभी अखबारों में डब्ल्यूएचओ द्वारा सीएम आदित्यनाथ के कोरोना मैनेजमेंट के यूपी मॉडल के सराहना की खबर छपी.
इतने शवों के मिलने का क्या कारण है
पूर्वांचल सहित उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में मिल रहे शवों के कारणों को लेकर हमने कुछ स्थानीय लोगों से बात की. बलिया में बक्सर के पास गंगा के ठीक किनारे के गांव भरौली के 63 वर्षीय कमला राय बताते हैं, "11 हज़ार की जनसंख्या वाले उनके गांव में ज्यादातर परिवारों में लोग बीमार हैं. पिछले दस दिनों में 25 से अधिक लोगों की मौत हुई है."
गंगा किनारे मिल रहे शवों को लेकर कमला राय कहते हैं, "इन शवों में अधिकतर कोविड वाले ही हैं. हमारे गांव में तो श्मशान घाट है लेकिन बलिया से सटे शेरपुर, बड़कागांव वगैरह गांवों में पक्के घाट नहीं हैं ऐसे में भी लोग यहां शवों को हिंदू मान्यता के हिसाब से नदी में प्रवाहित कर देते हैं. आजकल गांव में अधिक लोग मर रहे हैं तो यह लाशें दिख रही हैं''
गंगा नदी में लगातार मिले शवों को लेकर कमला राय ने कहा, "फिलहाल नदी की धार के हिसाब से ये लाशें उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर की हो सकती हैं. ग़ाज़ीपुर जिले का भी एक बड़ा हिस्सा नदी से सटा है. यहां के शेरपुर गांव की लगभग 12 किलोमीटर की सीमा गंगा नदी से लगती है. 30 हज़ार की आबादी और 49 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र के इस गांव में शवों के जलप्रवाह की भी परंपरा है. मुख्य शहर से दूर होने के कारण इस गांव में गंगा के तट तक पूरी तरह से सड़क नहीं बन पाई है. शवों के जलप्रवाह का एक बड़ा कारण यह भी है.
गांव के ही अरविंद राय बताते हैं, "हमारे गांव के एक तरफ गंगा नदी है और दूसरी तरफ बलिया-बनारस हाईवे. यही हाल ठीक उस तरफ के बक्सर के चौसा और ग़ाज़ीपुर के रेवतीपुर गांव का भी है. नदी किनारे तक सड़क नहीं है, इसलिए नदी के तट तक यहां जलाने के लिए लकड़ी का प्रबंध कर पाना कई बार मुश्किल हो जाता है. यहां श्मशान घाट और लकड़ी की दुकानों का भी आभाव है. किसी की मृत्यु के ठीक बाद लकड़ी कटवाकर जलाने की व्यवस्था करने में काफी समय लगता है. इसलिए जो ये व्यवस्था नहीं कर पाते वो शवों को नदी में प्रवाहित कर देते हैं. हिंदू धर्म में जलप्रवाह की परंपरा भी है इसलिए लोग ऐसा कर देते हैं.''
गांवों में कोरोना के हाल पर अरविंद राय कहते हैं, ''हमारा गांव बहुत बड़ा है. हमारे गांव में मेरे जानने वाले बीते दस दिनों में 30 से अधिक लोगों की मौत हुई है. सच्चाई यही है कि गांव में कोरोना जैसे लक्षणों से मौतें हो रही हैं. अब जांच नहीं हो रही है तो पता नहीं चल पा रहा है. ऐसे में रोज़ किसी न किसी के मरने की खबर आ ही रही है.''
बलिया में गंगा के ठीक किनारे के गांव उजियार के पिंटू राय ने भी न्यूजलॉन्ड्री से बात की. पिंटू बताते हैं, "पांच हजार की आबादी वाले उनके गांव में प्रतिदिन लगभग दो लोगों की मौत हो रही है. वो 13 मई की सुबह ही गंगा घाट से गांव के एक वृद्ध की अंत्योष्टि से लौटे हैं. हमारे यहां शवों को मुख्यत: जलाया ही जाता है. शव जलाने में 5 से 7 हज़ार तक की तो लकड़ी ही लग जाती है. लेकिन जो इतने पैसे नहीं जुटा पाते वह शवों को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. आजकल गांव में मौते ज्यादा हो रही हैं. कोरोना का भय है तो इसलिए लोग जलप्रवाह करके आ जाते हैं''
शव प्रवाह का हिंदू धर्म में क्या है रिवाज
महामारी में गंगा किनारे अंत्योष्टि में खर्च अब महंगा होता जा रहा है. हिंदू धर्म में शवों को जलाने के अलावा जल प्रवाह की भी व्यवस्था है. बलिया के रहने वाले हिंदू कर्मकांड के जानकार पंडित राजकिशोर मिश्र बताते हैं, ''हिंदू धर्म में जल प्रवाह की पंरपरा तो है लेकिन मुख्यत: शवों को जलाया ही जाता है. सांप काटने, कुष्ठ रोग या कुछ अन्य विशेष अवस्था में ही शवों का जल प्रवाह किया जाता है. किसी क्षेत्र में ऐसा होता है तो वह लोकाचार का हिस्सा है.''
बलिया के महावीर घाट पर शवों की अंत्योष्टि कराने वाले पुरोहित अमित पिछले 10 वर्षों से घाट पर पंडित की भूमिका में हैं. अमित कहते हैं, "इन दिनों सामान्य से दोगुने शव आ रहे हैं. वैसे तो हमारे घाट पर सामान्य दिनों में 10-12 शव आते रहे हैं, लेकिन पिछले महीने से रोज लगभग 30 शव तक आए हैं. इनमें कोरोना वाले भी आए हैं. हालांकि उनके अंतिम संस्कार के लिए कम लोग ही आते हैं. उनके कोई पास भी नहीं जाना चाहता है. यहां घाट पर शवों का जल प्रवाह नहीं के बराबर है''
गंगा घाटों पर मिल रहे शवों पर लगातार कवरेज कर रहे ग़ाज़ीपुर के पत्रकार राजकमल बताते हैं, "ग़ाज़ीपुर या आसपास के जिलों में शव प्रवाह की कोई खास परंपरा नहीं रही है. नदी में इस तरह से शवों के मिलने का मुख्य कारण आर्थिक अभाव है. नदी में शव दो सूरत में मिल रहे हैं. एक तो ये कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के पास कोई चारा नहीं है, क्योंकि शव को जलाने में करीब 5 क्विंटल लकड़ी की आवश्यकता होती है. इस वक्त ग़ाज़ीपुर में 2800 प्रति क्विंटल के भाव से लकड़ी मिल रही है. इतनी महंगी लकड़ी सबके लिए संभव नहीं है. दूसरा, कोरोना के लक्षणों से हो रही मौतों को लेकर गांवों के लोगों में भय भी है. कोई भी शव के पास जाना नहीं चाहता है."
राजकमल का कहना है, "बीते कुछ दिनों में गांवों में मौत का आंकड़ा बहुत तेजी से बढ़ा है और महामारी इसका मुख्य कारण है. अधिकतकर लोगों की यही हिस्ट्री है कि तीन चार दिन से बुखार था और सांस फूलने के बाद मौत हो गई. गांवों में जांच नहीं हो पा रही है. लोगों में कोरोना को लेकर प्रशासन के प्रति भय भी है इसलिए यह मौतें सरकारी आंकड़ों में नहीं आ रही हैं."
क्या हैं कोरोना के सरकारी आंकड़े
वहीं सरकारी आंकड़ों में हाल दूसरा ही है. सरकारी हिसाब से 9 मई से 12 मई तक, बीते चार दिनों में गाज़ीपुर में कोरोना से कुल छह मौतें ही हुई हैं. गाजीपुर प्रशासन के हिसाब से अब तक 216 लोगों की जान गई है. वहीं बलिया का हाल सरकारी आंकड़ों में कमोबेश ऐसा ही है. यहां पांच मई से 12 मई तक कोरोना से कुल 24 मौतें हुई हैं. बलिया में प्रशासन के कहे अनुसार अब तक कुल 198 लोगों की मौत कोरोना से हुई है. सरकारी तौर पर नदी में मिल रही लाशों पर प्रशासन आनन-फानन में अंत्योष्टि कर रहा है. उजियार के स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां मिले शवों को जेसीबी की मदद लेकर जमीन में दफना दिया गया है. ऐसी ही तस्वीरें उत्तर प्रदेश के उन्नाव, फ़तेहपुर और कानपुर से भी आईं हैं. बीते दो दिनों में यहां गंगा के किनारे की रेती पर सैकड़ों की संख्या में ऐसे शव मिले हैं, जिन्हें जेसीबी से दफनाया गया है.
इस सबके बीच प्रदेश के अखबारों में खबर छप रही है कि डब्ल्यूएचओ ने यूपी मॉडल की सराहना की है. आंकड़ों के इतर जमीनी हकीकत भयावह है. गांवों में कोरोना जैसे लक्षणों के बाद लगातार मौतें हो रही हैं. यह मौतें किसी आंकड़े में नहीं हैं और प्रदेश सरकार इन्हीं आंकड़ों के मैनेजमेंट पर जोर आजमाइश कर अपनी पीठ थपथपाने में लगी है.
बलिया में वार्ड नंबर 43 के जिला पंचायत सदस्य बीरलाल यादव गंगा के किनारे के बड़कागांव के रहने वाले हैं. इस वार्ड में नदी के किनारे के तकरीबन 6-7 गांव आते हैं. बीरलाल बताते हैं, "गांवों में संक्रमण फैला है. लोग बीमार पड़ रहे हैं. लक्षण भी कोरोना के हैं लेकिन चेक नहीं करा रहे हैं."
नदी में लगातार मिल रहे शवों के सवाल पर वह कहते हैं, ''जो लोग सक्षम नहीं हैं वो शव को जल प्रवाह कर देते हैं. गांवों में मौते ज्यादा हो रही हैं, गरीब मर रहे हैं तो लाशें भी दिख रही हैं. मेरे आसपास के गांवों में अभी तक कोई स्वास्थ्य टीम नहीं पहुंची है. बीमार पड़ने पर लोग आसपास के स्वास्थ्यकेंद्रों पर जाते हैं. टीका या दवाई वहीं मिल रही है''
इस मुद्दे पर न्यूजलॉन्ड्री ने बलिया के सीएमओ से बात की. उन्होंने कहा, "कॉन्टेक्ट ट्रैसिंग के लिए राज्य की कोई एडवाइज़री नहीं है. जिलों ने अपने स्तर से नियम बनाए हैं. बलिया में ब्लॉक स्तर पर कुल 290 आरआरटी (रैपिड रिस्पांस टीम) बनाई गईं हैं. पॉजिटिव केस आने के बाद संबंधित ब्लॉक को सूचित कर दिया जाता है. उसके बाद टीम संक्रमित व्यक्ति के घरों में जाती है और संपर्क में आए लोगों की सैंपलिंग की जाती है."
बलिया में कोविड बेड के संबंध में वह आगे कहते हैं, ''बलिया में कुल 130 कोविड बेड हैं जिसमें ऑक्सीजन सपोर्ट के 62 और 36 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के साथ हैं. 11 वेंटीलेटर बेड आज से शुरू किए जा रहे हैं. यहां फिलहाल कोई प्राइवेट अस्पताल कोविड मरीज़ नहीं ले रहे हैं.''
वहीं ग़ाजीपुर के सीएमओ गीरिश चंद्र वर्मा ने बताया, ''हमने टेस्टिंग के लिए कुल 85 टीमें बनाई हैं. इनमें 64 मोबाइल टीम हैं और जिन गांवों में ज्यादा पॉजिटिव केसेज़ हैं उन गांवों में पहले टेस्टिंग की जा रही है. हमारा लक्ष्य है कि एक सप्ताह के अंदर सभी गांवों में लोगों का टेस्ट कर लिया जाए. गावों में एंटीजन टेस्ट हो रहा है और इसमें जो पॉजिटिव निकल रहे हैं उन्हें मेडिकल किट दी जा रही है. जिले में कुल 1151 बेड्स हैं. अधिकतर ऑक्सीजन सपोर्ट के हैं. तीन प्राइवेट अस्पताल भी कोविड मरीजों को भर्ती कर रहे हैं. यहां कोविड डेडिकेटेड अस्पतालों में 24 वेंटीलेटर सक्रिय हैं''
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